राजनीति में कहां तक पढ़े हैं, इसे योग्यता की अंतिम शर्त नहीं माना जा सकता. कई राजनेता स्कूल नहीं गए लेकिन उन्होंने राजनीति में बहुत अच्छा काम किया. इसका मतलब यह नहीं कि कोई नेता फर्ज़ी डिग्री लेकर आ जाए तो उसकी भी वाहवाही होगी. यह बिल्कुल अलग मामला है और फ्रॉड है क्योंकि तब आप पढ़े लिखे होने का झूठा दावा करते हैं. एक तीसरा छोर यह भी है कि जब कोई नेता मंत्री बनता है या टिकट मिलती है तो उसकी योग्यता का बखान भी अति के छोर पर पहुंच जाता है कि मैनेजमेंट पढ़ लिया है तो हार्वर्ड में पढ़ लिया है. तीनों ही हालात में नतीजे खतरनाक हो सकते हैं और अच्छे भी हो सकते हैं. जब हम किसी की फर्जी डिग्री और उच्च क्षमता वाली डिर्गी का जश्न मनाते हैं तब जरूरी नहीं कि जो पढ़ा नहीं है उसे कम नजर से देखें लेकिन इसके अलावा भी उन मंत्रियों के नहीं पढ़े लिखे होने को कई नजर से देखा जा सकता है.
गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष रमेश कुमार सांघवी 36 साल के है और 9 वीं पास हैं. इनका जन्म 1985 का है तब स्कूल कालेज सभी के लिए सुलभ हो गए थे. देश में शिक्षा व्यवस्था ठीक ठाक फैल चुकी थी और नकल से पास होने की व्यवस्था भी स्थापित हो चुकी थी. यानी मेहनत और चोरी दोनों ही दरवाजे भारत के युवाओं के लिए उपलब्ध हो चुके थे जो आज तक हैं. हर परीक्षा में मेहनत करने वाले छात्रों का मुकाबला चोरी और पैरवी करने वाले छात्रों से होता है. दोनों ही जीतते हैं. इस संदर्भ में मैं थोड़ा हैरान हूं कि खेल और युवा मंत्री ने 9 वीं तक ही पढ़ाई क्यों की.आगे क्यों नहीं पढ़ सके, लेकिन गुजरात के गृह राज्य मंत्री के प्रति इस बात को लेकर सम्मान भी बढ़ा कि उन्होंने फर्ज़ी डिग्री का रास्ता नहीं चुना और न ही नकल का सहारा लिया. उन्होंने 9 वीं पास होने के बाद भी जीवन में इसे रुकने का कारण नहीं माना और आगे बढ़ते रहे. आज उनके पास कई विभाग हैं. खेल व युवा मामले का विभाग है, नॉन रेज़िडेंट गुजराती डिविज़न है, एक्साइज़ है, जेल है, सीमा सुरक्षा है, आपदा प्रबंधन भी है.
जबकि इसी मंत्रिमंडल में जिन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया है जीतू वाघणी उनके बेटे मीत वाघणी नकल करते पकड़े गए थे. अहमदाबाद मिरर में छपी ख़बर के अनुसार उनके पास से 27 चिट्स बरामद हुई थी. जीतू वाघणी का भी डेक्कन हेराल्ड में बयान छपा है कि जो प्रक्रिया है उसका पालन हो. उनके बेटे के साथ अलग से बर्ताव नहीं होना चाहिए. यह भी तारीफ की बात है. उन्होंने नहीं कहा कि मेरी सरकार है, वाइस चांसलर को हटवा देंगे. बल्कि इन्होंने कहा कि उनका बेटा इम्तहान नहीं देगा. आजकल ऐसी नैतिकता कहां देखने को मिलती है. उस साल के कई अखबारों में छपा है कि भावनगर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने कहा था कि 402 छात्र नकल करते पकड़े गए हैं इनकी जांच अनफेयर मीन्स कमेटी करेगी. अनफेयर मीन्स कमेटी ने 399 छात्रों को दोषी पाया था. मौजूदा शिक्षा मंत्री के बेटे मीत वाघणी को भी अनफेयर कमेटी के सामने बुलाया गया था और दंड दिया गया. नियमों के मुताबिक जो पकड़े जाते हैं उन्हें उस परीक्षा में फेल कर दिया जाता है और अगली तीन परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाता है.
इसलिए गृह राज्य मंत्री के प्रति सम्मान बढ़ा है. पढ़ाई छूट गई तो छूट गई. नकल से या पैरवी से क्या पास होना. गुजरात में नकल की क्या स्थिति है, इसे कभी फोलो नहीं किया है लेकिन स्थानीय अख़बारों में कुछ ख़बरें ज़रूर मिली हैं.
यह खबर मई 2019 की है. उस साल बोर्ड की परीक्षा के लिए कमरों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. चोरी और नकल के 4000 मामले पकड़े गए थे. 2,165 मामले सीसीटीवी कैमरे से पकड़े गए. जूनागढ़ से 900 मामले सामने आए थे. इनके नतीजे रोक लिए गए थे. ऐसे बहुत से केस पकड़े गए थे कि ऑब्जेक्टिव प्रश्नों के उत्तर में छात्र को 90 प्रतिशत से अधिक अंक मिले हैं लेकिन सब्जेक्टिव प्रश्नों के उत्तर में ज़ीरो मिले हैं. एक हज़ार से अधिक उत्तर पुस्तिकाओं में कई तरह की गड़बड़ियां पकड़ी गई हैं जिससे पता चलता है कि नकल की गई थी. इस साल अगस्त की खबर है लेकिन मामला पिछले साल मार्च का है. दसवीं की परीक्षा में चोरी कराने के आरोप में क्राइम विभाग ने एक छात्र और पांच शिक्षकों को पकड़ा है. घटना पोरबंदर की है.
जो पढ़ा लिखा है वह संदिग्ध है. आप शक कर सकते हैं कि पढ़ कर पास हुआ है या नकल की लेकिन पढ़े ही नहीं हैं उन पर आप शक नहीं कर सकते. नहीं पढ़ा होना एक तरह से असंदिग्ध होना है. गुजरात के नए मंत्रिमंडल में कई मंत्री ऐसे हैं जिन्होंने 12वीं से आगे की पढ़ाई नहीं की है. आगे बढ़ने से पहले एक बात का ध्यान ज़रूर रखिए कि सब विधायक हैं और विधायक होने के नाते इन सभी के पास प्रशासनिक और विधायी अनुभव है. किसी भी पढ़ाई से कम नहीं है. इनकी पढ़ाई का ज़िक्र इस संदर्भ में बिल्कुल नहीं कर रहा कि ये अयोग्य हैं. बल्कि कुछ और समझना चाहता हूं कि ये क्यों नहीं पढ़ सके.क्या ग़रीबी की वजह से, स्कूल नहीं था या पैसा बहुत था मगर पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी.
- राज्य परिवहन मंत्री अरविंद भाई रैयाणी 45 साल के हैं और 9 वीं पास हैं.
- सामाजिक न्याय राज्य मंत्री 10 वीं पास है और 51 साल के हैं.
- कैबिनेट मंत्री नरेशभाई मगनभाई पटेल दसवीं पास हैं और 53 साल के हैं.
- शहरी विकास राज्य मंत्री विनोद भाई अमरसिंह भाई मोरडिया 10 वीं पास हैं और 54 साल के हैं.
- प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री कृष्णसिंह प्रभातसिंह वाघेला 12 वीं पास हैं, उम्र 52 साल है.
- जलसंसाधन राज्य मंत्री जीतूभाई हरजीभाई चौधरी 9 वीं पास हैं और 56 साल के हैं.
- पशुपालन राज्य मंत्री मंत्री देवभाई पुंजाभाई मालम 63 साल के हैं और चौथी पास हैं.
- पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री जगदीशभाई ईश्वरभाई विश्वकर्मा 12 वीं पास हैं और 58 साल के हैं.
- मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री डिप्लोमा होल्डर हैं. एक तरह से 12 वीं पास हैं. मुख्यमंत्री की उम्र 59 साल है, स्वास्थ्य मंत्री की 60 साल. दोनों को ही रीयल इस्टेट बिज़नेस का अनुभव हासिल है.
ग़रीबी एक कारण हो सकती है. लेकिन जिनकी उम्र 40 से 50 के बीच है उनके बारे में और जानने की ज़रूरत है कि क्यों 12वीं के आगे नहीं पढ़ सके. गुजरात हमेशा से अग्रणी राज्यों में से एक रहा है. उसकी सारक्षरता दर भी बढ़ी है और 2011 की जनगणना के अनुसार 78 प्रतिशत से अधिक है. गुजराती मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से 25 लोगों के मंत्रिमंडल में आधे से अधिक मंत्री ऐसे हैं जिन्होंने चौथी, आठवीं, नौवीं, दसवीं और बारहवीं की ही पढ़ाई की है. अगर ऐसा है तो यह भी अपने आप में गुजरात मॉडल ही है.
पढ़ाई लिखाई की बात हुई है तो बिहार भी आइये. पटना के कंकरबाड़ में मौजूद इस कामर्स कॉलेज में. कितने दिनों से आपने भी किसी कॉलेज के बाहर का दृश्य नहीं देखा होगा. हबीब के कैमरे से आप भी देखिए गेट से पहले कितनी चहल पहल है. पटना के पुराने कालेजों में से एक है कॉमर्स कालेज. भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की सलाह पर पंडित इंदु शेखर झा ने 1949 में इस कालेज की बुनियाद रखी. 2018 में यह पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी का हिस्सा हो गया. हमारे सहयोगी हबीब बुधवार को यहां गए थे तब यहां स्कॉलरशिप का फार्म भरा जा रहा था और किसी सत्र की परीक्षा थी इस कारण यहां काफी भीड़ दिख रही है. यहां भी छात्रों की वही शिकायत है जो छपरा की जेपी यूनिवर्सिटी के छात्रों की शिकायत है. इस कालेज की वेबसाइट पर अतीत के गौरव यानी लिगेसी को लेकर कुछ कुछ लिखा हुआ है लेकिन वर्तमान उस लिगेसी से कुछ कम ही मैच होता नज़र आ रहा है.
छात्रों की यह बात बहुत महत्वपूर्ण है बल्कि हमने जब 2018 में यूनिवर्सिटी सीरीज़ की थी तब भी किसी ने इस तरह की मार्के की बात नहीं कही थी. दोनों छात्रों का कहना है कि ग़रीबों के छात्र पढ़ते हैं इसलिए कम ध्यान है. कस्बों, ज़िलों और राजधानियों के कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों का एक अध्ययन होना ही चाहिए कि किस तबके के छात्र वहां पढ़ रहे हैं. अगर गरीबों के बच्चे पढ़ रहे हैं और वहां की पढ़ाई अच्छी नहीं होगी तब तो ग़रीब के साथ और धोखा हो जाएगा कि पेट काट कर कालेज भेजा और वहां पढ़ाई ही नहीं हुई. पता चला कि प्रोफेसर के बच्चे अब दिल्ली चले गए हैं.
हालांकि, इस कालेज की नई इमारत बन रही है जिसके जल्दी ही चालू हो जाने के आसार हैं लेकिन अभी तक यहां क्या हाल था उस पर भी ग़ौर करना चाहिए. साढ़े दस हज़ार छात्रों के लिए 55 कमरे ही हैं. औसत निकालें तो 190 छात्रों के लिए एक कमरा. इतने बड़े कमरे तो नहीं है. कितनी घुटन हो जाती होगी. एक क्लास के खत्म होते ही दूसरे क्लास के छात्रों की भीड़ लगी रहती है. आप कल्पना करें कि एक कालेज में छात्रों की संख्या साढ़े दस हज़ार हो गई है लेकिन यहां शिक्षकों के मंज़ूर पदों की संख्या 1970 के हिसाब से है. 51 साल पहले के हिसाब से शिक्षकों के मंज़ूर पदों की संख्या है. बिहार ने खुशी खुशी अपने बच्चों के बर्बाद होने की रणनीति बनाई है. इसमें बच्चों के मां बाप का बड़ा योगदान है और छात्रों का तो है ही. बिहार के नौजवानों को ख़राब शिक्षा व्यवस्था का स्वाद लग गया है. वे इतने सहज हो गए हैं कि इसकी बात भी नहीं करते होंगे. बस यहां आते होंगे, जाते होंगे. यह बताता है कि अगर नीतीश कुमार बिहार के सारे कालेजों में हमेशा के लिए ताला लगा दें तो उनकी लोकप्रियता दस गुनी बढ़ सकती है, छात्रों से पहले उनके मां बाप ही आगे आकर कहेंगे कि झंझट से मुक्ति मिली. खुशी के मारे व्रत करने लगेंगे. बिहार के शिक्षा संस्थानों की जर्जरता छात्रों और उनके माता पिता की राजनीतिक जर्जरता का प्रमाण है. बाकी हम भी अपना टाइम पास कर रहे हैं इसे दिखा कर.
प्रिंसिपल ने ही बताया कि 175 शिक्षकों का पद मंज़ूर किया गया है. 150 शिक्षक हैं. इसमें भी 25 कम हैं. 1970 के हिसाब से पदों को मंज़ूरी दी गई है. इस बीच विभागों की संख्या बढ़ गई. छात्रों की संख्या कई हज़ार हो गई. क्या इन पचास सालों में किसी का ध्यान नहीं गया. यह गलती से नहीं हुआ, बल्कि किया गया होगा ताकि हज़ारों हज़ार छात्र बर्बाद किए जाएं. इन वर्षों में यहां से पास होने वाले छात्रों ने क्या कभी खराब शिक्षा को लेकर नेताओं से नहीं पूछा होगा, क्या उन्हें पता भी चलता है कि यह सवाल पूछे जाने लायक सवाल है.
यहां पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या 4000 से भी ज्यादा हो गई है. लंबे समय तक शौचालय की व्यवस्था काफी खराब थी. 1949 में बनी पुरानी शौचालय आप देख रहे रहे हैं. एक ही कमरे में महिला और पुरुषों के लिए शौचालय है. दो अलग-अलग दरवाजे हैं. ऐसा लगता है की पहले यह शौचालय पुरुषों के लिए बना था. बाद में लड़कियां इसे इस्तेमाल करने लगीं. शौचालय के अंदर जाते ही इसकी असली रूप आप को दिखाई देगा. दीवार टूटी हुयी है. लाइट नहीं है. अंदर कोई खिड़की भी नहीं है. 1949 में बनी यह शौचालय 2021 में भी चल रही है. कुछ समय पहले कॉलेज ने अपने तरफ से दस नए शौचालय बनाए है, लेकिन इतने सारे छात्रों के लिए यह काफी नहीं है. नए शौचालय तब बनाए गए जब हाई कोर्ट की तरफ से डांट पड़ी.
इसी साल मार्च में पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल और जस्टीस एस कुमार ने तीन महिला वकीलों की एक कमेटी बना दी और कहा कि पटना नगर निगम की जद में आने वाले स्कूलों और कॉलेजों में जाकर वहां लड़कियों के लिए बने शौचालय और साफ सफाई का मुआयना करें. अर्चना सिन्हा, अनुकृति जयपुरियार, अमरिशा श्रीवास्तव की कमेटी को एक सप्ताह के भीतर पटना यूनिवर्सिटी और पाटलिपुत्र यूनिवर्सिटी के तीस कॉलेजों का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट देने के लिए कहा था. कमेटी ने रिपोर्ट भी सौंप दी, जिसे देकर हाईकोर्ट ने कहा था कि ये शौचालय जानवरों के इस्तेमाल के लायक भी नहीं हैं. कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है. शौचालय भी नहीं है और न उसका रखरखाव है. सैनिटरी वेंडिंग मशीन तक नहीं है. न ही इसके लिए फंड है. मैंने कहा था कि हमारे समय का सबसे बड़ा फ्रॉड है घटिया कालेज, उनके भीतर घटिया इंफ्रास्ट्रक्टर को उनके हाल पर छोड़ कर दुनिया को बताना कि भारत विश्व गुरु बन गया है या बनने जा रहा है.
कॉलेजों के शौचालयों के हाल पर बात करनी चाहिए इससे पहले कि भ्रम फैल जाए कि कोई स्वच्छता क्रांति हो गई है. दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर तमाम यूनिवर्सिटी के छात्रों को शौचालयों की साफ सफाई की हालत की तस्वीर लेकर 2 अक्तूबर को ट्विट करना चाहिए ताकि इस पर भी सरकार का ध्यान जाए और सुधार हो. सारे पत्रकारों को टैग कीजिए कि वे इस पर स्टोरी करें ताकि प्रधानमंत्री की नज़र पड़ जाए.
खैर हम पटना के कामर्स कालेज की गाथा कह रहे हैं. इस कालेज के एक प्रोफेसर एमएलसी बन गए तो उन्होंने अपने फंड से 200 सीट का एक ऑडिटोरियम बनवा दिया. बिहार सरकार ने भी 800 सीट का ऑडिटोरियम बनाने की मंज़ूरी दी थी लेकिन वह पैसा नहीं आया. जब तक परीक्षा के लिए हॉल और ऑडिटोरियम नहीं बनेंगे यहां भीड़ की समस्या बनी रहेगी. दस हज़ार छात्रों के पढ़ने की क्या सुविधा है आप देख सकते हैं. क्या 150 शिक्षक साढ़े दस हज़ार छात्रों को पढ़ा सकते हैं, उनकी क्या हालत होती होगी, इसलिए भी नहीं पढ़ाने का कारण समझ आता है. वैसे जो शिक्षक नहीं पढ़ाने वाले हैं वो इस संसार के सबसे सुखी प्राणी होते हैं. ऐसे शिक्षकों की भी रैकिंग होनी चाहिए और श्रेष्ट बर्बादक नाम से पुरस्कार दिया जाना चाहिए. हर कालेज में ऐसे शिक्षक हैं जिनके कारण दिन रात पढ़ाने में लगे रहने वाले शिक्षक भी बदनाम होते रहते हैं.
हमारा इरादा बस इतना है कि शिक्षा पर बात हो. केवल पटना के कॉमर्स कालेज पर बात नहीं हो. अगर भारत का कोई छात्र इस कार्यक्रम को देख रहा है, और वह समझ पा रहा है कि उसके जीवन को किस तरह से बर्बाद किया गया और बर्बाद करने की प्रक्रिया आज भी जारी ही है तो वह छात्र एक काम करे. बहुत सोच समझ कर बिना किसी जोड़ घटाव के घटिया कालेज और घटिया यूनिवर्सिटी का चुनाव करे. शिक्षकों की संख्या बताए. कमरों का हाल बताए, नकल का हाल बताए. हम भारत के घटिया कॉलेजों पर ऐतिहासिक सीरीज करना चाहते हैं. आप सारी जानकारी अपने नंबर के साथ मुझे भेजिए. मेरे ट्विटर हैंडल पर फेसबुक पेज पर आप पहुंच ही जाएंगे. जब ट्रोल करने आ जाते हैं तो इसके लिए भी आ जाते हैं. घटिया कॉलेज का वीडियो अपने मोबाइल फोन से कैसे बनाना है वो देख लीजिए लेकिन ध्यान रहे कोई भी कॉलेज घटिया से कम नहीं होना चाहिए.