सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार माने जाने का ऐतिहासिक फैसला दिया है. यह फैसला निश्चित ही बच्चों के लिए दुरूह परिस्थितियों में एक नई लकीर खींचने जैसा है. भारत जैसे देश में, जहां बच्चों से संबंधित तमाम मापदंड इतने गंभीर रूपों में व्याप्त हैं, वहां इसका असर बहुत दूरगामी होने वाला है, लेकिन इस फैसले के पहले के कई और पड़ाव हैं, जिन्हें हल किए बिना बच्चों को सम्मान और सुरक्षा देना वास्तव में मुश्किल ही होगा. देखा जाए तो इस फैसले के लागू किए जाने के पहले ही देश के एक और कानून 'बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम' का उल्लंघन हो चुका होता है. इसका उल्लंघन करने पर भी कड़े प्रावधान किए गए हैं, लेकिन हर साल सरकार खुद ही यह बताती है कि उसने देश में लाखों बाल विवाह होने से रोके हैं. इसका मतलब तो यही है कि कम उम्र में बच्चों का विवाह इस देश का एक भारी संकट है, जिसे सुधारना कभी प्राथमिकता में नहीं रखा गया है.
भारत की जनगणना 2011 भी यह बताती है कि देश में 51,57,863 लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र पूरी होने से पहले ही हो गया. यह संख्या छोटी नहीं है. सवाल यह है कि इन विवाहों के लिए कौन ज़िम्मेदार है. तय उम्र से पहले विवाह करने के लिए दोषी किसे माना जाएगा, और यदि इस निर्णय में परिवार और दूसरे अन्य लोगों का निर्णय भी है, तो बलात्कार का दोषी भी किसे-किसे माना जाएगा. भारत के एक और कानून किशोर न्याय अधिनियम को भी इससे जोड़कर ज़रूर ही देखना होगा, जिसमें 18 साल से पहले की उम्र के लोगों द्वारा विधि विवादित कार्य किए जाने पर उनके साथ बड़ों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता.
यह फैसला इसलिए और महत्वपूर्ण बन गया है, क्योंकि यह फैसला अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर आया है. फैसले में कहा गया है कि यह अपराध होने पर नाबालिग पत्नी को एक साल के अंदर शिकायत दर्ज करानी होगी. अदालत ने कहा है कि शारीरिक संबंधों के लिए उम्र 18 साल से कम करना असंवैधानिक है. यह फैसला आईपीसी की उस धारा 375 (2) के संदर्भ में है, जिसमें कहा गया है कि अगर 15 से 18 साल की बीवी से उसका पति संबंध बनाता है तो उसे दुष्कर्म नही माना जाएगा, जबकि बाल विवाह कानून के मुताबिक शादी के लिए महिला की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए.
यह ठीक है कि नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा और बेहतर जीवन के लिए यह फैसला एक हथियार होगा, लेकिन देखना यह भी होगा कि बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बनाए गए कानून कैसे हैं, और ज़मीनी सच्चाई क्या है. क्या आप ऐसे कुछ उदाहरण बता सकते हैं कि देश में बाल विवाह करवाने पर कानून के तहत दो साल की सजा और एक लाख का जुर्माना किया गया अथवा बाल श्रम जैसे कठोर कानून होने पर भी बच्चे आज भी काम पर क्यों जा रहे हैं.
आज देश में बच्चों की इतनी कमजोर हालत है, बच्चों की तकरीबन आधी आबादी कुपोषित है तो उसमें कहीं न कहीं यह कारण भी काम करता है कि लड़कियों की जल्दी शादी होती है, उनके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, उन्हें छोटी उम्र में मां बना दिया जाता है, एक के बाद एक बच्चे होते हैं, इससे वह खुद कमजोर होती हैं और संतानें भी कमजोर ही पैदा होती हैं. केवल एक राज्य का उदाहरण लीजिए. वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2010-11) के मुताबिक मध्य प्रदेश में जब वह सर्वे किया गया, तब 15 से 19 वर्ष की उम्र की 46 प्रतिशत लड़कियां गर्भवती थीं या मां बन चुकी थीं. यह वही राज्य है, जिसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो दिन पहले ही ट्वीट करके अपनी उपलब्धि को साझा कर कहा है कि मध्य प्रदेश में पिछले साल एक लाख बाल विवाह रोके गए हैं. जाहिर है, यहां बाल विवाह की परंपरा खत्म नहीं हुई है. इसका बड़ा कारण गरीबी बताया जाता है. जिलास्तरीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण बताता है कि गरीबी में रहने वाली 65 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है. हालांकि मध्यम या अमीर वर्ग के लोगों में ऐसी परंपरा खत्म हो गई हो, ऐसा भी नहीं है. दूसरी आबादी में भी 41 प्रतिशत की शादी कानूनी उम्र से पहले हो जाती है.
जब आंकड़े इतने भयावह हों, तो उनको सुधार पाना कोई एक-दो दिन या एक अभियान या एक फैसले का काम नहीं है. अब से 16 बरस पहले देश में महिला सशक्तीकरण की राष्ट्रीय नीति को लागू कर कहा गया था कि वर्ष 2010 तक बाल विवाह का व्यवहार खत्म कर दिया जाएगा. हम 2017 में मौजूद हैं, लेकिन ऐसा दावा नहीं कर सकते हैं कि बाल विवाह समाज से खत्म हो चुका है. बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्ययोजना 2005 में भी यही निश्चय था कि वर्ष 2010 तक जन्म, मृत्यु, विवाह और गर्भावस्था का 100 प्रतिशत पंजीयन किया जाने लगेगा और वर्ष 2010 तक बाल विवाह का व्यवहार खत्म कर दिया जाएगा. क्या ऐसा हो पाया, नहीं तो क्यों...?
ऐसे में यह देखना होगा कि यह फैसला बच्चों के हक में और उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को दूर करने में किस तरह और कितना कारगर हो पाता है...?
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...
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This Article is From Oct 11, 2017
सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेहद अहम, लेकिन क्या रुकेंगे बच्चों के खिलाफ अपराध...?
Rakesh Kumar Malviya
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 11, 2017 16:43 pm IST
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Published On अक्टूबर 11, 2017 16:01 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 11, 2017 16:43 pm IST
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