जिस तरह चक्रवाती तूफानों के नाम होते हैं उसी तरह अब सूखे का भी नाम रखना चाहिए. मैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर ‘नीतीश सूखा' रखना चाहता हूं. ‘नीतीश सूखा' वह सूखा है जो राज्य सरकार की हज़ारों सबमर्सिबल पंप लगाने की नीति से आ चुका है या आने वाला है. आप जानते हैं कि 2016 के चुनाव के समय नीतीश कुमार ने सात निश्चय किए थे. इसमें एक निश्चय यह है कि सभी घरों को नल का पानी दिया जाएगा. इस योजना पर राज्य सरकार ठीक-ठीक तेज़ी से काम कर रही है. हो सकता है कि 31 मार्च 2020 तक वह लाखों घरों को नल वाला जल उपलब्ध करा दे. लोगों के घर में पाइप से पानी जाने लगे. इससे पहले कि बिहार में ‘नीतीश सूखा' आ जाए और भूमिगत जलस्तर और तेज़ी से नीचे चला जाए, हमें जगह-जगह लगाए जा रहे सबमर्सिबल पंपों के ख़तरों का अंदाज़ा कर लेना चाहिए.
बिहार सरकार ने अपनी तरह से ठीक सोचा होगा कि लोगों को घर में पानी मिलना चाहिए. उसके पास उपलब्ध समाधानों में यही एक समाधान भी होगा जिससे वह तेज़ी से नल का जल पहुंचाते हुए दिखाई देती. इसलिए मुख्यमंत्री ने इसे सात निश्चय में शामिल किया. अफसोस कि कहां पानी को बचाने का अभियान उनके निश्चय में शामिल होता, हो गया उल्टा. भूमिगत जल के सार्वजनिक या सरकारी दोहन की इस योजना को अगर कोई निश्चय में शामिल करे तो याद रखिए अब पानी को लेकर कुछ नहीं हो सकता है. यह न सिर्फ पानी की लूट का रास्ता तय कर रहा है बल्कि सार्वजनिक धन की लूट के भी नए हिस्सेदार खड़े कर रहा है.
बिहार के अखबारों में सबमर्सिबल पंप से संबंधित ख़बरों को खंगालिए. बिना सोचे समझे पत्रकार इस पंप के लगाने की योजना को ख़ुशख़बरी के रूप में पेश कर रहे हैं. बीच बीच में पंप लगाने को लेकर कई तरह के घोटाले की ख़बरें भी कोने-किनारे में छपी मिली हैं. पटना की ख़बर है कि पटना नगर निगम शहर के सभी 75 वार्ड में 375 सबमर्सिबल पंप लगा रही है. एक वार्ड में पांच सबमर्सिबल पंप का औसत बनता है. दरभंगा में भी 150 के करीब सबमर्सिबल पंप लग रहे हैं. राज्य के सभी वार्डों और पंचायतों के लिए यह योजना है. अगर जनता सरकार को अभियान की तरह सबमर्सिबल पंप लगाते देखेगी तो वह ख़ुद भी प्रोत्साहित होगी कि इस तरह के पंप लगाए. यही हो भी रहा है.
दरभंगा जैसे शहर में जहां तालाबों की संख्या सैंकड़ों में थी, आज उनमें पानी नहीं है. इस ज़िले से गुज़रने वाली 90 से अधिक नदियों की धाराएं सूख चुकी हैं. बहुत सारी नदियां ग़ायब हो गई हैं. शहर का भूमिगत जलस्तर नीचे चला गया तो वहां लगाए गए सैकड़ों की संख्या में हैंडपंप सूख गए. हैंडपंप भी ज़मीन से पानी लेता है. उसकी जगह पर लाया गया सबमर्सिबल पंप जो ज्यादा गहरे जाकर पानी ला सकता है. इस शहर में हर दिन औसतन 16-18 सबमर्सिबल पंप लगाए जा रहे हैं. पिछले तीन महीनों में 1500-1600 सबमर्सिबल पंप तो ख़ुद लोगों ने लगाए हैं. जिस पर अपनी जेब से 80 हज़ार से लेकर एक लाख रुपये तक का खर्च किया है.
बिहार में पानी का बिजनेस भी चल निकला है. प्राइवेट पंप लगाकर टंकी में भरकर टैंपों से गांव-गांव में बिसलरी वाले डब्बे में पानी बेचा जा रहा है. आप बिहार जाइए, हर जगह छोटे टैंपों पर पानी की एक या दो टंकियां रखी मिलेंगी. इस वक्त बिहार में सबमर्सिबल पंप की इतनी मांग है कि हरियाणा, राजस्थान और यूपी से बोरिंग करने वाले अपनी मशीनें लेकर आ गए हैं.
क्या 1000 फीट पर पानी अनंत मात्रा में उपलब्ध है? जब पानी 40 फीट से 200 फीट पर जा सकता है तो एक दिन 1000 फीट और उससे भी नीचे चला जाएगा तब आप क्या करेंगे? बिहार में तालाबों का बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुआ. जो तालाब हैं उनकी साफ-सफाई नहीं हुई. जब तक आप पानी के पारंपरिक संसाधनों को नहीं बचाएंगे, सबमर्सिबल पंप से पानी देने की योजना से आप सूखा आने की रफ्तार को तीन गुना तेज़ कर देंगे. जहां भी ऐसे पंप लगे हैं वहां साल दो साल में भूमिगत जलस्तर नीचे गया है. अगर हम पानी बचाएंगे नहीं, तो ज़मीन से खींचकर पानी पहुंचाने की यह योजना सिर्फ आज और कल का समाधान साबित होगी. परसों या उसके अगले दिन सूखा आएगा ही आएगा.
बिहार के कई ज़िलों में सबमर्सिबल पंप के कारण भूमिगत जलस्तर नीचे जाने ही लगा होगा. लोकसभा चुनाव के समय एक ऐसे ही गांव के लोगों से टकरा गया था. लोगों ने पानी की मांग को लेकर सड़क जाम कर दिया था. उनके गांव के सारे कुएं सूख गए थे. हैंडपंप का पानी अचानक नीचे चला गया और बेकार हो गया था. दस दिनों से पानी नहीं था. मगर उसी गांव के ठीक सड़क उस पार दो गांवों में पानी आ रहा था. क्योंकि वहां सबमर्सिबल पंप से ज़्यादा गहराई से पानी खींचा जा रहा था. ज़ाहिर है इसका असर प्रदर्शन कर रहे गांव पर पड़ा ही होगा. ऐसा देश के कई हिस्सों में हो चुका है. ट्यूबवेल और सबमर्सिबल पंप कुछ समय के बाद सूख ही जाते हैं.
काश नीतीश कुमार पानी के संसाधनों को बचाने का निश्चय करते. पूरी सरकार तालाबों को बचाने में लग जाती तो लोग उसकी कामयाबी को देखते हुए अपने स्तर से भी तालाबों को बचाने का प्रयास करते. जब तक अभियान वर्षा जल संचय का नहीं होगा, लाखों तालाबों को फिर से ज़िंदा करने का नहीं होगा, तब तक हम पानी पहुंचाने की योजना का दिखावा ही करते रहेंगे. हज़ारों लाखों की संख्या में सबमर्सिबल पंप लगाने की योजना को प्रोत्साहित कर हम बिहार में हर जगह सूखे की स्थिति पैदा कर रहे हैं. अगर सबमर्सिबल ही समाधान होता तो चेन्नई में आज पानी का संकट नहीं होता. इसलिए कह रहा हूं कि भले ही लोगों को कुछ समय के लिए पानी मिलता दिख रहा होगा, नीतीश का पानी पहुंच रहा होगा, जल्दी ही उनके घरों में ‘नीतीश सूखा' भी पहुंचने वाला है.
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