माननीय मुख्यमंत्री कमलनाथ जी,
मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने ऑनलाइन परीक्षाओं की फीस दोगुनी से ज्यादा कर दी है. वन सेवा की परीक्षा में सामान्य वर्ग के लिए 1200 की जगह 2500 रुपए, वहीं आरक्षित वर्ग के लिए 600 की जगह 1250 रुपए. हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी ने लिखा है. फ़ीस को लेकर बाहरी भीतरी छात्र में फ़र्क़ किया जा रहा है. यह क्या हो रहा है? बेरोज़गार युवाओं के साथ ऐसा क्यों ? 2500 रुपये फार्म भरने के? क्या सरकार के पास राजस्व के साधन नहीं बचे? इससे तो यही लगता है कि परीक्षा एक रक्त पिपासु उद्योग है. यह सही है कि भारत के युवाओं की राजनीतिक चेतना सांप्रदायिक होते होते थर्ड क्लास हो गई है, लेकिन उन्हें और मारना तो ठीक नहीं है. अच्छी शिक्षा से वंचित हिन्दी प्रदेशों के इन युवाओं के साथ ऐसा मत कीजिए. मध्य प्रदेश से कई छात्र लिखते हैं कि साल भर हो गए कोई नई भर्ती नहीं निकली है. अब भर्ती से पहले फार्म का ये हाल? इतना महंगा?
जो लोग जेएनयू की फ़ीस वृद्धि के पक्ष में अलाय-बलाय बक रहे थे, वो हो सकता है कि आपकी सरकार के इस फ़ैसले का भी समर्थन करने आ जाएं, क्योंकि उन्हें शादी तो दहेज लेकर करनी है. फ़ीस से लेकर पढ़ाई का हर ख़र्चा किसी और से वसूलना है. ऐसे घृणित पुरुष समाज में उनसे उम्मीद क्या करें लेकिन फिर भी ये ग़लत है. जेएनयू की फ़ीस वृद्धि का समर्थन करने वाले लोग बीजेपी सरकार के एक बेकार वाइस चांसलर का बचाव कर रहे थे. वो जेएनयू को ख़त्म हो जाने देना चाहते हैं, ताकि ग़रीब एक शानदार यूनिवर्सिटी का सपना न देख सके. हो सकता है ऐसे लंपट कांग्रेस सरकार के फ़ैसले का विरोध करने आ जाएं तब भी कहूंगा कि उनका भी स्वागत हो ताकि वे ग़रीबी को महसूस करें.
फ़ीस बढ़ाने की जगह आप परीक्षा को ईमानदार और पारदर्शी बनाते तो स्वागत योग्य होता. परीक्षा का कैलेंडर बनाकर और उसके अनुसार ज्वाइनिंग देकर दिखाते तो वाहवाही होती. वो आप अभी तक नहीं कर सके, लेकिन ढाई हज़ार फार्म के? वैसे 1200 भी अति है.
मैंने नौकरी सीरीज़ बंद की है. आंखें नहीं.
रवीश कुमार
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