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This Article is From Feb 16, 2021

क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि की गिरफ्तारी पर उठे बड़े सवाल

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 16, 2021 05:55 am IST
    • Published On फ़रवरी 16, 2021 05:54 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 16, 2021 05:55 am IST

अच्छी बात है कि 98 से 100 रुपये लीटर पेट्रोल बिकने से देश परेशान नहीं है. दिल्ली में एक रात में गैस के सिलेंडर के दाम 50 रुपये बढ़ गए, दिल्ली परेशान नहीं है. जो देश इन बातों से परेशान नहीं है उस देश को इस बात से परेशान किया जा रहा है कि बंगलुरु की एक 22 साल की लड़की दिशा ए रवि गिरफ्तार हुई है जिस पर राजद्रोह, दो समुदायों के बीच नफरत और साज़िश करने के आरोप हैं. भारत की छवि ख़राब करने के आरोप हैं. भारत की छवि ख़राब करना एक नया आरोप है, इसे कानूनी रूप से कहां परिभाषित किया गया है यह बताना मेरे बस की बात नहीं है. लेकिन दिशा ए रवि की गिरफ्तारी के सिलसिले में कुछ शब्द चल पड़े हैं. हैं पुराने लेकिन इस बार पुलिस की निगाह से संदिग्ध हो गए हैं. टूल किट. डिजिटल स्टार्म. यानी ट्वीटर फेसबुक या व्हाट्सएप के ज़रिए किसी चीज़ को वायरल कर देना. आए दिन होता रहता है और आप इसके आदी हो चुके हैं.

याद कीजिए पिछले साल 17 सितंबर को सरकारी भर्ती परीक्षाओं के सताए नौजवानों ने ऐसे बहुत सारे पोस्टर बनाए और ट्रेंड कराया जिसे आज आप टूल किट कह रहे हैं. इस अभियान को भी डिजिटल स्टार्म कहा जा सकता है. उस समय ऐसे पोस्टर खूब आते थे कि कितने बजे थाली बजानी है, किस किस मंत्री को टैग करना है और कौन सा हैशटैग ट्रेंड कराना है. इसे आराम से टूल किट कहा जा सकता है. बस तब ये पोस्टर बनाकर इनबाक्स में वायरल हो रहा था और इसे ट्वीटर पर भी शेयर किया जा रहा था. उस दिन प्रधानमंत्री का जन्मदिन था. उस मौके पर विरोध जता कर सरकारी भर्ती परीक्षाओं के सताए नौजवान अपना विरोध जताना चाहते थे और सरकार को झकझोरना चाहते थे. गनीमत है कि तब इस तरह की योजना को साज़िश नहीं माना गया लेकिन कहा नहीं जा सकता कि अब आगे ऐसा नहीं होगा. कोई कह सकता है कि बेरोज़गारों के ऐसे अभियान से लोकप्रिय प्रधानमंत्री और भारत की छवि ख़राब हो रही है.

17 सितंबर 2020 को बेरोज़गारों ने तीस लाख से अधिक ट्वीट किए थे और ट्विटर पर यह नंबर वन ट्रेंड करने लगा था. यही डिजिटल स्टार्म है. यानी डिजिटल दुनिया का तूफान. सरकार के विरोध में भी होता है और सरकार के समर्थन में भी होता है. इस दौरान जो रणनीति बनती है कि किसे टैग करना है किसे क्या लिखना है उसे टूल किट कह सकते हैं. 22 साल की दिशा ए रवि को इसी प्रकार के टूल किट बनाने के मामले में गिरफ्तार किया गया है. पहले मामला समझें. यह ध्यान रखें कि टूल किट शब्द का प्रयोग पहली बार पुलिस ने नहीं, ग्रेटा थनबर्ग ने किया.

क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने 3 फरवरी को अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया और एक टूल किट भी जारी किया. इस टूल किट में लिखा है कि कृषि कानूनों को हटाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए देश के भीतर और देश के बाहर से क्या क्या करना है. इसमें कहीं भी हिंसक गतिविधि की बात नहीं है. बेशक लिखा है कि वीडियो बनाना है. अपलोड करना है. किसी खास समय पर हैशटैग Askindiawhy नाम से ट्विटर पर ट्रेंड कराना है. तस्वीरें साझा करनी है. ऐसा करने के लिए 23 जनवरी, 26 जनवरी और 13-14 फरवरी का दिन तय किया गया है.

अगर मार्च में हिस्सा नहीं ले सकते तो डिजिटली हिस्सा लें. फोटो वीडियो को किसी खास ईमेल पर भेजने की बात कही गई है. साथ ही वही फोटो वीडियो प्रधानमंत्री के कार्यालय से लेकर अपने राज्य के प्रमुखों को टैग करने की भी बात है. भारतीय दूतावासों, सरकारी दफ्तरों, मीडिया के दफ्तरों और अंबानी अडानी के दफ्तर के बाहर दुनिया भर में प्रदर्शन करना है.

तो आपने देखा कि जिस तरह 17 सितंबर 2020 के अभियान के लिए बेरोज़गार नौजवान टूल किट वायरल करा रहे थे कि कब थाली बजानी है और कब तक ट्वीट करना है, वही भाषा और उसी तरह की योजना ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट में बताई गई है जिसे टूल किट कहा जा रहा है. इंटरनेट पर क्रैंबिज डिक्शनरी में टूल किट की एक परिभाषा इस तरह से दी गई है.

Skills and knowledge that are useful for a particular purpose or activity, considered together :
हिन्दी में ऐसा कौशल और ज्ञान जो किसी खास मकसद या गतिविधि के लिए ज़रूरी है.

टूल किट का इस्तमाल सरकार भी अपनी कई योजनाओं के प्रचार प्रसार में करती है. ट्वि‍टर पर जो लोग इस शब्द को आतंकवादी साज़िश का हिस्सा बनाने में लगे हैं उनकी मदद के लिए बता दूं कि 16 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री मोदी का एक बयान बीजेपी ने अपने ट्वि‍टर हैंडल से ट्वीट किया था कि पिछले दो साल में 3500 से अधिक शिल्पकारों, बुनकरों को डिज़ाइन में सहायता दी गई. एक हज़ार कलाकारों को Tool Kit भी दिए गए हैं: पीएम मोदी #PMInKashi. प्रधानमंत्री ने टूल किट देने की बात की थी.

केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटी की वेबसाइट पर भी टूल किट है. स्मार्ट सिटी का टूल किट. उसमें भी इसी तरह की बातें हैं कि क्या क्या करना है. ऐसे ही आर्थिक मामलों के विभाग ने public private partnerships in india की वेबसाइट पर भी PPP मॉडल के बारे में एक टूल किट डाला है. 

भाषा में आ रहे बदलाव को समझना चाहिए. अब पहले भाषा में बदलाव किया जाता है फिर उसकी आड़ में सिस्टम काम करने लगता है. समाज में पहले भाषा की स्थापना की जाती है ताकि सिस्टम को कुछ भी करने की मान्यता मिल जाए. जैसे राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद भाषण देते हुए प्रधानमंत्री ने अपने ही बजट के चमकदार पन्ने के एक शब्द FDI का मतलब foreign distructive ideology कर दिया. वही हाल टूल किट का है. अगर यह बुरा होता तो फिर सरकार के मंत्री इसका नाम ही नहीं लेते. अब जो आगे आप सुनने जा रहे हैं ज़रा ध्यान से सुनिए. इसी तरह की योजना के बारे में गृह मंत्री अमित शाह अपनी पार्टी के सोशल मीडिया के कार्यकर्ताओं को समझा रहे हैं. गुप्त रूप से नहीं बल्कि सबके सामने. यह भाषण यूटयूब पर भी है और 11 फरवरी का यानी उससे दिल्ली पुलिस टूल किट के मामले में ऐसी योजनाओं को लेकर केस दर्ज कर चुकी थी. गृह मंत्री जिस तरह से बता रहे हैं वह एक तरह का मौखिक टूल किट है. बता रहे हैं कि कैसे हंसाने वाली और डराने वाली चीज़ें वायरल करानी है. उन्हीं के शब्द हैं हंसाने वाली और डराने वाली.

अब यह अलग सवाल है कि गृह मंत्री को अपने कार्यकर्ताओं को हंसाने वाली और डराने वाली चीज़ों की ट्रेनिंग देनी चाहिए या नहीं. यह इस पर निर्भर करेगा कि इस प्रश्न का सामना करने वालों की सोचने समझने की ट्रेनिग किस तरह से व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने की है. टूल किट का इस्तमाल इस तरह से किया जा रहा है जैसे किसी ने सीट के नीचे लावारिस वस्तु रख दी हो.

मगर यहां तो ग्रेटा के ट्विटर अकाउंट में यह टूल किट अभी तक रखी हुई है. ज़ाहिर है यह कोई लावारिस वस्तु नहीं है. फिलहाल ग्रेटा इसकी वारिस हैं और 49 लाख फॉलोअर इसे देख सकते हैं. आप भी देख सकते हैं. पढ़ सकते हैं. 3 फरवरी ने जो ट्वीट किया था उसे डिलिट कर दिया और यह भी लिखा कि उसे इसलिए डिलिट किया क्योंकि वह पुराना हो चुका था. यानी ग्रेटा ने छिपा कर डिलिट नहीं किया. कारण बता कर डिलिट किया. नए टूल किट में 13-14 फरवरी की योजना शामिल थी. पुलिस के अनुसार दिशा ने ग्रेटा को व्हाट्सएप चैट में लिखा है कि इसके ट्वीट करने से हमारे खिलाफ UAPA लग सकता है. यह भी एक सवाल है कि क्या सरकार ने ट्विटर से ग्रेटा थनबर्ग के खाते पर मौजूद इस टूल किट को हटाने का कोई आग्रह किया है और ट्विटर का क्या जवाब है. क्या पुलिस ग्रेटा से पूछने स्वीडन जाएगी? अगर जाए तो कम से कम पता कर ले कि ग्रेटा कहीं अटलांटिक की यात्रा पर तो नहीं निकल गई है. क्या पुलिस जानबूझ कर इस वक्त ग्रेटा से दूरी बना रही है या जांच के बाद तय करेगी कि ग्रेटा का पीछा किया जाएगा या नहीं. दिल्ली पुलिस का कहना है कि इस टूल किट को बनाने वाले एक व्हाट्सएप गुप से जुड़े थे और दिशा ने टूल किट ग्रेटा को टेलीग्राम से भेजा था. तो क्या पुलिस ग्रेटा को इस साज़िश का हिस्सा मानती है? इसका ठोस उत्तर नहीं मिला.

दिशा ए रवि की गिरफ्तारी के मामले में दिल्ली पुलिस के साइबर सेल के ज्वाइंट कमिश्नर प्रेमनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस की. बताया कि 4 फरवरी को जिस टूलकिट की जानकारी मिली उसे खालिस्तानी संगठन की मदद से बनाया गया था. 11 फरवरी को निकिता के यहां सर्च हुआ जिसमें काफी सारे संवेदनशील सबूत मिले हैं.

ट्विटर पर हैशटैग अभियान का हिंसा से क्या संबंध है इस बारे में पुलिस को कुछ चीज़ें और साफ़ करना बाक़ी है. इसी संदर्भ में मेरे कुछ सवाल हैं. पहला ये कि जिस टूल किट की बात की जा रही है उसके लिखित स्वरूप में कहीं भी हिंसा फैलाने की बात नहीं है. जैसा कि हमने आपको अभी बताया. दूसरा ये कि क्या किसान आंदोलन में हिंसा की योजना बाहर के लोग कर रहे थे जिसकी जानकारी किसानों को नहीं थी? हिंसा होने से अगर किसी का नुक़सान होता तो वो किसान आंदोलन ही था इसीलिए किसान संगठन शुरू से शांतिपूर्ण आंदोलन की बात कर रहे थे. तो क्या दिल्ली पुलिस ये बात मानती है किसान संगठनों का दिल्ली की हिंसा में कोई हाथ नहीं था. और क्या इस हिंसा का मक़सद किसान आंदोलन को बदनाम करना था?

जैसा प्लान था वैसा किया गया. प्लान exactly क्या था ये अभी साफ़ होना बाक़ी है. दिल्ली पुलिस ने दिशा और शांतनु पर भी बयान दिया है.

अभी तक पुलिस इनकी बैठक में मो धालीवाल के होने का हवाला दे रही है जो पोएटिक जस्टिस नाम की संस्था से जुड़ा है. धालीवाल को खालिस्तान से जोड़ रही है. इस नौजवान ने 26 जनवरी की हिंसा के बाद एक बयान जारी किया है.

कनाडा में भी अन्याय होता है तो हम बोलते हैं. दुनिया में कहीं अन्याय होता है तो बोलेंगे. इसमें तो यही लिखा है कि नफरत के खिलाफ है. हम प्यार के लिए काम करते हैं. हम किसानं के साथ हैं. हम लोकतंत्र में नियमों में यकीन करते हैं. क्यों भारत में किसानों की हत्या हो रही है, क्या भारत अल्पसंख्यकों की हत्या कर रहा है, क्यों भारत अपने लोकतंत्र की हत्या कर रहा है. इसमें यह भी लिखा है कि पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन ने रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग या किसी सेलिब्रेटी के साथ तालमेल नहीं किया है. किसी को टवीट करने के लिए पैसे नहीं दिए हैं. हमने जरूर ये अपील की है कि दुनिया इसे साझा करे.

इंडियन एक्सप्रेस ने पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के बारे में लिखा है कि यह संस्था मार्च 2020 में बनी थी. मकसद दक्षिण एशियाई समुदाय के बीच मानवाधिकार और सामाजिक न्याय को लेकर जागरुकता लाना है. इंडियन एक्सप्रेस से धालीवाल ने कहा है कि हमारा कोई खालिस्तान समर्थक एजेंडा नहीं है. हम असली लोकतंत्र में संविधान द्वारा दिए गए संवाद और मुक्त अभिव्यक्ति को बढ़ावा देते हैं. 26 जनवरी की घटना के जवाब में इस संस्था ने एक बयान में यह भी कहा है कि हम किसानों के आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हैं. भारत में प्रेस की आज़ादी नहीं है क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान 142वां हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की अंजु अग्निहोत्री चाबा ने धालीवाल से बात की है. अंजू की रिपोर्ट में लिखा है कि पुलिस के पास 17 सितंबर 2019 का धालीवाल का एक मैसेज है जो सोशल मीडिया पर है जिसमें धालीवाल कहता है कि मैं खालीस्तानी हूं. आप मेरे बारे में नहीं जानते होंगे. क्यों? क्योंकि खालिस्तान एक विचार है. खालिस्तान का आंदोलन ज़िंदा है, सांसे ले रहा है.

इस पर अंजु ने सवाल किया तो धालीवाल का जवाब है कि सिखों के प्रति हमदर्दी जताने के लिए कहा था क्योंकि समय समय पर कनाडा में सिखों को आतंकवादी कह कर किनारे किया जाता है. उसका कहना है कि फेसबुक पर उसके पूरे पोस्ट को पढ़ा जाए. अगर कनाडा में किसी को आतंकवादी कहे और कोई उसके साथ में खड़ा हो जाए तो क्या वह खालिस्तानी कहा जाएगा. ये आपको समझना है. 

ट्विटर पर अगर ग्लोबल ट्रेंड कराना छवि खराब करना और साज़िश का हिस्सा है तब तो फिर पूरा ट्विटर ही किसी साज़िश का हिस्सा है. बात यह है कि जहां आप पहले दबदबा बनाते हैं और वहां पोल खुल जाती है तब फिर वह माध्यम दुश्मन लगने लगता है. फिर आप नए माध्यम की तलाश करने लगते हैं. खैर ये अलग विषय है. पंजाब में यह एक सच्चाई है कि कुछ लोग खालिस्तान की बात करते हैं लेकिन उसका विरोध भी पंजाब के लोग दिन रात करते हैं. खालिस्तान को किसानों से जोड़ने की जल्दी में इस बात का ध्यान ज़रूर रखिए कि यह हाशिये की सच्चाई है. पंजाब के ही कई किसान संगठन इस धारा के खिलाफ हैं और लड़ते हैं. 

हमने आपको बताया था कि किसान आंदोलन में हरिंदर बिन्दु आई हैं. वे भारतीय किसान यूनियन उग्राहां की सदस्य हैं. हरिंदर बिन्दु के पिता को खालिस्तानी आतंकवादी ने हत्या कर दी थी. इस किसान मोर्चे में ऐसे कई लोग आए हैं जिनके किसी प्रिय को खालिस्तानियों ने हत्या कर दी थी. वे आतंकवाद का विरोध करते हैं. विरोध करने वाले किसान हैं और इस तरह के पोस्टर किसान मोर्चे में दिखे थे कि हम आतंकवादी नहीं हैं.

लेकिन जो ट्विटर पर हैशटैग चलाने, फोटो वीडियो अपलोड करने की योजना है उसमें कहीं से भी ऐसा कुछ नहीं है जो लगे कि आतंकवादी योजना है. पुलिस इस हिस्से को कैसे साबित करेगी देखना होगा. लेकिन ग्रेटा ने जो ट्वीट किया है उसमें वही सारी बातें हैं जो आए दिन ट्विटर पर हैशटैग चलाने वाले करते रहते हैं.

पुलिस की दलील है कि 26 जनवरी के बाद अंतर्राष्ट्रीय सेलिब्रिटी और एक्टिविस्ट से संपर्क किया गया. क्या पुलिस का मतलब अमरीकी पॉप स्टार रिहाना के ट्वीट से है, दो फरवरी को रिहाना ने सीएनन की खबर ट्वीट की थी, क्या सीएनन ने खबर साज़िश के तहत छापी? कमाल है न. क्या उस सैलिब्रेटी में अमरीका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस का ट्वीट भी शामिल होगा? अगर आप घटनाओं को देखें तो अमरीका कनाडा और ब्रिटेन की संसद में किसान आंदोलन की कब से चर्चा हो रही है. हाल ही में ब्रिटेन की संसद में ये मुद्दा उठा था. क्या ब्रिटेन के सांसद किसी साज़िश का हिस्सा हैं? किसान आंदोलन को लेकर कई देश से बयान आए हैं.

हम क्या कर रहे हैं? हैशटैग चलाने की योजना को आतंकी साज़िश और भारत के खिलाफ साज़िश से जोड़ रहे हैं. पुलिस की धाराओं में जितनी बातें हैं उससे अधिक और आगे जाकर बातें सोशल मीडिया में कही जा रही हैं. क्या इसलिए कि लड़कियों को डराया जा सके?

22 साल की एक लड़की आज सबके सामने साज़िश रचने वाली गिरोह के मुखिया के तौर पर पेश कर दी गई है. फ्राइडे फॉर फ्यूचर. FFF से जुड़ी है. यह वो प्रयास है जिसे ग्रेटा थनबर्ग ने शुरू किया था. स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हर शुक्रवार जलवायु प्रदर्शन को लेकर प्रदर्शन करते हैं. दिशा ए रवि भारत में इस प्रयास की संस्थापकों में से एक है. 2019 में जब वे माउंट कार्मेल कालेज बंगलुरु में पढ़ती थी तब फ्राइडे फॉर फ्यूचर की स्थापनी की थी. कृषि परिवार से आने वाली दिशा का जलवायु और पर्यावरण के सवालों को लेकर चिन्तित होना स्वाभाविक था. जब केंद्र सरकार ने पर्यावरण के असर के मूल्याकंन के लिए नया कानून बनाने का मसौदा तैयार किया तब इसे लेकर दिशा जागरुकता फैलाने में व्यस्त हो गई. हिन्दू अखबार में लिखा है कि इस कैंपेन को लेकर भी दिल्ली पुलिस को दिक्कत हो गई. इन्होंने पर्यावरण क़ानूनों में संशोधन को लेकर इन्होंने प्रदर्शन किया था जिसके बाद UAPA और इंफोर्मेशन टेक्नालजी एक्ट के तहत नोटिस जारी कर दिया. बाद में वापस ले लिया गया. इस संस्था के लिए काम करते हुए दिशा की अंतर्राष्ट्रीय पहचान बन गई. ब्रिटेन के मशहूर अखबार द गार्डियन में उसके बारे में लेख छपा. दिशा ए रवि मांसाहारी से शाकाहारी हो गई क्योंकि उसे लगा कि जानवरों के प्रति क्रूरता नहीं होनी चाहिए. इसके बाद शहर में एक स्टार्ट अप के साथ काम करने लगी जो शाकाहारी दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में काम करता है. बंगलुरु में जहां भी पेड़ कटते हैं उसे रोकने में दिशा ए रवि की सक्रिय भूमिका रहती है. शाकाहारी होने के बाद भी आज की राजनीति में दिशा को शत्रु की तरह देखा जा रहा है. do you get my point.

22 साल की दिशा रवि के किसी ख़्याल से या गतिविधि से देश इतना डर गया है कि हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज को ट्वीट करना पड़ा कि देश विरोध का बीज जिसके भी दिमाग़ में हो, उसका समूल नाश कर देना चाहिए फिर चाहे वह दिशा रवि हो या कोई और. 

हरियाणा के गृहमंत्री का यह बयान काफी सीरीयस हैं. वे समूल नाश का इस्तमाल करते हैं. संविधान में किसी भी गंभीर अपराध की सज़ा के तौर पर समूल नाश का प्रावधान नहीं है और न ही इस तरह के शब्द इस्तमाल होते हैं. अनिल विज को कम से कम से भारत के गृह मंत्री से सीखना चाहिए. वे कितने प्यार से और चटखारे लेते हैं हंसाने वाली और डराने वाली ट्रेनिंग दे रहे हैं. लेकिन समूल नाश के लिए नहीं. सिर्फ एकाध चुनाव जीतने के लिए. आप फिर से सुनें कि किस अंदाज़ में 11 फरवरी को गृह मंत्री अपने कार्यकर्ताओं को बता रहे हैं कि चुनाव के समय सोशल मीडिया का इस्तमाल कैसे होता है. दिल्ली पुलिस कम से कम इस बयान को सीरीयसली न ले. दोबारा इसलिए सुनाया क्योंकि ये वाकई सीरीयस है. हंसाने की बात तो ठीक है लेकिन डराने वाली चीज़ों से किसी की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाती है. ऐसे अभियानों के बाद केस मुकदमे भी हो जाते हैं. AIPWA की सदस्य कविता कृष्णन का कहना है कि FIR भी वापस ली जाए. 78 पर्यावरणविदों ने बयान जारी किया है कि 22 साल की दिशा रवि को तुरंत रिहा किया जाए.

दिशा रवि कोई टेररिस्ट नहीं है, वह एक पढ़ी-लिखी Environmentalist है. अगर किसी नागरिक ने गलत किया है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो लेकिन गैर कानूनी तरीके से एक युवा लड़की को जेल भेजना गलत है. सरकार डराने की कोशिश कर रही है युवाओं को. इसके जरिए यूनिवर्सिटीज को यह मैसेज दिया जा रहा है स्टूडेंट सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते.. यह गलत तरीका है. गिरफ्तार दिशा रवि को कोर्ट में अपने आप को डिफेंड करने के लिए कानूनन वकील रखने का अधिकार मिलना चाहिए. कानून के विशेषज्ञों और वकीलों की मदद से सुप्रीम कोर्ट जाना हमारे सामने एक विकल्प है.

इस गिरफ्तारी ने फिर से किसानों के आंदोलन का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया है. जब किसान अपने स्तर पर करते हैं तो सरकार को बुरा लगता है और जब सरकार के कदम से मामला ग्लोबल हो जाता है तो किसे बुरा लगना चाहिए मैं इसमें पड़ना ही नहीं चाहता.

लोकल लेवल पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने दिशा रवि के पक्ष में ट्वीट किया है कि डरते हैं बंदूकों वाले एक निहत्थी लड़की से. फैले हैं हिम्मत के उजाले एक निहत्थी लड़की से. #ReleaseDishaRavi, #DishaRavi, #IndiaBeingSilenced

प्रियंका के साथ साथ कांग्रेस नेता जयराम रमेश, पी चिदंबरम, आनंद शर्मा, शिवसेना की राज्य सभा सासंद प्रियंका चतुर्वेदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, अभिनेता सिद्धार्थ, अमरीकी की उपराष्ट्रपति की भांजी मीना हैरिस, कनाडा की कवयित्री, रुपी कौर, सुनीता नारायण, बिल मक्किबेन से लेकर तमाम लोगों ने दिशा रवि की रिहाई की मांग की है.

संयुक्त किसान मोर्चा ने भी कहा है कि किसानों के समर्थन में आने वाली दिशा ए रवि के साथ खड़े हैं. तुरंत रिहाई की मांग करते हैं. 

वही हाल नौदीप का है. मज़दूरों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली 24 साल की एक लड़की नौदीप कौर जेल में है. क्या यह भी गलत काम है कि कोई लड़की मज़दूरों के अधिकारों के लिए लड़े? इससे तो भारत की छवि और शानदार होती है कि भारत में दिशा और नौदीप जैसी लड़कियां हैं. क्या आप दिशा और नौदीप से घबरा रहे हैं तो खुल कर कहिए. डरिए नहीं. राजद्रोह का सहारा मत लीजिए.

पंजाब के कई शहरों में नौदीप कौर की रिहाई के लिए धरना प्रदर्शन हो रहे हैं. संगरुर में नौदीप कौर और बाकी किसानों की गिरफ्तारी के विरोध में केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी हुई और पुतले फूंके गए. भारतीय किसान यूनियन उग्राहां की तरफ़ ब्लाक धूरी के गांवों में पुतले फूंके गए. मानसा के गांव रल्ला में भी किसानो मजदूरों ने भारतीय किसान यूनियन हो ऊग्रहा की अगुवाई में केंद्र सरकार का पुतला फूंक रोष प्रदर्शन किया गया. किसानों ने कहा कि केंद्र सरकार खेती कानून रद्द करने के बजाए नौजवान बुजुर्ग किसान और लड़कियों पर मामला दर्ज कर जेल में भेज रही है. पंजाब की लड़की नौदीप को जेल में बंद किए जाने के विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा है. पंजाब की महिला आयोग की अध्यक्ष मनीषा गुलाटी ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की है और नौदीप के मामले की जानकारी दी है. नौदीप के खिलाफ तीन मामले हैं. दो में ज़मानत हो चुकी है. एक में बाकी है. 

दिशा की गिरफ्तारी और उसके खिलाफ हो रही बातें बता रही हैं कि देश में एक वर्ग ऐसा है जो लड़कियों के आगे आने से डर रहा है. पहली महिला पुलिस अफसर और पहली महिला पायलट बनने से कहीं ज्यादा शानदार काम है हवा में घुलते ज़हर के खिलाफ आवाज़ उठाना और किसी मज़दूर के पैसे के लिए कंपनी के मालिक से भिड़ जाना. सवाल है कि महिलाएं जब राजनीतिक हो जाती हैं तो राजनीति घबराने क्यों लगती है.

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