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This Article is From Jan 13, 2016

हमारे देश में महापुरुषों को भूलने की प्रथा समाप्त हो गई है…

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 13, 2016 17:59 pm IST
    • Published On जनवरी 13, 2016 13:06 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 13, 2016 17:59 pm IST
सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर सुबह होते ही जयंती, पुण्यतिथि, वर्षगांठ के संदेशों की भरमार से दिल गदगद हो जाता है। इन संदेशों को देखकर अब भरोसा हो गया है कि हमारे देश में महापुरुषों को भूलने की प्रथा समाप्त हो गई है। सोशल मीडिया के कारण उन्हें याद करने का दौर चला आया है। धार्मिक, राजनीति, सांस्कृतिक और वैचारिक पुरुषों और स्त्रियों को अब भारी संख्या में याद किया जाने लगा है। सुबह-सुबह नेताओं, मंत्रियों, पार्टियों और समर्थकों के संदेशों से यकीन हो जाता है कि देश को याद रखने की शक्ति प्राप्त हो गई है। देश उनके बताए रास्तों पर चल रहा है। रोज़ बदलते इन स्मृति संदेशों से थोड़ा-सा कन्फ्यूजन भी होता है कि देश कल वाले महापुरुष के हिसाब से चल रहा है या उनके हिसाब से चल रहा है, जिनकी आज जयंती है।

जयंती, पुण्यतिथि को लेकर अजीब-सी होड़ मची है। कोई दिन ऐसा खाली नहीं जाता, जब इनके जरिये किसी को याद न किया जाता हो। हो सकता है, सबकी कोई रिसर्च टीम हो, जो गूगल से तारीख निकालकर नेता जी को सोने से पहले ही अलर्ट कर देती हो। कहीं ऐसा तो नहीं, इन दिनों हमारे नेताओं की याददाश्त कुछ बेहतर हो गई है। वे जनता से किया वादा भूल सकते हैं, मगर किसी की जयंती या पुण्यतिथि नहीं भूल पाते हैं। किसी मंत्री या नेता की टाइमलाइन पर जाकर देखेंगे तो गश खाकर गिर जाएंगे कि इतने लोगों की तिथियां बंदे को याद कैसे रहती हैं। मैं इन नेताओं की स्मृति का कायल हो गया हूं। मैं तो अपने परिवार के लोगों का जन्मदिन भी भूल जाता हूं।

क्विज़मास्टर सिद्धार्थ बसु को इन तिथियों को लेकर एक शो बनाना चाहिए, जिसमें ये नेता बुलाए जाएं और उनसे पूछा जाए कि आज के दिन विवेकानंद के अलावा किसकी जयंती मनाई जाती है। ज़रा हम भी लाइव प्रसारण में देखें कि इन्हें वाकई इतने लोगों की जयंती की तारीख याद रहती है! अंबेडकर, सरदार पटेल, विवेवकानंद और शास्त्री जी की जयंती और पुण्यतिथि के दिन तो नेताओं पर ग़ज़ब का दबाव रहता है। सब एक दूसरे से पहले ट्वीट कर देना चाहते हैं। पहले इन जयंतियों की अलग बात होती थी। बीजेपी जब विवेकानंद की जयंती मनाती थी तो कहा जाता था कि कांग्रेस ने उन पर बीजेपी को कब्जा करने दे दिया है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। विवेकानंद की जयंती पर कांग्रेस पार्टी के भी ट्वीट आते हैं और नेहरू की जयंती पर बीजेपी नेताओं के ट्वीट आते हैं।

सोशल मीडिया के कारण सब एक दूसरे के आदरणीय वैचारिक महापुरुषों की जयंतियां मनाने लगे हैं। ट्वीट करने में क्या जाता है, सो कर देते हैं। विचार और किताब से किसे मतलब है। उनके आदर्शों पर आज की राजनीति किस तरह से चल रही है, बताने की ज़रूरत नहीं, लेकिन हर दिन की यह होड़ पका देने वाली हो गई है। ऐसा लगता है कि ट्वीट कर नेताओं ने अपना बोझ हल्का कर लिया है।

नेताओं-महापुरुषों को याद करने का मतलब यह नहीं कि यही याद करते चलें कि वे कब पैदा हुए और कब प्राण त्याग गए। स्मृतिसुमन अर्पित करने के नाम पर जो यह नौटंकी चल रही है, उसका हासिल क्या है...? जिस तरह किसी की तिथि पर ट्वीट आ जाता है, उसी तरह से किसी त्योहार पर आ जाता है। ऐसा लगता है हमारे नेताओं ने मैनिफेस्टो की जगह कैलेंडर ही रट लिया है। जल्दी ही वे एकादशी और द्वादशी पर ट्वीट करने लगेंगे। जयंती और पुण्यतिथि के नाम पर यह शक्तिप्रदर्शन हो रहा है या आत्मप्रदर्शन...!

रवीश कुमार NDTV इंडिया में सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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