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This Article is From Apr 24, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की - माफी, पछतावा और हमारी सियासत

Priyadarshan
  • Blogs,
  • Updated:
    अप्रैल 24, 2015 23:25 pm IST
    • Published On अप्रैल 24, 2015 23:08 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 24, 2015 23:25 pm IST
आम आदमी पार्टी के भीतर पश्चाताप जैसे उमड़ पड़ा है। अरविंद केजरीवाल सबसे माफ़ी मांग रहे हैं। आशुतोष एक चैनल पर बिल्कुल रो पड़े। हम मान लेते हैं कि ये मुद्राएं नहीं हैं। ऐसी रणनीति भर नहीं हैं जिससे आम आदमी पार्टी अपने बचाव का रास्ता खोज रही है।

लेकिन इस अपार पश्चाताप के बाद क्या अरविंद केजरीवाल, क्या आशुतोष या उनकी पार्टी किसी मूलभूत बदलाव से गुज़रेंगे? क्या उनके भीतर ऐसी करुणा पैदा होगी कि वे राजनीति को वाकई गरीब आदमी के नारे में नहीं, उसकी ज़रूरत में तब्दील कर दें?

दरअसल केजरीवाल की चुप्पी हो या आशुतोष की मुखरता- दोनों एक तरह से उस आदमी की मौत का अपमान थी जो उनकी नज़र के सामने- या शायद उससे कुछ दूर- एक पेड़ से झूल गया। अब आम आदमी पार्टी उसे शहीद बनाना चाहती है। लेकिन क्या यह भी कोरी भावुकता नहीं है?

ऐसी भावुकताएं चाहे जितनी सच्ची हों, वे देर तक नहीं टिकतीं। वे फिर से अपने आंसू पोछकर अपना पछतावा भूल कर, नए हमलों में, बल्कि कहीं ज़्यादा क्रूर प्रतिशोध वाले तेवर के साथ, फिर नई राजनीति करने लगती हैं।

ये सिर्फ़ केजरीवाल की माफ़ी या आशुतोष के आंसुओं का सच नहीं है, ये कांग्रेस और बीजेपी जैसे दलों के गुस्से की भी हक़ीक़त है जो जितना सात्विक दिख रहा है, उतना कतई नहीं है। अगर होता तो हम सिर्फ गजेंद्र को नहीं देखते, उनके पार जाकर उन चेहरों और हताशाओं को भी देखते जो बिना किसी के देखे न जाने किन पेड़ों पर झूल गए, न जाने किन तरीकों से जान देकर, किन्हीं अंधेरों में बिला गए।

केजरीवाल या आशुतोष या फिर हमारे सारे राजनीतिक दल अगर वाकई सिर्फ राजनीति नहीं करना चाहते, इंसानियत की राह पर भी चलना चाहते हैं तो उन्हें माफी मांगने नहीं, माफ करने की कला भी सीखनी होगी, आंसू बहाना ही नहीं, आंसू रोकना भी सीखना होगा और इन सबके साथ अपनी आंख, अपने कान, अपने सरोकारों को वाकई इतना बड़ा कर लेना होगा कि पूरा देश जंतर-मंतर जितना क़रीब आ जाए और कहीं भी कोई टूटा हुआ गजेंद्र सिंह हो तो उसे बचाने की कवायद शुरू हो जाए।

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