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This Article is From Mar 28, 2017

उत्तर प्रदेश की समूची आबादी की ओर से एक खुला पत्र योगी आदित्यनाथ के नाम

Rakesh Kumar Malviya
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 28, 2017 16:02 pm IST
    • Published On मार्च 28, 2017 16:02 pm IST
    • Last Updated On मार्च 28, 2017 16:02 pm IST
आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी (मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश शासन),

उत्तर प्रदेश की 20 करोड़ की आबादी अपने नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली देखकर गद्गद् है. हम आशा-भरी नज़रों से देख रहे हैं कि आने वाला कल आपके कार्यों से देश के सबसे बड़े राज्य को नई उंचाइयों तक ले जाएगा. उम्मीद करें भी क्यों न, आखिर जो अभूतपूर्व जनादेश हमने आपको दिया है, वैसा इतिहास में कभी-कभार ही हो पाया है. विकास के लिए अब उत्तर प्रदेश के पक्ष में कोई बाधा भी नहीं है. पहले हम पाते थे कि राज्य और केंद्र में दो अलग-अलग दलों की सरकार विकास में सबसे बड़ी बाधा है. हम समझ नहीं पाते थे कि विकास में बाधक कौन है. हमने तो तीन साल पहले नरेंद्र मोदी जी को सांसद की पदवी देकर केंद्र की गद्दी पर आसीन कराया और अब आप हमारे माननीय हैं. हम मानते हैं कि अब तो कोई बाधा नहीं है.

मुख्यमंत्री जी,

हम आपका ध्यान कुछ ऐसे आंकड़ों पर दिलाना चाहते हैं, जो किसी भी प्रगतिशील राज्य के माथे पर काले धब्बे की तरह हैं. हम आपको बताना चाहते हैं कि प्रदेश में बच्चों की स्थिति सबसे खराब है. देश में नवजात शिशुओं की मौत के मामले में जो सबसे ज्यादा गंभीर 100 जिले हैं, उनमें से 46 उत्तर प्रदेश से आते हैं. नवजात शिशु मृत्यु, यानी ऐसे बच्चों की मौत, जो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते. बाल मृत्यु के मामलों में भी उत्तर प्रदेश ही आगे खड़ा हुआ है. और तो और, गौतम बुद्ध की स्थली श्रावस्ती, जिसे देश और दुनिया में जाना जाता है, वह इस मामले में पूरे देश पर टॉप पर खड़ी है. क्या बुद्ध की आत्मा इस स्थिति से दुखी न होगी. क्या कृष्ण की बाललीलाओं की भूमि ब्रज और राम की स्थली अवध, जहां लाखों भक्त हर साल आते हैं, उस प्रदेश में बच्चों के ऐसे आंकड़ों को स्वीकार किया जा सकता है. यह चौंकाने वाले आंकड़े खुद सरकार के हैं. वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह जानकारी निकलकर सामने आई हैं.

यह सवाल लंबे समय से उठता रहा है कि बच्चे किसी मुख्यधारा की राजनीति का एजेंडा कभी नहीं बने हैं. बच्चों की स्थिति पर कभी कोई सरकार न बनी, न गिरी. बच्चों को एजेंडे में लाकर वोट हासिल भी नहीं किए जा सकते. अब सवाल यह है कि बच्चे यदि ऐसी किसी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है, तो उनके भयावह आंकड़े कब ठीक होंगे. चुनावी घोषणापत्रों में कुपोषित बच्चों को दूध-घी उपलब्ध करवाने की घोषणा चाहे किसी दल के एजेंडा का हिस्सा हो, सच यह भी है कि बच्चों के स्वास्थ्य मानक तो ठीक हों ही.

देश के स्वास्थ्य मानकों को बताने वाली नेशनल हेल्थ सर्वे की चौथी रिपोर्ट भी आ गई है. इसमें अभी केवल उत्तर प्रदेश भर के आंकड़े सामने नहीं आए हैं. हम इंतज़ार कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के बच्चों के स्वास्थ्य मानक जल्द से जल्द सामने आएं, ताकि योगी सरकार की प्राथमिकता में बच्चे भी शामिल हो सकें.

हम उम्मीद करते हैं कि ये जो सबसे बदनाम 46 जिले हैं, वे आपके पांच साल की सरकार में कम से कम हो पाएंगे. हमने आपको सरकार दे दी, अब आप हमें क्या देते हैं, उसका बेसब्री से इंतजार है.

आपके

उत्तर प्रदेश वासी

राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...

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