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This Article is From Oct 10, 2018

स्कूलों की कक्षा भी बंट जाए हिन्दू-मुसलमान में, क्या बचेगा हिन्दुस्तान में

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 16, 2018 09:59 am IST
    • Published On अक्टूबर 10, 2018 15:00 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 16, 2018 09:59 am IST
उत्तरी दिल्ली नगर निगम का एक स्कूल है, वज़ीराबाद गांव में.  इस स्कूल में हिन्दू और मुसलमान छात्रों को अलग-अलग सेक्शन में बांट दिया गया है.  इंडियन एक्सप्रेस की सुकृता बरुआ ने स्कूल की उपस्थिति पंजिका का अध्ययन कर बताया है कि पहली कक्षा के सेक्शन ए में 36 हिन्दू हैं. सेक्शन बी में 36 मुसलमान हैं.  दूसरी कक्षा के सेक्शन ए में 47 हिन्दू हैं. सेक्शन बी में 26 मुसलमान और 15 हिन्दू हैं. सेक्शन सी में 40 मुसलमान. तीसरी कक्षा के सेक्शन ए में 40 हिन्दू हैं. सेक्शन बी में 23 हिन्दू और 11 मुसलमान. सेक्शन सी में 40 मुसलमान. सेक्शन डी में 14 हिन्दू और 23 मुसलमान. चौथी कक्षा के सेक्शन ए में 40 हिन्दू, सेक्शन बी में 19 हिन्दू और 13 मुस्लिम. सेक्शन सी में 35 मुसलमान. पांचवी कक्षा के सेक्शन ए में 45 हिन्दू, सेक्शन बी में 49 हिन्दू, सेक्शन सी में 39 मुस्लिम और 2 हिन्दू. सेक्शन डी में 47 मुस्लिम.

''अब आप इस स्कूल के टीचर इंचार्ज का बयान सुनिए. प्रिंसिपल का तबादला हो गया तो उनकी जगह स्कूल का प्रभार सी बी सहरावत के पास है. सेक्शन का बदलाव एक मानक प्रक्रिया है. सभी स्कूलों में होता है. यह प्रबंधन का फैसला था कि जो सबसे अच्छा हो किया जाए, ताकि शांति बनी रहे, अनुशासन हो और पढ़ने का अच्छा माहौल हो. बच्चों को धर्म का क्या पता, लेकिन वे दूसरी चीज़ों पर लड़ते हैं.  कुछ बच्चे शाकाहारी हैं. इसलिए अंतर हो जाता है. हमें सभी शिक्षकों और छात्रों के हितों का ध्यान रखना होता है.''

क्या यह सफाई पर्याप्त है? इस लिहाज़ से धर्म ही नहीं, शाकाहारी और मांसाहारी के नाम पर बच्चों को बांट देना चाहिए. हम कहां तक बंटते चले जाएंगे, थोड़ा रुक कर सोच लीजिए. सुकृता बरुआ ने स्कूल में अन्य लोगों से बात की है. उनका कहना है कि जब से सहरावत जी आए हैं तभी से यह बंटवारा हुआ है. कुछ लोगों ने इसकी शिकायत भी की है, मगर लिखित रूप में कुछ नहीं दिया है. कुछ सेक्शन को साफ-साफ हिन्दू मुस्लिम में बांट दिया है. कुछ सेक्शन में दोनों समुदाय के बच्चे हैं. सोचिए, इतनी सी उम्र में ये बंटवारा... इस राजनीति से क्या आपका जीवन बेहतर हो रहा है?

राजनीति हमें लगातार बांट रही है. वह धर्म के नाम एकजुटता का हुंकार भरती है, मगर उसका मकसद वोट जुटाना होता है. एक किस्म की असुरक्षा पैदा करने के लिए यह सब किया जा रहा है. आप धर्म के नाम पर जब एकजुट होते हैं तो आप ख़ुद को संविधान से मिले अधिकारों से अलग करते हैं. अपनी नागरिकता से अलग होते हैं. असली बंटवारा इस स्तर पर होता है. एक बार आप अपनी नागरिकता को इन धार्मिक तर्कों के हवाले कर देते हैं तो फिर आप पर इससे बनने वाली भीड़ का कब्ज़ा हो जाता है, जिस पर कानून का राज नहीं चलता. असहाय लोगों का समूह धर्म के नाम पर जमा होकर राष्ट्र का भला नहीं कर सकता है, धर्म का तो रहने दीजिए. आप ही बताइये कि क्या स्कूलों में इस तरह का बंटवारा होना चाहिए? बाकायदा ऐसा करने वाले शिक्षक की मानसिकता की मनोवैज्ञानिक जांच होनी चाहिए कि वह किन बातों से प्रभावित है. उसे ऐसा करने के लिए किस विचारधारा ने प्रभावित किया है.

राष्ट्रीयता किसी धर्म की बपौती नहीं होती है. उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता है. अगर धर्म में राष्ट्रीयता होती, नागरिकता होती तो फिर ख़ुद को हिन्दू राष्ट्र का हिन्दू कहने वाले कभी भ्रष्ट ही नहीं होते. सब कुछ ईमानदारी से करते. जवाबदेही से करते. हिन्दू-हिन्दू या मुस्लिम-मुस्लिम करने के बाद भी नगरपालिका से लेकर तहसील तक के दफ्तरों में भ्रष्टाचार भी करते हैं. अस्पतालों में मरीज़ों को लूटते हैं. इन सवालों का हल धर्म से नहीं होगा. नागरिक अधिकारों से होगा. कोई अस्पताल लूट लेगा तो आप किसी धार्मिक संगठन के पास जाना चाहेंगे या कानून से मिले अधिकारों का उपयोग करना चाहेंगे. इसलिए हिन्दू संगठन हों या मुस्लिम संगठन उन्हें धार्मिक कार्यों के अलावा राजनीतिक स्पेस में आने देंगे तो यही हाल होगा. धर्म का रोल सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत है, अगर है तो.  इसके कारण नागरिक जीवन में नैतिकता नहीं आती है. नागरिक जीवन की नैतिकता संवैधानिक दायित्वों से आती है. कानून तोड़ने के ख़ौफ़ से आती है.

निशांत अग्रवाल का किस्सा जानते होंगे. ब्रह्मोस एयरस्पेस प्राइवेट लिमिटेड में सीनियर इंजीनियर हैं. ये जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किए गए हैं. इन्हें पाकिस्तानी हैंडलर ने अमरीका में अच्छी तनख़्वाह वाली नौकरी का वादा किया गया था. जांच एजेंसियां पता लगा रही हैं कि इन्होंने ब्रह्मोस मिसाइल से जुड़ी जानकारियां सीमा पार के संगठन को तो नहीं दे दी हैं. अभी जांच हो रही है तो किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक नहीं है. मीडिया रिपोर्ट में छपा है कि अग्रवाल के कई फेसबुक अकांउट थे. जिस पर उन्होंने अपना प्रोफेशनल परिचय साझा किया था. हो सकता है कि पाकिस्तानी एजेंसियों ने फंसाने की कोशिश भी की हो.

कई लोगों ने लिखा कि अगर निशांत की जगह कोई मुसलमान होता तो अभी तक सोशल मीडिया में अभियान चल पड़ता. बहस होने लगती. एक तो मीडिया और सोशल मीडिया की ट्रायल करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. उसमें भी अगर ये मीडिया ट्रायल सांप्रदायिक आधार पर होने लगे तो नतीजे कितने ख़तरनाक हो सकते हैं. हम अब जानने के लिए नहीं, राय बनाने के लिए सूचना का ग्रहण करते हैं. इसलिए डिबेट देखते हैं. जिसमें धारणाओं का मैच होता है. हमें रोज़ कुछ चाहिए जिससे हम अपनी धारणा को मज़बूत कर सकें. नतीजा यही हो रहा है. जो आपको स्कूल में दिखा और जो आपको निशांत के केस में दिखा.

एमजे अकबर के लिए अच्छी ख़बर है. पूरी सरकार उनके बचाव में चुप है. पार्टी प्रवक्ता चुप हैं. प्रधानमंत्री तो लग रहा है तीन चार दिनों से अख़बार ही नहीं पढ़े हैं. तभी मैं कहता हूं कि वो अकबर भी महान था और ये अकबर भी ‘महान’ हैं.  विदेश राज्य मंत्री के रूप में जब वे विदेशों में जाएंगो तो क्या क्या बातें होंगी, इसकी चिन्ता किसी को नहीं है. आज के इंडियन एक्सप्रेस में पहली ख़बर एम जे अकबर की है. छह महिला पत्रकारों ने अकबर की कारस्तानी लिखी है. अकबर का बचाव आईटी सेल भी चुप होकर कर रहा है. अकबर ही लुटियन सिस्टम है. अकबर जैसे लोग कांग्रेस के राज में भी मलाई खाते हैं. भाजपा के राज में भी मलाई खाते हैं. सोचिए, बीजेपी के एक पुराने निष्ठावान नेता की जगह पर वे राज्यसभा का सांसद बने, मंत्री बन गए. एक कार्यकर्ता की बरसों की मेहनत खा गए. कांग्रेस ने भी वही किया. भाजपा ने भी वही किया. 

आज बीजेपी और मोदी जी कांग्रेस राज में अकबर के किए गए कारनामे पर चुप हैं. जो अकबर राजीव गांधी का नाम जपता था वो अब मोदी नाम जप रहा है. कल मोदी के बारे में क्या बोलेगा, किसी को पता नहीं. एक बार गुजरात दंगों में मोदी के बारे में बोलकर पलट चुका है. मोदी भारत को बांट रहे हैं ऐसा कुछ लिखा था. उस अकबर का बचाव अगर मोदी कर रहे हैं तो अकबर वाकई ‘महान’ है. भक्तों को भी क्या क्या करना पड़ रहा है. अभी अभी एक अकबर को महानता के पद से उतारा था, दूसरा अकबर मिल गया, कंधे पर बिठाकर महान महान करने के लिए. वाकई भक्त भी अकबर हैं. मोदी जी को एक नया नारा देना चाहिए. अकबर बचाओ, अकबर बढ़ाओ. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा किसी काम का नहीं है.

- रवीश कुमार 

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