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This Article is From Oct 31, 2018

जब येल यूनिवर्सिटी की क्लास में बैठे रवीश कुमार...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 31, 2018 19:54 pm IST
    • Published On अक्टूबर 31, 2018 15:16 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 31, 2018 19:54 pm IST
मैंने येल यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस की एसोसिएट प्रोफेसर करुणा मंतेना की क्लास की. हार्वर्ड में भी एक क्लास की थी, मगर संकोचवश नहीं लिखा कि कहीं प्रदर्शन का भाव न झलके. करुणा मंतेना को जब संदेशा भिजवाया कि मैं उनका क्लास करना चाहता हूं, तो उन्होंने इजाज़त दे दी. मुझे भी 24 घंटे पहले बाकी छात्रों की तरह सारे सवाल दिए गए, जिन पर छात्रों के साथ चर्चा होनी थी. सवाल तो पढ़ लिया, लेकिन समझ नहीं आया कि क्लास में क्या होने वाला है. जब क्लास में पहुंचा तो शाम के 6 बज रहे थे. 8 बजे तक क्लास होनी थी. क्लास में कई मुल्कों के, कई रंगों और कई ज़ुबान के छात्र थे. सबके हाथ में एक ही किताब थी. गांधी की किताब - NON-VIOLENT RESISTANCE (SATYAGRAH). अब मैं करुणा मंतेना के क्लास को समझने का प्रयास करने लगा कि यहां होने क्या वाला है. मुझे ई-मेल से सात सवाल मिले थे. सारे सवाल सत्याग्रह को लेकर बनाए गए थे. सवालों का मकसद गांधी का महिमामंडन करना नहीं था, बल्कि अलग-अलग तरीके से गांधी के सत्याग्रह को समझना था.


तो सात सवाल थे. मतलब सात छात्रों को उस किताब के आधार पर अपनी प्रस्तुति देनी थी. सबके लैपटाप खुल गए थे. बगल में गांधी की किताब रखी थी. हर सवाल के साथ एक छात्र ने अपनी प्रस्तुति दी. उसकी प्रस्तुति पर दूसरे छात्रों ने सवाल किए और प्रो करुणा मंतेना ने भी सवाल किए और जवाब दिए. जो छात्र प्रस्तुति दे रहा था, उसे अपनी हर बात के साथ किताब का पेज नंबर भी बताना था कि कहां से किस बात के आधार पर उसने अमुक राय बनाई है. इससे यह हुआ कि प्रस्तुति देने वाला छात्र बिना पूरी किताब पढ़े क्लास में आ ही नहीं सकता था. प्रो करुणा मंतेना भी अपने जवाब के साथ पेज नंबर का रेफरेंस लेती थीं और सबको वह अंश पढ़ने के लिए कहती थीं. ख़ुद भी पढ़ती थीं. एक पल में छात्र शिक्षक पर भारी पड़ते थे और एक पल में शिक्षक छात्र हो जाती थीं. टेबल टेनिस की तरह क्लास में सत्ता संतुलन बदल रहा था. कई छात्रों ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी. उस क्लास में जितना छात्रों ने गांधी के सत्याग्रह को बेहतर तरीके से समझा, उतना ही प्रोफेसर ने भी. पूरी क्लास एक सतह पर आ गई. उनके बीच एक कॉमन बात यह बन गई कि सबने एक किताब पढ़ी थी और पूरी किताब पढ़ी थी.


प्रो करुणा मंतेना ने कोई लेक्चर नहीं दिया. सिर्फ एक बार खड़ी हुईं और ब्लैकबोर्ड पर नक्शा बनाया. फिर जल्दी बैठ गईं और छात्रों के बराबर हो गईं. किसी भी प्रस्तुति पर छात्र की अति तारीफ नहीं की और न ही किसी को हतोत्साहित किया. जब क्लास ख़त्म हुई, तो छात्र प्रोफेसर बनकर निकलते हुए दिखे और प्रोफेसर छात्र की तरह सिमटी हुई निकलती लगीं. एक दिन का ही क्लास था, मगर बाहर लोगों से मिलने और सेल्फी खिंचाने का लोभ छोड़कर ऐसा करना शानदार रहा. बहुत दिनों के बाद किसी प्रोफेसर की क्लास में बैठा था, 10 मिनट लगे ध्यान को टिकाने में, लेकिन एक बार जब टिक गया, तो मज़ा आने लगा.


किसी भी प्रोफेसर के लिए असहज ही रहा होगा कि किसी पत्रकार को अपने क्लास में बिठा लें, लेकिन जो अपना काम जानते हैं, उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता. भारत में भी ऐसे कई प्रोफेसर हुए हैं, जिनकी क्लास में दूसरे विषयों के छात्र जाते थे. प्रो रणधीर सिंह ऐसे ही मशहूर नहीं हुए. लेकिन यह लेख मैंने टीचिंग के एक नए तरीके को सामने लाने के लिए लिखा है. इसे पढ़कर भारत के शिक्षक आहत न हों. जो पढ़ाते हैं, वे शानदार हैं. यहां भी शिक्षक छात्रों से अपना फीडबैक लेते हैं. मगर यह सिस्टम के तौर पर हर कॉलेज में नहीं होता है. मैं बस अपना अनुभव लिख रहा हूं. कॉलेज में मेरे शिक्षक भी कम शानदार नहीं थे. वे तो घर तक चले आते थे, हौसला बढ़ाने. फिर भी यह सबका अनुभव नहीं है. बहुत कम लोगों का अनुभव है.


मैंने हार्वर्ड में भी एक क्लास किया था. तीन घंटे की क्लास थी, मगर एक घंटे से कम बैठा. प्रोफेसर ने झट से अनुमति दे दी थी. उस क्लास में पहली बार देखा कि कई देशों से आए छात्रों की क्लास कैसी होती है. वैसे येल के ही GENDER AND SEXUALITY STUDIES की प्रोफेसर इंदरपाल ग्रेवाल ने भी न्योता दिया कि आप मेरी भी क्लास में आ जाइए, लेकिन तब समय कम था. प्रोफेसर ग्रेवाल नारीवादी मसलों पर दुनिया की जानी-मानी प्रोफेसर हैं. फेमिनिस्ट हैं. मेरी बदकिस्मती.


यह लिखने का मकसद यही है कि किसी से बेवजह ख़ौफ़ न खाएं. बात करें, प्रयास करें. मैं चार लाइन अंग्रेज़ी ठीक से नहीं बोल सका, मगर हर कोई मुझे ग़ौर से सुन रहा था. व्याकरण रहित अंग्रेज़ी से भी वे मतलब निकाल रहे थे. तो अपनी दुनिया को बड़ा कर लीजिए. भाषा न भी आए, तो भी कोई बात नहीं. प्रो करुणा की क्लास की तस्वीर नहीं लगा रहा, क्योंकि इसकी इजाज़त नहीं ली थी और मैंने ढंग की तस्वीर नहीं ली.


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
 

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