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This Article is From May 06, 2015

सलमान भाई को मेरी चिट्ठी दे देना भाई लोग

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 10, 2015 00:00 am IST
    • Published On मई 06, 2015 12:24 pm IST
    • Last Updated On मई 10, 2015 00:00 am IST
सलमान भाई,

1989 की कोई दोपहर होगी, जब पटना में 'मैंने प्यार किया' देखकर निकला था। एक साल पहले आमिर ख़ान की फिल्म 'कयामत से कयामत तक' आ चुकी थी। वह फिल्म भी मैंने ऐसे ही अचानक देखने का फ़ैसला किया था। दो साल में दो हीरो मिले थे मुझे। आमिर ख़ान और आप। मेरे जीवन की यात्रा में आपकी फ़िल्में भी शामिल होती चली गईं। 1991 में जब 'साजन' आई तो मैं दिल्ली आ चुका था। आप तब तक पर्दे पर असहज ही दिखते थे। बहुत संकोच के साथ कुछ कहते थे और जब नहीं कह पाते थे तो आपका शरीर बोलने लगता था। चेहरे पर एक अजीब-सी घनी तीव्रता बन जाती थी, जहां न कह पाने की तड़प सिनेमाहॉल के अंधेरे में बैठे दर्शक को साथ ले लेती थी। आपके देखने में ईमानदारी थी और बोलने में एकांत और ठहराव।

वर्ष 1994 में आई 'हम आपके हैं कौन' भी पसंद आई थी। 'हम आपके हैं कौन' भी 'मैंने प्यार किया' जैसी ही थी। तब तक हम हिन्दी सिनेमा को 'बागबान' जैसी सतही फिल्मों की तरह महान समझकर ही देखा करते थे। बल्कि पहली बार में लगा कि हालीवुड में भी 'बागबान' जैसी फिल्म नहीं बनती होगी। बहुत साल बाद फेसबुक पर किसी ने जब उस फिल्म की हजामत बनाई, तब समझा कि जो देखा था, वह दरअसल देखना था ही नहीं। फिर आप मेरे हीरो बनने लगे थे। गोविंदा के बाद किसी को जनता का हीरो बनते देखा तो वह आप थे।

आपकी कई फिल्में मैंने नहीं देखीं, लेकिन बहुत सारी देखी हैं। मुझे पर्दे का सलमान अच्छा लगता है। थोड़ा ज़्यादा बदमाश है, मगर वह अपनी धुन का हीरो है। 'करण अर्जुन' हो या 'अंदाज़ अपना-अपना'। कभी बाग़ी तो कभी जोकर लगता है। कभी अनाड़ी तो कभी छलिया लगता है। 'हम दिल दे चुके सनम' में जब ऐश्वर्या ने आपको नींबू से मारा था, तब लगा कि नौटंकीबाज़ ऐसे कर रहा है, जैसे किसी ने पत्थर मार दिया हो। आपकी फिल्म कभी सिनेमाहॉल से बाहर तो नहीं जा सकी, लेकिन लौटते वक्त आप मेरे साथ ज़रूर आए।

लेकिन धीरे-धीरे मैं आपकी फिल्में इसलिए देखने लगा कि क्या खूबी है कि सौ करोड़ का कारोबार करती हैं। जिसकी कामयाबी से लड़ने के लिए सब एक से एक औसत फिल्में करने लगे हैं। 'वॉन्टेड' की शैली में आमिर ने 'गजनी' की तो देखा नहीं गया। शाहरुख ख़ान ने 'चेन्नई एक्सप्रेस' और 'हैप्पी न्यू ईयर' की तो लगा कि सब सलमान होना चाहते हैं। बॉक्स ऑफिस का हीरो सलमान ख़ान। 'दबंग' तक आते-आते आप इतने लोकप्रिय हो चुके थे कि एक सिनेमाघर के मालिक ने बताया कि सलमान भाई की फिल्म आती है तो लोग हफ्ते भर पहले से ही पूछताछ चालू कर देते हैं। पक्का फ्रंट स्टॉल का हीरो सलमान ख़ान। दिमाग़ को दिल के रास्ते बहलाने वाला हीरो।

सलमान भाई, आज आपको सज़ा हुई है। हम सब अपने-अपने छोटे-बड़े गुनाहों को भुगतते रहते हैं। कभी अंदर से तो कभी बाहर से। मैं चाहता हूं कि मेरा सलमान सच्चे हीरो की तरह प्रायश्चित्त करे। उस परिवार और व्यक्ति की सोचे, जो आपकी महंगी कार के नीचे आ गए। सज़ा वह नहीं है, जो अदालत देती है। अदालत तो समाज और राज्य में एक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सज़ा देती है, ताकि सब नियम-कानून का पालन करें। असली सज़ा वह होती है, जिसे इंसान ख़ुद भुगतता है।

इसलिए सलमान भाई, आज से ज़िंदगी के उन पलों का हिसाब कीजिएगा, जो बेहिसाब रह गए हैं। जिनका हिसाब सभी को करना पड़ता है। मुझे पता है कि आप असली ज़िन्दगी में यारों के यार और तलबगारों के मददगार हैं, लेकिन कई बार एक ग़लती सीने पर ऐसे बैठ जाती है कि सब बेमानी हो जाता है। पर आप चाहेंगे तो बेमानी होने से रोक सकते हैं। मुझे दुख हो रहा है कि मेरा हीरो जेल जा रहा है। मुझे उसके लिए भी दुख हो रहा है, जिसके लिए हीरो जेल जा रहा है। मैं बस यही चाहता हूं कि आप मेरे दुख की चिन्ता न करें। उनकी करें, जो आपकी गाड़ी के नीचे आ गए। सज़ा काटने का एक बेहतर तरीका और है। उन लोगों से दूरी बना लें, जो इतने दिनों तक आपको बेगुनाह साबित कर देने के भ्रम में डालते रहे।

आपके पास ऊपरी अदालत की दहलीज़ पर जाने का मौक़ा तो है और जाना भी चाहिए, लेकिन उस दहलीज़ पर तभी जाएं, जब बेगुनाही पर वाकई यकीन हो। दलीलों से गुनाह कम नहीं हो जाता सलमान भाई। उन दलीलों को सुनिए, जो आपके भीतर इस वक्त मचल रही होंगी। अगर सच्चे मन से लौटकर आएंगे तो मैं फिर से उस नए सलमान के लिए टिकट खिड़की पर खड़ा मिलूंगा, जैसे मैं 1989 में मिला था।

आपका एक दर्शक
रवीश कुमार

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