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This Article is From Aug 30, 2022

बुलबुल के पंखों पर उड़ने लगा भारत महान है, सड़कें ख़ाली हो गई हैं,आसमान में लगा जाम है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 30, 2022 23:47 pm IST
    • Published On अगस्त 30, 2022 23:47 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 30, 2022 23:47 pm IST

लाखों दिहाड़ी मज़दूरों के फोन में न जाने कितने वीडियो रील आते होंगे, क्या उन तक यह खबर पहुंच पाएगी कि 2021 में 42,004 दिहाड़ी कमाने वालों ने आत्महत्या कर ली. जिस साल मुफ्त में अनाज बंट रहा था, उस साल 42000 दिहाड़ी कमाने वालों ने आत्महत्या की है. हर दिन सौ से अधिक दिहाड़ी मज़दूर आत्महत्या कर रहे थे. गोदी मीडिया के दौर में ऐसी सूचनाएं हर दिन आत्महत्या करती हैं, ताकि समाज बेखबर बना रहे और झूठी बातों को सच मान ले. 2020 का झूठ, 2021 का झूठ बहुत भारी पड़ेगा, आप जितना छिपाएंगे, बाहर आता रहेगा. 

2020 के साल में एक महान फैसला हुआ कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना लांच हो रही है. 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज दिया जाएगा. इसके बाद भी 2020 साल में 37,666 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या कर ली. उसके अगले साल 42004 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या कर ली. दो साल के भीतर 80 हज़ार से अधिक दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्म हत्या कर ली. इंडियन एक्सप्रेस में हरिकिशन शर्मा की यह खबर कहां दब जाएगी और कहां छप जाएगी, पता नहीं. हम वाकई जानना चाहते हैं कि 97 करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन है. क्या इनमें से जो ग़रीब हैं वो यह खबर पढ़ पाएंगे कि 80,000 दिहाड़ी मज़दूरों ने दो साल में आत्महत्या की है. इन दो वर्षों में जितने लोगों ने आत्महत्या की है, उनमें सबसे बड़ा हिस्सा दिहाड़ी मज़दूरों का है. क्या ये केवल एक आंकड़ा है, क्या आप देख पा रहे हैं कि दिहाड़ी मज़दूर कितने टूट गए होंगे, उन पर क्या बीती होगी, मुफ्त अनाज के बाद भी उनकी हालत कितनी खराब हुई होगी उन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. 

मुझे नहीं लगता कि हाउसिंग सोसायटी में इस खबर पर मातम होगी कि दो साल में 80 हज़ार दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या कर ली और यह सरकारी आंकड़ा है.क्या पता इस आंकड़े के बाहर भी कोई संख्या हो. न ही ये लोग इसे सरकार की नीति की असफलता के रुप में देखेंगे न मानवता के संकट के रुप में. क्योंकि इसी बीच इंडिया जीत जाएगा और ये ताली बजाने लगेंगे या फिर कोई बिल्डिंग गिरा दी जाएगी तब झूमने लग जाएंगे. आपको याद होगा कि कई हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में किसान आंदोलन के समय किसानों को किस तरह आतंकवादी बताने वाला पोस्ट साझा किया जाता था, पलायन करते हुए मज़दूरों के बारे में मज़ाक उड़ाया जाता था. ऐसा इसलिए है  क्योंकि हाउसिंग सोसायटी में रहने वालों को लगता है कि उनकी चारदिवारी के भीतर उनके लिए सब ठीक है.सारी सफलताएं उसमें समां गई हैं. इनमें रहने वाले बहुत से लोग ऐसे मिल जाएंगे जो आम ग़रीब लोगों से बहुत नफरत करते हैं, इतनी कि जो काम वाली खाना बनाती है उसे ही अलग लिफ्ट से आने के लिए कहते हैं. उनके साथ लिफ्ट में प्रवेश कर जाए तो हिंसक हो उठते हैं, सोसायटी के प्रेसिडेंट से डांट खिलवाते हैं. आप इनकी गाड़ी और इनके कपड़ों पर मत जाइये. ये खुद ही अपनी असलियत बता देते हैं

गुरुग्राम के सेक्टर 50 निरवाना सोसाइटी में लिफ्ट बन्द हो गई, आप इस वीडियो में देख रहे हैं कि गार्ड अशोक और लिफ्टमैन दौड़े दौड़े आते हैं, लिफ्ट का दरवाज़ा खोलते हैं. लेकिन इससे बाहर निकलने पर एक जनाब गार्ड को मारने लग जाते हैं. इनका नाम वरुण है. हरियाणा पुलिस ने इनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया और वरुण को ज़मानत भी मिल गई है लेकिन वरुण की मानसिकता ही हाउसिंग सोसायटी में भीतर भीतर बसती है. वो हर समय बाहर नहीं आती है, किसानों को आतंकवादी कहने के समय बाहर आती है. इनके लिए देश का मतलब हाउसिंग सोसायटी हो चुका है. ये इतने समझदार हैं कि हाउसिंग टैक्स भी देते हैं और फिर महीने के रखरखाव का पैसा भी.अपने पैसे से बिल्डिंग की सफाई करते हैं और निगम को टैक्स देते हैं. इनकी दुनिया का भारत विश्व गुरु बन चुका है. कई सोसायटी में आप पता कर सकते हैं कि कम पैसे पर काम करने वाले सुरक्षा गार्ड के साथ क्या व्यवहार होता है. इनके लिए बस सामने की कोई बिल्डिंग गिरा देनी चाहिए ताकि वाव बोलते हुए तालियां बजा सकें. 

2020 का साल था, मध्य प्रदेश में सरकार गिराई जा रही थी, ट्रंप की आगवानी में अपने दबदबे का नकली ढिंढोरा पीटा जा रहा था, तभी कोरोना आया था, किसी को कुछ पता नहीं. अचानक एक शाम एलान होता है कि तालाबंदी कर दी गई है. नोटबंदी की तरह तालाबंदी का फैसला किस तरह से हुआ है, किन तथ्यों के आधार पर हुआ, आज तक सार्वजनिक नहीं है, तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी तालाबंदी की बात नहीं की थी, चीन को देख कर या अपने देश में कौन से हालात थे, जिसके आधार पर तालाबंदी के नतीजे पर पहुंचा गया, आज तक इस पर स्पष्टता नहीं है. इस साल 8 फरवरी के प्राइम टाइम में हमने एक बात का ज़िक्र किया था जिससे पता चलता है कि तालाबंदी का फैसला किस तरह से लिया गया. 

GOING VIRAL making of covaxin : The inside story इस किताब के लेखक हैं ICMR के चीफ डॉ बलराम भार्गव. डॉ भार्गव इस किताब के पेज नंबर सात पर लिखते हैं कि मार्च के पहले सप्ताह में टॉप लिडरशिप के साथ ICMR की पहली बैठक प्रस्तावित थी.हमसे सफेद कागज़ पर सुझाव देने के लिए कहा गया था. हमने केवल दो पंक्तियां लिखी. तालाबंदी करें. अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को रोक दें. यह पैराग्राफ ख़तरनाक है. आप दर्शक इसे समझिए. इससे पता चलता है कि भारत जैसे विशाल देश को तालाबंदी में झोंकने के लिए किस तरह से सुझाव मांगा जाता है और फैसला लिया जाता है. आप इससे कुछ भी नहीं जानते हैं. राज्यों में क्यों तालाबंदी हो रही है, सही है या गलत है, जब वो तालाबंदी कर रहे हैं तब केंद्र को देश भर में करना सही है या गलत होगा? WHO ने तालाबंदी की राय नहीं दी है लेकिन ICMR ने तालाबंदी का सुझाव क्यों दे रहा है, क्या यह सब बताने लिखने की ज़रूरत ही नहीं समझी गई? 

ज़ाहिर है जिस बैठक में फैसला हुआ उसमें केवल डॉ बलराम भार्गव तो नहीं होंगे, बाकी लोगों ने किस आधार पर और कैसे कहा कि तालाबंदी होनी चाहिए. यह सवाल तो तब महत्वपूर्ण होगा जब यह समाज जागेगा कि 2021 के साल में लोग आक्सीजन की कमी के कारण कैसे मर रहे थे लेकिन जब सरकार ने कहा कि कोई नहीं मरा तो हां में हां मिलाने लगे. जब समाज की हालत ऐसी हो जाए, तब किसी सूचना का क्या महत्व रहता है, आज अगर यहां के लोग खुद को दीवार घोषित कर दें तो आप क्या करेंगे. 

इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट में हरिकिशन शर्मा ने विश्लेषण किया है कि 2014 के बाद से आत्म हत्या करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. नोटबंदी के साल में 25000 से अधिक दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या की थी. 2019 तक आते आते यह संख्या 30,000 के पार जा चुकी थी. 2020 में 37,666 और 2021 में 42004 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या की है. यह संख्या मुफ्त अनाज योजना की पहुंच पर सवाल करती है और उसकी ज़रूरत को भी रेखांकित करती है. हमारे समाज में जब तक ऐसे लोग हैं, उनके लिए मुफ्त अनाज योजना केवल रेवड़ी नहीं हो सकती है. इस देश में 25000 रुपया महीना कमाने वाले चोटी के 10 प्रतिशत में आते हैं. ये हालत है यहां की कमाई का, 

राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. इसमें से जो दिहाड़ी मज़दूर हैं, उनका हिस्सा लगातार बढ़ रहा है. सबसे अधिक दिहाड़ी मज़दूर ही आत्महत्या कर रहे हैं. देश में सबसे अधिक आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र में दर्ज हुए हैं. क्या कोविड के दौरान नौकरी जाना कारण बना या कुछ और भी कारण रहे हैं, पूजा बता रही हैं. 

हम मानसिक तनावों को कितना कम महत्व देते हैं. इन तनावों की वजहों पर बात करने की नौबत ही नहीं आती है. सरकार अर्थव्यवस्था की सच्चाई को हमेशा खारिज करती है. वित्त मंत्री कह गईं कि भारत में मंदी का कोई कोई चांस नहीं है. मंत्री लोग तरह तरह के टारगेट के सपने दिखाते रहते हैं कि अगले तीस साल में 30 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होने जा रही है. महीने भर से अखबारों में छपने लगा है कि अर्थशास्त्री यह उम्मीद लगा रहे हैं कि 31 अगस्त को आने वाले जीडीपी के आंकड़ों को लेकर उम्मीद लगाए बैठे हैं कि 15.2 प्रतिशत की दर रहेगी. डबल डिजिट ग्रोथ रेट हासिल किया जा रहा है. अभी रिज़र्व बैंक के आंकड़े नहीं आए हैं मगर हिन्दी से लेकर अंग्रेज़ी के तमाम अखबारों में खबर छपने लगी है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है, जीडीपी की दर 15 प्रतिशत से अधिक होगी. कोई अर्थशास्त्री के बीच मतदान करा रहा है कि कितनी रहेगी, इस तरह से एक माहौल बना दिया जाता है. अब आपको यही समझना है कि ये लोग भी किस तरह प्रोपेगैंडा के खेल में शामिल हैं, इन्हें पता है कि सच्चाई क्या है मगर 15 प्रतिशत जीडीपी की दर का ढिंढोरा पीट रहे हैं. 

माहौल बन रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था के बढ़ने की रफ्तार दुनिया में सबसे अधिक है. 12 से 15 प्रतिशत रहने वाली है. इसका दूसरा पहलू भी है जो नहीं बताया जाता है. ऐसा नहीं है कि वह नहीं छपता मगर कहीं किसी किनारे छपा रह जाता है. अब आप पत्रकार विवेक कॉल के इस विश्लेषण को देखिए जो दक्कन हेराल्ड में छपा है. इसका शीर्षक ही है कि 15 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर से सावधान रहें. विवेक बताते हैं कि इस तरह के मैसेज की धूम मची है कि जीडीपी की दर 15.2 प्रतिशत हो गई है. आर्थिक पत्रकार विवेक ने पहले से ही आगाह किया है कि अप्रैल से जून 2021 के बीच भारत की जीडीपी 32.46 लाख लाख करोड़ की थी जबकि अप्रैल से जून 2019 की जीडीपी 35.49 लाख करोड़ की थी. तो इस हिसाब से अप्रैल से जून 2021 की जीडीपी कम हुई. अप्रैल से जून 2022 के बीच अगर जीडीपी की दर 15 प्रतिशत से अधिक होती है तो इसका मतलब है कि जीडीपी 37.4 लाख करोड़ की होगी. इस हिसाब से देखें तो अप्रैल से जून 2019 से लेकर अप्रैल से जून 2022 के बीच जीडीपी की दर 1.76 प्रतिशत रहती है. 1.76 प्रतिशत की जीडीपी दर को मीडिया 15.2 प्रतिशत बताएगा. 

1 सितंबर के दिन हिन्दी के अखबारों को देखिएगा, उनमें 12 या 15 प्रतिशत का ढिंढोरा पीटा जाता है या जैसे विवेक कॉल ने विश्लेषण कर बताया है कि यह वृद्धि दो प्रतिशत से कम की है, उस तरह से बताया जा रहा है. एक पूरा प्रोजेक्ट चल रहा है ताकि लोगों को भ्रम में रखा जा सके. विवेक कॉल जैसे एख दो पत्रकार लिख रहे हैं मगर उनकी बातों को व्हाट्स एप ग्रुप में शेयर नहीं किया जाएगा. रोका जाता है. 

इसलिए हम एक बार फिर से हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में लौट कर आना चाहते हैं. स्कूलों के पुराने दोस्तों के व्हाट्स एप ग्रुप, रिश्तेदारों के व्हाट्स एप ग्रुप, रिटायर्ड अंकिलों और NRI अंकिलों के भी व्हाट्स एप ग्रुप हैं जिनके सहारे झूठ का प्रसार किया जा रहा है. aइनके भीतर जो मैसेज फार्वर्ड किया जाता है, उसका आप विश्लेषण करेंगे तो पता चलेगा कि ये मैसेज बेहद चतुराई और उच्च कौशल के साथ लिखे जाते हैं. इसके पीछे गहरा मनोविज्ञान भी होता है, जैसे यही सच है. इसे खास तौर से इस ग्रुप के लोगों को बताया जा रहा है, जो मीडिया नहीं बता रहा है. इसके ज़रिए लोगों को भयभीत किया जाता है कि कोई अलग न बोले. सब हां में हां मिलाने का अभ्यास करते रहें. केवल थाली और ताली बजाने की अनुमति होती है. 

किसी हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में आप विवेक काल का लेख शेयर होता हुआ नहीं देखेंगे कि 15 प्रतिशत जीडीपी की दर सच्चाई नहीं है, वो 2 प्रतिशत से भी कम है.एक तरह से इन तरीकों के सहारे लोगों को झूठ के पिजड़े में कैद किया जा रहा है. रोहित ने एक गाना तैयार किया है और एक कार्टून ताकि आप समझ सकें कि हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में कैसे कंट्रोल किया जा रहा है ताकि सच्चाई पहुंच न सके. जीडीपी का मतलब ही है झूठ उत्पादकता दर. अगर भारत में इतनी तरक्की हो रही होती तो एक साल में 42 हज़ार दिहाड़ी मज़दूर आत्महत्या नहीं करते. 

दिहाड़ी मज़दूर आत्म हत्या कर रहे हैं, इस पर हमारा समाज संवेदनशील होगा, इसे लेकर भ्रम में मत रहिए. गोदी मीडिया और व्हाट्स एप ग्रुप ने लोगों के समझने की शक्ति को बर्बाद कर दिया है. कोई भी इनकी बात को आसानी से झूठ नहीं मानता क्योंकि वह झूठ को ही सच मान चुका है. आपको अंदाज़ा नहीं होगा कि कितने लोग लोन देने वाले मोबाइल एप के चक्कर में बर्बाद हो चुके हैं. हाल ही में एक खबर छपी थी कि सरकार की सख्ती के बाद गूगल ने 2000 से ज्यादा ऐसे ऐप को प्ले स्टोर से हटा दिया है. अगर ऐसी कोई कार्रवाई हुई तो अब हुई है लेकिन न जाने कितने लोग इसके झांसे में आकर तबाह हो चुके हैं. अनुराग द्वारी बता रहे हैं कि पिछले हफ्ते इंदौर में एक साथ 4 अर्थियां उठीं, पेशे से इंजीनियर अमित ने ऑनलाइन एप से लोन लिया था, किश्तें नहीं चुका पाने के कारण पूरे परिवार के साथ उसने खुदकुशी कर ली, कुछ हफ्ते पहले भोपाल में इंजीनियरिंग के छात्र निशांक ने खुदकुशी कर ली थी ... उसने भी ऑनलाइन लोन ऐप से बड़ी रकम उधार ले रखी थी. 

सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकानमी के महेश व्यास ने आज लिखा है कि 15 से 24 साल की उम्र में ही ज़्यादार लोग रोज़गार में शामिल होते हैं, कुछ पढ़ाई छोड़ कर तो कुछ पढ़ाई पूरी कर. विश्व बैंक का डेटा है कि उत्तरी अमरीका में 15 से 24 साल की उम्र के बीच जितने भी युवा हैं, उन्हें काम मिल गया है. 50 प्रतिशत से अधिक युवा काम करने लगे हैं जबकि भारत में मात्र 23 प्रतिशत.अब अगर ये डेटा हाउसिंग सोसायटी के  व्हाट्स एप ग्रुप में घूमेगा तो शार्ट सर्किट होने लगेगा. हाउसिंग सोसायटी में रहने का मनोविज्ञान आपको समझना ही पड़ेगा. इन्हें लगता है कि सफलता के मानक हैं. जैसा इनका जीवन है, वही देश की सच्चाई है. इसी साल 2 अगस्त को गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोक सभा में जवाब दिया है कि जितने लोग आत्महत्या करते हैं उनमें से कितने 18 से 30 वर्ष के हैं?

आत्महत्या करने वालों में केवल दिहाड़ी मज़दूरों की ही संख्या सबसे अधिक नहीं है बल्कि उम्र के हिसाब से देखें तो 18 से 30 वर्ष के युवाओं की भी संख्या सबसे अधिक है. हम कभी भी इन आर्थिक विफलताओं पर ठोस रुप से चर्चा नहीं करते, सारा समय धर्म की राजनीति में लगा देते हैं, उसका भी मूल्यांकन कीजिए तो धर्म और राष्ट्रवाद के कारण नेताओं के चरित्र में क्या बदलाव आया है? क्या धर्म की राजनीति करने से नेता पवित्र मन का हो जाता है, अब इस सवाल का जवाब देने के लिए आप बुलबुल के पंख से उड़ कर अंडमान मत चले जाइयेगा. पर सवाल सीरीयस है. 

उत्तराखंड में सरकारी भर्ती घोटाला की खबरें छप रही हैं. उसमें बीजेपी के मंत्री, मंत्री के पीआरओ और संघ के प्रचारकों के संबंधियों के नाम आ रहे हैं कि उन्हें भर्ती मिली. राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाले नौकरी का जुगाड़ करते समय परिवारवाद का बड़ा ध्यान रखते हैं. उत्तराखंड के अखबार इन खबरों से भरे पड़े हैं. तो धर्म और राष्ट्रवाद का क्या असर पड़ा इन पर?

यह सवाल महत्वपूर्ण है. धर्म की राजनीति से केवल वोट मिलता है या इसकी राजनीति करने वालों में पवित्रता आती है, नैतिकता आती है? क्या अलग से कोई विशेष व्यवहार परिवर्तन होता है. यह सुनीता है,अभी कुछ दिन पहले अनुसूचित जनजाति की महिला राष्ट्रपति बनीं तो कितना ढिंढोरा पीटा गया लेकिन उसी पार्टी की एक महिला नेता ने सुनीता को बहुत मारा है, सुनीता के शरीर पर ज़ख्मों के हरे निशान हैं. सुनीता बीजेपी नेता सीमा पात्रा के घर पर काम करती थीं. अनुसूचित जनजाति की सुनीता खाखा को 8 साल तक घर में कैद रखने के आरोप हैं. आरोप है कि भाजपा नेता सीमा पात्रा ने सुनीता को मजबूर किया कि वह जीभ से फर्श साफ करे. लोहे की छड़ से मारकर दांत तोड़ डाले हैं. गर्म तवे से चेहरा जला दिया है. इस तरह के आरोप हैं. 

सुनीता को कथित रुप से मारने वाली महिला सीमा पात्रा, भाजपा का पटका लगाकर सीमा राष्ट्रवाद से ओत-प्रोत नज़र आ रही हैं. फोटो में इतनी नवीनता है कि लगेगा कि धर्म और राष्ट्रवाद ने सीमा को उच्च कोटी का राजनीतिक इंसान बना दिया है. इन तस्वीरों को देखकर लगेगा कि राजनीति में ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है, तभी इंडिया विश्व गुरु बनेगा जहां की दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रथम वर्ष की पढ़ाई इसलिए शुरू नहीं हुई है क्योंकि एडमिशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है.सीमा पात्रा भाजपा राष्ट्रीय महिला मोर्चा कार्यसमिति के साथ साथ प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की सदस्य भी थी.कितने अच्छे से आम महिलाओं के कंधे पर हाथ रख रही हैं, ऐसा लगता है कि सीमा पात्रा न हो तो भारत में मानवता का कोई फोटो न मिले. लेकिन इसी सीमा पात्रा की यह करतूत है जो आपने सुनीता के शरीर पर देखे हैं. सीमा पात्रा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की भी सदस्य हैं. पोलिसी और रिसर्च के मामले में झारखंड की प्रभारी हैं. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाई की राज्य स्तरीय पदाधिकारी हैं. 

सुनीता खाखा को मारते समय क्या सीमा पात्रा को अपना फोटो याद आया होगा? क्या धर्म और राष्ट्रवाद की आठ साल की राजनीति ने सीमा पात्रा में ज़रा भी परिवर्तन नहीं किया?  बीजेपी ने सीमा पात्रा को पार्टी से निलंबित कर दिया है.सीमा के पति माहेश्वर पात्रा आई ए एस अफसर थे जो अब रिटायर हो चुके हैं. अपने भीतर पूरी ज़िंदगी पाल कर रखने वाले यही लोग समाज में धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर हिंसा की राजनीति को सही ठहराते हैं. सुनीता खाखा को कुछ दिन पहले पुलिस ने सीमा पात्रा के घर से मुक्त कराया है.  सुनीता का अभी रिम्स के सर्जरी विभाग में इलाज चल रहा है.  सुनीता के जख्मों की जांच के लिए फॉरेंसिक विभाग के डॉक्टरों से परामर्श लिया जाएगा. साथ ही जरूरत पड़ने पर मेडिकल बोर्ड भी गठित किया जाएगा. आज पीड़िता का 164 का बयान दिलाने का प्रयास किया जाएगा इसके बाद आरोपी सीमा पात्रा की गिरफ्तारी होगी.

मूल सवाल है गोदी मीडिया का.क्या एक लोकतांत्रिक देश का स्वाभिमान गोदी मीडिया को स्वीकार कर सकता है? क्या लोगों ने इसलिए अंग्रेज़ों से लड़ाई लड़़ी कि आज़ादी के बाद गोदी मीडिया की ग़ुलामी करेंगे? जहां पर मूल मुद्दों को गायब करने के लिए तरह तरह के करतब किए जाएंगे. दिल्ली के शराब लाइसेंस विवाद में अन्ना हज़ारे को लाया गया है लेकिन उसी अन्ना हज़ारे के आंदोलन के बाद जो लोकपाल बना, उसकी क्या हालत है, लोकपाल क्यों नहीं जांच कर रहा है, इस पर कोई सवाल जवाब नहीं है. इस बीच आपको लिए एक ज़रूरी खबर है. रेल टिकट कैंसिल कराने पर जीएसटी लगेगी.मुझे पता है इस खबर को सुनते ही आप बुलबुल के पंख पर बैठकर पटना चले जाएंगे. विश्व गुरु बनने की खुशी में इतना तो कर ही सकते हैं. 

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