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This Article is From Jun 22, 2021

भारत में टीकाकरण अभियान लेट शुरू हुआ फिर भी सभी को मुफ्त टीका नहीं

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 22, 2021 04:09 am IST
    • Published On जून 22, 2021 04:09 am IST
    • Last Updated On जून 22, 2021 04:09 am IST

आज किसी को FOMO तो नहीं हुआ ? FOMO का मतलब होता है 'फियर ऑफ मिसिंग आउट.' मतलब आपको लग रहा है कि पार्टी चल रही है, लोग हंस बोल रहे हैं मगर कोई आपकी तरफ नहीं देख रहा है. आपको लगता है कि सभी आपको इगनोर मार रहे हैं. आज योग वालों को कहीं ऐसा नहीं तो लगा कि चैनलों पर उन्हें कम जगह मिली या टीका वालों को लगा कि योग वालों को ज्यादा मिली, उन्हें कम जगह मिली. या उन दोनों की जगह नेताओं को ज्यादा जगह मिल गई. 

संयुक्त राष्ट्र ने 11 दिसंबर 2014 को ऐलान किया कि 21 जून को पूरी दुनिया में योग दिवस मनाया जाएगा. छह साल तो अकेला ही मना लेकिन इस बार योग दिवस का एक कॉम्बो वेरिएंट लांच हो गया. योग प्लस टीका. चैनलों के स्क्रीन पर योग और इंजेक्शन के दृश्य एक दूसरे को धकियाकर अपनी जगह बनाते रहे. पहले आज के दिन नेताओं के साथ-साथ एक या दो ही योग गुरु छाए रहते थे, लगता था और कोई गुरु ही नहीं है, लेकिन आज इन एक दो योग गुरु को भी टीका के विशेषज्ञों के साथ अपनी जगह साझा करनी पड़ रही थी. जिन लोगों ने पैसे देकर टीका लगाए हैं उन्हें मुफ्त टीका अभियान के दिन FOMO हो गया होगा कि सब फ्री में लगा रहे हैं, उनके पैसे कट गए. योग गुरु ने टीका पर भाषण दिया तो टीका गुरु ने योग पर. 

भारत में 16 जनवरी के दिन टीका अभियान शुरू होता है. उसे दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान बताया जाता है. लेकिन जल्द ही दुनिया का सबसे बड़ा अभियान कई मोर्चों पर लड़खड़ाने लगा. हालत यह हो गई कि उसे संभालने के लिए प्रधानमंत्री के कर-कमलों द्वारा 11-14 अप्रैल के बीच एक टीकोत्सव लॉन्च किया गया. टीकोत्सव को लेकर भी विज्ञापनबाज़ी हुई लेकिन वह भी फ्लाप रहा. टीका लेने लोग आए, मगर टीका ही नहीं था. जैसा पहले के ज़माने में होता था, शहर के एक पिक्चर हॉल में आधी पिक्चर चल जाती थी तो उसकी रील दूसरे पिक्चर हॉल को भेजी जाती थी. इस बीच कभी भी लेट हो जाता था तो सरकारी विज्ञापन चलने लगता था और दर्शक सीटी बजाने लग जाते थे. आस-पास लाखों लोगों को मरते देख लोग टीका के लिए बेचैन हो उठे. टीका लेने के लिए भगदड़ मच गई. टीका था नहीं. टीका केंद्र बंद होने लगे. राज्य बनाम केंद्र का विवाद शुरू हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने टीका के आर्डर से लेकर कीमत तय करने की नीति का मसौदा मांग लिया. कुल मिलाकर इतना ज़्यादा घिच-पिच हो गया कि ठीक करने का कोई नया सिरा नहीं मिल रहा था. 

अब एक नई तारीख आई है. एक नई कट आफ डेट, नया प्रस्थान बिंदु ताकि पीछे के विवादों और उनसे जुड़ी जवाबदेही के सवालों से छुटकारा मिले. एक तरह से 21 जून टीका अभियान की नई तारीख़ बन जाता है. अब यहां से टीका अभियान नई उम्मीद, नए सवालों के साथ देखा जाएगा. मैं इसे ‘चांद-तारा रणनीति' कहता हूं. पहले चांद दिखाओ, कोई पूछे कि चांद तो दिख नहीं रहा, तो उसे तारे दिखाओ. फिर जब कहे कि तारे नहीं दिख रहे, तो उसे चांद दिखाओ. जब कहे कि चांद दिखा न तारा तो उसे आसमान दिखाओ. इसी में उलझाए रखो. चांद-तारा रणनीति की खोज मैंने की है लेकिन आप अपने नाम से पेटेंट करा सकते हैं. इसके तहत कुछ न कुछ दिखाते रहो ताकि लोगों को लगे कि दिख रहा है. 

पहले की रणनीति जो उलझ गई थी उसके लिए राज्यों पर दोष डालकर एक सही नीति का ऐलान किया गया जो पहले दिन से होनी चाहिए थी. अपनी ही ग़लती ठीक करने का महोत्सव मन सकता है यह काफी प्रेरक बात है. आरंभ से ही पूरी दुनिया में टीका अभियान मुफ्त चल रहा है. भारत में छह महीने लग गए मुफ्त अभियान पर आते-आते जबकि पिछले साल बिहार चुनाव में बिहार के लिए मुफ्त टीका देने का वादा किया गया था तब भी कांग्रेस ने सवाल किया था कि पूरे देश को टीका मुफ्त मिले. टीका अभियान में हुई देरी का नतीजा आपने मार्च और अप्रैल में देखा है. कितने लोग मरे.

आज आप जो दृश्य देख रहे हैं यह लेट एंट्री के जश्न का दृश्य है. आम तौर पर स्कूल में लेट आने वाला छात्र साइकिल स्टैंड में धीरे से साइकिल लगाता है, फिर दबे कदमों से गलियारे में चलता हुआ क्लास की तरफ बढ़ता है कि कहीं प्रधानाध्यापक की नज़र न पड़ जाए. लेकिन यहां छह महीने की देरी से शुरू होने वाले मुफ्त टीका अभियान में लेट आने वाले मंत्रियों को लेट फाइन का कोई डर नहीं है. क्योंकि इस अभियान के लेट होने के कारण फाइन किसी और ने दिया है, अपनी जान गंवाकर. लेट फाइन देने की जगह लेट आकर absolutely fine दिखने की मानसिकता का यह शानदार उदाहरण है. हमारे देश में पुण्य की महिमा है तो पाप से मुक्ति का भी उपाय है. उसी तरह पहले आओ पहले पाओ है तो देर आयद दुरुस्त आयद भी है. आप जीवन भर कन्फ्यूज़ रहेंगे कि पुण्य करना सही है कि पाप करना सही है, दुनिया के लोग कन्फ्यूज़ हो सकते हैं कि इंडिया मुफ्त टीका अभियान इतना लेट शुरू कर रहा है लेकिन सेलिब्रेट क्यों कर रहा है. 

जिस तरह से 21 जून टीका अभियान की असफलताओं से घिरी सरकार के लिए एक नया प्रस्थान बिंदु बनकर आया है जिसके बाद से सरकार लोगों से नज़र मिला सकेगी कि अब सब ठीक है आगे भी ठीक होगा, उसी तरह से आज का दिन रामदेव के लिए भी एक नया प्रस्थान बिंदु बना है. आज के दिन को गौर से देखिए. एक महीना पहले यही सरकार आपके सवालों से घिरी थी कि बेड नहीं है, आक्सीजन, वेंटिलेटर, और दवा नहीं है, आज आप इस सरकार के इस महोत्सव नुमा अभियानों से घिरे हुए हैं. एक महीना पहले यही सरकार नज़र नहीं आ रही थी अब आपको चारों तरफ सरकार ही सरकार नज़र आ रही है. हर दूसरे तीसरे पन्ने पर मुफ्त टीका अभियान का विज्ञापन है. कई लोग इस अभियान के बहाने अपनी ब्रांड इमेज को ठीक कर रहे हैं. आइडिया और खर्चा प्रधानमंत्री मोदी की सरकार का लेकिन री-लॉन्च रामदेव का भी. विज्ञान और टीका का मज़ाक उड़ाने और डाक्टरों को अनाप-शनाप कहने के कारण रामदेव विलेन बन गए. डॉक्टरों ने FIR कर दी. लेकिन रामदेव ने योग दिवस के बहाने फिर से कमबैक कर लिया है. कोरोनिल बनाने वाले वैज्ञानिक रामदेव की दवा को ICMR की गाइडलाइन में जगह नहीं दी गई है. कोरोनिल दवा के खोजक रामदेव को वैज्ञानिक की मान्यता भी नहीं दी गई है. डॉक्टरों की संस्था IMA ने उन्हें ललकार दिया लेकिन आज रामदेव ने वापस अपना स्पेस ले लिया है. आज उन्हें कोई नहीं ललकार सका. जिन चैनलों पर उन्हें अपने बारे में अनाप-शनाप सुनने को मिला उन चैनलों से भी विज्ञापन वापस नहीं लिया और जिन चैनलों को विज्ञापन नहीं दिया वहां भी उनके योग के वीडियो और इंटरव्यू चलते रहे. इसे कहते हैं हेडलाइन में लेटरल एंट्री. मतलब हेडलाइन तो प्रधानमंत्री के अभियान के लिए आरक्षित थी लेकिन रामदेव ने साइड से आकर अपने लिए भी जगह बना ली. बाकी रामदेव के कारण कई योग गुरु आज Fear of missing out, FOMO के शिकार रहे कि उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा है. उनके वीडियो को कोई दिखा नहीं रहा. क्या रामदेव ही एकमात्र योग गुरु हैं. 

इससे पहले कि आज आप तरह-तरह के टीका संबंधित दावों और संख्याओं में उलझकर रह जाएं यहां बताना समीचीन होगा कि 2 जनवरी को ऐलान हुआ था कि तीन करोड़ हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्कर्स को सबसे पहले टीका दिया जाएगा. छह महीना बीत जाने के बाद 3 करोड़ हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्कर का टीका पूरा नहीं हुआ है. स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि 1 करोड़ 60 लाख हेल्थ वर्कर को ही टीका दिया गया है. यानी हम हेल्थ वर्कर को भी पूरी तरह से टीकाकृत नहीं कर पाए हैं. उम्मीद है आज सारे हेल्थ वर्कर कवर हो गए होंगे. हमने Our World in Data की साइट पर जाकर देखा तो पता चला कि दोनों डोज़ देने के मामले में भारत का रैंक और नीचे चला गया है. पहले 101 था अब 116 पर आ गया है. 

चाहें तो सरकार से आप एक सवाल पूछ सकते हैं कि कितने लोगों ने पैसे देकर टीके लगाए हैं और इन सभी लोगों ने अपनी जेब से टीका खरीदने में कुल कितने हज़ार करोड़ खर्च किए हैं. सरकार को बताना चाहिए था लेकिन नहीं बता रही है. इस तरह आप जानते हैं कि यह टीका अभियान पूरी तरह मुफ्त अभियान नहीं है. 25 प्रतिशत टीका प्राइवेट मार्केट के लिए है जहां आज भी 780 से लेकर 1410 तक दे रहे हैं, एक डोज़ के. यानी इस देश में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने टीका लगाने पर तीन-तीन हज़ार खर्च किए हैं. ऐसे लोग दुनिया में नहीं हैं. केवल भारत में हैं. उन्हें भी यूनिक होने का जश्न मनाना चाहिए था कि जब सारी दुनिया को मुफ्त में टीका मिल रहा था हम पैसे देकर टीका लगा रहे थे. 

अगर आपको लगता है कि पैसे देकर टीका लगाने वालों को कोई पूछ नहीं रहा है तो गलत है. आप लोगों को Fear of missing out , FOMO नहीं होना चाहिए. शुक्रवार को ही कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ वीके पॉल ने कहा है कि प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी में भी ऊर्जा नज़र आएगी और प्राइवेट सेक्टर के वैक्सीन केंद्रों की संख्या में और भी वृद्धि की जाएगी. वीके पॉल ही बता सकते हैं कि प्राइवेट सेक्टर को कितना डोज़ दिया गया और लोगों ने अपनी जेब से कोविड पर कितने हज़ार करोड़ और कोवैक्सीन पर कितने हज़ार करोड़ खर्च किए हैं. यह भी नोट करें. जिस टीके का रिसर्च पेपर अभी पूरी तरह से जमा नहीं है वो 1410 में बिक रहा है और जिसका सारा रिसर्च पेपर पब्लिक में है वो 780 में बिक रहा है. यहां भी दो रेट हैं.

रविवार को मध्यप्रदेश से एक महा सूचना आई कि सोमवार को महा अभियान चलेगा और दस लाख लोगों को टीका दिया जाएगा. कंट्रोल रूम बनेगा, मुख्यमंत्री दतिया में होंगे, तमाम तरह के ताम-झाम वाले कार्यक्रमों की सूचनाएं सोमवार को चैनलों के राष्ट्रीय स्पेस में जगह बनाने के लिए बेताब थीं. लेकिन दस लाख का टारगेट सोमवार को पुराना हो गया क्योंकि रविवार को ही आंध्र प्रदेश ने एक अलग अभियान चलाकर 13 लाख से अधिक लोगों को एक दिन में टीका लगा दिया था. आंध्र के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी ने मेगा वैक्सीन ड्राइव नाम से अभियान लांच किया था. 

टीका अभियान में पिछड़ रहे असम ने Enhanced Covid Vaccination नाम से नया अभियान लांच किया है जिससे अगले दस दिनों तक हर दिन तीन लाख टीका दिया जा सके. तो कहीं तीन लाख हेडलाइन है, तो कहीं दस लाख, तो कहीं तेरह लाख हेडलाइन है. जो टीका अभियान छवि खराब कर रहा था वही अब नए सिरे से जनसंपर्क और छवि बनाने का ज़रिया बन गया है. दुनिया के कई प्रमुख देशों में टीके पर किसी प्रधानमंत्री या गवर्नर की फोटो नहीं है. जब प्रधानमंत्री ने अपनी तस्वीर लगाई तो मुख्यमंत्रियों को भी आइडिया आना ही था कि इस अभियान में उनकी भी तस्वीर चस्पा हो. 

आप इस कहानी को कैसे समझेंगे कि आंध्र प्रदेश एक दिन में तेरह लाख टीके लगाता है मध्य प्रदेश दस लाख टीके लगाने का दावा करता है और देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश का कहना है कि उसका लक्ष्य है आज से हर दिन छह लाख टीके लगाए जाएं. हमारे सहयोगी आलोक पांडे बता रहे हैं कि 23 करोड़ की आबादी के लिए यह टारगेट कम है. उसे डबल करना होगा. छह लाख प्रति दिन काफी नहीं है. अभी भी यूपी में आबादी का दो प्रतिशत भी दोनों डोज़ नहीं ले सका है. 

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि 21 जून का अभियान लांच होने के बाद भी दिल्ली को ज़रूरत के हिसाब से टीका नहीं दिया गया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ राज्य दस दिनों का कोटा आज ही लगा दे रहे हैं ताकि उनका महाअभियान मोटी हेडलाइन बन सके. 2011 में दो दिन में 17 करोड़ से अधिक बच्चों को पोलियो का टीका दिया गया था. रोटरी इंटरनेशनल यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और सरकार ने मिलकर उसे अंजाम दिया था. तब इस तरह का तामझाम नहीं हुआ था. क्या आज 17 करोड़ टीका लगने का रिकार्ड टूट सका? 5 अप्रैल को जब कोई टीका अभियान नहीं था उस दिन एक दिन में 43 लाख से अधिक टीके लगे थे. क्या आज की उपलब्धि बहुत बड़ी है?

अब आप कहेंगे कि टीका अभियान सफल नहीं रहा तो वो कहेंगे आज योग दिवस था. आप कहेंगे कि योग दिवस में जनता की कम सरकारी लोगों की तस्वीरें ज्यादा थीं तो वो कहेंगे योग के बहाने टीके को प्रमोट किया. वही चांद तारा दिखाओ रणनीति. कोविड के सारे फैसले आपदा प्रबंधन एक्ट 2005 के प्रावधानों के तहत लिए जाते रहे हैं तो सरकार अनुग्रह राशि और पुनर्वास की बात क्यों नहीं करती है जो कि इसी कानून का एक प्रावधान है. आपदा प्रबंधन एक्ट 2005 के क्लाज़ 12 में यह नहीं लिखा है कि कितना पैसा देना है लेकिन देना है यह तो लिखा ही है. सरकार ने तो पूरी तरह से हाथ ही खड़े कर लिए. सरकार ने कहा कि मृतक के परिजन को चार लाख नहीं देंगे, लेकिन यह भी नहीं कहा कि कितना देंगे. तो क्या सरकार कुछ भी मुआवज़ा नहीं देगी? आपदा एक्ट के अनुसार शिविरों में खाना, पानी, इलाज और सफाई की व्यवस्था तो करनी ही है, विधवाओं और अनाथों के लिए विशेष व्यवस्था करनी होगी. मरने पर सहायता राशि देनी होगी, टूटे घरों के लिए मुआवज़ा देना होगा, जीवन यापन के साधनों को बहाल करना होगा. 

सुप्रीम कोर्ट में गौरव बंसल ने याचिका दायर की थी कि कोविड से मरने वाले लोगों के परिजनों को चार लाख का मुआवज़ा दिया जाए. केंद्र सरकार ने कह दिया कि वह चार लाख नहीं दे सकती है. आपदा प्रबंधन कानून के तहत अनिवार्य मुआवजा केवल प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ आदि पर ही लागू होता है. COVID के प्रसार और प्रभाव के कारण प्राकृतिक आपदाओं के लिए मुआवजे को लागू करना उचित नहीं होगा. इसे कोरोना महामारी पर लागू नहीं किया जा सकता है. सभी COVID पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान राज्यों के वित्तीय सामर्थ्य से बाहर है. केंद्र और राज्य पहले ही टैक्स राजस्व में कमी और स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि के कारण गंभीर वित्तीय दबाव में हैं. अनुग्रह राशि देने के लिए संसाधनों का उपयोग महामारी के खिलाफ कार्यवाही और स्वास्थ्य व्यय को प्रभावित कर सकता है. ये अच्छा करने की बजाए  नुकसान का कारण बन सकता है. कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से मौत के लिए मुआवजे की घोषणा की है लेकिन यह आपदा राहत कोष से नहीं है. आकस्मिक निधि और मुख्यमंत्री राहत कोष आदि से दी जा रही है.

पैसा है लेकिन फोकस स्वास्थ्य सुविधाओं पर है. पिछले एक साल में अगर फोकस होता तो क्या ये हालत होती कि लोग अस्पताल के बाहर दम तोड़ रहे होते. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के अभाव में मर रहे होते. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या कुछ ऐसा फैसला हुआ है कि किसी को कुछ भी मुआवज़ा नहीं देना है तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. क्या सरकार को अब तक नहीं बताना चाहिए कि किसी को मुआवजा देंगे या देंगे ही नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कुछ राज्य मुआवज़ा दे रहे हैं और कुछ नहीं देंगे तो बाकियों को बुरा लग सकता है. याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्र को एक योजना बनानी होगी. क्या आर्थिक तंगी संवैधानिक दायित्व को रोक सकती है? 

इस बहस के दौरान गृह मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि 12 नोटिफाइड आपदाओं में अनुग्रह राशि दी जाती है. State Disaster Response Fund से. अगर यह सभी को चार लाख दिए जाएंगे तो आपदा प्रबंधन का सारा पैसा इसी में खर्च हो जाएगा. बिहार सरकार ने ऐलान किया है कि कोविड से मौत के बाद परिजनों को चार लाख रुपये मिलेंगे. दिल्ली सरकार ने कोविड से मरने वालों के परिजनों को पचास हज़ार की अनुग्रह राशि देने का ऐलान किया है. मध्य प्रदेश सरकार ने कहा है कि कोविड से मरने वाले लोगों के परिजनों को एक लाख रुपया दिया जाएगा. कर्नाटक ने कहा है कि जिन परिवारों में कोविड से मौत हुई है और वह परिवार ग़रीबी रेखा से नीचे बसर करता है तो उसे एक लाख की सहायता राशि दी जाएगी. 

आक्सीजन की कमी से कई लोग मरे. दिल्ली सरकार ने कहा था कि एक पैनल बनाया है जो ऐसी मौत की जांच करेगी और आक्सीजन की कमी से मौत की बात साबित होती है तो परिजन को पांच लाख का मुआवज़ा दिया जाएगा. लेकिन अब यह मामला केंद्र बनाम राज्य में बदल चुका है. 

याचिकाकर्ता का सवाल है कि सरकार ने डाक्टर को बीमा दिया है लेकिन पैरामेडिकल स्टाफ को नहीं दिया है. डाक्टरों में भी सभी को एक समान मेहनताना नहीं है. कहां तो उन्हें कोविड योद्धा कहा गया पता चला कि सब अलग अलग रेट पर युद्ध लड़ रहे हैं. राष्ट्रीय दून मेडिकल कालेज, देहरादून, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, मेडिकल कालेज,श्रीनगर,  और राजकीय मेडिकल कालेज हल्द्वानी के 340 मेडिकल इंटर्न हड़ताल पर हैं. उनका कहना है कि केंद्र सरकार अपने इंटर्न को 23,500 रुपये देती है लेकिन राज्य सरकार 7500 रुपये देती है. एक दिन का 250 रुपये. न्यूनतम मज़दूरी से भी कम है. कई दिनों से एमबीबीएस पास किए हुए ये इंटर्न अपना स्टाइपेंड बढ़ाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. इस तरह के आंदोलन दूसरे राज्यों में भी हुए हैं. 

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने श्मशान में काम करने वाले, पुलिस में काम करने वाले तमाम फ्रंट लाइन वर्कर को मुआवज़ा देने की मांग की है. कर्नाटक में भी कोविड से मरने वाली आशा वर्करों को कोई मुआवज़ा नहीं मिला है. महाराष्ट्र में आशा वर्करों का संगठन हड़ताल पर है. उनकी मांग है कि उन्हें दो तीन घंटे काम करने के लिए पांच हज़ार महीना दिया जाता है. महामारी के वक्त आशा वर्कर ने आठ से नौ घंटे काम किया है इसलिए उन्हें अठारह हज़ार मिलना चाहिए. आज टीका अभियान को लेकर वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के दावे हो रहे हैं, सौ रुपया लीटर पेट्रोल मिल रहा है इसे कौन से रिकार्ड में शामिल किया जाए...सरकार बताएगी?

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