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This Article is From Aug 06, 2019

आर्टिकल 370 पर संसद में निराश किया कांग्रेस ने

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 06, 2019 22:57 pm IST
    • Published On अगस्त 06, 2019 22:57 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 06, 2019 22:57 pm IST

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक लोकसभा में भी पास हो गया. राज्यसभा में सोमवार को पास हो गया था. गृह मंत्रालय का विधेयक था इसलिए दोनों ही दिन अमित शाह के रहे. प्रधानमंत्री दोनों दिन मौजूद रहे मगर वे सुनते ही रहे. खबर है कि वे देश को संबोधित करेंगे. अमित शाह ने पूरी तैयारी के साथ भाषण दिया. दोनों दिनों का भाषण एक जैसा ही था फिर भी विपक्ष उन्हें प्रभावशाली तरीके से घेर नहीं सका. शशि थरूर ने सरदार पटेल को लेकर अपनी बात रखी कि धारा 370 पर नेहरू और पटेल सबके दस्तखत थे. कांग्रेस भीतर से बंटती चली गई है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ज़रूर संवैधानिक प्रक्रियाओं का सवाल उठाया है लेकिन उन्होंने भी सरकार के विधेयक का समर्थन किया है. भुवनेश्वर कलिता, अदिति सिंह, रंजीत रंजन, दीपेंद हुड्डा, अनिल शास्त्री मिलिंद देवड़ा, अश्विनी कुमार, जनार्दन द्विवेदी जैसे नेताओं ने खुद को आफिशियल लाइन से अलग कर लिया है. मगर आज लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपनी पार्टी को लाइन से ही उतार दिया. उनके साथ भाषा की समस्या रहती है इसलिए दोबारा कहने का मौका दिया गया तो भी वही कहा.

इसके बाद इन खबरों का मतलब नहीं रह जाता है कि सोनिया गांधी नाराज़ हो गई, क्योंकि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कश्मीर जैसे मसले पर इतनी कमज़ोर तैयारी के साथ आए, दुखद है. कांग्रेस ने काफी निराश किया. राहुल गांधी ने ट्वीट किया मगर इतने बड़े मसले पर उन्होंने भाषण नहीं दिया. अब तो वे अध्यक्ष भी नहीं हैं कम से कम इसका लाभ उठाकर वे बेहतर तैयारी कर सकते थे. कांग्रेस के किसी भी नेता ने ऐसा भाषण नहीं दिया जिससे उनके कार्यकर्ता या लोगों को पता चलता कि क्यों कांग्रेस विरोध कर रही है. मनीष तिवारी ने अपने भाषण में ग्रे रंग के 50 शेड्स की बात की तो खूब मज़ाक उड़ा कि प्रतिभाशाली सांसद का कश्मीर पर भाषण कमज़ोर कैसे हो सकता है. अखिलेश यादव ने ज़रूर सवाल किया कि पूरी बहस में मालूम नहीं कि कश्मीर की क्या राय है. टीआर बालू ने कहा कि क्या आप वाकई उम्मीद करते हैं कि जम्मू कश्मीर को राज्य से म्यूनिसिपल लेवल का बनाकर और उसे ज्वाइंट सेक्रेटी लेवल के अधिकारी को सौंप कर कश्मीर का समाधान हो सकेगा. इसके बाद भी लोग विपक्ष के कमज़ोर भाषणों को लेकर निराश नज़र आए. इससे पता चलता है कि कांग्रेस इतने गंभीर मसले पर क्या तैयारी कर रही थी. यही कारण था कि उसके अपने ही नेता पार्टी की लाइन से उखड़ गए. विपक्ष या तो धारा में बहने के लिए बेताब है या फिर विरोध के नाम पर कुछ बोलकर निकल जाने का रास्ता खोजता रहा. बीजेपी की तरफ से अमित शाह दोनों दिन ही लगभग एक जैसी बात करते नज़र आए फिर भी विपक्ष उनकी बातों को लेकर घेर नहीं सका.

अमित शाह ने दोनों ही दिन के अपने भाषण में 35-ए को बड़ी अड़चन बताया कि इसके तहत कोई वहां ज़मीन नहीं खरीद सकता था जिसके कारण उद्योग-धंधे प्राइवेट स्कूल और अस्पताल नहीं खुल पा रहे थे. अमित शाह ने कहा कि इसके तहत कश्मीर की बेटियां गैर कश्मीरी से शादी करने पर स्थायी दर्जा गंवा देती हैं जो महिला विरोधी है. यह बात भी सही है. लेकिन 2002 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस प्रावधान को अवैध करार दिया था. उस महिला का संपत्ति का अधिकार रहेगा मगर उनके बच्चों को उत्तराधिकार नहीं मिलेगा क्योंकि उन्हें अपने पिता के अनुसार मिलेगा. इसमें समस्या तो है. आखिर इसे जम्मू कश्मीर के नेताओं ने समय रहते दूर क्यों नहीं किया. इन सब बातों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहस हो रही थी मगर अब यह प्रावधान ही समाप्त हो चुका है. 35 ए के तहत यह बताया गया है कि कौन-कौन जम्मू कश्मीर के निवासी होंगे, उनके संपत्ति खरीदने के अधिकार क्या होंगे. अस्थायी निवासी के ज़मीन ख़रीदने पर रोक का प्रावधान राजा हरि सिंह के समय ही आया था, 1927 में, जो नहीं चाहते थे कि पंजाब के लोग कश्मीर आकर प्लाट खरीदें. हिमाचल प्रदेश से लेकर पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस तरह के प्रावधान हैं. क्या वहां भी इंडस्ट्री ले जाने और रोज़गार पैदा करने के लिए ऐसे प्रावधान हटा दिए जाने चाहिए.

कश्मीर से बाहर रहने वाले कश्मीरी छात्र और निवासी हमें भी लिख रहे हैं कि वे अपने परिवारों से कब संपर्क कर पाएंगे, कम से कम सरकार लैंड लाइन की ही व्यवस्था कर देती. भारत के बाहर से भी लोग पूछ रहे हैं. लोकसभा में कश्मीर को लेकर बहस होती रही. कब तक कर्फ्यू जैसे हालात रहेंगे, किसी को पता नहीं. इस बारे में कोई ठोस जवाब नहीं मिला. महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तज़ा जावेद ने व्हाट्स ऐप के ज़रिए अपना बयान भेजा है.

कश्मीर की आबादी मुस्लिम बहुल है. 2011 के सेंसस के अनुसार 68 प्रतिशत है. बाकी आबादियां बहुत कम हैं. क्या वहां ऐसी नीतियां बनी हैं जिससे कम आबादी वालों के साथ भेदभाव होता है, नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी कम हो.

महिलाओं को लेकर अमित शाह ने कहा. क्यों अभी तक गैर कश्मीरी से शादी करने वाली लड़कियों को अधिकार नहीं था. इसे क्यों नहीं समय रहते दिया गया. उसकी पॉलिटिक्स क्या रही है घाटी में.

आरक्षण की बात करेंगे. अमित शाह ने काफी ज़ोर दिया. वे राजनैतिक आरक्षण की बात करते हैं. 15 लाख अनुसूचित जनजाति हैं, 12 प्रतिशत. ज्यादातर किस मज़हब के लोग हैं. क्या यह सही है कि इन्हें नौकरी या शिक्षा में आरक्षण नहीं है. सफाई कर्मचारियों को वोट का अधिकार नहीं दिया गया. जो 72 साल पहले आए उन्हें नागरिकता नहीं दी गई.

कश्मीर इतना स्पेशल केस क्यों है, बाकी रजवाड़ों की तुलना में. वहां भी अलग-अलग समस्याएं रही हैं. अलग-अलग तरीके से विलय हुआ था. 1972 में भारत और पाकिस्तान ने इसे दो पक्षीय बनाया था क्या अब ये नहीं रहा. खासकर जब अधीर रंजन चौधरी ने जब सवाल किया तो काफी आलोचना हुई. कब से भारत ने कहना शुरू किया कि यह हमारा अपना यानी आतंरिक मामला है.

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