कानपुर के कुख्यात हिस्ट्री शीटर विकास दुबे और उसकी गैंग के हाथों उत्तर प्रदेश के आठ पुलिस वालों का जान गंवाना क्या यूपी में अपराध के उस दौर की वापसी का संकेत है, जब 24 साल के अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला का ख़ौफ़ राज्य के बड़े हिस्से में व्याप्त हो गया था. वो बड़े-बड़े नेताओं की हत्या की सुपारी लेता और रेलवे से लेकर तमाम सरकारी ठेकों का इकलौता मालिक बन बैठा था.
श्रीप्रकाश शुक्ला के आपराधिक इतिहास पर नज़र डालें, उससे पहले इस ताज़ा घटना पर ग़ौर करना ज़रूरी है. विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर घात लगाकर हुए हमले में जिन आठ पुलिस वालों की जान गई, उनमें एक डिप्टी एसपी, तीन सब इंस्पेक्टर और चार सिपाही शामिल हैं. सात पुलिस वाले घायल भी हैं. ज़ख़्मी पुलिस वालों का इलाज अस्पताल में जारी है. पुलिस ने इस हमले की जवाबी कार्रवाई में विकास दुबे की गैंग में शामिल उसके एक भाई और एक चाचा को मार गिराया.
विकास और उसके गैंग ने पुलिस से एक AK-47, एक इन्सास राइफल और दो पिस्टल छीन लीं.
गैंगस्टर विकास दुबे ने जिस तरह से चौतरफ़ा हमला किया और कुल चौदह से पंद्रह पुलिस वालों को अपनी गोलियों को शिकार बनाया, वो वाक़ई अपराधियों का सबसे बड़ा दुस्साहस है. इससे पहले थाने में घुसकर एक बड़े नेता संतोष शुक्ला की हत्या का आरोप भी विकास दुबे पर रहा है. विकास पर 60 आपराधिक केस चल रहे हैं और उस पर 25 हज़ार का इनाम भी घोषित है.
अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने के लिए कई टीमें बनाई गई हैं, लगातार छापेमारी जारी है और घटना के ज़िम्मेदार किसी भी अपराधी को बख़्शा नहीं जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि क़ानून की वो कौन सी कमज़ोर कड़ी है, जो विकास दुबे जैसे अपराधी को पुलिस की भारी-भरकम अमले के कूच करने से पहले ही ये सूचना दे देती है, और वो बिकरू गांव में पुलिस को ही चारों तरफ़ से घेर लेता है, जेसीबी मशीन लगाकर पुलिस का रास्ता बंद कर देता है. गांव में पुलिस के पहुंचने से पहले ही विकास दुबे के गैंग तक कोई मुखबिरी कर ये सूचना पहुंचा देता है, और वो पूरी तरह से मोर्चा भी संभाल लेता है. बाद में अंधेरे का फ़ायदा उठाकर पुलिस की निगाहों से ओझल भी हो जाता है और पुलिस अब उसे पकड़ने के लिए अंधेरे में तीर चलाए जा रही है.
मुमकिन है वो पकड़ लिया जाए, लेकिन जिस तरह से उसने पुलिस को छकाया और उसकी हिम्मत यहां तक बढ़ गई कि उसने इतनी बड़ी तादाद में आई पुलिस पर सीधा हमला किया, उससे ये साबित होता है कि विकास दुबे को क़ानून का ख़ौफ़ बिल्कुल नहीं है. वो फ़िलहाल वैसे ही रूप में नज़र आने लगा है जैसे कभी पूर्वांचल के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला का अपराध यूपी में सिर चढ़कर बोलता था और आख़िरकार उसे एनकाउंटर में मार गिराने के अलावा पुलिस के पास कोई विकल्प नहीं बचा. मुमकिन है अब विकास दुबे का भी यही हश्र हो. संभव ये भी है कि सियासी शह-मात के खेल में विकास दुबे सरेंडर कर दे और जेल के भीतर बैठकर अपने अपराध की दुनिया को संचालित करना शुरू कर दे.
श्रीप्रकाश शुक्ला का ज़िक़्र यहां लाज़िमी है, क्योंकि जिस तरह से सियासी रसूख़ का फ़ायदा उठाकर विकास दुबे दो दशक से अपराध जगत में सक्रिय है, और आज पुलिस पर सीधे हमला कर वो सीधे-सीधे क़ानून को चुनौती देने की हिमाक़त कर बैठा है, यही दुस्साहस श्रीप्रकाश शुक्ला भी किया करता था. ग़ौरतलब है कि उसे भी पूर्वांचल के ब्राह्मण नेताओं का भरपूर संरक्षण था.
विकास दुबे की उम्र भले ही श्रीप्रकाश शुक्ला से ज़्यादा हो गई हो, लेकिन उसके अपराध और सियासत से गठजोड़ का तरीक़ा बहुत हद तक श्रीप्रकाश शुक्ला से मिलता-जुलता है. ये भी तथ्य सामने आ रहे हैं कि स्थानीय स्तर पर कई छोटे अपराधों में शामिल रहने के बाद विकास अक्सर पुलिस के निशाने पर रहा, लेकिन जब भी उसे पकड़ा जाता, उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय नेता सक्रिय हो जाते. इनमें विधायक से लेकर सांसद तक शामिल रहे. वो ख़ुद पंचायत सदस्य का चुनाव जीतकर अपनी दबंगई साबित कर चुका था. उसके परिवार के कई सदस्य स्थानीय चुनाव जीतकर अलग-अलग पदों पर आसीन रहे हैं.
अब तो सोशल मीडिया पर रसूख़दार नेताओं के साथ उसकी तस्वीरें सामने आ रही हैं. हालांकि इन तस्वीरों की पुष्टि अभी बाक़ी है. फिर भी इस बात से इनकार करना मुश्किल है कि उसे सियासी संरक्षण सीधे-सीधे हासिल नहीं था. पहले बहुजन समाज पार्टी और अब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के साथ विकास दुबे की कथित तस्वीरें बताती हैं कि पूरब के मैनचेस्टर कानपुर और आसपास के इलाक़ों में विकास दुबे ब्राह्मण समाज के नेताओं के लिए राजनीतिक ज़मीन पर अपनी आपराधिक ताक़त से क़ब्ज़ा कर रहा था और उन्हें चुनाव में जीत दिलाने तक की ज़िम्मेदारी गोली-बंदूक के दम पर वो बख़ूबी पूरी कर रहा था.
कुछ यही अंदाज़ श्रीप्रकाश शुक्ला का भी था. पूर्वांचल में हरिशंकर तिवारी और गोरखपुर, बांसगांव, बस्ती, देवरिया, समेत तमाम ब्राह्मण बहुल इलाक़ों और अगड़ी जाति के दबदबे वाले क्षेत्रों में श्रीप्रकाश शुक्ला का अपराध समाज में जैसे स्वीकार कर लिया गया था. उसे रॉबिन हुड की तरह दर्जा दिया जाता था, जो ग़रीबों का मददगार था. ऐसे ही हालात विकास दुबे के भी नज़र आते हैं कि पुलिस जब पूरी तैयारी के साथ उसे पकड़ने जाती है, तो पहले ही उसे पता चल जाता है, और गांव वाले इस तरह के हमले के लिए जैसे तैयार बैठे हों, विकास की मदद करने के लिए. पुलिस को इसी वजह से अभी तक कोई सुराग हासिल नहीं हुआ. ठीक वैसे ही जैसे कभी श्रीप्रकाश शुक्ला के ख़िलाफ़ सुराग़-सबूत मिलना मुश्किल होता था, बाद में एसटीएफ ने उसका काम तमाम किया.
इस बार भी विकास दूबे के लिए कई ज़िलों के पुलिस कप्तान उसकी तलाश में व्यापक घेराबंदी कर रहे हैं. कई टीमें बनाकर उसकी तलाश की जा रही है. कानपुर ज़िले के हर रास्ते को सील कर सारी गाड़ियों की सघन तलाशी, उसके रिश्तेदारों और संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी. लेकिन यहां भी सवाल वही है, कि आख़िर क़ानून के भीतर वो कौन सी कड़ी है, जो विकास दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे कुख्यात अपराधियों और गैंगस्टरों को पकड़ पाने में नाकाम रहती है, और बेगुनाह पुलिस वाले तक इस तरह से अपराधियों के हाथों जान गंवा बैठते हैं. क्या साफ़-सुथरे और पारदर्शी क़ानून और प्रशासन का दावा करने वाले उत्तर प्रदेश का उत्तम चेहरा इसी तरह से हर दौर में सामने आता रहेगा? अपराधी क़ानून को ललकारेंगे, और नेता अपना रसूख़ बढ़ाने के लिए ऐसे अपराधियों को संरक्षण देंगे? अपराधियों का सियासी इस्तेमाल करेंगे और बाद में उनके अपराध को सियासत का जामा पहनाकर दामन पर लगे सारे आपराधिक दाग़ों को धुलवाते रहेंगे.
(राकेश तिवारी एनडीटीवी इंडिया में सीनियर आउटपुट एडिटर हैं)
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