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This Article is From Oct 17, 2018

क्या एमजे अकबर इस्तीफ़ा ना देने पर अड़ गए हैं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 17, 2018 00:13 am IST
    • Published On अक्टूबर 17, 2018 00:13 am IST
    • Last Updated On अक्टूबर 17, 2018 00:13 am IST
विदेश राज्य मंत्री मुबशिर जावेद अकबर ने पत्रकार प्रिया रमानी पर मानहानि का मुकदमा किया है. वकालतनामे में 97 वकीलों का नाम देखने के बाद भी दो महिलाएं और सामने आईं हैं. स्वाति गौतम ने क्विंट में और तुसीता पटेल ने स्क्रॉल डॉट इन में अकबर के साथ अपने अनुभव को लिखा है. उम्मीद थी कि कानूनी कार्रवाई के बाद अकबर को लेकर महिलाओं के लेख आने बंद हो जाएंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ. लग रहा था अब जिन्हें लिखना था उन्होंने लिख लिया है. बाकी नहीं लिखेंगी. एक दिन में दो महिलाओं के लेख आने के बाद कहा नहीं जा सकता है कि कल कोई लेख नहीं आएगा. कल कोई प्रसंग नहीं आएगा. आइये हम उन साहसी महिलाओं के नाम एक बार फिर से दिखा दें, जिन्होंने विदेश राज्य मंत्री मुबशिर जावेद अकबर पर आरोप लगाए हैं. यौन शोषण के आरोप, उनके सम्मान को ठेस पहुंचाने के आरोप, ज़बरन छाती पकड़ लेने, महिला को बुलाना और अंडरवियर में दरवाज़ा खोलना, ब्रा स्ट्रैप खींच देना, किसी के मुंह में जीभ डाल देने के आरोप हैं. क्या इन सोलह महिलाओं के लिए आसान रहा होगा, अपने साथ हुए इन क्रूर अनुभवों को शब्दश लिखना?

प्रिया रमानी, प्रेरणा ब्रिंदा, कांदबिरी मुरली, ग़ज़ाला वहाब, शुतपा पॉल, शुमा राहा, अंजू भारती, सुपर्णा शर्मा, मालिनी भूपता, कनिका गहलोत, माइली डी पाई कैंप, रूथ डेविड, सबा नक़वी, हरिंदर बावेजा, तुशिता पटेल, स्वाति गौतम और एक अनाम महिला पत्रकार. क्या अकबर इन सभी 15 महिलाओं के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करेंगे या सिर्फ प्रिया रमानी ही अदालत का सामना करेंगी. प्रिया ने ही सबसे पहले अकबर का नाम लिया था. आपके स्क्रीन पर ये जो नाम हैं सोलह महिलाओं के, आप उनकी दास्तां पढ़िए. आपसे पढ़ा नहीं जाएगा. इसे दुनिया के सामने लाने के लिए लिखते हुए उन्हें फिर से यातना से गुज़रना पड़ा होगा. इनके साथ अकबर की तरह सरकार नहीं है. वकीलों की फौज नहीं है. ये तब भी निहत्था थीं. कमज़ोर थीं. आज भी निहत्था हैं. फर्क यही आया है कि आज ये कमज़ोर नहीं हैं. 

प्रिया रमानी के खिलाफ जब मुकदमा दायर हुआ तब कई पत्रकारों और लोगों ने प्रिया का हौसला बढ़ाया. लेकिन क्या यह बेहद खूबसूरत बात नहीं है कि प्रिया के पति ने उनका हौसला बढ़ाया है. समर हरनालकर खुद भी काबिल पत्रकार रहे हैं. आज सुबह उनका लेख आया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि, 'मेरी पत्नी प्रिया रमानी उन 14 महिला पत्रकारों में शामिल हैं जिन्होंने यौन शोषण, प्रताड़ना से जुड़े कई मामले में केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर का नाम लिया है. मैं जब से प्रिया को जानता हूं अकबर के साथ हुई इस घटना के बारे में जानता हूं. करीब 20 साल हो गए होंगे. अकबर ने प्रिया के एक शब्द का मतलब अपने हिसाब से निकाला है कि उसने कुछ नहीं किया. इसके बाद भी कई महिलाओं के साथ जो घटा है वो कहीं ज़्यादा गंभीर है. इस शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ कभी किसी ने नहीं बोला, क्योंकि सत्ता का ग़लत इस्तेमाल नॉर्मल बात है. मीडिया कंपनी में सुनवाई की कोई व्यवस्था नहीं थी. किसी ने ऐसी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया. शक्तिशाली मर्द के खिलाफ जाने का मतलब है कि सिर्फ औरत को ही नतीजे भुगतने होंगे. प्रिया में सही और गलत को लेकर काफी मज़बूत समझ है. उसमें हिम्मत की कभी कमी नहीं रही. यह भी एक कारण था कि मैंने प्रिया से शादी की. 

कई प्रकार के यौन शोषण के आरोपों के जवाब में आपराधिक मानहानि का नोटिस को इस तरह भी देखा जा सकता है कि दिल्ली की राजनीतिक सत्ता एक संदेश देना चाहती है, ताकि औरतों को उनकी औकात बताई जा सके और इसके लिए एक औरत को निशाना बनाने से अच्छा तरीका और क्या हो सकता है. यह अकबर बनाम रमानी की लड़ाई नहीं है. यह भारत की सरकार बनाम रमानी की लड़ाई है. अकबर के पास ताकतवर वकीलों की फौज है. प्रिया रमानी अकेली है. समर का मतलब जंग होता है. युद्ध. प्रिया के समर में उनका समर भी है. इससे सुंदर क्या हो सकता है. अकबर के साथ सरकार है तो प्रिया के साथ समर. इससे सुंदर कोई संवाद भी नहीं हो सकता. वैसे प्रिया के साथ बहुत लोग हैं. तमाम महिला पत्रकारों ने प्रिया को लिखकर हौसला बढ़ाया है. The Network of Women in Media, Foundation for Media Professionals और  Brihan Mumbai Union of Journalists ने साझा बयान जारी किया है. भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. 400 से अधिक पत्रकारों ने समर्थन दिया है. 

न्यूज़ लौंड्री के सीईओ अभिनंद सेखरी, ESPN India के एक्ज़िक्यूटिव एडिटर जयादित्य गुप्ता, ब्लूमबर्ग लॉ की इंडिया कारेस्पोंडेंट मधुर सिंह, इंडियन एक्सप्रेस की अमृता दत्ता, दि एशियन एज के एसोसिएट मैनेजिंग एडिटर मेघा मूर्ति, The Ken के Roshni P Nair, Times of India की Sarika Ravindran हैं. चंडीगढ़ से यूएनआई के महेश राजपूत, इसके अलावा बहुत सारी फ्रीं लांस पत्रकार भी हैं. रेवती लॉल, नेहा दीक्षित मनोज मिट्टा भी हैं. मुंबई से अलेक्स डिसूज़ा,अपर्णा कार्तिकेयन, बेंगलुरु से अम्मू जोसेफ, वसंती हरिप्रकाश, मणिपुर से चित्रा अहानथेंम, चेन्नई से लक्ष्मी वेंकटेश्वरन, हैदराबाद से मालिनी सुब्रमण्यिम, केरल से नव्या पी के, अहमदाबाद से निम्मी चौहान, कोलकाता से राजश्री दासगुप्ता, देहरादून से रंजोना बनर्जी. कोची से रेणु रामनाथन हैं. पटना से सुमिता जायसवाल. कई वरिष्ठ पत्रकारों के इसमें नाम हैं. राधिका रामशेषण, शारदा उग्रा, स्मिता नायर, स्मिता गुप्ता और प्रियंका दुबे.

कई महिला प्रेस संगठन प्रिया रमानी और सोलह पत्रकारों के समर्थन में आगे आए हैं. इंडियन विमेन प्रेस कोर, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन और फेडरेशन ऑफ प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी तीन अलग-अलग पत्र लिखे हैं. एक तरह से कई हज़ार पत्रकारों ने अकबर के खिलाफ महिला पत्रकारों को अपना समर्थन दिया है और सरकार से कार्रवाई की मांग की है. आज इन संगठनों की तरफ गृहमंत्री राजनाथ सिंह, महिला विकास मंत्री मेनका गांधी और राष्टीय महिला आयोग के चेयरमैन को लिखा है. राजनाथ सिंह को लिखा है कि हमें दुख है कि इतने आरोपों के बाद भी सरकार ने अकबर को लेकर जांच कमेटी नहीं बनाई है. बल्कि आरोप लगाने वाली पत्रकारों की मंशा पर ही शक किया जा रहा है. 

इनके पत्र से यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि एक भीड़ है जो बिना कारण और सबूत के हटाये जाने की मांग कर रही है. बल्कि बहुत सी सुविचारित तरीके से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से कहा गया है कि सोलह महिला पत्रकारों ने अकबर को लेकर आपबीती बताई है. अकबर ने सिर्फ एक प्रिया रमानी को कानूनी नोटिस भेजा है और ऐसा करते हुए वे मंत्री भी बने हुए हैं. आप यह बात मानेंगे कि यह लड़ाई गैरबराबरी और एकतरफा है. पद पर रहते हुए मंत्री के सामने प्रिया रमानी हैं. हम कैसे इंसाफ की उम्मीद करें. इसलिए अकबर को हटाकर निष्पक्ष जांच की व्यवस्था करें. सरकार भी महिला पत्रकारों को पूरा समर्थन दे. आज एक और हिन्दी अखबार प्रजातंत्र ने अकबर पर लगे आरोपों को विस्तार से छापा है. यह अखबार भोपाल से निकलता है. हिन्दी के कई अखबारों ने अकबर पर लेग आरोपों का डिटेल करोड़ों पाठकों तक नहीं पहुंचने दिया है. इसके अलावा आज हिन्दुस्तान टाइम्स और बिजनेस स्टैंडर्ड और हिन्दू ने संपादकीय लिखा है जिसमें अकबर को हटा देने की बात है. 
हिन्दुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि कई निजी कंपनियों ने अपनी तरफ से एक्शन लिया है. कइयों ने अपनी कमेटी में जांच बिठाई है और कइयों ने कमेटी की जांच के नतीजे का इंतज़ार किए बग़ैर लोगों को पद से हटा दिया है. सरकार भी एक संगठन ही है. उसे भी यही पैमाना अपनाना चाहिए था. लेकिन अकबर के मामले में चुप हो गई. अकबर ने खुद जवाब दिया और कानूनी नोटिस भेजा. हर किसी को ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन तब भी सरकार अपने मंत्री से पद छोड़ने के लिए कह सकती थी. बिजनेस स्टैंडर्ड ने भी लिखा है कि नैतिकता का तकाज़ा है कि अकबर को हटा दिया जाए. 15 अक्तूबर को हिन्दू ने भी अपने संपादकीय में अकबर को हटाने की बात कही थी. इंडियन एक्सप्रेस ने तो पहले ही संपादकीय स्टैंड लिया है कि अकबर को जाना चाहिए. 

प्रिया रमानी के लिए तीन वीकल आगे आईं हैं. वृंदा ग्रोवर, इंदिरा जयसिंह और रेबेका जॉन. हमने इंदिरा जयसिंह से फोन पर संक्षिप्त बातचीत की. आज स्वाति गौतम और तुषिता पटेल नाम की दो महिलाएं आगे आईं हैं और अकबर के साथ आपबीती ज़ाहिर की है. इसके बाद भी अकबर मंत्रिमंडल में बने रहते हैं तो उन्हें प्रमोशन देकर बनाए रखना चाहिए. तुषिता पटेल ने स्कोल डॉट इन में लिखा है. इस लेख का शीर्षक है, अकबर झूठ बोलना बंद करो. आपने मुझे भी प्रताड़ित किया है. आपकी धमकियों से हम चुप नहीं रहने वाले हैं. घटना 1992 में जब तुषिता दि टेलिग्राफ में ट्रेनी थीं तब की है. तुषिता लिखती हैं कि आपने किसी से मेरे घर का नंबर पता लगा लिया. मुझे लगातार फोन करने लगे. अपने होटल में आकर काम के बहाने मिलने के लिए फोन करते थे. कई बार मना करने के बाद आख़िर मैं आपके होटल चली आई. आपने दरवाज़ा खोला. आप सिर्फ अंडरवियर में थे. मैं दरवाज़े पर ही सहमी खड़ी रह गई. डरी हुई और अजीबोग़रीब स्थिति में. मैं डरते-डरते अंदर गई, आपने बाद में बाथरोब भी पहना. आप क्या कहेंगे, वो क्या था? क्या 22 साल की एक लड़की के साथ किसी का इस तरह से मिलना नैतिक है?

तुषिता पटेल ने 1993 की एक और घटना लिखी है जो उनके साथ हैदराबाद में घटी है. काम के बहाने अकबर ने तुषिता को ज़ोर से डांटा और अचानक उठकर उसे दबोच लिया और चूम लिया. क्या ये लिखना आसान है. क्या तुषिता पटेल चुनाव लड़ना चाहती हैं? अकबर ने अपने जवाब में कहा है कि चुनाव के पहले ये सब राजनीतिक एजेंडे के तहत हो रहा है. दरअसल एक वक्त में हो रहा है जो अब आया है. लोकपाल के समय सुषमा स्वराज ने संसद में कहा था कि यह एक आइडिया था जिसका अब समय आया है. उसी तरह मीटू वो सिसकियां हैं, जिसके बाहर आने का समय अब आया है.

राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में अकबर का मुद्दा उठाया है. अकबर का नाम नहीं लिया मगर ये ज़रूर किया कि मोदी के मंत्री पर शिकायत आती है, प्रधानमंत्री चुप हो जाते हैं. उधर विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने ट्वीट किया है. इससे पता चलता है कि वे रिलैक्स हैं. अपना काम कर रहे हैं. 16 महिलाएं अकबर के बारे में सोच रही हैं, अकबर भारत के ग़रीबों के बारे में सोच रहे हैं. ग़रीब ही वो हैं जिनके बारे में सोचते हुए भारत में कोई भी मसीहा बन जाता है. ग़रीब कभी मसीहा नहीं बनता है, वो ग़रीब ही रह जाता है. मंत्री अकबर को जो ठीक लगा उसे ट्वीट कर दिया. मगर दो तीन दिन पहले जब वे विदेश में थे तब ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी हुआ था. इस इंडैक्स के अनुसार 2018 की रिपोर्ट में 119 देशों में भारत का स्थान 103 है. 2014 में इसी रिपोर्ट में भारत का स्थान 99 वां था. हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में 2014 में भारत का स्थान 55वां बताया गया था, लेकिन अल्ट न्यूज ने इसका विश्लेषण करते हुए सही स्थिति स्पष्ट की है. फिर भी भारत चार पायदान नीचे तो आ ही गया, जबकि सरकार के दावों के हिसाब से हमें ऊपर की ओर चढ़ना चाहिए था..

खैर सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. ब्रूकलिन की स्टडी को अकबर ने ट्वीट किया है. अकबर ब्रूकलिन की स्टडी पढ़ रहे हैं कि हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं. अकबर अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट नहीं पढ़ रहे हैं कि भारत में बेरोज़गारी 20 साल में सबसे अधिक है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार 21 प्रतिशत भारतीय बच्चे अंडरवेट हैं. उन्हें खाना पीना नहीं मिल रहा है, जिसके कारण वज़न कम हो गया है. नतीजा उनकी लंबाई नहीं बढ़ पा रही है. इस बीच अकबर का इलाहाबाद बदल गया है. हम इस अकबर की बात नहीं कर रहे हैं जो मंत्री हैं, उस अकबर की बात कर रहे हैं जो शायर थे जिनका जन्म इलाहाबाद में हुआ था. अब इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया है. उन्हीं का एक शेर है.  कुछ इलाहाबाद में सामां नहीं बहबूद के,यां धरा क्या है, ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के.

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