प्राइम टाइम का असर, उत्तराखंड में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस वृद्धि वापस

राज्य के कैबिनेट ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को फीस वृद्धि की छूट क्या दी, 650 छात्रों की सांसें ही अटक गई थी.

प्राइम टाइम का असर, उत्तराखंड में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस वृद्धि वापस

उत्तराखंड सरकार और वहां के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज का शुक्रिया. उनसे एक ऐसा अपराध होते होते बचा है जो एक दिन उनके लिए ही नैतिक बोझ बन जाता. अपने नागरिकों से आर्थिक ज़्यादती करना ठीक नहीं है. जिस तरह से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने वहां के तीन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में 400 प्रतिशत की फीस वृद्धि का फैसला वापस लिया है, उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, उम्मीद है छात्रों के साथ आगे ऐसा नहीं होगा. आप जानते हैं कि प्राइम टाइम में हम दो दिनों से यही दिखा रहे थे कि राज्य के कैबिनेट ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को फीस वृद्धि की छूट क्या दी, 650 छात्रों की सांसें ही अटक गई थी. हम आज भी इस मुद्दे पर प्राइम टाइम करने वाले थे कि यह नागरिकों पर थोपी जाने वाली आर्थिक ग़ुलामी है, मगर आज हमारी ख़बर उनको मिली आज़ादी की सूचना में बदल गई है.

कई दिनों से तीन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के 650 छात्र धरने पर बैठे थे. क्योंकि वहां एमबीबीएस की पहले साल की फीस 6 लाख 70 हज़ार से बढ़ाकर 23 लाख, दूसरे साल की फीस 7 लाख 25 हज़ार से बढ़ाकर 20 लाख और तीसरे साल की फीस 7 लाख 36 हज़ार से बढ़ाकर 26 लाख कर दी गई थी. यही नहीं जो दूसरे साल का छात्र है उसे पहले साल की बैलेंस राशि भी देनी थी. इस तरह दूसरे साल के छात्र को 31 मई तक 40 लाख रुपये देने थे. यहां पीजी की फीस 10 लाख से बढ़ाकर 30 लाख कर दी गई है. ये छात्र अपनी प्रतिभा से प्रतियोगिता पास कर आए हैं. इतनी फीस इनके बस की बात नहीं है. इनके मां बाप नौकरीपेशा लोग हैं. कोई टीचर हैं तो कोई तृतीय श्रेणी के कर्मचारी हैं. इन मां बाप को कुछ समझ नहीं आ रहा था. मुख्यमंत्री ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में फीस वृद्धि को सही ठहरा दिया था क्योंकि यह उन्हीं के कैबिनट का फैसला था. अच्छी बात है कि उन्हें अपने फैसले का अमानवीय असर दिख गया और उसे वापस ले लिया. उम्मीद है कि आने वाले समय में प्रबंधन की तरफ से ऐसी कोई चालाकी नहीं की जाएगी. गुरु राम राय मेडिकल कालेज के ट्रस्टी का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए.

क्या कोई शिक्षक या मेजर रैंक का ही अफसर दो महीने में 40 लाख दे सकता है. ज़रूर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस 40 लाख 50 लाख हो गई है मगर 6 लाख से बढ़ाकर 23 लाख करना ठीक नहीं था. पहले से ही फीस 40 लाख होती तो शायद ये लोग यहां एडमिशन ही नहीं लेते. अब इस फैसले पर राहत महसूस कर रहे हैं. शायद कुछ दिन ठीक से सो पाएंगे, वर्ना इस फैसले ने उनके होश उड़ा दिए थे. घर भी बेचते तो भी ये फीस नहीं दे सकते थे.

चौथे और पांचवे साल के सीनियर ने भी अपने जूनियर छात्रों के आंदोलन का साथ दिया है. यही अच्छी बात है. अगर आप मुद्दों को नागरिक के अधिकार की नज़र देखेंगे तो दूसरों का दर्द भी अपना नज़र आएगा. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सदस्यों ने भी छात्रों का साथ दिया.

इस मुद्दे को अभिभावक संघ बनाकर उठाने वाले रवींदर जी अभी कुछ और सवालों के जवाब जानना चाहते हैं. मुख्यमंत्री ने फीस वृद्धि वापसी का ऐलान तो कर दिया है लेकिन क्या उन्होंने अपने कैबिनेट का फैसला वापस ले लिया. क्या अब भी इतनी फीस बढ़ने की कोई संभावना बची है.

आप राजनीति का आकाश देखिए, वहां हिन्दू मुस्लिम तनाव के अलावा कोई दूसरा टॉपिक नहीं है. आम जनता अपनी परेशानियों को बैनर पोस्टर पर लिखकर यहां से वहां भटक रही है. पंजाब से एक युवक ने एक सूचना दी है. सीबीएसई के छात्रों को भी ध्यान से सुनना चाहिए. आप जानते हैं कि ऑनलाइन परीक्षा के कुछ समय बाद परीक्षा बोर्ड जवाब जारी करता है, जिसे आन्सर की कहते हैं. इससे छात्र मिलाते हैं कि उन्होंने जो जवाब दिया है सही है या ग़लत. कई बार जवाब भी ग़लत होते हैं. अब अगर जवाब गलत है तो इसे साबित छात्र को ही करना है. वो भी एक ही सवाल को एक छात्र गलत साबित कर दे काफी नहीं है, छात्रों ने बताया कि हर छात्र को उस गलत सवाल को गलत साबित करना होता है. मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की इसी फरवरी में परीक्षा हुई. 15 जवाब विवादित थे. तो छात्रों से कहा कि गलत साबित करना है तो प्रति सवाल 100 रुपये देने होंगे यानी एक छात्र को 1500 रुपये देने होंगे तब जाकर वह दावेदारी कर पाएगा. क्या अच्छा नहीं होता कि आयोग खुद ही जांच करे कि उसके द्वारा पूछे गए सवाल और दिए गए जवाब में कोई कमी तो नहीं है. उल्टी छात्रों से पैसे लेकर गलत साबित करने का क्या तुक बनता है. पंजाब सरकार तो एक कदम और आगे चली गई है.

पंजाब सरकार के सबोर्डिनेट सर्विस सलेक्शन बोर्ड ने एक नोटिफिकेशन जारी किया है कि 8 अप्रैल को वेबसाइट पर प्रश्न पत्रों के जवाब दे दिए जाएंगे. किसी छात्र को अगर कोई जवाब गलत लगता है तो उसे एक फार्म भरना होगा. फार्म भरने के लिए 590 रुपये का ड्राफ्ट भेजना होगा. अगर छात्र का दावा सही निकला तो पैसे वापस और नहीं निकला तो पैसे रख लिए जाएंगे. इस फार्म का स्वरूप बताता है कि अगर कोई एक सवाल गलत है तो सारे छात्रों को 590 का ड्राफ्ट बनाकर अलग अलग दावे करने होंगे. एक के दावे करने से या चुनौती देने सबके बदले का दावा नहीं माना जाएगा. अगर ऐसा है तो यह भयंकर है. सरासर लूट है.

कायदे से यह होना चाहिए कि अगर कोई छात्र सवाल करता है कि फलां प्रश्न पत्र गलत है, तो आयोग को खुद ही बताना चाहिए कि उसका दावा सही है या गलत. कहीं ऐसा तो नहीं कि पैसा कमाने के लिए हर परीक्षा में दो चार सवाल इस तरह विवादित रूप से छोड़ दिए जा रहे हैं क्योंकि अब ऐसी कई परीक्षाएं आपको देश भर में मिलेंगी जिनमें एक से लेकर 15 और कभी कभी 40 प्रश्न ग़लत होते हैं. सीबीएसई की दसवीं की गणित की परीक्षा की तारीख ने छात्रों को कई तरीके से परेशान किया है. मानव संसाधन मंत्री को दसवीं और 12वीं के बाद होने वाली परीक्षाओं की तारीखों के बारे में भी नए सिरे से फैसला करना होगा. बिहार के सीतामढ़ी से दसवीं के एक छात्र ने पत्र लिखा है जो इस समस्या में एक नया आयाम जोड़ता है. आप भी पढ़िए...

रवीश सर,

मैं अनिकेत सौरव (सीतामढ़ी बिहार से) एक 10वीं का छात्र हूं. मैं परीक्षा दे रहा हूं. जब मैं 10वीं का गणित का पेपर देकर घर आया तो पता चला कि परीक्षा रद्द हो गई है और शायद नई परीक्षा 26 अप्रैल को है. मैंने बनारस हिन्दू विद्यालय का फार्म भरा है. इसके लिए 406 रुपये का फार्म भरा है. पटना से बनारस की ट्रेन के लिए 470 रुपये का टिकट लिया है. मैं 23 को जाकर 24 को बनारस का ट्रेन पकड़ता हूं तो मेरी परीक्षा छूट जाएगी. मेरा सपना टूट गया रवीश सर, बाहर के कॉलेज में पढ़ने का, मां बाप महंगी यूनिवर्सिटी में नहीं पढ़ा सकते हैं. मेरे जैसे बहुत बच्चों का सपना टूट गया है. अब अगर प्रधानमंत्री दुख ज़ाहिर भी करते हैं तो क्या फ़ायदा. काफी दुखी हूं, कुछ भी करने में मन नहीं लग रहा है. क्या आप बीएचयू को डेट आगे बढ़ाने के लिए कह सकते हैं तो बड़ी कृपा होगी.

अनिकेत सौरभ, सीतामढ़ी बिहार


अगर ऐसा है तो मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के ध्यान में इन बातों को तुरंत लाया जाना चाहिए ताकि परीक्षा रद्द होने के कारण छात्रों को दूसरी प्रवेश परीक्षाओं में शामिल होने से वंचित न होना पड़े. आप जानते हैं कि बनारस हिन्दू विद्यालय भी बीएचयू का ही हिस्सा है. यहां 11वीं के लिए प्रवेश परीक्षा होती है. ऐसी कितनी परीक्षाएं कहां कहां होती हैं, हमें पता भी नहीं मगर मानव संसाधन मंत्री चाहेंगे तो छात्रों को बड़ी राहत मिल सकती है. 30 मार्च को भारत सरकार के शिक्षा सचिव अनिल स्वरूप प्रेस के सामने आए और उन्होंने कहा कि दसवीं की गणित की परीक्षा जुलाई में होगी. अगर रद्द होगी तो सिर्फ हरियाणा और दिल्ली के क्षेत्र के लिए की जाएगी. अर्थशास्त्र की परीक्षा 25 अप्रैल को होगी. किस जुलाई को होगी इसका फैसला करने में अभी 15 दिन और लगेंगे.

शिक्षा सचिव कहते हैं कि शिकायतें आती हैं मगर हर शिकायत के आधार पर परीक्षा रद्द नहीं कर सकते हैं. यह बात सही है मगर इससे यह जवाब नहीं मिलता कि जो शिकायत आई उस पर क्या एक्शन लिया गया. आज एक छात्र सामने आया है, वो दावा कर रहा है कि 17 मार्च को ही उसने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिख दिया था मगर किसी ने ध्यान नहीं रखा.

मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी माना है कि प्रश्न पत्र को छापने से लेकर पहुंचाने के बीच कई चरण होते हैं. इसलिए लीक का जोखिम बढ़ जाता है. कम से कम उन्होंने माना तो. अब कह रहे हैं कि इसे ठीक करना होगा. वहीं पूर्व मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल मांग कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री छात्रों से माफी मांगें मगर सिब्बल का सवाल कुछ और है. वो कह रहे हैं कि अब सिर्फ एक ही प्रश्न पत्र पूरे देश के लिए होता है, इससे लीक होना आसान हो गया है.

सरकार को एक काम और करना चाहिए. इसमें नागरिक उड्डयन मंत्री और रेल मंत्री की भूमिका हो सकती है. वो यह कि सीबीएसई के छात्र अपना एडमिट कार्ड दिखाकर टिकट का पूरा पैसा वापस ले सकते हैं. बहुत से मां बाप ऐसे हैं जिन्होंने परीक्षा खत्म होने के बाद भारत में और भारत के बाहर घूमने के लिए टिकट कटाया था. अब कैंसिल कराएंगे तो उन्हें 40 हज़ार से लेकर 1 लाख तक का चूना लग सकता है. चूंकि गलती सरकार की है इसलिए सरकार को ही इसकी भरपाई करनी चाहिए.

गोदी मीडिया जो शिक्षा के बुनियादी सवालों को छोड़ कर हिन्दू मुस्लिम टिबेट में आपको फंसा कर रखना चाहता है आज कल सीबीएसई के बहाने अपनी छवि सुधार रहा है. वो पेपर लीक की खबरों को ऐसे कर रहा है जैसे उसे बहुत चिन्ता है. चिन्ता होती तो वह स्टाफ सलेक्शन कमीशन के छात्रों ने जो सवाल उठाए उसे भी उठाता. मध्य प्रदेश में लोकसेवा आयोग की परीक्षा को लेकर जो छात्र आंदोलन कर रहे हैं उनकी भी बात करता, वहां पटवारी की परीक्षा को लेकर समस्या है. वहां से छात्र लिख रहे हैं कि पटवारी की परीक्षा एक प्राइवेट कंपनी ने कराई है. जिनके कम नंबर हैं वे सफल हैं और जिनके ज़्यादा हैं वे फेल हैं. इन सब बातों को हम कब गंभीरता से लेंगे. इसी तरह छात्र नौकरियों और परीक्षा को लेकर बंगाल में भी प्रदर्शन कर रहे हैं, यूपी में भी रोज़ प्रदर्शन होते हैं, और पंजाब में भी. सीबीएसई के छात्रों की पृष्ठभूमि ही है कि इतना ध्यान मिल गया वरना वो भी समझें कि शिक्षा व्यवस्था को लेकर क्या हालत है देश में. वे 12वीं तो पास कर जाएंगे मगर उसके बाद कॉलेज कैसा मिलेगा. क्या सबको दिल्ली और मुंबई ही आते रहना होगा. भोपाल और पटना में ऐसा कॉलेज क्यों नहीं है कि कोई दिल्ली से वहां भेज दे. मेरे सवाल बुनियादी हैं और ज़रूरी. 2019 में कौन जीतेगा से पहले यह पूछना ज़रूरी है कि हमारा आपका बच्चा कहां पढ़ेगा. कैसे पढ़ेगा.


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