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This Article is From Apr 12, 2021

आम आदमी दवा नहीं खरीद पाएगा, उसे जीने के लिए 'धर्म का गौरव' दिया जाएगा

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 12, 2021 10:55 am IST
    • Published On अप्रैल 12, 2021 10:55 am IST
    • Last Updated On अप्रैल 12, 2021 10:55 am IST

आप सभी से निवेदन है कि अपना ख़्याल रखें. इस बार भी कोरोना तेज़ी से फैल रहा है. बेहतर है कि अपने स्तर पर बचने के नियमों को लेकर गंभीरता बरतें. मास्क पहनने में शर्म न करें. पहनें भी तो ठीक से. देह से दूरी बना कर रखें. सर्दी खांसी हो तो ख़ुद ही घर से नहीं निकलें और घर वालों से घुलना-मिलना बंद कर दें. किसी शादी ब्याह में मत जाइये. ऐसा कर आप मेज़बान पर भी कृपा करेंगे और अगर वह नहीं मानता है तो इसका दबाव न लें. लोगों को प्रेरित करें, टोकें और समझाएँ कि नियमों का पालन करें. यह आदत लंबे समय के लिए होनी चाहिए. कई लोग मेरे क़रीब भी आते हैं तो सेल्फ़ी के नाम पर मास्क उतार देते हैं. पता होना चाहिए कि कोरोना घात लगा कर बैठा है. अपने मित्रों के साथ भी तस्वीरें लेते वक़्त मास्क मत उतारिए.

ऐसा कर आप न सिर्फ़ ख़ुद को ठीक रखेंगे बल्कि अस्पतालों पर बोझ बढ़ने से रोकेंगे. सरकार ने राम भरोसे छोड़ दिया है. इस एक साल में स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने के नाम पर नौटंकी ही हुई है. सिर्फ़ मोदी सरकार की नहीं मैं सभी सरकारों की बात कर रहा हूँ. हुआ होगा कहीं-कहीं अच्छा काम लेकिन समग्र रुप से देश ने व्यवस्थाओं को बेहतर करने का मौक़ा खो दिया. बीमा के नाम पर जनता को मूर्ख बनाना आसान है. सिम्पल सा सवाल है. जब अस्पताल ही नहीं हैं, बिस्तर नहीं हैं, तो बीमा लेकर आप क्या करेंगे.

कोरोना के इस दौर में अस्पतालों में भयंकर भीड़ है. आज पूरा दिन बीमार लोगों के लिए फ़ोन करने में गया है. कहीं सफलता नहीं मिली है. इस दौरान महामारी और उसके प्रकोप को लेकर भयावह चीज़ों का पता चला. दवा की कमी है. भले सरकार दावा करती रहे, हक़ीक़त यह है कि जीवन रक्षक दवाओं के लिए भी फ़ोन करना पड़ रहा है. कोरोना कर्फ़्यू और टीका उत्सव टाइप की नौटंकी की क़ीमत आम लोग चुका रहे हैं. तीन दिन से ख़बरें चल रही हैं कि रेमसिडिवियर की कमी है. जगह-जगह लोग मारे मारे फिर रहे हैं. कहीं कोई हलचल नहीं है. क्या समाज इतना सुन्न हो गया है?आख़िर इस दवा की कमी ही क्यों हुई? दूसरी कुछ दवाओं के बारे में भी कमी सुनने को मिली. किसी भी सभ्य समाज में इस ख़बर पर हंगामा मच जाना चाहिए था. मगर धर्म का अफ़ीम काम कर रहा है. ख़बरों को देख कर नहीं लगता है कि सरकार ने इसे लेकर अलार्म बटन दबाया हो.

हमारे डाक्टरों पर बहुत दबाव है. टीका लगने के कारण उनका ख़तरा पिछली बार से कम है. ये और बात है कि टीका के बाद भी कुछ डॉक्टर संक्रमित हो रहे हैं लेकिन गंभीर स्थिति का सामना नहीं करना पड़ रहा है. इसके बाद भी डॉक्टरों को दिन रात काम करना पड़ रहा है. वे भी इंसान हैं. थकते होंगे. दिमाग़ काम करना बंद कर देता होगा.
जब कोरोना के थमने के बाद वे अपनी सैलरी, कोरोना में काम करने की प्रोत्साहन राशि के लिए सड़क पर आए तो आप सभी ने भी परवाह नहीं की.

एक साल बाद हम फिर से उसी मोड़ पर हैं. अस्पतालों के बाहर मरीज़ों की भीड़ है.

इलाज का खर्चा बहुत ज़्यादा है. धर्म के नशे में चूर इस राजनीतिक समाज का कुछ होना मुश्किल है. इसलिए आप ख़ुद भी अपना ध्यान रखें. प्रार्थना कीजिए कि सभी लोग सुरक्षित रहें. जो अस्पताल गए हैं वे सुरक्षित वापस लौट आएँ.

कई लोग सवाल कर रहे थे कि अमित शाह मास्क क्यों नहीं लगा रहे हैं . 9 अप्रैल को कोलकाता की रैली में अमित शाह मास्क में थे. अच्छी बात है. गृह मंत्री को कम से कम इसका पालन करना चाहिए. तभी बराबर से मैसेज जाएगा. बाक़ी नेताओें को भी करना चाहिए.

याद रखिएगा तालाबंदी से बर्बादी के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला है. सरकारों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है. राजनीतिक दलों के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. इसी चुनाव में आप ख़बरों को खंगाल लीजिए. हर राज्य में पैसा पानी की तरह बहता मिलेगा.

आम आदमी एक दवा नहीं ख़रीद पाएगा. उसे जीने के लिए दवा के बदले धर्म का गौरव दिया जाएगा.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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