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This Article is From Aug 02, 2023

सुनो मेवात के दंगाइयों- तुमने अमन के चमन को लूटा है

Ravikant Ojha
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 02, 2023 20:39 pm IST
    • Published On अगस्त 02, 2023 20:39 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 02, 2023 20:39 pm IST

मेवात में अमन को पता नहीं किसकी नजर लगी...सोमवार रात से लेकर मंगलवार दोपहर तक भीड़ पागल बनी घूमती रही. पुलिस-प्रशासन और तमाम शांति चाहने वाले कोशिश करते रहे लेकिन दंगाई अपनी मंशा में कामयाब होने तक नहीं रूके. जब इंसानी पागलपन थमा तो जो नुकसान सामने आया वो हर अमन पंसद शहरी को नागवार गुजरा. अमन चाहने वालों को भरोसा नहीं हो रहा कि जिस मेवात का इतिहास ही हिंदू-मुस्लिम एकता का रहा है वहां ऐसा कुछ हो सकता है. ये वही मेवात है जहां के घराने को हिंदुस्तानी संगीत का स्कूल कहा जाता है. इसी घराने ने मुल्क को पंडित जसराज जैसा शास्त्रीय संगीत का महारथी दिया. पद्मविभूषण जसराज के नाम पर NASA ने मंगल और बृहस्पति के बीच पाए जाने वाले एक ग्रह का नाम भी रखा है. यहां ये जानकारी सिर्फ इसलिए ताकि मेवात के वो दंगाई समझें-जाने कि उन्होंने कैसे अपनी शानदार पहचान पर धब्बा लगाया है. 

दंगाइयों सुनों- मेवात की पहचान तो हसन खान मेवाती से भी है. वही हसन खान जिन्होंने बाबर के खिलाफ राणा सांगा का साथ दिया था. मेवात के दंगाइयों ध्यान से सुनो क्या हुआ था तब- हुआ यूं कि बाबर भारत पर अपनी पकड़ स्थापित करने के लिए सैन्य अभियान पर था. उसके सामने थी राणा सांगा की विशाल सेना. कहा जाता है कि राणा सांगा के पास तब तकरीबन एक लाख सैनिक थे (ऐतिहासिक पुष्टि नहीं). घबराए बाबर ने धर्म का वास्ता देकर तब मेवात के शासक हसन खान से मदद मांगी. लेकिन हसन ने उसके धर्मवादी प्रस्ताव को ठुकरा दिया औऱ राणा के साथ जंग में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा. मेवात के दंगाइयों तुम ये भी सुनो- 1857 में जब भारत अपने पहले स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ रहा था तब इसी मेवात के करीब 6000 मेवातियों ने वतन की खातिर जान दी थी. 

मेवात के दंगाइयों सुनो- हमारे राष्ट्रपिता के कहने पर ही यहां के मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए थे. वो तारीख थी- 19 दिसंबर 1947. महात्मा गांधी मेवात के गांव घसेड़ा में आए और पाकिस्तान के लिए पलायन कर मुसलमान समुदाय को समझाया कि ये तुम्हारा भी देश है. तब खुद गांधी ने कहा था- बस मेरे कहने पर रुक जाओ, तुम्हारी हर जरूरत की जिम्मेदारी मेरी है. इस अपील का असर हुआ और पलायन कर रहे लोगों के पांव वहीं ठहर गए. दंगाइयों तुमने बापू के वादे की भी लाज नहीं रखी.

दंगाइयों ये भी सुनो- मेवात के अधिकांश मुसलमान हिंदू राजपूतों से अपनी वंशावली जोड़ते हैं. मेवात के बुजुर्गों से बात करो तो वे बताएंगे कि कैसे 11 वीं सदी में उनके पूर्वजों ने इस्लाम को कबूल किया. यहां की तहजीब का ही असर है कि आज भी मेवात में कई मुस्लिम समुदाय के लोगों के नाम हिंदू जैसे मिल जाएंगे. मसलन- समर सिंह, अमर सिंह, चांद सिंह वैगरह..वैगरह. 

दंगाइयों को नहीं रोक पाने वाली पुलिस भी सुने- जिस धार्मिक यात्रा में 5000 लोग शामिल थे उनकी सुरक्षा के लिए महज 100 पुलिस वाले क्यों थे? आपका खुफिया तंत्र क्या गहरे नींद के आगोश में था? आखिर दंगाइयों के पास इतने पत्थर और हथियार कैसे आए. दंगाइयों तुम ये जान लो कि 1947 के बाद से अब तक मेवात आम तौर पर शांत ही रहा है. 1992 में कुछ संपोलों ने कोशिश जरूर की थी लेकिन उनके फन उठाने से पहले ही खुद मेवातियों ने अमन की बहाली कर दी. लेकिन इस बार हालात ज्यादा बिगड़ गए. सवाल है कि आखिर इस बार मेवात अपनी गंगा-जमनी तहजीब को भूल गया? जवाब ढूंढों तो तुम्हें अपनी करनी पर पछतावा होगा.

रविकांत ओझा NDTV में डिप्टी एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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