प्रधानमंत्री जी क्या आप मिसेज लगड़ को जानते हैं - रवीश कुमार

प्रधानमंत्री जी,

आप मिसेज रेखा लगड़ को नहीं जानते होंगे। मैं भी नहीं जानता था इसके बावजूद कि वो मेरी ही सोसायटी में रहती हैं। मिसेज लगड़ पिछले कुछ महीनों से मुझे फोन करने लगीं। ठीक से बात नहीं हुई तो घर भी आईं। इस दौरान मैं उनसे किये अपने वादे पर खरा नहीं उतरा और काम की व्यस्तता में खो गया।

मिसेज लगड़ अपना मकसद नहीं भूलीं। हमारी सोसायटी में वो अकेली रहती हैं फिर भी एनडीटीवी के दफ्तर गईं। कई बार फोन भी किया क्योंकि वे मुझे तकलीफ नहीं देना चाहती थीं। वहां से जो पता चला उसके हिसाब से अपने मकसद पर काम करने लगीं। जैसे आपने स्वच्छता अभियान के लिए एक मकसद तय किया है वैसे ही मिसेज लगड़ उस अभियान के लिए कुछ करना चाहती हैं।

कल शाम मिसेज लगड़ फिर मेरे घर आईं। उनके हाथ में कुछ चेक थे। दरवाज़े पर ही मेरी पत्नी से कहने लगीं कि ये रवीश को दे देना। मैं मिसेज लगड़ से थोड़ी ही दूरी पर था। कहा कि हां मुझे दे दीजिए। आवाज़ सुनकर कहा कि अरे आप यहीं हैं। माफ करना मुझे दिखाई नहीं दिया। मैं थोड़ा चौंका कि आपको दिखाई नहीं दिया सब ठीक तो है न। हां हां सब ठीक है, बस मोतियाबिंद के ऑपरेशन के कारण अभी कुछ धुंधला सा दिख रहा है इसलिए आपको नहीं देख सकी। यह कहते हुए उन्होंने लिफ़ाफ़ा पकड़ा दिया। उनके जाते ही मैंने लिफ़ाफ़ा खोला तो हैरान रह गया।

काश आप तक यह लिफ़ाफ़ा सीधे पहुंचता। आप ज़रूर उन्हें फोन कर देते कि मैंने भी नहीं सोचा था कि यह अभियान लोगों का इस तरह मकसद बन जाएगा। दरअसल आपके दफ्तर तक हज़ारों, लाखों और करोड़ों के चेक लेकर बहुत लोग आए होंगे। वे शायद ताकतवर लोग होंगे या इतने तो सक्षम होंगे ही कि उनके लिए कुछ करोड़ का इंतज़ाम करना बड़ी बात नहीं होगी। हो सकता है कि वो इस बहाने आपसे करीब भी होना चाहते हों लेकिन हम पत्रकारों को आदत ही है पहले शक करने की। यही आदत हमें ठीक भी रखती है। लेकिन मिसेज लगड़ जैसी वृद्ध औरतें कहां आप तक पहुंच पाएंगी। उनका चलना भी इतना संभल कर होता है कि अब शायद वो ताकत नहीं रही कि इतनी ज़हमत उठा सकें। पर देश के लिए कुछ करने का मकसद अब भी बचा हुआ है।

आप सोच रहे होंगे कि इन दस चेक में जमा राशि बहुत बड़ी होगी। दरअसल बात राशि की है ही नहीं। पर हां बता देने से आपके अभियान की अहमियत ज़रूर बढ़ जाती है। इससे पहले मैं भी अपनी बात कह दूं। यह अच्छा अभियान है लेकिन जितना होना चाहिए उतना हो नहीं रहा है। प्रतिनिधियों ने शुरुआती सक्रियता के बाद इससे किनारा कर लिया है। वो भी मान चुके हैं कि यह किसी अज्ञात और अदृश्य सिस्टम का काम है। गंदगी का राज कायम है। लोगों की भागीदारी कमज़ोर पड़ चुकी है और इस अभियान को जारी रखने का सिस्टम बन नहीं पाया है।

हो सकता है आप इस मामले में सोच रहे होंगे और कुछ करने वाले होंगे। मिसेज लगड़ का दिया हुआ लिफ़ाफ़ा याद दिलाने के लिए काफी है कि इसे न बिखरने देने की ज़िम्मेदारी भी आपकी ही है। अब मेरा फर्ज़ बनता है कि मैं भारत के प्रधानमंत्री को उन महिलाओं के नाम बता दूं जिन्होंने न जाने अपनी किस बचत से आपके लिए इतना सबकुछ बचाया होगा। प्रीति प्रूथी, स्मिता प्रियदर्शिनी, शारदा डिंगले, चित्रलेखा खेमका, अरुणा सिंह, सोनी आचार्या, भावना वांटू, अपारा पांडे, नंदिता कुमार। रकम बहुत बड़ी नहीं मगर कुल नौ हज़ार रुपये का ये चेक मैं एनडीटीवी के स्वच्छता अभियान में जमा कर रहा हूं। ये सारे चेक चैरिटिज़ एंड फाउंडेशन के नाम से है। मैंने पूछा भी कि आप किस कैंपन के लिए देना चाहती हैं। धीमी और विनम्र आवाज़ में उन्होंने कहा कि हम सब स्वच्छता अभियान के लिए कुछ करना चाहते हैं। आप उसी अभियान के लिए दे दीजियेगा।

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उम्मीद है आपका यह अभियान सक्रिय रूप से चल रहा होगा। विज्ञापनों और होर्डिंग की दुनिया से बाहर निकल कर सिस्टम और लोगों की कल्पनाओं में जगह बना रहा होगा। इस अभियान का ख़्याल रखियेगा। ख़त लंबा हो गया, इसके लिए माफी।

रवीश कुमार