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This Article is From Dec 26, 2019

क्या मुकदमों से CAA विरोधी छात्रों को डरा रही है पुलिस?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 26, 2019 23:17 pm IST
    • Published On दिसंबर 26, 2019 23:17 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 26, 2019 23:17 pm IST

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा हुई. इस हिंसा के एक ही पहलू की बात हो रही है कि कुछ जगहों पर इसमें शामिल लोगों ने हिंसा की. लेकिन पुलिस की हिंसा पर बात नहीं हो रही है. कोई निंदा नहीं कर रहा है. एक तीसरी तरह की हिंसा है जिस पर बिल्कुल बात नहीं हो रही है. प्रेस, पुलिस या सरकार कोई नहीं कर रहा. जैसे पटना के फुलवारी शरीफ में प्रदर्शनकारियों पर सामने से जो भीड़ पत्थर चलाने आई थी, जिसकी तरफ से प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलीं, वो लोग कौन थे. जैसे मुज़फ्फरनगर में पूर्व सांसद सईदुज़्मा की चार कारों को जलाने वाले कौन थे. प्रदर्शनकारी के बीच से हिंसा करने वाले तो देखे जा रहे हैं लेकिन उन पर सामने से हमला करने वालों की बात ही नहीं है. जबकि कई जगहों से ऐसे आरोप लगे हैं. अब आते हैं छात्रों पर. क्या इन प्रदर्शनों में छात्रों के शामिल होने से रोकने के लिए उन्हें डराया जा रहा है? क्या उन्हें डराने के लिए पुलिस और खुफिया विभाग का भी इस्तमाल हो रहा है? यह खबर अहमदाबाद मिरर से लेकर स्क्रोल डॉट इन में कई जगह छपी है.

अहमदाबाद की निरमा यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट ने छात्रों के माता-पिता को मैसेज किया है कि हमारी जानकारी में आया है कि आपका बच्चा ताज़ा मसले को लेकर प्रदर्शन में शामिल था. पुलिस और खुफिया ब्यूरो ने हमसे आपके बच्चे की जानकारी ली है. हम अपनी तरफ से बच्चों को समझा रहे है कि ऐसी गतिविधियों से दूर रहें और हम उम्मीद करते हैं कि आप भी ऐसा करेंगे. अगर आपका बच्चा प्रदर्शन में हिस्सा लेता रहा तो पुलिस उसके खिलाफ रिकार्ड बना सकती है. शुक्रिया.

क्या इस पत्र में पुलिस और खुफिया ब्यूरो का नाम लिया गया ताकि माता पिता में घबराहट मच जाए, छात्र डर कर प्रदर्शन न करें. क्या वाकई खुफिया ब्यूरो के लोग यूनिवर्सिटी से संपर्क कर रहे हैं, प्रदर्शन करने वाले छात्रों की प्रोफाइल तैयार कर रहे हैं. ऐसा है तो यह चिन्ता की बात है. निरमा यूनिवर्सिटी की तरफ से भेजे गए मैसेज में कहीं नहीं लिखा है कि आपका बच्चा हिंसा में शामिल है तो इस तरह खुफिया पुलिस का नाम लेकर भयभीत करने के पीछे क्या मकसद हो सकता है. इसी तरह बनारस में भी पुलिस ने अपनी अपील में कहा है कि कुछ व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से नई उम्र के लड़कों को भड़काऊ भाषण एवं सोशल मीडिया के माध्यम से भड़का कर उन्हें उग्र कर रहे हैं. इस अपील में नई उम्र के लड़कों पर ज़ोर है. 23 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कैंडल मार्च हुआ. पुलिस हिंसा के शिकार छात्रों के समर्थन में. इस मार्च में शहर में रहने वाले एएमयू के छात्र और उनके माता पिता शामिल थे. शिक्षक और यूनिवर्सिटी का स्टाफ शामिल था. कोई हिंसा नहीं हुई फिर भी पुलिस ने 1200 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने भी अपने बयान में कालेज के छात्रों को निशाना बनाया. क्या यह कोई पैटर्न है कि कालेज के छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है, ताकि भय से सब पीछे हट जाएं. सेना प्रमुख बिपिन रावत ने लाइब्रेरी में हुई पुलिस की हिंसा पर कुछ नहीं कहा.

निरमा यूनिवर्सिटी की तरफ से जो मैसेज भेजा गया है, बनारस की पुलिस ने जो अपील की है और सेना प्रमुख बिपिन रावत के बयान इतनी समानता क्यों है?

कभी इंटरनेट, तो कभी युवाओं, तो कभी कालेज के युवाओं को बार बार निशाना बनाया जा रहा है. यूपी के कई ज़िलों में 26 दिसंबर की रात 10 बजे से लेकर 27 दिसंबर की रात 10 बजे तक इंटरनेट बंद रहेंगे. इसी संदर्भ में गुवाहाटी हाईकोर्ट का फैसला अहम हो जाता है. असम में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. तो वहां इंटरनेट बंद हुआ. गुवाहाटी हाईकोर्ट में असम सरकार अदालत के इस सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी कि इंटरनेट से बैन हटाने पर किस तरह की स्थिति पैदा हो जाएगी? सरकार कोई दस्तावेज़ पेश नहीं कर सकी. गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इंटरनेट सेवा बहाल करने के आदेश दे दिए. उसी तरह कर्नाटक हाईकोर्ट ने वहां की सरकार के वकील से कहा था कि क्या आप सारे प्रदर्शन बैन कर देंगे? क्या लेखक बोल नहीं सकते हैं? कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह भी चेक करने के लिए कहा था कि पुलिस ने पहले प्रदर्शन की अनुमति देकर बाद में रद्द क्यों की. कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया कि क्या हिंसा की आशंका में हर प्रदर्शन बैन किया जा सकता है? बनारस की सवा साल की बच्ची चंपक की रिपोर्ट के दूसरे दिन भी कोई फर्क नहीं पड़ा है.

हमारे सहयोगी अजय सिंह 25 और 26 दिसंबर को चंपक के घर गए. 19 तारीख से चंपक ने अपनी मां एकता शेखर को नहीं देखा. उस दिन उसकी मां एकता और पिता रवि को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन में हिस्सा लेने गए थे. आज 7 दिन हो गए इस दूधपीती बच्ची ने अपने मां बाप को नहीं देखा है. इसके बाद भी प्रशासन का दिल नहीं पसीजा है. मां का दूध नहीं मिलने के कारण इसका वज़न कम हो गया है. इतनी छोटी बच्ची के ज़हन पर क्या असर हो रहा होगा, आप समझ सकते हैं. रवि और एकता बनारस में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदूषण आदि के सवाल पर प्रदर्शन करते रहते हैं. जो लोग समाज की बेहतरी के लिए अपना जीवन दे देते हैं अचानक पुलिस उन्हें खलनायक बना देती है. देशद्रोही बना देती है. सात दिनों से परिवार के लोगों के होश उड़े हैं कि इस बच्ची को कैसे समझाया जाए कि मां-बाप कहां हैं. रवि और एकता पर पुलिस ने तोड़फोड से लेकर कई संगीन धाराएं लगा दी हैं. क्या यह मुकदमे इसलिए दायर किए जा रहे हैं ताकि एक प्रदर्शन में हिस्सा लेने के बाद जीवन भर मुकदमा लड़ना पड़े. चंपक से मां के कपड़े भी छिपाए जा रहे हैं क्योंकि जैसे ही मां के कपड़ों पर नज़र पड़ती है वो मां को पुकारने लगती है.


हमारे सहयोगी आलोक पांडे ने बताया है कि यूपी में करीब 900 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. अलग-अलग ज़िलों को मिलाकर कई हज़ार अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए हैं. प्रदर्शनकारियों पर इनाम घोषित किया गया है और उनकी तस्वीरें चौराहों पर लगाई गईं हैं, हिंसा के इल्ज़ाम हैं. बनारस में 19 और 20 को प्रदर्शन हुए थे. कई इलाकों में. एक दो जगह पर छिटपुट हिंसा होने की बात सामने आई है और पुलिस ने लाठी चार्ज किया है. बीएचयू के भी कई छात्र बंद कर दिए गए हैं. इसके विरोध में दिल्ली में भी यूपी भवन पर 26 दिसंबर को प्रदर्शन हुए और 27 दिसंबर को भी होने जा रहा है.

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के एक छात्र ने अपनी यूनिवर्सिटी के छात्रों की गिरफ्तारी के विरोध में डिग्री लेने से इंकार कर दिया. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के 51 प्रोफेसरों ने साझा बयान जारी किया है कि हम सरकार से आग्रह करते हैं कि नागिरकता संशोधन कानून के दूरगामी परिणामों पर फिर से विचार करे. उम्मीद करते हैं कि राष्ट्र हित को दलगत राजनीति से ऊपर रखा जाएगा. हम प्रदर्शनकारियों से मांग करते हैं कि वे हिंसा में शामिल न हों. लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी अहसमति ज़ाहिर करें.

दोषी साबित करने की एक प्रक्रिया होती है. लेकिन यूपी सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल बिजनौर गए तो एक पक्ष के पीड़ितों से मुलाकात की और एक पक्ष के पीड़ित परिवार से नहीं की. यही नहीं उनका जो जवाब था वो बता रहा था कि वे इस हिंसा को किस चश्मे से देख रहे हैं. कपिल देव अग्रवाल से जब पत्रकार ने पूछा कि आप घायल हिन्दू से मिलने गए लेकिन उसी एरिया में मारे गए दो मुसलमानों के घर नहीं गए. पत्रकार ने कहा है कि क्या यही सबका साथ सबका विश्वास है. तो मंत्री जी का जवाब था कि वहां क्यों जाएं, मैं भेदभाव नहीं कर रहा, मैं किसी उपद्रवी के घर क्यों जाऊं, वो लोग हिंसा भड़का रहे हैं. अदालत का फैसला नहीं आया है, मुकदमा शुरू नहीं हुआ है लेकिन मंत्री जी ने उपद्रवी घोषित कर दिया. मंत्री ने यह भी कहा कि वे एक मुस्लिम पत्रकार से मिले हैं जिसे चोट लगी थी. इसलिए वे भेदभाव नहीं करते हैं. कपिल देव अग्रवाल ने कहा कि मैं चीफ मिनिस्टर के आदेश के अनुसार ओम राज सैनी के घर गया था.

सेना प्रमुख बिपिन रावत बता सकते हैं कि मंत्री कपिल देव अग्रवाल का व्यवहार उनके आदर्श नेता की कैटेगरी में आता है या नहीं. वैसे अगर कौशल विकास मंत्री कपिल देव अग्रवाल चंपक के घर तो जा ही सकते हैं. या उनकी जगह कोई दूसरा मंत्री जा सकता है. सवा साल की चंपक के माता पिता का हिंसा में शामिल होने का कोई रिकार्ड नहीं है. वे बनारस जैसे शहर में क्लाइमेट के सवाल पर काम करते हैं. मंत्री जी इस छोटी सी बच्ची को गोद में लेकर एक लोकसेवक के रूप में और बेहतर महसूस कर सकते हैं. उन्हें यकीकन बुरा लगेगा कि पुलिस से कभी कभी ज्यादती हो जाती है और इसकी शिकार कभी चंपक जैसी बच्ची भी हो जाती है. अपने मां बाप से बिछड़ जाती है.

यूपी में पुलिस के भी 50 जवान घायल बताए जा रहे हैं. पुलिस ने भी अपनी तरफ से वीडियो जारी किए हैं, मेरठ के वीडियो हैं, इस वीडियो में कुछ लोग रिवाल्वर से गोलियां चला रहे हैं. एक उपद्रवी सात बार गोलियां चलाते देखा जा सकता है. इस तरह हिंसा करने वालो ने लोकतांत्रिक प्रदर्शन को कमज़ोर किया है. पत्थर चलाने वालों ने अनगिनत शांति प्रदर्शनों की कामयाबी पर पानी फेर दिया है. लेकिन इस दौरान हुई हिंसा के स्वरूप को हमें ठीक से समझना होगा. जो सरकार कह रही है और जो नहीं कह रही है दोनों को समझना होगा. मेरठ में हुई हिंसा में 6 लोग मारे गए हैं. कहीं संख्या 5 भी बताई जा रही है. मेरठ में गोली से मरने वाले सभी एक ही समुदाय के हैं. हर्ष मंदर, योंगेद्र यादव, कविता कृष्णन और नदीम खान मेरठ में पीड़ित परिवारों से मिलने गए.

अब आते हैं पटना के फुलवारीशरीफ की घटना पर. 21 दिसंबर शनिवार को फुलवारीशरीफ के टमटम पड़ाव पर प्रदर्शनकारियों के सामने एक और भीड़ आ गई. प्रदर्शनकारियों पर सामने से पत्थर चलाने वाले आ गए. इन्हें कोई हिंसक भीड़ या दंगाई नहीं कह रहा है. इसके वीडियो में आप देख सकते हैं कि ये लोग सामने खड़ी भीड़ पर पथराव कर रहे हैं. जितनी देर का वीडियो है उतनी देर में एक भी पत्थर सामने से आता नहीं दिखाई देता है. पथराव करने वालों के बीच या साथ में कोई पुलिस नहीं है. पुलिस प्रदर्शनकारियों की साइड में है जो दूर खड़ी है. सामने से पत्थर और गोलियां चलने लगती हैं. प्रदर्शनकारियों की तरफ से गोली नहीं चली है. गोलियों के शिकार सभी एक ही समुदाय के हैं. ज़ाहिर है प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने वाले कौन थे? पथराव में कई लोग घायल हुए हैं. जिनमें दोनों समुदाय के लोग हैं. आखिर दोनों समुदाय के बीच टकराव की नौबत कैसे आ गई. एक भीड़ के सामने दूसरी भीड़ किसके इशारे पर गई. वीडियो में पत्थर चलाते कौन लोग हैं. पुलिस ने 40 लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें से 17 मुसलमान हैं, 23 हिन्दू हैं. पुलिस ने गुड्डू चौहान और नागेश सम्राट को गिरफ्तार किया है. इन पर कथित रूप से गोली चलाने के आरोप हैं. यह जांच का विषय है कि इन दोनों ने किसके इशारे पर गोली चलाई. ये कौन लोग हैं. राजद नेता तेजस्वी यादव ने इन घायलों से मुलाकात की है. तेजस्वी यादव ने अपने ट्वीट में आरोप लगाया था कि केंद्रीय मंत्री और बीजेपी विधान पार्षद द्वारा भीड़ को उकसाया गया.

अब सीतामढ़ी से आया एक वीडियो दिखाना चाहता हूं. ताकि आप समझ सकें हिंसक नारे अगर आप सरकार की तरफ से निकलने वाली रैली में लगाएं तो उसे कविता समझा जाता है. प्रदर्शनकारियों पर पत्थर मारने वालों को या गोली मारने के नारे लगाने वालों को दंगाई नहीं बल्कि कवि या राष्ट्रभक्त समझा जाता है. मैं चाहता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बिहार के तमाम मंत्री ऐसे वीडियो ज़रूर देखें. दरभंगा की रैली में तलवार लेकर निकले तो कोई बात नहीं. कटिहार में भी ऐसी रैली में गोली मारने के नारे लगे. कोई सवाल नहीं. 26 दिसंबर यानी आज सीतामढ़ी के परिहार प्रखंड से एक वीडियो आया है. सरकार के कानून के समर्थन में रैली हो रही है. गालियां दी जा रही हैं. गोली मारने के नारे लग रहे हैं. ठोक देने की बात हो रही है. क्या ये उकसाना नहीं है? क्यों नहीं इन लोगों को गिरफ्तार किया गया या पुलिस आक्रामक हुई? ऐसी रैलियों के वक्त पुलिस सहायक क्यों दिखती है? यकीनन ऐसे नारों के बीच तिरंगे को देखना अच्छा नहीं लगेगा.

क्या इस तरह की नारेबाज़ी की छूट है, कई दिनों से ऐसे नारे लग रहे हैं, आपने देखा किसी मंत्री को इसके खिलाफ बोलते हुए? मुंबई प्रेस क्लब ने नागरिकता संशोधन कानून के कवरेज के दौरान पत्रकारों के साथ हुई हिंसा के विरोध में कैंडल मार्च किया है.

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