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This Article is From Nov 15, 2019

60 के दशक में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 15, 2019 11:48 am IST
    • Published On नवंबर 15, 2019 10:28 am IST
    • Last Updated On नवंबर 15, 2019 11:48 am IST

संतोष कुमार सिंह की पोस्ट से पता चला कि वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे. उनका पार्थिव शरीर काफ़ी देर तक अस्पताल के गलियारे में पड़ा रहा. एंबुलेंस नहीं मिली. 1960 के दशक में जिस यूनिवर्सिटी से वशिष्ठ नारायण सिंह ने पीएचडी की थी, वहां पहुंचा हूं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कली (University of California). 1861 में यह यूनिवर्सिटी शुरू हुई थी, जिस साल ग़ुलाम भारत में भारतीय दंड संहिता शुरू हुई थी.

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वशिष्ठ नारायण सिंह की यूनिवर्सिटी दुनिया की श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी में से एक है. वहां पर साठ के दशक में कोई भोजपुर के बसंतपुर गांव से पहुंच कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहा होगा, यह बात अभिशप्त हिन्दी प्रदेश बिहार के लिए किसी काल्पनिक कहानी से कम नहीं है. बर्कली को नहीं पता कि उनका एक प्रतिभाशाली छात्र दुनिया से चला गया है. दरअसल, साठ के दशक का कोई नहीं बचा है. 

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गणित विभाग में पीढ़ियों का बदलाव आ गया है. आज वशिष्ठ नारायण सिंह के गुज़र जाने का दुखद समाचार सुना तो उनके गणित विभाग में चला गया. हो सकता है तब यह इमारत ही नहीं हो और गणित की पढ़ाई कहीं और होती हो. पर मुझे अच्छा लगा. उनकी आत्मा को शांति मिलेगी. तस्वीर में जो बड़ी से इमारत दिख रही है उसी में गणित विभाग है. शानदार विभाग है.

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यहां के लोगों से पूछा तो उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. पढ़ाने वालों की तस्वीरों में दो भारतीय भी दिखे. इस यूनिवर्सिटी की भव्यता आज भी क़ायम है. सरकारी है. दुनिया भर के मुल्कों के छात्र नज़र आ रहे हैं. यहां पढ़ने का अनुभव ही शानदार होगा. वशिष्ठ नारायण सिंह की यूनिवर्सिटी से उन्हें श्रद्धांजलि. 

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