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बरसात में ज़मीन खोदकर निकलते हैं सह्याद्रि के अनोखे बैंगनी मेंढक

Atula Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 24, 2024 15:22 pm IST
    • Published On सितंबर 24, 2024 15:22 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 24, 2024 15:22 pm IST

चूहे जैसी नुकीली नाक, बैंगनी रंग और बहुत से बैंगनों को अगर आपस में मेंढक के आकार में जोड़ दिया जाए, उस तरह का बुलबुले-सा फूला हुआ आकार - ऐसा एक अलबेला जीव भारत के सह्याद्रि के जंगलों में पाया जाता है. इन्हें नाम दिया गया है पर्पल फ्रॉग या भारतीय बैंगनी मेंढक और यह दुनिया के कुछ सबसे अदभुत माने जाने वाले जीवों में से एक है.

भारतीय बैंगनी मेंढक (Nasikabatrachus sahyadrensis) एक दुर्लभ प्रजाति है, जो अपना अधिकांश जीवन ज़मीन के नीचे बिताते हैं. केवल बरसात के मौसम में यह पृथ्वी के तल से बाहर निकलकर ऊपर ज़मीन पर आते है. इसमें भी मादाएं साल में केवल एक दिन के लिए, और वह भी सिर्फ़ कुछ घंटों के लिए, सतह पर आती हैं, ताकि वे मिलन कर सकें और अपने अंडे दे सकें.

दक्षिणी सह्याद्रि में मानसून की पहली बारिश के तुरंत बाद नर मेंढक भूमिगत रहते हुए ही आवाजें निकालना शुरू कर देते हैं, जैसे पहली बारिश उनके लिए कोई अलार्म घड़ी हो.

दक्षिणी सह्याद्रि में मानसून की पहली बारिश के तुरंत बाद नर मेंढक भूमिगत रहते हुए ही आवाजें निकालना शुरू कर देते हैं, जैसे पहली बारिश उनके लिए कोई अलार्म घड़ी हो. फिर धीरे-धीरे कुछ नर सतह पर दिखाई देने लगते हैं, मादा के इंतज़ार में. यह इंतज़ार इस बात का भी रहता है कि मौसमी नदियों और धाराओं में अपेक्षाकृत पानी भर जाए.

प्रजनन के स्थान तक की यह यात्रा इन मेंढकों के लिए खतरों से घिरी और फ़िल्मी क्लाइमेक्स से कम नहीं होती. रास्ते में उल्लुओं और चेकर्ड कीलबैक सांपों जैसे शिकारी उन्हें खाने के लिए तैयार बैठे रहते हैं, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा खतरा सड़कें हैं, जो उनके आवासों को विभाजित करती हैं. कई स्थानों पर ये सड़कें इन मेंढकों के लिए मौत का जाल बन जाती हैं. इसके अलावा, अन्य दबाव जैसे बांध, अनियंत्रित पर्यटन, कचरा आदि तो हैं ही.

माना जाता है कि इन जीवों का प्राचीन वंश लगभग 12 करोड़ वर्षों से स्वतंत्र रूप से विकसित हो रहा है, और इन्होंने नए महाद्वीपों के निर्माण, महान डायनासोर के विनाश, हिमयुग और मनुष्यों के प्रमुख प्रजाति बनने जैसी घटनाओं को जीवित रहते हुए देखा है.

हालांकि वैज्ञानिको ने इस प्रजाति की खोज 2003 में की थी, सह्याद्रि के जंगलों में रहने वाली इडुकी इन्हें कई पीढ़ियों से जानते और समझते हैं. माना जाता है कि इन जीवों का प्राचीन वंश लगभग 12 करोड़ वर्षों से स्वतंत्र रूप से विकसित हो रहा है, और इन्होंने नए महाद्वीपों के निर्माण, महान डायनासोर के विनाश, हिमयुग और मनुष्यों के प्रमुख प्रजाति बनने जैसी घटनाओं को जीवित रहते हुए देखा है. वैज्ञानिकों के लिए यह गोंडवानालैंड नामक महाद्वीप के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण जैविक प्रमाण हैं.

मौसम के पैटर्न में हल्का-सा बदलाव आने पर सबसे पहले प्रभावित होने वाले जीवों के समूहों में उभयचर (एम्फिबियन्स) शामिल हैं, विशेष रूप से विशेष प्रजातियां जैसे बैंगनी मेंढक, जो अपने अस्तित्व के लिए भारी रूप से मॉनसून पर निर्भर होते हैं. आज बैंगनी मेंढक के केवल 135 ही ज्ञात जीवित सदस्य हैं, जिनमें से केवल 3 मादाएं हैं. बदलते मौसम के तेवर कहीं इन बरसात-प्रेमी जीवों के सदियों से विकसित प्रजनन रणनीतियों को डुबोकर तो नहीं ले जाएंगे?

अतुला गुप्ता विज्ञान और पर्यावरण लेखिका हैं, जो विलुप्तप्राय प्रजातियों और जैव विविधता संरक्षण पर काम करती हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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