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This Article is From Jan 31, 2021

क्या भारत में प्रेस की आजादी बिल्कुल खत्म हो जाएगी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 31, 2021 22:24 pm IST
    • Published On जनवरी 31, 2021 22:23 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 31, 2021 22:24 pm IST

मनदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूं. हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा. कानपुर के अमित सिंह पर मामला दर्ज हुआ है. राजदीप सरदेसाई और सिद्धार्थ वरदराजन पर मामला दर्ज हुआ है. क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी? आज मैंने ट्विटर पर ट्वीट  किया है. अगस्त 2015 के बाद आज पहली बार ट्वीट किया है. वही पत्र यहां डाल रहा हूं. जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊंची नहीं हो सकती हैं. जो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाना चाहते हैं वो देश को जेल में बदलना चाहते हैं.

डियर जेलर साहब, 

भारत का इतिहास इन काले दिनों की अमानत आपको सौंप रहा है. आज़ाद आवाज़ों और सवाल करने वाले पत्रकारों को रात में ‘उनकी' पुलिस उठा ले जाती है. दूरदराज़ के इलाक़ों में FIR कर देती है. इन आवाज़ों को संभाल कर रखिएगा. अपने बच्चों को व्हाट्सऐप चैट में बताइएगा कि सवाल करने वाला उनकी जेल में रखा गया है. बुरा लग रहा है लेकिन मेरी नौकरी है. जेल भिजवाने वाला कौन है, उसका नाम आपके बच्चे खुद गूगल सर्च कर लेंगे. जो आपके बड़े अफ़सर हैं, IAS और IPS,अपने बच्चों से नज़रें चुराते हुए उन्हें पत्रकार न बनने के लिए कहेंगे. समझाएंगे कि मैं नहीं तो फ़लां अंकल तुम्हें जेल में बंद कर देंगे. ऐसा करो तुम ग़ुलाम बनो और जेल से बाहर रहो. 

भारत माता देख रही है, गोदी मीडिया के सर पर ताज पहनाया जा रहा है और आज़ाद आवाज़ें जेल भेजी जा रही हैं. डिजिटल मीडिया पर स्वतंत्र पत्रकारों ने अच्छा काम किया है. किसानों ने देखा है कि यू ट्यूब चैनल और फ़ेसबुक लाइव से किसान आंदोलन की ख़बरें गांव-गांव पहुंची हैं. इन्हें बंद करने के लिए मामूली ग़लतियों और अलग दावों पर FIR किया जा रहा है. आज़ाद आवाज़ की इस जगह पर ‘सबसे बड़े जेलर' की निगाहें हैं. जेलर साहब आप असली जेलर भी नहीं हैं. जेलर तो कोई और है. अगर यही अच्छा है तो इस बजट में प्रधानमंत्री जेल बंदी योजना लॉन्च हो, मनरेगा से गांव-गांव जेल बने और बोलने वालों को जेल में डाल दिया जाए. जेल बनाने वाले को भी जेल में डाल दिया जाए. उन जेलों की तरफ़ देखने वाला भी जेल में बंद कर दिया जाए. मुनादी की जाए कि प्रधानमंत्री जेल बंदी योजना लॉन्च हो गई है. कृपया ख़ामोश रहें. 

सवाल करने वाले पत्रकार जेल में रखे जाएंगे तो दो बातें होंगी. जेल से अख़बार निकलेगा और बाहर के अख़बारों में चाटुकार लिखेंगे. विश्व गुरु भारत के लिए यह अच्छी बात नहीं होगी. 

मेरी गुज़ारिश है कि सिद्धार्थ वरदराजन, राजदीप सरदेसाई, अमित सिंह सहित सभी पत्रकारों के ख़िलाफ़ मामले वापस लिए जाएं. मनदीप पुनिया को रिहा किया जाए. FIR का खेल बंद हो.  मेरी एक बात नोट कर पर्स में रख लीजिएगा. जिस दिन जनता यह खेल समझ लेगी उस दिन देश के गांवों में ट्रैक्टरों, बसों और ट्रकों के पीछे हवाई जहाज़ों, बुलेट ट्रेन, मंडियों, मेलों, बाज़ारों और पेशाबघरों की दीवारों पर यह बात लिख देगी. “गुलाम मीडिया के रहते कोई मुल्क आज़ाद नहीं होता है. गोदी मीडिया से आज़ादी से ही नई आज़ादी आएगी.”

रवीश कुमार

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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