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This Article is From Oct 30, 2019

कश्मीर में विदेशी सांसदों को लाने वाली इंटरनेशनल ब्रोकर कौन है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 30, 2019 23:38 pm IST
    • Published On अक्टूबर 30, 2019 23:38 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 30, 2019 23:38 pm IST

कश्मीर के मामले में इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर कौन है? इस पर न सरकार की तरफ से कुछ आया है और न ही इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर ने अपनी तरफ से कुछ कहा है. कश्मीर जैसे संवेदनशील मामले में खुद को इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर बताने वाली मादी शर्मा यानी मधु शर्मा की मदद भारत सरकार को क्यों लेनी पड़ी? यह एनजीओ क्या ऐसा काम करता है जो विदेशी सांसदों का कश्मीर दौरा कराता है और प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की मंज़ूरी भी ले लेता है? आखिर यह ब्रोकर कौन है जिनकी भारत सरकार में इतनी पहुंच है, लेकिन इन्हें लेकर कोई कुछ बोल नहीं रहा है. आखिर सरकार ने मादी शर्मा की मदद क्यों ली? क्या इन सांसदों को बुलाने में विदेश मंत्रालय की मदद नहीं ली जा सकती थी? भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक मादी शर्मा 'इंडो ब्रिटिश ट्रेड काउंसिल' की बोर्ड की सदस्य हैं. नार्टिंघम क्रिएटिंव क्वार्टर की सदस्य हैं. यूरोपियन इकोनमिक एंड सोशल कमिटी के तहत ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी की प्रेसिडेंट हैं. मादी शर्मा ने 25 अक्तूबर को आखिरी बार ट्वीट किया है. यूरोपियन संघ के सांसदों के दौरे को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया है.

मादी शर्मा का नाम इसलिए आया है क्योंकि इनकी तरफ से ही ब्रिटेन के सांसद क्रिस डेवीज़ को ईमेल भेजा गया था. मादी ने अपने ईमेल में लिखा था कि वे यूरोपियन संघ के सांसदों का कश्मीर दौरा आयोजित कर रही हैं. सांसदों की मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी से भी होगी. जिसकी तारीख 28 अक्तूबर बताई गई है. फिर 29 तारीख को कश्मीर का दौरा होगा और 30 को प्रेस कांफ्रेंस. सब कुछ मादी शर्मा के इस ईमेल के अनुसार होता है मगर दौरा आयोजित करने वाली मादी शर्मा का कुछ पता नहीं. क्या वे भी इस दौरे में शामिल थीं या दिल्ली में रह गईं या दिल्ली आई ही नहीं. क्या मादी शर्मा की संस्था से लॉबी के लिए मदद ली गई, यूरोपीयन संघ के ये सांसद लॉबी कराने वाली संस्था के बुलाने में क्यों आए?

श्रीनावसन जैन और उनकी टीम की श्रुति मेनन और अरविंद गुनाशेखर ने इस मामले में और तहकीकात की है. शुरू में यह भ्रम हो गया कि मादी शर्मा एक एनजीओ चलाती हैं, क्योंकि इसका नाम womens Economic And Social Think Tank है. नाम से एनजीओ समझने का भ्रम हो गया, लेकिन इसकी असलीयत तब सामने आती है जब आप Lobbyfact.Eu टाइप करेंगे. लॉबी फैक्ट एक वेबसाइट है जो यूरोपियन संघ से जुड़े देशों में लॉबी करने वाली संस्था का हिसाब किताब जुटाती है. ताकि रिसर्चर और पत्रकारों को लॉबी के बारे में जानकारी मिल सके जो आम तौर पर गुप्त रह जाती है. यह संस्था यह भी पता करती है कि लॉबी करने वाली संस्था ने एक साल में कितने पैसे ख़र्च किए और किन-किन संस्थाओं के साथ लॉबी की. लॉबी करने वाली संस्था के पास यूरोपियन संघ की संसद की लॉबी के कितने पास हैं. इस वेबसाइट पर मादी शर्मा का एनजीओ भी पंजीकृत है. 

19 सितंबर 2013 को मादी शर्मा की संस्था वेस्ट इस वेबसाइट से जुड़ती है. अगर मादी शर्मा की संस्था वेस्ट एक एनजीओ है तो उसका रजिस्ट्रेशन लॉबी करने वाली संस्थाओं की वेबसाइट पर क्यों है? क्या मादी शर्मा ने कश्मीर के मसले पर लॉबी की है, अगर की है तो क्या उन्होंने पैसे भी लिए हैं, यह सब सवाल है जिनके जवाब हासिल नहीं हैं. यही नहीं मादी शर्मा को लेकर एक विवाद भी हुआ था. उन्होंने मालदीव में एक दौरा आयोजित किया था. यूरोपियन संघ के तीन सांसद गए थे. यूरोपियन संघ में मालदीव के राजदूत ने यूरोपियन संघ के प्रेसिडेंट को पत्र लिखा था कि मादी शर्मा ने मालदीव के कानूनों का उल्लंघन किया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार के ट्विटर हैंडल को चेक किया. उन्होंने यूरोपियन सांसदों और प्रधानमंत्री की तस्वीर को ट्वीट किया है और दोनों की बातचीत को सकारात्मक बताया है. लेकिन श्रीनगर जाने और वहां से लौट आने को लेकर कोई ट्वीट नहीं है और न ही इन सवालों को लेकर कि मादी शर्मा कौन है? क्यों एक लॉबी की मदद से इन यात्राओं का आयोजन हुआ और इसका खर्च कोई अजीबो गरीब संस्था क्यों उठा रही है? अगर प्रधानमंत्री से ही मिलना था सभी को तो इसके पीछे संदिग्ध किस्म के लोग और संस्थाएं क्यों काम कर रही थीं? उसमें इन दौरों से संबंधित कोई ट्वीट नहीं था.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मादी शर्मा को लेकर ट्वीट किया है. प्रियंका ने लिखा, 'भारत के किसानों-बेरोज़गार युवाओं के लिए ये सुविधा नहीं है कि पीएम से मुलाकात हो सके, समस्याएं सुनी जा सके, लेकिन हां मादी शर्मा जैसे इंटरनेशनल बिजनेस ब्रोकर बड़ी शान से लिख सकते हैं कि भारत आइये हम आपका खर्चा भी उठाएंगे'.

जिस दौरे को निजी बताया जा रहा है उसका पैसा किस संस्था ने दिया है, इसे गुप्त क्यों रखा गया? जब संस्था के बारे में पता चला तो संस्था का कोई भी सामने नहीं आया बताने के लिए. मादी शर्मा ने अपने ईमेल में लिखा है कि यूरोपियन संघ के सांसदों के दौरे का खर्च दिल्ली स्थित एक संस्था उठाएगी, जिसका नाम है इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर नॉल अलाइड स्टडीज़. हमारे सहयोगी अरविंद गुनाशेखर दिल्ली के सफदरगंज स्थित इस दफ्तर में गए. इंटरनेशनल इस्टीट्यूट फॉर नॉन अलाइड स्टडीज़ का पता है. इसी इमारत में श्रीवास्तव ग्रुप का दफ्तर भी है. इसी इमारत में एक न्यूज़ वेबसाइट न्यूदिल्ली टाइम्स का दफ्तर भी है. 29 अक्तूबर को कहा गया कि भाई दूज की छुट्टी है तो 30 अक्तूबर को आएं. अरविंद जब 30 अक्तूबर को इस दफ्तर में गए तो ताला लगा था. कहा गया कि यह दफ्तर एक हफ्ते बाद खुलेगा. इसके संस्थापक गोविन्द नारायण श्रीवास्तव हैं जो अब नहीं हैं. 1980 के दशक में यह संस्था बनी थी जिसका काम है गुट निरपेक्ष मसलों पर सभा-सेमिनार टाइप का आयोजन करना. वेबसाइट पर इस बात की जानकारी नहीं है कि नॉन अलाइड स्टडीज़ को कौन चला रहा है? मगर श्रीवास्तव ग्रुप की साइट से पता चलता है कि उनके बेटे अंकित श्रीवास्तव वाइस चेयरमैन हैं. अंकित श्रीवास्तव न्यू दिल्ली टाइम्स के एडिटर भी हैं. 

इस न्यूज़ वेबसाइट को मादी शर्मा अपने ट्विटर पर फॉलो करती हैं. मादी शर्मा अंकित शर्मा को भी फॉलो करती हैं. इस वेबसाइट पर यूरोपियन संघ के सांसदों के दौरे की कोई खबर नहीं है. जो संस्था सांसदों के आने जाने का खर्चा उठा रही है उसी की न्यूज़ वेबसाइट पर इस दौरे की कोई खबर नहीं है. इस वेबसाइट की मुख्य खबर 30 अक्तूबर की तारीख से अपलोड हुई है. इसका मतलब है कि न्यूज़ वेबसाइट में आज छुट्टी नहीं थी. क्या सारा मामला संदिग्ध नहीं है. यह तभी साफ होगा जब अंकित श्रीवास्तव सारे सवालों के जवाब देंगे. बताएंगे कि कंपनी के किस खाते से इन्होंने 27 सांसदों के आने जाने का टिकट कटाया और खर्चा उठाया. क्या ऐसे संदिग्ध संस्था और लोगों की प्रधानमंत्री तक पहुंच हो सकती है, या भारत सरकार ऐसे लोगों की मदद से यूरोपियन संस्थाओं के दौरे का आयोजन करेगी?

अरविंद गुनाशेखर ने श्रीवास्तव ग्रुप में किसी से बात की तो उन्होंने कहा कि वे टिप्पणी नहीं कर सकते. उन्हें किसी डेलिगेशन के बारे में पता नहीं है. मादी शर्मा कौन हैं? इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर नॉल अलाइड स्टडीज़ क्या है, इसके प्रमुख अंकित श्रीवास्तव किसके कहने पर 27 सांसदों के भारत दौरे का खर्चा देते हैं, क्या यह सारे सवाल महत्वपूर्ण नहीं हैं, आखिर इन सवालों पर चुप्पी क्यों है? श्रीनगर पहुंचे यूरोपियन सांसदों को आज प्रेस के एक हिस्से से मिलाया गया. इस प्रेस कांफ्रेंस में कश्मीर के स्थानीय पत्रकार नहीं थे. इस प्रेस कांफ्रेंस में एनडीटीवी के नज़ीर मसूदी को नहीं जाने दिया गया. जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक न्यूज़ एजेंसी एएनआई और कुछ चैनलों को ही 23 सांसदों से मिलने का मौका दिया गया.

यूरोपियन संघ के सांसदों ने कहा कि उनके दौरे को गलत नज़रिए से देखा गया वे यहां तथ्यों का पता लगाने आए हैं. एक सांसद निकोलस फिस्ट ने कहा कि अगर आप यूरोपियन संघ के सांसदों को कश्मीर आने दे रहे हैं तो भारत के विपक्षी नेताओं को भी आने देना चाहिए. एक तरह का असंतुलन बन गया है. सरकार को ठीक करना चाहिए. निकोलस जर्मनी के राजनीतिक दल आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी के सांसद हैं. भारत में जर्मनी के राजदूत ने निधि राज़दान से कहा है कि उन्हें इस दौरे की कोई जानकारी नहीं है. एक और सांसद बिल न्यूटन ने कश्मीर की खूबसूरती की तारीफ की और दोबारा आने की इच्छा जताई. यह भी कहा कि क्या हो रहा है इसके लिए और सूचना की ज़रूरत है. हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां बहुत सा न्यूज़ फेक है. कुछ सांसदों ने आतंकी घटनाओं को लेकर चिन्ता जताई. कहा कि पाकिस्तान से आ रहे आतंकी चिन्ता का कारण हैं. एक सांसद ने कहा कि बहुत कुछ गलत धारणा फैलाई जा रही है, वो जाकर अपनी संसद को सही बात बताएंगे.

बहस हो रही है कि विपक्ष क्यों इस दौरे का विरोध कर रहा है? कल तक विरोध हो रही थी कि विपक्ष क्यों कश्मीर की बात कर रहा है जिससे विदेशों में चर्चा हो रही है. इस बात पर सवाल उठाने से बचा रहा है कि कश्मीर जैसे संवेदनशील मामले में लॉबिंग फर्म की मदद क्यों ली गई? किसी अनाम संस्था ने कैसे 27 सांसदों के तीन दिन के दौरे का खर्चा दिया है. यूरोपियन संघ के सांसदों ने श्रीनगर में किन लोगों से मुलाकात की, भारी सुरक्षा के बीच क्या वे आम लोगों से भी मिल सकें.

ये खबर नॉन रेज़िडेंट इंडियन के लिए है. वे दुनिया के जिस भी देश में रहते हैं खासकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलया और ब्रिटेन में, क्या उन्होंने पूरे थाने पर मुकदमा दर्ज होते सुना है. बहुत ज़रूरी है कि हम इस बात को प्राथमिकता दें कि ज़मीन पर पुलिस और कचहरी का सिस्टम कैसे काम करता है? सारी बड़ी बातें धरी रह जाती हैं जब थानों और कचहरी का चक्कर पड़ता है. लाखों की संख्या में आम आदमी फर्जी मुकदमों से परेशान हैं. असली मुकदमों में जांच नहीं होती है और थाना कचहरी करते करते जीवन बीत जाता है. यह भारतीय व्यवस्था का सबसे डरावना चेहरा है. सोचिए अगर अमेठी के एक थाने में एक मामले में 13 लाख घूस की मांग हो रही थी तो पूरे थानों का हिसाब कितना होता होगा. कमाल खान की रिपोर्ट बता रही है कि एक व्यापारी की हिरासत में मौत हो गई. इस कारण पूरे थाने पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ है.

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