रेल का धंधा डबल मगर कर्मचारी 18 लाख से घटकर 13 लाख...

क्या लोहानी 13 लाख से 18 लाख करने की बात कर रहे हैं? बिल्कुल नहीं. वे शायद उन 13 लाख पदों को भरने की बात कर रहे हैं जो लोगों के रिटायर होने से ख़ाली हो रहे हैं. क्या रेलवे ने पांच लाख पद समाप्त कर दिए हैं?

रेल का धंधा डबल मगर कर्मचारी 18 लाख से घटकर 13 लाख...

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

अनुराग पुनेठा - दुनिया में तमाम संगठन होते हैं जो खुद को चलाने के लिए छंटाई करते हैं, प्रूनिंग करते हैं, मशीनीकरण हो जाए, ये बैलेंस कैसे होगा, रेलवे कर्मचारियों की संख्या बढ़ा रही है?

अश्विनी लोहानी - देखिए बढ़ा नहीं रही है. पहले 18 लाख कर्मचारी हुआ करते थे, तब बिजनेस आधा था, आज से आधा था बिजनेस तो हमारे 18 लाख कर्मचारी थे. तो रेलवे 18 लाख से 13 पर आ गई, और धंधा डबल हो गया है तो हम ज़बरदस्त प्रूनिंग (छंटाई) कर रहे हैं, डे इन और डे आउट प्रूनिंग कर रहे हैं (दिन रात छंटाई कर रहे हैं), लेकिन हम संगठन को लंगड़ा नहीं बना सकते हैं कि एक्सिडेंट हो जाए, स्टाफ की कमी की वजह से, सिर्फ स्टाफ को कम करने की वजह से एक्सिडेंट करा दें वो हम नहीं करेंगे. हम सेफ्टी से खिलवाड़ नहीं करेंगे.

लोकसभा टीवी के अनुराग पुनेठा के सवाल का जवाब देते हुए भारतीय रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी कहते हैं कि रेलवे लगातार कर्मचारियों की संख्या में कमी लाती जा रही है. जब बिजनेस डबल हो चुका है तब हम पहले के 18 लाख कर्मचारियों की तुलना में 13 लाख पर आ गए. लोहानी कहते हैं कि हमें वैकेंसी भरनी हैं अन्यथा रेलवे चला नहीं पाएंगे.

क्या लोहानी 13 लाख से 18 लाख करने की बात कर रहे हैं? बिल्कुल नहीं. वे शायद उन 13 लाख पदों को भरने की बात कर रहे हैं जो लोगों के रिटायर होने से ख़ाली हो रहे हैं. क्या रेलवे ने पांच लाख पद समाप्त कर दिए हैं? इसका जवाब संसदीय समिति को दिए जवाब से मिलेगा, जिसमें रेलवे ने कहा है कि उसके पास ढाई लाख ख़ाली पद हैं मगर वो सभी पदों को नहीं भरेगा. आउटसोर्सिंग के तरीके से भरा जाएगा यानी ठेके पर रखेंगे. इस पर लोहानी उस इंटरव्यू में साफ करते तो और बेहतर रहता.

रेलवे की संसदीय समिति भी मानती है कि ढाई लाख पद ख़ाली हैं मगर रेलवे ने भर्ती का विज्ञापन निकाला है एक लाख के करीब. इस एक साल में उन डेढ़ लाख पदों की भर्ती तो नहीं होने जा रही है, चुनाव के बाद राजनीतिक मजबूरी समाप्त होने पर उसकी संभावना भी समाप्त मान लेनी चाहिए. अभी जो भर्ती निकली है वो भी तब निकली है जब सरकार चुनावी साल में प्रवेश कर रही है और बेरोज़गारों का दबाव बढ़ रहा है. बेरोज़गारों की रातें अभी लंबी ही रहेंगी. बिजनेस डबल होने पर कर्मचारी बढ़ने चाहिए या कम होने चाहिए? दौर बदल गया है. मकसद रोज़गार देना नहीं, बिजनेस डबल करना है.

बेशक रेलवे स्टेशन की सफाई सुधरी है मगर रेलगाड़ियों के भीतर की सफाई में वैसी निरंतरता नहीं है. रेलगाड़ियां 20-20 घंटे लेट चल रही हैं. रेल मंत्री और लोहानी बार-बार ट्रैक की क्षमता से दुगनी गाड़ी चलाने को देरी का कारण बता रहे हैं मगर जब स्टेशन मास्टर कम हों, गार्ड कम हों और रेलवे के ड्राईवर कम हों तो क्या उसका असर रेलवे के परिचालन पर नहीं पड़ता होगा?

रोज़ हमें ट्रैकमैन और लोको पायलट पत्र लिखते हैं कि काम के दबाव के कारण उनकी ज़िंदगी तनावपूर्ण हो गई है. वे क्षमता से ज़्यादा काम कर रहे हैं. 17 और 18 जुलाई को रेलवे के ड्राईवर भूखे रहकर ट्रेन चलाने जा रहे हैं. व्हाट्सऐप मेसेज के ज़रिए कई ड्राईवरों के मैसेज आए हैं. वे अपने केबिन में एयरकंडीशन और शौचालय की भी मांग कर रहे हैं. डाईवर का कहना है कि इतने कम ड्राईवर हैं कि उनकी शिफ्ट लंबी हो गई है. दो यात्राओं के दौरान विश्राम कम होता है.

लोहानी ने कहा है कि रेलवे एक मानव प्रधान संगठन है मगर इसे अब तकनीकि केंद्रित बनाना है. लोहानी ने कहा है कि किराये बढ़ाने पड़ेंगे क्योंकि रेलवे का किराया हास्यास्पद रूप से कम है. अनुराग पुनेठा ने पूछा कि यह राजनीतिक फैसला है, हो सकता है चुनाव के बाद किराया बढ़े तो लोहानी कहते हैं कि हां हो सकता है. तो क्या चुनाव के बाद किराये में और वृद्धि होगी?

लोहानी कहते हैं कि राजनीतिक कारणों से ट्रैक की क्षमता से ज़्यादा सियासी कारणों से गाड़ियां चला दी गईं हैं. पीयूष गोयल कहते हैं कि चार साल में 400 गाड़ियां चलाई गईं हैं. लोहानी इस इंटरव्यू में कहते हैं कि नई गाड़ियां बहुत कम चली हैं. न के बराबर हो गई हैं. अगर आप गणित में मेरी तरह कमज़ोर हैं तब भी समझ जाएंगे कि हर साल 100 गाड़ियों का चलाना न के बराबर नहीं होता. आप रेलवे की खबरों पर नज़र रखिए, हाल फिलहाल में ही कई नई रेलगाड़ियां चली हैं.

रेलवे ने एक लाख पदों के लिए आवेदन मंगाए थे जिसके लिए 2 करोड़ 37 लाख लोगों ने फार्म भरे थे. इस संख्या को इस तरह से बेचा गया कि ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर लोग रेलवे की परीक्षा में बैठेंगे. ये बात लोहानी ने भी अनुराग पुनेठा को दिए इंटरव्यू में कही है. मगर उन्होंने यह नहीं कहा कि वे फार्म की छंटनी कर रहे हैं. छंटनी के बाद इम्तहान देने वाले छात्रों की संख्या ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर रह जाएगी या नहीं, यह भी बताना चाहिए.

31 मई को रेलवे भर्ती बोर्ड ने एक सूचना प्रकाशित की है कि 2 करोड़ 37 लाख आवेदन आ गए हैं, हम इनकी स्क्रूटनी यानी छंटनी कर रहे हैं. कितने फार्म की छंटनी हुई है, इसकी कोई संख्या नहीं बताई जा रही है. छात्र अपने स्तर से लिख रहे हैं कि 60 लाख फार्म छांट दिए गए हैं जिसकी सूचना हमें किसी वेबसाइट पर नहीं मिली. रेलवे बोर्ड ने स्क्रूटनी के बाद की सूची अपनी साइट पर डाल दी है जिसे छात्र 20 जुलाई तक देख सकते हैं.

बहुत से छात्र हमें लिख रहे हैं कि उनका फार्म रिजेक्ट हुआ है. उन्होंने लोको पायलट और ग्रुप डी के लिए एक तरीके से ही फार्म भरा था. दोनों में एक ही फोटो लगाया था. फिर भी एक फार्म रिजेक्ट हुआ और इसका कारण बताया जा रहा है कि फोटो सही तरीके से नहीं लगाया था. इस जवाब से छात्र संतुष्ट नहीं हैं. वे कहते हैं कि दोनों फार्म में एक ही फोटो लगाया है फिर एक क्यों रिजेक्ट हुआ. अगर ऐसा है तो इसकी रैंडम जांच होनी ही चाहिए.

हमें काफी बड़ी संख्या में छात्र लिख रहे हैं, उनमें अभी तक फोटो के कारण छंटनी का ही ज़िक्र आ रहा है. जब वे अपना पंजीकरण नंबर डालकर चेक करते हैं तो जवाब मिलता है कि किस वजह से फार्म रिजेक्ट हुआ है. चार-चार साल तैयारी कर रहे छात्रों का फार्म फोटो के कारण छंट जाए यह बहुत दुखद है. वे छटपटा रहे हैं, मीडिया में अपनी आवाज़ खोज रहे हैं. जबकि सबको पहले से पता है कि मीडिया उनके लिए नहीं है. वे मीडिया के लिए हैं ताकि वे केबल और अखबार ख़रीदते रहे. अब कोई पूछने वाला नहीं है, बताने वाला नहीं है इसलिए छात्रों को ही इस हताशा और दुख को सहन करना होगा. हम सबने जैसी अन्यायपूर्ण व्यवस्था बनाई है उसके कांटों का दर्द तो सहना ही होगा. आज आप सहेंगे, कल कोई और, परसों मैं.

छात्रों को ही तय करना होगा कि उन्हें क्या करना है. मुझे मेसेज करने से लाभ नहीं. अकेला बंदा हूं, कोई सचिवालय नहीं है. अभी कई लोगों के मसले नहीं उठा सका हूं, उनका ही धीरज समाप्त हो रहा है और वे अनाप शनाप बकने लग जाते हैं. मैं ज़रूर चाहूंगा कि रेलवे छात्रों को विश्वसनीय तरीके से संतुष्ठ करे कि उनका फार्म क्यों रिजेक्ट हुआ है. फोटो के कारण रिजेक्ट होना थोड़ा अजीब लगता है. मैं यहां इसलिए लिख रहा हूं ताकि उन्हें मायूस न होना पड़े.

आए दिन एसी कोच में आग लगने की घटना हो जाती है. बीच-बीच में ऐसी ख़बरें आपने पढ़ी होंगी. 12 जुलाई की रात दिल्ली से जम्मूतवी जाने वाली राजधानी के कोच में आग लग गई. घंटे भर लग गए आग पर काबू पाने में. यात्रियों ने वीडियो रिकॉर्ड कर भेजा है कि एसी गैस का सिलेंडर खाली हो गया था. जिसके कारण आग लगी है. रेलवे का पक्ष नहीं मालूम है, न हमारे पास इतने लोग हैं कि हम सबको लगा दें, पता करने में. आप हिन्दी अख़बारों को सर्च कीजिए. एसी कोच से संबंधित कई ख़बरें मिलेंगी. जो नहीं रिपोर्ट होती हैं, वो नहीं मिलेंगी.

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