बीस हज़ार करोड़ का 3000 किलोग्राम ड्रग्स पकड़ा गया. उसे लेकर कितना कम कवरेज़ हुआ, छह ग्राम चरस पकड़ा गया उसे लेकर जो कवरेज़ हो रहा है, पता चलता है कि बीस हज़ार करोड़ से ज़्यादा शाहरुख़ ख़ान की कितनी वैल्यू है और उस जनता की कितनी कम वैल्यू हो गई है जो आराम से 117 रुपया पेट्रोल भरा रही है जो कभी 65 रुपया लीटर होने पर आंदोलन करती थी. ऐसी जनता को यह कैसे पता चलेगा कि दो तीन हफ्ते से शाहरुख़ ख़ान के बेटे को लेकर मीडिया इतनी मेहनत क्यों कर रहा है. जनता तो यह भी नहीं समझ पाती है कि एक अंग्रेज़ी अख़बार के संपादकीय पन्ने पर एक ही थीम को लेकर तीन-तीन लेख लिखे जा रहे हैं, जिसमें सरकार की तारीफ ही तारीफ है लिखने वाले सरकार और पार्टी के लोग हैं. जब जनता का विवेक नष्ट हो जाता है और वह जनता नहीं रह जाती है तभी एक मसीहा निकलता है जिनका नाम उपेद्र तिवारी हैं जो यूपी सरकार में राज्य मंत्री हैं. जिन्होंने पूरे रिसर्च से समझा दिया है कि पेट्रोल डीज़ल के दाम कम है.
मंत्री अब कुछ भी बोल सकते हैं क्योंकि जनता ने कुछ भी समझना छोड़ दिया है. यह कामयाबी जनता की है जिस पर झूमने के लिए उसे जनोत्सव मनाना चाहिए. जनोत्सव में आने वाली जनता कहे कि हमने अब जानना और समझना दोनों छोड़ दिया है, पेट्रोल वाकई सस्ता हो गया है. बिल्कुल ज़रूरी नहीं है कि हर बात पर शर्म ही की जाए, कभी कभी शर्म वाली बात पर गर्व किया जाना चाहिए. जन के खत्म हो जाने का उत्सव जनोत्सव मनाया जाना चाहिए.
यह बिल्कुल सही था कि तीन महीने तक फर्ज़ी फर्ज़ी आधार पर सुशांत सिंह राजपूत को लेकर हुए कवरेज़ से टीवी और दर्शकों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. दर्शक इसके बाद किसी और फर्ज़ी मुद्दे पर हफ्तों की बहस और कवरेज़ देखना चाहेंगे. जो रिया के साथ हुआ वो आर्यन के साथ होना ही है और वो किसी और के साथ आगे होगा. इतनी मेहनत इसलिए की जा रही है ताकि आप जब 117 रुपया लीटर पेट्रोल भरा कर घर आएं, टीवी देखें तो तकलीफ न हो कि कई महीनों से अब तक पेट्रोल डीज़ल के नाम पर आपकी जेब से तीस चालीस हज़ार तो निकल गए. जब जनता ही नहीं बची तो जनता की बचत का क्या करना है. इसलिए इसे लेकर धीरज खोने की कोई ज़रूरत नहीं कि आर्यन खान का कवरेज इतना क्यों हो रहा है. एक फिल्म स्टार के न झुकने या एक अच्छी भली इंडस्ट्री को कबाड़ में बदलने की कोशिशों के सवालों से हम दूर रहना चाहते हैं.
इस सवाल से भी दूर रहने जा रहे थे कि 19 सितंबर को गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से जब 3000 किलोग्राम ड्रग्स पकड़ा गया तो उसमें क्या हुआ. 22 सितंबर को 8 लोग अरेस्ट हुए. कुछ दिन बाद इस केस को NIA को दे दिया गया. गुजरात के भुज स्थित Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (NDPS) की विशेष अदालत की एक टिप्पणी एक अक्तूबर के इंडियन एक्सप्रेस में छपी है. अदालत ने जांच एजेंसी से पूछा कि मुंद्रा पोर्ट से आपको किस तरह के डिटेल मिले हैं? DRI यानी Directorate of Revenue Intelligence ने कहा कि बयान रिकॉर्ड हुए हैं और अदाणी ग्रुप इस मामले में कानूनी सलाह ले रहा है. तब कोर्ट ने कहा कि किस तरह की कानूनी सलाह? क्या वे कानून से ऊपर हैं? कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. यह देश की सुरक्षा से जुड़ा बेहद गंभीर मामला है. 1 अक्तूबर के एक्सप्रेस में खबर छपी है कि इसी कोर्ट ने आदेश दिया है कि DRI जांच करे कि पोर्ट अथॉरिटी को किसी तरह का लाभ तो नहीं हुआ है.
इस केस के कवरेज़ से संबंधित सारी डिटेल में जाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हमारा सवाल दूसरा है. इसका ज़िक्र इतना बताने के लिए किया कि 3000 किलोग्राम ड्रग्स पकड़ा गया है उस पर चुप्पी सी है और छह ग्राम चरस पर हंगामा है. हम इस बात को समझना चाहते हैं कि Conscious Possession क्या है जिसके आधार पर आर्यन की ज़मानत रद्द हुई है. Conscious Pको हिन्दी में सचेत स्वामित्व कह सकते हैं यानी आपको पता था कि प्रतिबंधित चीज़ किसी के पास है या आपके पास है. मुंबई की NDPS कोर्ट ने आर्यन ख़ान की ज़मानत रद्द करते हुए कहा कि आर्यन के पास से ड्रग्स बरामद नहीं हुआ है, दूसरे अभियुक्त के पास 6 ग्राम चरस छुपी हुई रखी है. आर्यन को इसकी जानकारी थी कि उनके दोस्त के पास ड्रग्स है. इसलिए कहा जा सकता है कि ड्रग्स दोनों आरोपियों की जानकारी में मौजूद थे. व्हाट्सएप की बातचीत में ड्रग्स का ज़िक्र मिलता है. अभियोजन पक्ष का आरोप है कि आर्यन उनके संपर्क में था जो प्रतिबंधित ड्रग्स का धंधा करते हैं. इसलिए साज़िश में शामिल होने का मामला बनता है. व्हाट्सएप की बातचीत को देखते हुए नहीं कहा जा सकता है कि खान ज़मानत पर छूट कर फिर से वही अपराध नहीं करेंगे. कोर्ट ने यह भी कहा है कि दोनों ने अपने स्वैच्छिक बयान में कहा है कि मस्ती और उपभोग के लिए रखा था.
आर्यन ख़ान 19 दिनों से जेल में हैं. बाकी आरोपी भी. इस पूरी बहस में Conscious Possession कहीं आसमान से तो नहीं टपका है. कानून की स्थापित परंपराओं में है. खास कर ड्रग्स के मामलों में इस आधार पर कई सारे फैसले दिए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने नवाज़ ख़ान के केस में कहा था कि किसी के पास से ड्रग्स नहीं मिला, सिर्फ इसी आधार पर वह बरी नहीं हो जाता है. कोर्ट ने नवाज़ ख़ान का बेल रिजेक्ट कर दिया था.
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