क्या मतदाताओं को अब इनके नाम पर प्रभावित किया जाएगा?

क्या धर्म की राजनीति नागरिकों को इतना कमज़ोर कर देती है कि वह धर्म के नाम पर यह सब देखना बंद कर देता है. क्या धर्म की राजनीति यही सिखाती है कि हत्या पाप नहीं है. बलात्कार पाप नहीं है.

नई दिल्ली:

तय करना मुश्किल हो रहा है कि न्याय का मज़ाक उड़ रहा है या जनता का मज़ाक उड़ रहा है।जनता न्याय का मज़ाक उड़ा रही है या राजनीति ही जनता का। कहीं हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए कैदियों को बाहर आने पर माला पहनाया जा रहा है तो कहीं हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए कैदी के बाहर आने पर संत्सग सुना जा रहा है।यह कैसा संत्संग है जहां हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए व्यक्ति से धार्मिक उपदेश सुने जा रहे हैं। क्या धर्म की राजनीति नागरिकों को इतना कमज़ोर कर देती है कि वह धर्म के नाम पर यह सब देखना बंद कर देता है। क्या धर्म की राजनीति यही सिखाती है कि हत्या पाप नहीं है। बलात्कार पाप नहीं है।

अगर नहीं सिखाती है तब इन मामलों में देश की अदालत जब सज़ा सुना देती है तब फिर समाज में इनका इतना सम्मान कैसे हो सकता है। क्या जनता ने लिख कर दे दिया है कि हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए लोगों का राजनीतिक सम्मान किया जाए।अगर वह कैदी अपने धर्म का है तो उसका और सम्मान किया जाए। क्या जनता और नागिरक का इतना नैतिक पतन हो चुका है? इसी 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने जो कहा था, क्या उसे प्रधानमंत्री ही भूल गए हैं, क्या बीजेपी भी प्रधानमंत्री की इस बात को भूल चुकी है?

“क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं। नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है। यह सामर्थ्य मैं देख रहा हूँ और इसलिए मैं इस बात का आग्रही हूँ।”हमारा सवाल साफ है। क्या गुजरात में जो हुआ, बिल्किस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले और उसकी बेटी सहित परिवार के सदस्यों की हत्या करने वालों की सज़ा माफ की गई, उन्हें माला पहनाया गया, क्या यह नारी को अपमानित करने वाली बात नहीं थी, क्या प्रधानमंत्री मोदी बताएंगे कि यही है नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प? हरियाणा में हत्या और बलात्कार के मामले में दोषी करार दिए गए गुरमीत सिंह की सत्संग में बीजेपी के नेता जाते हैं, डिप्टी स्पीकर जाते हैं, क्या यही है नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प? हम फिर से सुनाना चाहते हैं कि इस पंद्रह अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री ने क्या कहा था.
“क्या हम स्वभाव से, संस्कार से, रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं। नारी का गौरव राष्ट्र के सपने पूरे करने में बहुत बड़ी पूंजी बनने वाला है। यह सामर्थ्य मैं देख रहा हूँ और इसलिए मैं इस बात का आग्रही हूँ।”
तो प्रधानमंत्री कौन सा सामर्थ्य देख रहे हैं, यह तो उन्हीं की अपील है, कम से कम उन्हें बोल देना चाहिए था। जब अफ्रीका से चीता लाया गया तब दिल्ली में प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले कबूतर छोड़ते थे, अब हम चीता छोड़ते हैं। यही बात उन्होंने गुजरात में भी दोहराई तो अखबारों ने हेडलाइन लगाई है कि पहले कबूतर छोड़ते थे, अब चीता छोड़ते हैं। जब आप बिल्किस बानो और दो साध्वियों के साथ बलात्कार करने वालों के जेल से बाहर आने पर राजनीतिक और धार्मिक सम्मान होता देखते हैं तो प्रधानमंत्री की यह बात अलग तरीके से गूंजती है।क्या हमारी राजनीति और समाज दो साध्वियों के साथ बलात्कार करने वाले के साथ खड़ा होगा? फिर बिल्किस बानों और उन दो साध्वियों के साथ कौन खड़ा है? क्या इस देश से महिलाएं कहीं चली गई हैं? या उन्हें इसमें कुछ ग़लत नहीं लगता है?

बिल्किस बानों के मामले में चुप्पी पर कहा गया कि धर्म के कारण चुप्पी साधी गई है लेकिन फिर दो साध्वियों का कौन सा धर्म है, क्या किसी को नहीं पता? उन साध्वियों के लिए भी कोई स्मृति ईरानी या कोई मोहन भागवत क्यों नहीं बोल पा रहे हैं? क्या इसके खिलाफ नहीं बोल कर मोदी सरकार के मंत्रियों ने राजनीतिक सम्मान का संदेश नहीं दिया? आखिर उनकी चुप्पी को और किस तरह से समझा जाए? हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाया व्यक्ति जेल से बाहर आने पर सत्संग करता है, उसमें बीजेपी के नेता जाते हैं, इसे बीजेपी और संघ किस नज़र से देखते हैं? क्या यह सवाल धर्म की नैतिकता की सूची में नहीं आता है? 

दो शिष्याओं के साथ बलात्कार के मामले में, अपने ही प्रबंधक रंजीत कुमार की हत्या के मामले में, दैनिक पूरा सच के संपादक राम चंद्र छत्रपति जी की हत्या के मामले में राम रहीम को सज़ा मिली। क्या इससे पहले आपने हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए किसी व्यक्ति को इतना सजा धजा देखा है, इससे हम क्या संदेश दे रहे हैं, किसे दे रहे हैं,? गुरमीत सिंह को 40 दिनों के परोल पर छोड़ा गया है। बागपत से सत्संग कर रहे हैं। करनाल के चौधरी रिज़ार्ट  में नलवा, हिसार से से बीजेपी के विधायक रणवीर गांगवा भी सत्संग में शामिल हुए। उनके अलावा करनाल शहर कीमेयर रेणु बाला गुप्ता , डिप्टी मेयर नवीन कुमार, सीनियर डिप्टी मेयर राजेश अग्गी, भाजपा के  ज़िला अध्यक्ष योगेंद्र राणा,इस सत्संग में हिस्सा ले रहे हैं। रणवीर गांगवा तो हरियाणा विधानसभा में डिप्टी स्पीकर हैं।करनाल वह शहर है जहां से हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर आते हैं। उनकी विधानसभा है। हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणवीर गंगवा हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए गुरमीत सिह के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हैं। उन्हें करनाल आने का न्यौता दे रहे हैं।  

परमपिता , आप तो खुद जानते हैं कि कब वर्चुअल के बजाए फिजिकल आकर दर्शन देने का काम जल्दी करें, ये ताज संगत की तरफ से चरणों में विनती करते हैं कि जी, यही कहेंगे कि इसी तरीके से, आशीर्वाद देते रहते हैं, जिस तरीके से समय समय पर मार्गदर्शन दिया है, जिस तरह से आपने बताया कि जो दृढ यकीन रखते हैं, उनके घरों में कोई कमी नहीं रहती, और आपके जो आशीर्वाद है, उसी का परिणाम है कि पूरी संगत डेरे में न आकर रिज़ार्ट करना पड़ा, डेरा छोटा पड़ गया, रिज़ार्ट में आए हैं। 

2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता का संदेश दे रहे हैं। न जाने कितने सौ करोड़ रुपये तो इसके आयोजनों और विज्ञापनों पर ख़र्च हो गए हैं, तब भी भाजपा के विधायक को सफाई के संदेश के लिए हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए गुरमीत सिंह से सफाई का संदेश लेने की ज़रूरत पड़ रही है? क्या करनाल शहर के लिए प्रधानमंत्री का संदेश काफी नहीं है?
“सफाई अभियान की बात है, जहां प्रशासन फेल हो जाता है, वहां आपके आशीर्वाद से ये सारे जितने भी भाई बहन हैं, ग्रीन वेलफेयर के हमेशा मानवता की सेवा के अंदर खड़े मिलते हैं, ये आपका आशीर्वाद है”

जब स्वच्छता पर प्रधानमंत्री मोदी का संदेश है ही तब हत्या औऱ बलात्कार के मामले में दोषी करार दिए गए गुरमीत सिंह के संदेश की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या पंचायत चुनाव जीतने के लिए हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए एक अपराधी के आशीर्वाद की ज़रूरत पड़ी? वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने भी 2014 में सफाई को लेकर राम रहीम की अपील की तारीफ की थी। ट्विट किया था। तब कोर्ट का फैसला नहीं आया था। लेकिन अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी बलात्कार के मामले में सज़ा बरकरार रखी है। इसके बाद भी बीजेपी इसका बचाव कर सकती है? हरियाणा में बीजेपी की सरकार का यह दूसरा टर्म है। केंद्र में बीजेपी की सरकार है। डबल इंजन की सरकार में क्या इतना विकास हो गया है कि हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा पाए गुरमीत सिंह के बचाव में तरह तरह के तर्क दिए जा रहे हैं, और पार्टी ने कोई कार्रवाई तक नहीं की है। हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर इस सत्संग में हाज़िर हुए हैं। 

25 अगस्त 2017 को जब पंचकुला की सीबीआई अदालत सज़ा सुनाने वाली थी, तब कई राज्यों में तनाव की स्थिति थी। उस दिन गुरमीत सिंह राम रहीम को आश्रम की दो साध्वी के साथ बलात्कार के मामले में दस दस साल की सज़ा सुनाई गई। कुल बीस साल की सज़ा।  बिल्किस बानों की तरह दो महिलाएं आज खुद को कितना असुरक्षित महसूस कर रही होंगी?

जिस व्यक्ति को बलात्कार के मामले में सज़ा मिली हो, उसके सामने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर हाथ जोड़ कर आशीर्वाद मांगे, भारतीय राज्य व्यवस्था की क्या साख रह जाती है? क्या यह भी प्रधानमंत्री के बोलने लायक विषय नहीं है? स्मृति ईरानी के बोलने लायक विषय नहीं? 

राष्ट्रपति पद के चुनाव के बाद कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपत्नी कह दिया। कितना बड़ा हंगामा खड़ा किया गया,अधीर रंजन चौधरी ने लिखित माफी मांगी मगर उसके बाद विवाद नहीं थमा क्योंकि बीजेपी बोल रही थी और गोदी मीडिया और बोल रहा था। अब दोनों चुप हैं। उस समय महिला कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी के तेवर कितने तीखे होते थे, अब वे तेवर कहां हैं? बिल्किस बानों पर नहीं बोल सकीं, दो साध्वियों के साथ बलात्कार करने वाले सज़ायाफ्ता के दरबार में बीजेपी के नेताओं के जाने पर तो बोल ही सकती थीं, वैसे याद के लिए आप उस समय के तेवर को देख सकते हैं। 
महिलाओं के सम्मान के लिए कौन सा मुद्दा चुना जाता है, आप देख सकते हैं। अब तो बीजेपी के नेता हत्या और बलात्कार के मामले में सज़ा काट रहे गुरमीत सिंह के सामने हाथ जोड़ कर खड़े होते हैं और करनाल की मेयर उन्हें पिताजी कहती हैं, प्रधानमंत्री को ग़लत लगता है न स्मृति ईरानी को।

रेणु बाला गुप्ता मेयर हैं। उनके फेसबुक पेज पर कई तस्वीरें हैं जिनसे उनकी राजनीतिक गतिविधियों का अंदाज़ा मिलता है।यह तस्वीर उनकी प्रोफाइल में लगी है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के  साथ। 

गुरमीत सिंह कौन हैं, यह ठीक से समझ लेना चाहिए। 25 अगस्त 2017 के दिन आपको ले चलता हूं।फ्लैशबैक में।उस दिन पंचकुला की सीबीआई की विशेष अदालत के जज जगदीप सिंह ने एक साहसिक फैसला सुनाया था। अलग से साहसिक इसलिए कहा कि क्योंकि गुरमीत सिंह के समर्थकों ने फैसले वाले दिन जो माहौल बनाया था, उस माहौल में सुनाया गया यह फैसला साहसिक ही लगता है। 

उस दिन इतनी गाड़ियों के काफिले के साथ गुरमीत सिंह पंचकुला की अदालत की तरफ रवाना हुआ था।मीडिया इन गाडियों की संख्या 200 से लेकर 400 तक बता रहा था। सिरसा से पंचकुला के बीच के रास्ते को ख़ाली कराया गया। जैसे ही जज जगदीप सिंह फैसला सुनाते हैं कि गुरमीत सिंह दो साध्वियों के साथ बलात्कार के मामले में दोषी पाए जाते है, हिंसा भड़क जाती है और गुरमीत सिंह को हेलिकाप्टर से जेल ले जाया गया। सेना तक को बुलाया गया। हिंसा इस तरह से भड़की थी, कि पुलिस को काबू पाने के लिए गोली चलानी पड़ी। 38 लोग मारे गए थे।बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी घालय हुए थे। सरकारी दफ्तरों पर भी हमला होता है। मीडिया पर भी हमला होता है। पत्रकारों पर हमला होता है। दिल्ली के आनंद विहार में रीवा एक्सप्रेस की दो बोगियां जला दी जाती हैं। उस दिन 350 से अधिक रेल गाड़िया रद्द की गई थीं। 

ये ताकत है गुरमीत सिंह की लेकिन जब उनकी सभा में डिप्टी स्पीकर नतमस्तक होंगे, मेयर पिता जी कहेंगी तब आप उन दो साध्वियों की सोचिए, उन पर क्या गुज़र रही होगी? 26 अगस्त 2017 के प्राइम टाइम का एक हिस्सा दिखाना चाहता हूं ताकि आप समझ सकें कि उन साध्वियों ने कैसी लड़ाई लड़ी थी, एक पत्रकार की जान की कीमत समझ सकते थे, जिसने इन साध्वियों का साथ देकर अपनी जान दे दी, कुछ शानदार पुलिस अफसरों के बारे में समझ सकते हैं जिन्होंने बेहतरीन काम किए। 

परोल पर राम रहीम को छोड़ा गया है। हरियाणा के गृहमंत्री कहते हैं कि जेल प्रशासन ने अपने स्तर पर फैसला लिया, उन्हें इसकी जानकारी नहीं। आप कल्पना कर सकते हैं कि इसी तरह का बयान अगर विपक्ष की सरकार के किसी गृहमंत्री ने दिया होता कि उन्हें नहीं पता है, जेल प्रशासन ने अपने स्तर पर किया है? क्या जेल प्रशासन वाकई अपने स्तर पर इतने बड़े फैसले लेने लगा है?

परोल पर छोड़ना बहस की बात है लेकिन मुख्य सवाल यह है कि उसके सत्संग में बीजेपी के नेता जाते हैं। तब भी उसका बचाव किया जाता है। जिस व्यक्ति को हत्या और बलात्कार के चार मामलों में सज़ा मिली हो और वह सत्संग कर रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में आम लोग भी शामिल होते हैं, खुशी का इज़हार करते हैं और नेता भी जाते हैं। बीजेपी के सांसद आस्था के नाम पर इसका भी बचाव करते हैं।

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हरियाणा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रामविलास शर्मा से गुरमीत सिंह के प्रसंग पर सवाल पूछ कर गलती कर दी, भाजपा नेता को याद आ गया कि वे भी कभी पत्रकार थे. सभी को सोचना चाहिए कि क्या ऐसा करने से उन महिलाओं पर क्या बीत रही होगी जिन्होंने इनके गुनाहों के लिए सज़ा दिलाने में कितनी लड़ाइयां लड़ी। यह मामला केवल दो साध्वियों और बिल्किस बानों तक सीमित नहीं है। हर उस लड़की के लिए है जो ऐसे अपराधियों के खिलाफ अदालतों में लड़ रही है। उन सभी की लड़ाई का अपमान है। यह उस वोटर का भी अपमान है, जिसके वोट के नाम पर बलात्कारियों को माला पहनाया जा रहा है। क्या हमारा वोटर इतना ख़राब हो चुका है? दरअसर पत्रकार पूछ नहीं रहे हैं, पटना में जब मनीष कुमार ने बीजेपी के अध्यक्ष से पूछा तो जवाब वही आया कि सज़ा पूरी होने पर रिहा किया गया है।