10 फरवरी यानी सोमवार को जब दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र संसद तक मार्च करने जा रहे थे तब उन्हें होली फैमिली के पास रोका गया था. इस दौरान कई छात्रों के घायल होने की खबरें तो आई थीं, लेकिन ऊपर-ऊपर से साफ-साफ नहीं लगा कि लाठी चली है. वीडियो में दिख रहा था कि छात्र बैरिकेड से आगे जाना चाहते थे और पुलिस उन्हें वही तक रोकना चाहती थी. होली फैमिली के पास जो अंतिम बैरिकेड लगे थे वहां पर ऊपर से कुछ भी ऐसा नहीं दिखता है कि लगे कि लाठी चार्ज हो रही है. पुलिस कहती भी रही कि आपसी धक्का-मुक्की के कारण मामूली चोटें आई हैं. किसी को गंभीर चोट नहीं आई है. लेकिन इस वीडियो में कहानी अलग दिखती है. यहां लाठी चलती दिखती है, लेकिन ऊपर से मारने की जगह चुभाती हुई लग रही है. छात्रों का कहना है कि बहुतों को मामूली चोट नहीं लगी है. गंभीर चोट आई है और ये चोट भीतरी है. छात्र बेहोश जैसे नज़र तो आ रहे हैं, मगर बाहर चोट के निशान नहीं है. इनका कहना है कि प्राइवेट पार्ट्स में चोट पहुंचाई गई है. ज़ख्म बाहर नहीं है मगर भीतर गहरा असर हुआ है.
तस्वीरों में छात्रों की हालत कुछ गंभीर दिखती है. जामिया प्रशासन के अधिकारी ने भी कहा था कि मामूली चोटें हैं. पुलिस ने भी उस दिन आई मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया था और कहा था कि पेशेवर तरीके से कार्रवाई की गई है. पुलिस ने सबकी सुरक्षा का खयाल रखा है, लेकिन लड़कियों ने शिकायत की थी कि महिला पुलिस ने बुर्का हटाकर लाठी से मारा. किसी ने कहा कि छाती पर लाठी चुभाई गई. पेट में लाठी चुभोई गई. 10 फरवरी अस्पताल में सौ से अधिक छात्र ज़ख्मी हुए थे. उनमें से 55 को अंसारी हेल्थ सेंटर में भर्ती कराया गया था. वहां से 12 को अल शिफा अस्पताल में भर्ती किया गया था, जिनकी स्थिति खराब थी. उसी रात को 5 छात्र आईसीयू में भी थे. अभी भी पांच भर्ती हैं.
अगर मामूली चोटें ही आईं तो फिर वे 5 छात्र कौन से हैं, जिनके अल शिफा अस्पताल में अभी भी भर्ती होने का दावा किया जा रहा है. कई छात्रों ने सांस लेने में तकलीफ की गंभीर शिकायत की है. ये सारी जानकारी जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी की प्रेस कांफ्रेंस में दी गई. इस प्रेस कांफ्रेंस में डेढ़ दर्जन छात्र छात्राएं मौजूद थीं, जिन्होंने अपनी व्यथा बताई.
दिल्ली पुलिस ने 10 फरवरी को इनकार किया था कि ऐसा कुछ हुआ है, इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद दिल्ली पुलिस का पक्ष तो नहीं है, लेकिन पुलिस को इन बातों को गौर से सुनना चाहिए. दूसरी तरफ 6 फरवरी को गार्गी कॉलेज में जो यौन हिंसा हुई है, उसे लेकिन कॉलेज में छात्राओं का कॉलेज के भीतर प्रदर्शन चल रहा है. सोमवार से ही इस कॉलेज के भीतर छात्राओं का प्रोटेस्ट चल रहा है. सोमवार को प्रिंसिपल छात्राओं के बीच आईं थीं लेकिन उनके किसी जवाब से छात्राएं संतुष्ठ नहीं हुईं. उन्होंने सुरक्षा को लेकर कई गंभीर सवाल सार्वजनिक रूप से उठाए. यहां मंगलवार और बुधवार को भी प्रदर्शन हुआ है. छात्रों की मांग है कि 15 फरवरी तक फैक्ट फाइंडिंग टीम अपनी रिपोर्ट दे दे. इस टीम में हर विभाग की एक छात्रा और शिक्षिका को रखा गया है. इस रिपोर्ट से पता चलेगा कि घटना कैसे हुई, क्यों हुई और आगे कैसे रोका जा सके. छात्राओं की मांग है कि इंटरनल कंप्लेन कमेटी का गठन किया जाए, जहां यौन हिंसा की स्थिति में शिकायतें की जा सके. इसके सदस्यों का चुनाव हो. इसके बजट को भी खर्च किया जाए. कॉलेज ने मौखिक रूप से मान लिया मगर छात्राएं चाहती हैं कि प्रिंसिपल लिखित आश्वासन दें. लिखित आश्वासन नहीं मिलने तक छात्राओं का प्रदर्शन जारी रहेगा.
इस बीच खबर आई है कि पलिस की जांच से पता चल रहा है कि गार्गी कॉलेज ने पुलिस को सूचना नहीं दी थी कि उनके यहां फेस्टिवल हो रहा है. पुलिस ने कॉलेज में लगे 23 सीसीटीवी फुटेज की जांच की है. तीन सीसीटीवी फेस्टिव की तरफ लगे थे. शुरुआती जांच में कॉलेज की नाकामी सामने आ रही है. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने गार्गी कॉलेज के प्रिंसिपल से घटना से संबंधित क्या कार्रवाई हुई है, इसकी रिपोर्ट मांगी गई है. पुलिस से भी कहा है कि वे इस घटना में शामिल सभी के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करें. 10 फरवरी को यूनिवर्सिटी ने सभी प्रिंसिपल को एडवाइज़री जारी की है कि सभी महिला कर्मचारियों और छात्राओं की सुरक्षा के पर्याप्त कदम उठाए जाएं. आज के युवाओं से सारे देश को शिकायत है, लेकिन जब वे अपनी लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी निभाते हैं तब कोई ध्यान नहीं देता. यह कितनी अच्छी बात है कि युवा दूसरों के मसलों के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं. उनके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं.
दिल्ली की तस्वीर है. नेशनल लॉ यूनिवर्सटी की. एक महीना पहले यहां ठेके पर काम कर रहे 55 सफाई मज़दूरों को निकाल दिया गया. ऐसी छंटनी देश में जाने कहां कहां आराम से हो जाती है. किसी को फर्क नहीं पड़ता. यहां वकालत की पढ़ाई पढ़ने वाले इनकी लड़ाई का हिस्सा बन गए. तरह तरह के पोस्टर बनाए. ज़मीन पर मांगों को लिखा और हर दिन सफाई मजदूरों के साथ धरना प्रदर्शन में शामिल होने लगे. कुछ छात्र छुट्टी के वक्त घर नहीं गए और कुछ ने अपनी इंटर्नशिप छोड़ दी. मांग है कि इन्हें फिर से काम पर रखा जाए. संस्थान ने नए मज़दूरों को कांट्रेक्ट पर रख लिया है. व्हाट्स्एप यूनिवर्सिटी में बर्बाद हो रहे युवाओं से दुखी हो रहे दर्शकों को इन युवाओं के लिए अपने-अपने घर में खड़े होकर ताली बजानी चाहिए. आप अपने आस पास देखिए जो नए लड़के-लड़कियां वकालत की पढ़ाई पढ़कर आ रहे हैं वो किस तरह से इस लोकतंत्र को समृद्ध कर रहे हैं. धरना-प्रदर्शन में जाने वालों की मदद कर रहे हैं. सफाईकर्मियों को भी कितना अच्छा लगता होगा कि जिन भैया दीदी लोगों के कमरों को साफ करते होंगे, वो भैया दीदी उनके हक के लिए लड़ रहे हैं. इनके अंदर इच्छा शक्ति न होती तो मीडिया कवरेज से दूर चुप चाप 38 दिनों से प्रदर्शन न कर रहे होते. यहां के छात्र जब वकील बनेंगे और जब जज बनेंगे तो यकीनन कोई सरकार उनसे अपने मन का फैसला नहीं लिखवा सकेगी. आप किसी फैसले पर शक नहीं कर पाएंगे कि कहीं ये फैसला सरकार के हिसाब से या डर से तो नहीं लिखा गया है. शानदार नौजवानों.
हमारे पास कॉलेज का पक्ष नहीं है. इन छात्रों ने दो दिन पहले आधी रात को भी मार्च किया और सफाई कर्मियों के फिर से काम पर वापस रखे जाने की मांग की. विरोध प्रदर्शन दूसरे राज्यों में भी हो रहे हैं. यूपी में नलकूप चालक भर्ती परीक्षा के छात्रों को अपने रिज़ल्ट के लिए धरना देना पड़ रहा है. उनकी परीक्षा का अंतिम परिणाम पिछले साल 27 नवंबर को आ गया था, जबकि नियुक्ति की प्रक्रिया अभी तक शुरू नहीं हुई है. वैसे यह परीक्षा 2016 की है. बीच में एक बार कैंसिल की गई और नए सिरे से शुरू हुई थी. सोचिए एक-एक परीक्षा में नौजवान हिन्दू-मुस्लिम डिबेट की तरह चार-चार साल से फंसे हैं. यही नहीं यूपी में बैचलर ऑफ एजुकेशन की प्रवेश परीक्षा का फॉर्म सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए 1500 रुपये का होगा. देरी से भरने पर 2000 देने होंगे. अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों के लिए भी फॉर्म काफी महंगा है. 750 रुपये है. देरी से भरने पर उन्हें 1500 रुपये देने होंगे.
परीक्षा का फॉर्म तो महंगा हो ही रहा है, गैस के सिलेंडर के दाम भी आसमान छू रहे हैं. छह महीने से बढ़ते ही जा रहे हैं. 12 फरवरी को बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत एक बार में 145 रुपये बढ़ गई है. दिल्ली में 14.2 किलोग्राम का एक सिलेंडर 714 रुपये से बढ़ाकर 858 रुपये 50 पैसे हो गया है. कोलकाता में बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर का काम 896 रुपया हो गया है. आज हम एक ऐसे मुद्दे की बात करेंगे जिसे पहली बार समझने का प्रयास कर रहा हूं. मुझे इस विषय की बिल्कुल जानकारी नहीं थी.
अचानक से अंडा उत्पादक किसान संपर्क करने लगे. उनसे बात करने पर पता चला कि अंडा उत्पादन के सेक्टर में काफी बड़ी तबाही आई हुई है. कई किसानों के ऊपर लाखों के कर्ज हो गए हैं और बैंक को चुका नहीं पा रहे हैं. गोरखपुर, अज़मेर, करनाल किशनगंज जाने कहां-कहां से अंडा उत्पादक संपर्क करने लगे हैं. गोरखपुर में तो छह महीने से अंडा उत्पादक ज्ञापन देने और प्रदर्शन करने का काम कर रहे हैं. इसके आस पास के ज़िलों में पिछले सात-आठ सालों में कई मुगी फॉर्म खुले हैं. इन्हें लेयर फॉर्म कहा जाता है. ये सारे फॉर्म बैंकों से लोन लेकर बनाए गए हैं. हुआ यह है कि सरकार ने मक्का और सोयाबीन की न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया. इन्हीं से मुर्गी को दाना मिलता है. न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ने से मुर्गी का दाना 19 रुपये किलो से बढ़कर 25 रुपये किलो हो गया. इससे अंडे की लागत बढ़ गई है. एक अंडे के उत्पादन में 4 से 5 रुपये लगते हैं मगर वह सवा तीन से अधिक पर नहीं बिक पा रहा है. अंडा उत्पादक को हर अंडे पर एक रुपए का घाटा होने लगा है. दस हज़ार मुर्गियों के फॉर्म वाले किसानों को हर दिन 9 हज़ार का घाटा हो रहा है और महीने में पौने तीन लाख का घाटा. शायद यही वजह है कि उन्हें इस वक्त प्राइम टाइम की याद आई है.
आप दर्शक भी समझेंगे कि क्यों अंडे की बात हो रही है, लेकिन इसके ज़रिए देश के एक बड़े सेक्टर में हो रहे बदलाव को समझा जा सकता है. कई लोगों ने मुर्गी का फॉर्म बनाने के लिए पंद्रह से 50 लाख तक के लोन लिए हैं. गोरखपुर के एक मुर्गी पालक ने बताया कि अपनी पूंजी लगाई 40 लाख और बैंक से इतना ही लोन लिया. अब उसे इतना घाटा हो चुका है कि ज़मीन गिरवी ही रह जाएगी. उसके जैसे कई और मुर्गी पालक लोन चुकाने की स्थिति में नहीं रहे. इसमें सभी समाज के लोग व्यपार कर रहे हैं. यूपी में ही प्रति दिन पौने दो अरब अंडा का उत्पादन होता है. अगर एक रुपये के हिसाब से घाटा हो रहा है तो समझिए कि मुर्गी पालकों को हर दिन पौने दो अरब का घाटा हो रहा है. अगर यह सही है तो समझिए कि यूपी के मुर्गी पालकों के यहां कैसी तबाही आई होगी. यूपी के किसानों को हर दिन पौने दो अरब का घाटा हो रहा है. गोरखपुर के मुर्गी पालक तो पिछले अगस्त से प्रदर्शन और ज्ञापन वगैरह कर रहे हैं.
मेरे लिए यह विषय नया है और प्राइम टाइम के दर्शकों ने भी आखिरी बार कब अंडा उत्पादन की समस्या पर कार्यक्रम देखा होगा. इसलिए मेरे बताने में कोई चूक हो रही हो तो आप सुझाव दे सकते हैं. अंडा उत्पादन को लेयर फर्मिंग कहते हैं. अंडा सेक्टर में 2019 से ही स्लोडाउन की खबरें आने लगी थीं. अंडा उत्पादक कहते हैं कि अंडे की कीमत पर प्राइवेट एजेंसियों का अधिकार होता है. वे बाज़ार में मांग और आपूर्ति का कृत्रिम संकट पैदा कर उत्पादकों का शोषण करती हैं. यही नहीं मुर्गी का दाना जब से महंगा हुआ है उन्हें हर अंडे पर घाटा होने लगा है. कई जगह अंडे के फॉर्म बंद होने लगे हैं, जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का नया संकट पैदा होने लगा है. PAPAK,EGGCHI,PMR और NECC,ये कंपनियां ही अंडे की कीमत तय करती हैं. खुदरा बाज़ार में अंडे की कीमत नहीं गिर रही है, जबकि थोक उत्पादकों को दाम नहीं मिल रहे हैं. यही नहीं एक्सपोर्ट में भी भारी गिरावट है. 2018-19 की तुलना में 2019-29 में 84 प्रतिशत की गिरावट आ गई.
प्रदर्शन पर बैठे अंडा उत्पादकों की तस्वीरें करनाल, पंचकुला और अजमेर से हैं, लेकिन मांग एक जैसी है. इन उत्पादकों का कहना है कि अंडे का दाम तय करने के लिए जो NECC जैसी एजेंसियां बनाई गईं हैं, उनकी भूमिका पारदर्शी होनी चाहिए. वरना करनाल में प्रदर्शन के दौरान ही अंडे का रेट एक रुपया कैसे बढ़ जाता. इसका मतलब है कि अंडे के दाम कृत्रिम रूप से घटाए- बढ़ाए जा रहे हैं. उत्पादकों का कहना है कि हर अंडे पर एक से डेढ़ रुपया का घाटा हो रहा है वो सेक्टर के स्केल पर करोड़ों का हो जाता है. हरियाणा में 2000 छोटे बड़े पोल्ट्री फॉर्म हैं. 2500 बायलर फॉर्म हैं. 350 हैचरी हैं जहां चिकन पैदा किए जाते हैं. हरियाणा के ढाई लाख किसान जुड़े हैं. अंडा उत्पादन के साथ सोयाबीन और मक्के के किसानों का भी भविष्य जुड़ा रहता है. इसलिए वे भी इनके प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं. अंडे के सेक्टर के कारण सोयाबीन और मक्का किसानों को अच्छे दाम मिल जाते हैं. जिस पर संकट पैदा हो सकता है.
पिछले साल तक एक अंडे के लिए मुर्गी पालक को 5 रुपये 50 पैसे मिलते थे जो अब 4 रुपये 60 पैसे मिल रहे हैं. जबकि मुर्गी के दाने का रेट दो गुना हो गया है. उत्पादक चाहते हैं कि सरकार मुर्गी के दाने पर सब्सिडी दे, क्योंकि सोयाबीन और मक्के के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने से भी यह संकट आया है. अंडे की लागत नहीं निकलने से किसान डिफॉल्टर हो रहे हैं. बैक का कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं. इस सेक्टर को सभी सरकारों ने प्रोत्साहन दिया ताकि स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर बढ़ें. यह छोटा मोटा सेक्टर नहीं है. एक लाख करोड़ का सेक्टर है और बताया जाता है कि इससे 40 लाख लोग जुड़े हैं. भारत अंडा उत्पादन में दूसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर चीन है और तीसरे पर अमरीका. कई किसानों से बात कर पता चला कि इस सेक्टर में एक खेल है. मुर्गी का चारा सोयाबीन और मक्के से बनता है. ये बड़ी कंपनियां करती हैं. ये दाम बढ़ाती हैं और उधर अंडा उत्पादक से खरीदने वाले व्यापारी कृत्रिम संकट पैदा कर देते हैं. इससे किसानों को काफी घाटा हो रहा है.
अंडा उत्पादकों से अपील है कि वे यह देखें कि जब उन्हें लाखों का घाटा हो रहा था तब मीडिया, सरकार, विधायक, सांसद उनकी समस्या को लेकर कितने गंभीर है, इससे पता चलेगा कि रोज़गार के सेक्टर को हम कितनी गंभीरता से लेते हैं. मीडिया में मंत्रियों के छपे बयान से लगता है कि मंत्रियों को पता है मगर जिस तरह से हर दिन अंडा उत्पादकों को घाटा हो रहा है, उनके लिए एक एक दिन भारी पड़ रहा है. अंडा फॉर्म बंद हो रहे हैं.