कोई भी सूचकांक उठा कर देख लें. कहीं बीस साल में सबसे कम विकास दर है तो कहीं पंद्रह साल में सबसे कम तो कहीं दस साल में सबसे कम. और ये रिज़ल्ट है 2014-2020 यानि साढ़े पांच साल मज़बूत और एकछत्र सरकार चलाने के बाद.
2016 में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का बोगस और आपराधिक फ़ैसला लिया था. तभी पता चल गया कि उन्होंने देश की गाड़ी गड्ढे में गिरा दी है मगर झांसा दिया गया कि दूरगामी परिणाम आएंगे. तब नशा था. मज़बूत नेता के कड़े फ़ैसले का. सारे कड़े फ़ैसले कचकड़ा हो कर दरक रहे हैं. 2016 के मूर्खतापूर्ण बोगस फ़ैसले का दूरगामी परिणाम आने लगे हैं.
2020 में भारत की सकल घरेलू विकास विकास दर दस साल में सबसे कम होगी. पिछले वित्त वर्ष में 1.8 प्रतिशत थी जो इस वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत रहेगी. क़रीब 2 प्रतिशत जी डी पी डाउन है. अगर आप बेरोज़गार हैं, सैलरी नहीं बढ़ रही है, बिज़नेस नहीं चल रहा है तो आपको ज़्यादा बताने की ज़रूरत नहीं है.
मेक इन इंडिया बोगस नारा निकला. मैन्यूफ़ैक्चरिंग सेक्टर का प्रदर्शन 15 साल में सबसे नीचे हैं.
2006 के बाद मैन्यूफ़ैक्चरिंग का ग्रोथ रेट इस साल 2 प्रतिशत है. इसके कारण मौजूदा इंडस्ट्रीज़ ग्रोथ रेट बीस साल में सबसे धीमा है.
निवेश में वृद्धि दर का अनुमान 1 फ़ीसदी से भी कम है. यह भी 15 साल में सबसे कम है.
अगर आप सकल निवेश (GFCF gross fixed capital formation) के हिसाब से देखें तो 20 साल में सबसे कम है.
भारत की अर्थव्यवस्था में निवेश का हिस्सा एक तिहाई से घट कर एक चौथाई हो गया है. 20 साल में यह सबसे तेज़ गिरावट है.
और अगर निवेश को नोमिनल टर्म के हिसाब से देखें यानि जी डी पी में GFCF का कितना हिस्सा है तो यह 2005 के बाद सबसे बदतर है.
90 के दशक के वित्तीय संकट के दौर में भी निवेश और औद्योगिक गतिविधियों में इतनी गिरावट नहीं हुई थी. जब भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की पांच नाज़ुक इकोनमी में गिना जाता था.
इस तरह के बदतर रिकार्ड को लेकर क्या आप अगले वित्त वर्ष 2021 में बेहतरी की उम्मीद कर सकते हैं? नोटबंदी वाला दूरगामी परिणाम क्या अगले साल आएगा?
अब आप सोचिए. अर्थव्यवस्था में ज़ीरो लाकर मोदी सरकार डिबेट में टॉपर बन कर घूम रही है. वो कैसे? गोदी मीडिया के ज़रिए आपकी आँखों में धूल झोंक कर. जैसे पाँच करोड़ पाठकों तक पहुंचने वाले हिन्दुस्तान अख़बार के ग़ाज़ियाबाद संस्करण के पहले पहले पन्ने पर यह ख़बर ही नहीं है.पटना के दैनिक जागरण के पहले पन्ने पर नहीं है.
इन बदतर नाकामियों पर नज़र न जाए इसलिए ऐसे मुद्दे खड़े किए जाते हैं जिन्हें मैं थीम एंड थ्योरी की सरकार कहता हूँ.
फ़र्ज़ी इतिहास. ज़बर्दस्ती के एंगल. धमकी. पुलिस की बर्बरता और आई टी सेल का कुप्रचार. आपको राष्ट्रवाद के नाम पर झूठ के गोदाम में बांध कर रख दिया गया है. आप निकल ही नहीं पाएँगे.
मज़बूत नेता और दो दो घंटे तक भाषण देने वाले नेता की तारीफ़ में डूबा देश भूल गया कि प्रधानमंत्री के पास इतना समय कहाँ से आता है? दुनिया भर के रिसर्च हैं कि मज़बूत नेता का रिज़ल्ट ख़ास नहीं रहा. हंगामा ज़रूर ख़ास रहा.
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