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This Article is From Sep 21, 2018

नौकरियों से परेशान युवा अब मुझे मैसेज भेजना बंद कर दें, प्रधानमंत्री को भेजें

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    September 21, 2018 15:14 IST
    • Published On September 21, 2018 15:14 IST
    • Last Updated On September 21, 2018 15:14 IST
EPFO ने फिर से नौकरियों को लेकर डेटा जारी किया है. सितंबर 2017 से जुलाई 2018 के बीच नौकरियों के डेटा को EPFO ने कई बार समीक्षा की है. इस बार इनका कहना है कि 11 महीने में 62 लाख लोग पे-रोल से जुड़े हैं. इनमें से 15 लाख वो हैं जिन्होंने EPFO को छोड़ा और फिर कुछ समय के बाद अपना खाता खुलवा लिया. यह दो स्थिति में होता है. या तो आप कोई नई संस्था से जुड़ते हैं या बिजनेस करने लगते हैं जिसे छोड़ कर वापस फिर से नौकरी में आ जाते हैं.

EPFO लगातार अपनी समीक्षा के पैमाने में बदलाव कर रहा है. लगता है कि वह किसी दबाव में है कि किसी भी तरह से अधिक संख्या दिखा दें ताकि सरकार यह कह सके कि देखो कितनी नौकरियां दे दी. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के महेश व्यास ने कहा है कि जल्दबाज़ी में EPFO के डेटा से समझौता किया जा रहा है. 24 प्रतिशत लोग अगर EPFO से अलग होकर फिर से जुड़ रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि नई नौकरियां नहीं बन रही हैं. इन लोगों को नई नौकरियों के खाते में नहीं डाला जा सकता है. महेश व्यास रोज़गार पर लगातार लिखते रहते हैं.

जो लोग नौकरी की आस में हैं, उनकी दुनिया में यह ख़बर है कि कितनी नौकरियां आ रही हैं और उनमें से कितनी दी जा रही हैं. इन नौजवानों को सब पता है. आप उनसे पूछिए कि बैंकिंग में कितनी वैकेंसी कम हो गई. साल दर साल गिन कर बता देंगे. रेलवे से लेकर सिविल परीक्षाओं के हिसाब हैं उनके पास. हम पत्रकारों को भले न पता हो लेकिन स्टाफ सलेक्शन कमिशन की परीक्षाओं के बारे में नौजवानों के पास सब हिसाब है. वो झट से बता देते हैं कि कैसे हर साल नौकरियों में गिरावट आ रही है. परीक्षा पास कर नौजवान बैठे हैं मगर ज्वाइनिंग नहीं मिल रही है.

मैं कई बार लिख चुका हूं. प्राइम टाइम में बोल चुका हूं. मेरे बस की बात नहीं है कि मैं हर एक की नौकरी की समस्या का दिखा दूंगा. कारण भी बताया है. मेरे पास सचिवालय या मंत्रालय नहीं है. जिनके पास है वो सुबह शाम महापुरुषों की जयंति और पुण्यतिथि ट्वीट करते रहते हैं. क्या ये लोग फर्ज़ी प्रेरणा पाने और आदर जताने के लिए मंत्री बने हैं या फिर जनता को जवाब देने के लिए?

मैं सिस्टम की बात करता हूं. एक आयोग कई तरह की भर्तियां निकालता है. वही सताने वाला है. अगर वह सुधरेगा तो सबको लाभ होगा. आप अपनी अपनी नौकरी की चिंता अब छोड़ दें. सिस्टम की बात करें. मैं समझता हूं कि आप परेशान हैं. इस वक्त कुछ समझ नहीं आता होगा. तभी बंगाल से नौजवान रात के दो बजे तक फोन करते रहे. आप सिर्फ यही चाहते हैं कि मेरा दिखा दें. यही बात नेताओं को पसंद है.

युवा मेरा-मेरा कर रहा है. शातिर नेता गिद्ध निगाह से आपको देख रहा है. वह चुनावों में आएगा और आपको अपने पाले में ले उड़ेगा. फिर बाद में आप ही लोग उसके जुनून में मुझे मां-बहन की गाली देने आएंगे. मारने आएंगे. यकीन न हो तो इस कमेंट बाक्स में खुद ही अपनी शक्ल देख लें. आप इतने डर गए हैं. इतने मर गए हैं कि उन कमेंट का जवाब देने में भी आपके हाथ कांप जाते हैं. अपनी ही नौकरी की बात इनबाक्स में चुपके से करते हैं. हां, उन नौजवानों के प्रति खासा सम्मान है जो अपनी नौकरियों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं. बिना टीवी चैनलों की मदद के. लाठियां खा रहे हैं. आमरण अनशन कर रहे हैं. आपके इस जज़्बे को सलाम दोस्तों.

दुनिया के किसी भी चैनल पर एक साल तक यूनिवर्सिटी, बैंक और नौकरी की बात नहीं हुई होगी. मैंने सारी ख़बरें छोड़ दीं. थीम और थ्योरी के सारे डिबेट बंद कर दिया. आपमें से कई हज़ार को ज्वाइनिंग लेटर भी मिला. संख्या चालीस हज़ार से भी ज्यादा जा सकती है. फिर भी आप इस बारे में एक प्रोमो नहीं देखेंगे कि मैंने ये कर दिया. वो कर दिया. क्या आपने प्राइम टाइम का ऐसा प्रोमो देखा है जैसा बाकी एंकर चलाते हैं कि हम नंबर वन हैं. हमने ये कर दिया वो कर दिया. मैंने इस मसले पर पचासों लेख लिखे हैं. 

आप अपने जीवन काल में किसी भी चैनल में एक साल तक नौकरियों पर सीरीज़ चलते नहीं देख पाएंगे. यह इसलिए किया क्योंकि वाकई मैं आपकी तक़लीफ़ों से जुड़ गया था. मैं सैंकड़ों मैसेज और ईमेल पढ़ता चला गया. स्वास्थ्य खराब हो गया. जितने का दिखा सकता था, दिखाया. जबकि मैं जानता हूं कि आप किस टाइप के दर्शक बना दिए गए हैं. आप भी उसी हिन्दू मुस्लिम के जाल में फंसे थे. फर्ज़ी राष्ट्रीयता के चक्कर में फंसे थे. नेता जब भी राष्ट्रवाद की बात करे वह फ्रॉड होता है. वह जब भी नौकरी की बात करे, वह बहुत अच्छा नहीं तो बहुत बुरा भी नहीं होता है.

मैं मशीन नहीं हूं. आपकी तकलीफों को पढ़कर मुझ पर असर हो जाता है. आप तो मैसेज ठेल कर मस्ती करने निकल जाते होंगे. मैं दिन भर उदास हो जाता हूं. इसलिए मुझे मैसेज करना बंद कर दो. चुनाव आ रहा है थोड़ा इन नेताओं को भी कष्ट दें जिनके नाम का झंडा ढोने के लिए आप झुंड में बदल जाते हैं. मुझसे आपकी तक़लीफ़ देखी भी नहीं जाती है, पर सवाल है कि क्या आप अपनी तक़लीफ़ और उसके कारणों को देख पा रहे हैं?

नौजवान बताएं कि लगातार देखने के बाद सिस्टम और सियासत के बारे में उनकी क्या समझ बनी है? क्या उनके सवालों की सूची में इन सब बातों का स्थान होगा या फिर वे जाति देखेंगे, धर्म देखेंगे, अपना अपना फायदा देखेंगे? इम्तहान इन नौजवानों को देना है. मुझे नहीं. अत मित्रों मुझे मुक्ति दें. मुझे व्हाट्सएप करना बंद करें. इनबॉक्स करना बंद करें.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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