पूरी दुनिया के अलग-अलग देशों में रहने वाले नागरिकों के चरित्र से आप उस देश की राजनीतिक और समाजिक पृष्ठभूमि का अंदाजा लगा सकते हैं।
इस बात की तस्दीक करती हाल की घटना है ग्रीस का जनमत संग्रह। ग्रीस में आर्थिक संकट के बावजूद यूरो जोन की सख्त शर्तों के सामने वहां के लोगों ने हथियार नहीं डाले। सरकार के खिलाफ न कोई धरना और न प्रदर्शन। खामोशी से लोगों ने बैलेट के जरिये जता दिया कि वह इस आर्थिक लड़ाई में अपनी सरकार के साथ है न कि यूरो जोन के कड़कड़ाते पैसों के साथ। उनके इस फैसले के पीछे स्पार्टा, एथेंस और सिकंदर की विरासत का इतिहास खड़ा है।
लेकिन राजनीतिक और आर्थिक तौर पर लड़खड़ाते देशों में अगर उनके नागरिक मजबूती और जिम्मेदारी से एक-दूसरे के साथ खड़े हैं तो वो कभी कमजोर नहीं हो सकता है। वो चाहे इमरजेंसी के वक्त हमारे देश के नागरिक हों या दूसरे विश्व युद्ध के वक्त ब्रिटेन के लोग, लेकिन अब तक मैं सबसे ज्यादा ग्रेट ब्रिटेन के लोग और उनके नेता चर्चिल से प्रभावित रहा हूं।
यह एक संयोग ही है कि ग्रीस के आर्थिक मंदी के तार भी दूसरे विश्व युद्ध से जुड़े हैं और मैं जो उदाहरण देने जा रहा हूं, वह भी दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त का है।
दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त जब जर्मनी लंदन को बरबाद करने पर तुला था और ब्रिटेन काफी कमजोर हो चला था। उस वक्त विंसटन चर्चिल ने साफ कर दिया कि हालात चाहे कुछ भी हो ब्रिटेन लड़ता रहेगा, हालांकि उनके सैनिक हर मोर्चे पर नाकाम हो रहे थे।
जून 1940 में नाजियों के बेरहम हमले में लंदन के हज़ारों लोग मारे गए। मकान, फैक्ट्रियां तहस-नहस हो गईं। 4 जून 1940 को चर्चिल ने कहा था कि हम तटों पर, लैंडिंग ग्राउंड पर, पहाड़ियों पर, मैदानों में लड़ेंगे, लेकिन हम नाजियों के सामने आत्म समर्पण बिल्कुल नहीं करेंगे।
जर्मन का हमला जारी रहा ब्रिटेन जर्मन हमले से जूझने की तैयारी कर रहा था। बच्चों की सुरक्षा के लिए उन्हें देहात की तरफ भेज दिया गया। इन बच्चों की मां..दादी और बहनों ने युद्द से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। पुरुष होमगार्ड में भर्ती होने लगे।
चर्चिल ने इस मौके पर कहा था कि ये उनकी जिंदगी के बेहतरीन पल थे। इस संघर्ष के तीन साल बाद ब्रिटेन विश्वविजेता के रूप में निकला।
आधुनिक दुनिया में संकट के क्षणों में नागरिकों की इस मजबूती की मिसाल शायद कहीं नहीं मिलती है। मुझे लगता है कि ग्रीस का जनमत संग्रह इस मायने में खास है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले वक्त में सरकारी नौकरियों की तनख्वाहों में कटौती और बजट घाटा कम करके ये देश अपने पैरों पर खड़ा होगा, जिसकी गवाही महान रोमन साम्राज्य का इतिहास भी देता है।
This Article is From Jul 06, 2015
रवीश रंजन की कलम से : इतिहास बना गया ग्रीस का जनमत संग्रह
Ravish Ranjan Shukla
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Updated:जुलाई 06, 2015 14:47 pm IST
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Published On जुलाई 06, 2015 14:43 pm IST
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Last Updated On जुलाई 06, 2015 14:47 pm IST
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