विज्ञापन
This Article is From Dec 13, 2014

राजीव रंजन की कलम से : सेना को बस बातों से कब तक बहलाएगी सरकार?

Rajeev Ranjan, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    दिसंबर 13, 2014 22:48 pm IST
    • Published On दिसंबर 13, 2014 20:33 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 13, 2014 22:48 pm IST

मोदी सरकार में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर अब कह रहे हैं कि वह रक्षा मंत्रालय को दलालों से मुक्त करवा कर ही दम लेंगे और अब बगैर दलालों के ही हथियारों की खरीद होगी।

ये बातें सुनने में बहुत अच्छी लगती है। कुछ ऐसी ही बातें पूर्व रक्षामंत्री ए.के. एंटनी ने भी कही थी, लेकिन हुआ यह कि न तो मंत्रालय दलालों से आज़ाद हो पाया और ना ही सेना को नए हथियार मिले।

एंटनी और पर्रिकर में कुछ और भी समानताएं है। मसलन दोनों की छवि साफ रही है और दोनों रक्षामंत्री बनने से पहले अपने अपने राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

वैसे, जानकारों की मानें तो दुनिया में आज कही भी हथियारों की खऱीददारी बगैर दलाल या बिचौलियों के संभव नहीं है। वजह यह है कि सरकार और हथियार कंपनियों के बीच कोई तो ऐसा शख्स होगा जो सरकार को हथियारों की बारीकियों के बारे में बताएगा और हथियार कंपनियों को सरकार के बारे में। ज्यादातर जगहों पर ऐसे मिडिलमेन को कानूनी दर्जा दिया गया है, जिससे हर किसी को पता होता है कि इस सौदे में कितनी रकम में हथियार आए हैं और कितनी रकम मिडिलमेन के हिस्से गई।

इसके बगैर तो हालत यह है कि देश में किस हथियार की सही कीमत क्या है और कितनी रकम बिचौलिए को दी गई, इस बारे में बस कयास ही लगाए जा सकते हैं।

कई दफा ऐसा भी होता है कि इसका फायदा उठाकर हथियार कंपनियां सौ रुपये का समान एक हजार में बेच देती हैं और डील कराने वाले को कमीशन के तौर पर चोरी छिपे रकम दे देती है। कभी खुलासा हुआ तो ठीक है, वरना धंधा तो ऐसे ही चलता रहता है।

हालांकि सरकार यह दावा कर रही है कि वह सेना के लिए हथियारों की खरीद की प्रकिया में तेजी लाएगी, लेकिन कैसे?  अभी तक इसका ब्लू प्रिंट किसी के सामने नहीं आया है।

इन दिनों जिन भी हथियारों की खरीद को अंतिम रूप दिया गया, वह सिंगल विंडों के तहत एक देश की कंपनी से खऱीदा जा रहा है। लेकिन जब 'ओपन विंडो' से हथियारों की खरीद होगी तब असलियत सामने आएगी।

यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि हमारी सेना आजकल हथियारों की भयंकर किल्लत से जूझ रही है। सरहद पर चुनौतियों में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन इन चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे बातों से या फिर हथियारों से? यह अभी तय नहीं।

25 साल से ज्यादा हो गए कोई तोप नहीं खरीदी गई है। वही, नौसेना के पास चालू हालत में पनडुब्बी नाम की ही बची है। तीनों सेनाओं के पास हेलीकॉप्टर की भी जबरदस्त कमी है। सरकार को बने छह महीने हो गए है, लेकिन अभी तक कोई डिफेंस डील साइन नहीं की गई है।

अब, जबकि, सरकार कह रही है कि वह बगैर मिडिलमेन के हथियार खरीदेंगे तो आपको इसके लिए कोई न कोई ठोस सिस्टम तो बनाना पड़ेगा। भले ही आप उसे मिडिलमेन या दलाल ना कहे पर कुछ न कुछ ऐसी तो व्यवस्था करनी पड़ेगी, तभी रक्षा सौदे पारदर्शिता के साथ संभव हो पाएंगे।

यहां यह भी जानना जरूरी है कि डिफेंस को छोड़कर दूसरे सेक्टर में सरकार को मिडिलमेन के होने से कोई दिक्कत नहीं। बड़े आराम से बिचोलियों की मदद से ऊर्जा जैसे दूसरे सैक्टर में हजारों करोड़ की डील होती है।

रक्षामंत्री ये भी कह रहे हैं कि हथियारों की खऱीद में तेजी और पारदर्शिता होगी, लेकिन कैसे? यह बताने के लिए रक्षामंत्री फ़िलहाल तैयार नही। हां, हर हफ्ते वह अपने गृह राज्य गोवा जरूर चले जाते हैं, जैसे उन्होंने देश की नहीं गोवा के डिफेंस की जिम्मेदारी संभाल रखी है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
रक्षा मंत्रालय, रक्षा खरीद, मनोहर पर्रिकर, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, भारतीय सेना, सैन्य खरीद, Defence Ministry, Manohar Parrikar, Defence Minister Manohar Parrikar, Defence Acquisition, Indian Army
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com