आज शाम कानपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर दो पर वाराणसी जाने की रेलगाड़ी बहुत देर से खड़ी थी। मैं प्लेटफॉर्म नंबर एक पर लखनऊ-दिल्ली शताब्दी के आने का इंतज़ार कर रहा था। तभी एक लड़का वाराणसी जाने वाली गाड़ी से कूदा और ट्रैक फांद कर मेरे पास आ गया। सेल्फी के लिए। मैंने उसे डांटा भी कि यह आप क्या कर रहे हैं, तो जवाब देता है कि आपके साथ सेल्फी चाहिए। मेरे साथ खड़े लोग भी उसे समझाने लगे। मैंने भी समझाया कि आपने बहुत ग़लत काम किया है।
मैं उसे समझा ही रहा था कि इसी बीच मैंने देखा कि जिस बोगी से लड़का कूद कर मेरे पास आया था, वहीं से एक और लड़का मेरे पास आने के लिए कूदना चाहता है। मैं चिल्लाने लगा कि प्लीज़ ऐसा मत कीजिए, तभी मेरी नजर एक दूसरे लड़के पर पड़ी जो उसी ट्रेन की बोगी के नीचे से रेंगता हुआ निकल रहा था। पटरी पर ट्रेन खड़ी थी और चक्कों के बीच उसका शरीर।
मेरी नज़र नहीं जाती, अगर मेरी दीदी की चिल्लाती हुई आवाज़ कानों तक नहीं पहुंचती। मैं यह देखने के लिए मुड़ा कि वह चीख़ क्यों रही हैं, मेरी नज़र बोगी के नीचे से निकलते एक लड़के पर पड़ी। जल्दी ही कई लोग ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे कि जल्दी निकलो। वाराणसी जाने की ट्रेन ने सीटी मार दी थी। मैं भी चिल्लाने वालों में शामिल हो गया। वह बाहर आया ही था कि उस जगह से ट्रेन का पहिया गुज़र गया। बाहर आकर भी वह नहीं माना। एक और बार वह झुक कर हाथ बढ़ाने लगा कि प्लेटफॉर्म नंबर एक से लोगों की आवाज़ तेज़ हो गई। लोग चीख़ रहे थे कि मत करो। मोबाइल के लिए जान मत दो।
लेकिन वह ज़िद्दी और शांत भाव से खड़ा रहा। एक-एक कर गाड़ी की बोगी गुज़र रही थी। मैं भागा पुलिस की तरफ। क्षण भर पहले पुलिस दल दिखा था। मैंने नज़र दौड़ाई लेकिन नज़र नहीं आया। वापस आया तो लोग अब भी चिल्ला रहे थे कि मत करो ऐसा। मैंने झट से उस लड़के की तस्वीर ले ली। इस तस्वीर में वही लड़का खड़ा है।
खैर वह हर बोगी के गुज़रने का इंतज़ार करता रहा। जैसे ही आख़िरी बोगी गुज़री लड़के ने चील की गति से मोबाइल पर झपट्टा मारा और उठाकर प्लेटफॉर्म पर चढ़ गया। अब वह कुछ देर निकल चुकी ट्रेन की आख़िरी बोगी को पकड़ने के लिए दौड़ने लगा। किसी फ़िल्मी खलनायक की तरह। प्लेटफॉर्म नंबर एक पर खड़े लोगों की धड़कनें फिर बढ़ गई। वे फिर रोको-रोको चिल्लाने लगे। वह लड़का ट्रेन में सवार हो चुका था।
सेल्फी और मोबाइल के लिए प्लीज़ ऐसा मत कीजिये। मेरे साथ सेल्फी खिंचाने के लिए किसी को चोट भी लग जाए तो मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाता, लेकिन मोबाइल के लिए बोगी के नीचे चले जाने के जुनून ने तो सारी हदें पार कर दीं।
खैर हम शताब्दी में बैठ गए। कोच नंबर सी-7। पीछे की सीट पर बैठी महिला अपने पर्स में मोबाइल ढूंढ़ रही थी। किसी ने कोच में सवार होते वक्त हाथ साफ़ कर लिया था।