तीस हज़ार किसानों का मार्च शुरू हुआ है, पहले तस्वीर दिखा दी ताकि यह तस्वीर ग़ायब न हो जाए. इससे कम लोग किसी राजनीतिक दल की रैली में हों तो उनके समर्थक और गोदी मीडिया के एंकर दिन रात ट्वीट करेंगे. उसपर चर्चा करेंगे ह्यूज क्राउड बताकर. किसान समझ रहा है कि वह अखबार और टीवी के लिए पैसे देता है फिर भी उसकी ख़बर क्यों नहीं होती है. होती है तो कतरन की तरह क्यों होती है, हेडलाइन की तरह पहले पन्ने पर क्यों नहीं. बेहतर है आप टीवी देखने का तरीका बदल लीजिए वरना ये टीवी आपकी संवेदनशीलता को ख़त्म कर देगा. आपके नागरिक बोध को कुचल देगा. हमारी नज़र इस ख़बर पर है मगर आज नहीं. आज आठ मार्च के मौके पर सरकारी बैंकों में काम कर रही महिलाओं की दास्तान सुनाना चाहता हूं.
बैंक सीरीज़ का यह 9 वां अक है. यह सीरीज सैलरी से शुरू हुई थी, लेकिन जब धीरे-धीरे महिला बैंकर खुलने लगीं और अपनी बात बताने लगीं तो हर दिन उनकी कोई दास्तां मुझे गुस्से और हैरानी से भर देता है कि आज के समय में क्या इतनी महिलाओं को गुलाम बनाया जा सकता है. सैंकड़ों की संख्या में महिला बैंकरों ने अपना जो हाल बनाया है वो किसी भी प्रोफेसर किसी भी फेमिनिस्ट के लिए एक ऐसा दस्तावेज़ है, जिस तक पहुंचने में उन्हें वर्षों लग जाएंगे.
बैंक सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं पर आज जो अत्याचार हो रहा है, उसके लिए अत्याचार बेहद मुलायम शब्द है. आप सोच रहे होंगे मैं अत्याचार या ज़ुल्म अतिरेक में या भावावेश में बोल रहा हूं, मगर आप ख़ुद भी अपने परिचित से पूछ सकते हैं जो सरकारी बैंक में ब्रांच के स्तर पर काम करते हैं. मैंने कई ऑडियो रिकॉर्डिंग सुने हैं, जिसमें रीजनल मैनेजर महिला और पुरुष ब्रांच मैनेजरों को गंदी-गंदी गाली दे रहे हैं और उनपर चीखते हैं. बात-बात सस्पेंड करने की धमकी देते हैं. इस डर से बहुत सी महिलाएं प्रमोशन नहीं ले रही हैं. उन्हें लगता है कि क्लर्क ही ठीक है मगर वहां भी कम शोषण नहीं है. गोपनीयता का मसला न होता तो कई बार ख्याल आया कि इन्हें पब्लिक कर देता हूं. मगर ये एक ज़िंदगी से ज़ुड़ा मसला होता है इसलिए सुनकर डिलिट करना पड़ जाता है. हम महिला बैंकरों के किस्से को अपनी महिला सहयोगियों की आवाज़ में आपको सुनाना चाहते हैं.
जब मैं कहता हूं कि कई महिला बैंकर तो आप मुझपर भरोसा कर सकते हैं कि मैंने हज़ार से ज़्यादा मैसेज ईमेल पढ़े हैं और बात की है. कई महिलाओं की बातचीत में यह बात निकलकर आती है कि वे प्रमोशन नहीं लेती है. महिला आयोग जाने से डरती हैं. मैंने एक बातचीत में जिस तरह से रिजनल मैनेजर को गाली देते सुना है, मुझे नहीं लगता है कि नौकरी से लाचार कोई जाने की हिम्मत कर सकता है. प्राइम टाइम देखने के बाद ऐसी हिम्मत आ जाए तो अपना जीवन सफल मानूंगा या महिला आयोग ही चला जाए. एक एपिसोड में कहा भी था कि भारत की सारी महिला सांसदों को दल बनाकर सरकारी बैंकों के भीतर घुस जाना चाहिए और अकेले में सारी औरतों से बातकर राष्ट्रपति से लेकर स्पीकर को रिपोर्ट सौंप देनी चाहिए.
बैंक सीरीज़ में कई बार कहा कि पांच मिनट का काम है, केंद सरकार के तमाम मंत्रालयों में यह लागू है, सरकारी बैंकों में मात्र दस मिनट की बैठक में यह फैसला किया जा सकता था. 8 मार्च के दिन से अच्छा क्या हो सकता था मगर लगता है चेयरमैनों की जमात को अपने रूतबे से ज़्यादा किसी की तकलीफ बड़ी नहीं लगती है. आप किसी भी महिला बैंकर को जानते हैं या जो आपके पड़ोस में रहती है तो आप पूछ सकते हैं. मैंने जो कहा वो सही है या नहीं.
ये सारी समस्या तब से बढ़ी है जब से बैंक शाखाओं पर तरह-तरह की बीमा और म्युचुअल फंड बेचने का दबाव बढ़ा है. उन्हें हर दिन का टारगेट दिया जाता है. कंप्यूटर में ऐसा सॉफ्टवेयर है कि अगर आप 5 अटल पेंशन योजना नहीं बेचेंगे और सिस्टम में नहीं डालेंगे तो आप लॉगआउट नहीं कर सकते, यानी कंप्यूटर बंद ही नहीं होगा और आप ब्रांच में बैठे रहेंगे, क्योंकि बिना लॉगआउट किए आप ब्रांच बंद कर घर नहीं जा सकते हैं. 7 मार्च के दिन एक बैंक में कर्मचारी साढ़े आठ बजे तक बैठे रहे. बैंकों के सॉफ्टवेयर में ऐसा सिस्टम हो सकता है जो आपको ग़ुलाम की तरह उस कंप्यूटर से बांध सकता है. इसे तकनीकी भाषा में cso lop कहते हैं. जब इस पर लेख लिखा तो शाम को खबर आई कि आज सिस्टम साढ़े छह बजे ही बंद हो गया, यानी वे घर जा सके. इसका मतलब ये हुआ कि ऊपर की कुर्सी पर बैठे लोग समझने लगे हैं. उनमें सामने आने की हिम्मत नहीं, मगर मेरी बात पर एक्शन लिया इसके लिए शुक्रिया. कई बैकों ने महिलाओं के शौचालय की जांच और बनाने के आदेश दिए हैं. मेरी सीरीज़ के बाद. चेयरमैनों को शुक्रिया मगर शिकायत अभी भी बहुत है.
बैंकों की आर्थिक स्थिति मैनेजरों और क्लर्कों ने खराब नहीं की है. ऊपर के लोगों ने की है. मगर मार पड़ रही है बैंकर पर. एनपीए के कारण सैलरी नहीं बढ़ रही है, नए लोग नहीं भर्ती हो रहे हैं. काम करने के हालात बिगड़ चुके हैं. उनपर बिजनेस बढ़ाने को कहा जाता है, टारगेट का तनाव पैदा किया जाता है. एनपीए के कारण यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की हालत ख़राब है. इस बैंक ने ख़राब प्रदर्शन करने वाली 8 शाखाओं के लिए जो फरमान जारी किए हैं वो भयावह है. यहां तक लिखा है कि ब्रांच से एयरकंडीशन और जनरेटर हटा लिया जाए. मैनेजर और डिप्टी मैनेजर को सैलरी न दी जाए, छुट्टी न दी जाए. इस लिहाज़ से तो कई मंत्रियों से गाड़ी घोड़ा सब छीन लेना चाहिए. अगर बैंक का एनपीए 6 प्रतिशत से ज़्यादा हो तो एसी चेयरमैन के कमरे से निकालना चाहिए या ब्रांच मैनेजर के कमरे. ऑल इंडिया बैंक एसोसिशन ने तुगलकी बताते हुए इस फरमान की निंदा की है.
आलम यह है कि है एक बैंक ने महिला दिवस पर एक सर्कुलर जारी किया. क्रॉस सेलिंग के नाम पर बीमा पालिसी बेचने का जो टारगेट दिया जा रहा है उसकी यातना स्त्री पुरुष बैंकरों दोनों भुगत रहे हैं. महिला दिवस के अवसर पर उस बैंक ने जब सर्कुलर जारी किया तो क्या लिखा और क्या किया ध्यान से सुनिये. बैंक ने हमेशा महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रयास किया है और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को पहचाना है.
महिलाएं भारत के समाज और अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल रही हैं. महिला दिवस के मौके पर हम महिला कर्मचारियों के लिए विशेष अभियान का जश्न मनाना चाहते हैं. यह तय किया गया है कि 7 मार्च से 9 मार्च के बीच इलाहाबाद क्षेत्र की महिला कर्मचारियों को टारगेट दिया जा रहा है. कहां तो महिला दिवस के मौके पर उन्हें टारगेट की यातना से मुक्ति दी जानी चाहिए मगर उन्हें बीमा बेचने का टारगेट दे दिया गया. किसी त्योहार के दिन काम कम दिया जाता है या ये कहा जाता है कि आज होली है, मुबारक, आज तुम दिन भर काम करो. क्या ऐसा होता है. उन्हें चालीस हज़ार की दो जीवन बीमा पॉलिसी बेचनी है और 5 लाख तक का म्युचुअल फंड करवाना है.
हमने बैंक का नाम नहीं लिया मगर उस सर्कुलर पर बैंक ऑफ बड़ौदा लिखा था. बीमा बेचने के कारण ही महिला बैंकरों और पुरुष बैंकरों की ज़िंदगी ख़राब हो गई है. कुछ और बैंकों ने आज के दिन महालॉग इन डे घोषित कर दिया यानी उसी टारगेट को पूरा किए बिना आप घर नहीं जा सकते.
कई महिलाओं ने बताया कि उन्हें वसूली के लिए अकेले भेजा जाता है. बताइये यहां नीरव मोदी जी अकेले भाग जाते हैं और वहां महिला बैंकरों को अकेले भेजा जा रहा है. जब ये महिला बैंकर जाती हैं तो उनके साथ कोई सुरक्षा नहीं होती. मैं भीतर की बात बाहर ला रहा हूं, इसलिए पहचान सामने नहीं ला सकता मगर यकीन कीजिए ऑडियो वीडियो सुनते देखते कांप गया. काश सरकार में किसी का दिल पसीज जाए. कोई महिला वकील देख लेती और अदालत से फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का आदेश ले आती. बैंक के भीतर स्टाफ की भारी कमी है. एक आदमी पांच आदमी का काम कर रहा है. वो भी बैंक के अलावा बीमा कंपनियों का भी काम कर रहा है. ये महिला बैंकर सामने आकर बोल नहीं सकती मगर मैंने उनके बोलने का नया तरीका निकाला है. वो अपनी कहानी लिखकर भेजती हैं, मैं अपनी तरफ से थोड़ी फेरबदल कर देता हूं ताकि वे पकड़ में न आएं और महिला सहयोगी की आवाज़ में सुना देता हूं. वरना चेयरमैन लोग तो मुझे उल्लू बना देते इधर-उधर का जवाब देकर. वैसे कई पिताओं को मेरी सीरीज झूठी लगी, जब उन्होंने बैंक में काम कर रही अपनी बेटी और बहू से पूछा तो जवाब सुनकर शर्मिंदा हो गए. उनकी ऐसी चिट्ठी मेरे पास है.
मैंने एक बैंक नहीं, एक महिला बैंकर नहीं बल्कि कई बैंकों की कई महिला बैंकरों से बात कर महिला दिवस पर ये पेश किया है इस उम्मीद में कि कहीं कुछ बदल जाएगा. इसकी शुरुआत इससे होनी चाहिए कि दस मिनट के भीतर चाइल्ड केयर लीव का एलान कर दिया जाना चाहिए. मैं सही कहता हूं किसी दिन इस पर ईमानदारी से जांच हो गई, रिपोर्ट बन गई तो आप उन किस्सों को जानेंगे जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते.
This Article is From Mar 08, 2018
बैंक सीरीज का 9वां भाग : महिला दिवस पर महिला बैंकरों की दास्तान
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
-
Updated:मार्च 08, 2018 22:00 pm IST
-
Published On मार्च 08, 2018 22:00 pm IST
-
Last Updated On मार्च 08, 2018 22:00 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं