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This Article is From Apr 02, 2019

कांग्रेस के घोषणा पत्र में न्याय योजना सबसे ख़ास

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 02, 2019 23:37 pm IST
    • Published On अप्रैल 02, 2019 23:37 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 02, 2019 23:37 pm IST

2019 के चुनावों के लिए कांग्रेस का घोषणा पत्र आ गया है. इधर-उधर के बयानों से बेहतर है कि अब घोषणा पत्रों में लिखी गई बातों को पकड़ा जाए. उन्हें याद रखा जाए. उसी तरह से जैसे 2014 के चुनावों में बीजेपी के घोषणा पत्र की कई बातों को पूरे पांच साल याद रखा गया. कांग्रेस के घोषणा पत्र के कवर पर लिखा है हम निभाएंगे. पहले पन्ने पर राहुल गांधी का बयान लिखा है कि मेरा किया हुआ वादा मैंने कभी नहीं तोड़ा. प्रस्तावना में राहुल गांधी ने लिखा है कि पांच साल में जो सबसे ख़तरनाक चीज़ें हुईं हैं वह यह कि आम जनता के बीच प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के शब्दों ने अपना विश्वास खो दिया है. उन्होंने हमें केवल खोखले वादे, असफल कार्यक्रम, झूठे आंकड़े, भय और नफरत का वातारण दिया है. राहुल ने शुरुआत सवालों से की है कि 2019 का भारत कैसा होगा? वे लिखते हैं कि क्या भारत एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश होगा? क्या भारत के लोग भय से मुक्त होंगे? अपनी इच्छा अनुसार जीवन जीने, काम करने, खाने-पीने, स्वेच्छा से जीवनसाथी चुनने के लिए स्वतंत्र रहेंगे? क्या गरीबी से मुक्ति पाने के लिए अपनी आकांक्षाओं और महत्वकांक्षाओं, को परिपूर्ण करने के प्रयास के लिए स्वतंत्र होंगे? या क्या भारत उस विभाजनकारी, विध्वंसकारी विचारधारा से संचालित होगा जो लोगों के अधिकारों को, संस्थाओं को, विविधतापूर्ण सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्ववादी स्वस्थ मतभिन्नता के विचार को, जो कि भारत जैसे बहु-सांस्कृतिक समाज और देश की आत्मा है, रौंदकर छिन्न-भिन्न कर देगा?

दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में घोषणा पत्र को लांच किया गया. इसमें कांग्रेस ने अपने पुराने काम जैसे आईआईटी से लेकर एम्स बनाने को गिनाया है. हरितक्रांति, श्वेतक्रांति का ज़िक्र है. 2004 से 2014 के बीच 14 करोड़ लोगों को ग़रीबी के कुचक्र से निकाला गया. 1965 के युद्ध में विजय प्राप्त की, 1971 के युद्ध में विजय प्राप्त की. पाकिस्तान को पराजित कर बांग्लादेश को मुक्त करवाया. इन बातों का ज़िक्र बता रहा है कि कांग्रेस सत्तर साल में क्या हुआ, मोदी के आरोपों का जवाब देने का प्रयास कर रही है. सत्तर साल में क्या हुआ का जवाब देने की कोशिश की गई है. कई जगहों पर दोहराया गया है कि हमने पहले भी किया है, हम इसे फिर से करेंगे.

राहुल गांधी का 5 करोड़ ग़रीब परिवारों को हर महीने 6000 देने का वादा कर रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी का 10 करोड़ किसानों को एक साल में 6000 देने की योजना लागू कर चुके हैं, दोनों से यह तो ज़ाहिर होता है कि निचले पायदान तक विकास ने जीवन को नहीं बदला है. किसानों की हालत खराब नहीं होती तो मोदी सरकार को 75,000 करोड़ सीधे किसानों को देने की योजना क्यों बनानी पड़ती.

अरुण जेटली ने अभिजीत बनर्जी का ज़िक्र किया वे एमआईटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं. उनका कहना है कि टैक्स बढ़ाना होगा, वेल्थ टैक्स बढ़ाने होंगे और जीसएटी भी. आप जानते हैं कि भारत में जितनी संपत्ति है उसका 73 प्रतिशत सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास है. निचले पायदान के पचास फीसदी आबादी के पास जितनी संपत्ति है, जिसके बराबर भारत के सिर्फ 9 लोगों के पास संपत्ति है. क्या अमीरों पर टैक्स बढ़ाना चाहिए, यह एक सवाल है जिस पर बहस अमीर लोगों के बीच तो होगी नहीं, ग़रीब लोगों के बीच करने से क्या फायदा. हमारे सहयोगी ऑनिंदो चक्रवर्ती ने सिम्पल समाचार में बताया है कि यह योजना संभव है. कुछ हिस्सा अभी दिखा रहे हैं.

5 करोड़ गरीब परिवारों को हर महीने 6000 रुपये देने की बात पर कई राय है. अब आते हैं रोज़गार पर. रोज़गार के बारे में राहुल गांधी ने लिखा है उसे ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए. पेज नंबर 12 पर लिखा है कि 1 अप्रैल 2019 के अनुसार केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, न्यायपालिका और संसद के सभी 4 लाख रिक्त पदों को 30 मार्च 2020 तक भरा जाएगा. बाकी राज्यों को धन देते समय कहा जाएगा कि वे 20 लाख रिक्त पदों को भरें.

एक साल में केंद सरकार 4 लाख वैकेंसी भरेगी. उसके अगले साल क्या होगा. बाकी के 18 लाख पदों की जवाबदेही राज्य सरकारों पर है. राज्य सरकारों की भर्ती प्रणाली इतनी बोगस है कि एक साल में 20 लाख पदों को भरना उनके बस की बात नहीं. फिर केंद्र से धन मिलने की शर्त में यह बात होगी तो राज्य सरकारें क्या स्वीकार करेंगी. आज एक यूपी से बेरोज़गार ने मैसेज किया. यूपी अधीनस्थ लोक सेवा आयोग ने कई परीक्षाएं करा लीं हैं मगर नतीजे नहीं आ रहे हैं. लैब ऑपरेटर और ट्यूबवेल ऑपरेटर के रिजल्ट नहीं आ रहे हैं. सरकारी नौकरियां दूसरी समस्या भी झेल रही हैं. केस और कैंसिल की समस्या. महंगे फॉर्म की समस्या. कांग्रेस को यह भी कहना चाहिए था कि इन परीक्षाओं को लेकर उसकी क्या सोच है. फिर भी इन डिटेल को याद रखिए. भाषण और डिटेल में फर्क होता है. बेरोज़गारी के आंकड़े से आज भी वित्त मंत्री ने सवाल उठाए. इससे अच्छा होता कि जेटली जी संख्या बता देते कि पांच साल में कितनी नौकरी दी गई. कम से कम सरकारी नौकरियों की ही संख्या बता देते.

जेटली जी की इस कहानी से तो भारत में कोई बेरोज़गार ही नहीं है. एक बात को समझिए. ज़रूरी नहीं कि जीडीपी बढ़ जाए तो रोज़गार बढ़े ही. कई बार जॉबलेस ग्रोथ की स्थिति भी होती है. जीडीपी बढ़ती है मगर रोजगार नहीं बढ़ता है. रोज़गार पर किए जाने वाले वादों और सवालों को ध्यान से देखिए. दो करोड़ रोज़गार देने का वादा मोदी ने किया था, उस पर कोई सफाई नहीं मगर तब 2014 में मोदी पूछा करते थे कि कांग्रेस ने एक करोड़ रोज़गार देने का वादा किया है पूछो मिला क्या. अब आते हैं शिक्षा पर कांग्रेस ने क्या कहा है. इस वक्त शिक्षा पर जीडीपी का 3.3 प्रतिशत खर्च होता है. कांग्रेस ने वादा किया है कि वह शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करेगी.

बीजेपी नेता वरुण गांधी ने एक बार कहा था कि सर्व शिक्षा अभियान पर 3 लाख करोड़ से अधिक खर्च हुआ मगर उसका करीब 90 फीसदी भवन निर्माण पर हुआ. अच्छी शिक्षा और शिक्षकों के रोज़गार पर नहीं. सेंट्रल यूनिवर्सिटी बन जाती है मगर वहां शिक्षक नहीं होता. एक चुनाव से दूसरे चुनावों के बीच उनके भवन जर्जर होने लगते हैं. फिर भी यह बड़ा ऐलान है कि शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च हो. आपने प्राइम टाइम की यूनिवर्सिटी सीरीज़ में देखा होगा कि कस्बों और ज़िलों के कॉलेज जर्जर हो चुके हैं. इसकी कीमत आप दो तरह से चुकाते हैं. घटिया शिक्षा मिलने के कारण जीवन भर के लिए पीछे रह जाते हैं. फिर शहर जाते हैं पढ़ने के लिए तो वहां के भी घटिया कॉलेज में एडमिशन लेते हैं. इस पर आपका लाखों रुपया मिट्टी हो जाता है. कस्बों का नौजवान जीवन भर के लिए निम्न मध्यम वर्ग की श्रेणी में ही हाथ पांव मारता रहता है. फिर दिल्ली में बैठे नीति नियंता लेक्चर देते हैं कि भारत के नौजवानों की क्वालिटी नौकरी की ज़रूरत के लायक नहीं है. कांग्रेस ने भी अपने दस सालों में उच्च शिक्षा को नज़रअंदाज़ किया जिसकी पतन को बीजेपी की पांच साल की सरकार ने और तेज़ कर दिया. बेहतर है कि कांग्रेस को यह बात समझ आई है. इस संकट में आप क्षेत्रीय दलों को भी शामिल करें.

आज ही बिहार यूनिवर्सिटी का एक छात्र मिलने आया था. कह रहा था कि 3 साल के बीए के 5 साल हो गए मगर अभी तक 3 साल की डिग्री पूरी नहीं हुई है. इसका कारण भी पिछले दस बीस साल की नीतियां रही हैं. अब आते हैं खेती पर, हम सिर्फ कर्ज़माफी करके ही अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ेंगे, बल्कि उचित मूल्य, कृषि में कम लागत, बैंकों से ऋण सुविधा के द्वारा हम किसानों को कर्ज़ मुक्ति की तरफ ले जाने का वादा करते हैं. ऋण चुकाने में असमर्थ किसानों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही करने की अनुमति नहीं देंगे. अलग से किसान बजट पेश करेंगे. भाजपा सरकार की असफल फसल बीमा को पूरी तरह बदल देंगे, जिसने किसानों की कीमत पर बीमा कंपनियों की जेब भरी है. बीमा कंपनियों को निर्देशित करेंगे कि वे न लाभ न हानि के सिद्धांत को अपनाते हुए फसल बीमा दें और उसी आधार पर किस्त लें. कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी, जिससे कि कृषि उपज के निर्यात और अंतर्राज्यीय व्यापार पर लगे सभी प्रतिबंध समाप्त हो जाएं. किसान बाज़ार की स्थापना होगी जहां किसान बिना प्रतिबंधन के अपने उत्पाद बेच सकेंगे. प्रत्येक ब्लॉक में गोदाम और कोल्ड स्टोरेज बनेगा. इसके अलावा मनरेगा में 100 दिन की जगह 150 दिन का रोज़गार मिलेगा.

कांग्रेस ने वादा किया है कि सभी वस्तुओं और सेवाओं पर एक समान जीएसटी होगी. न्यापालिका में सुधार को लेकर कांग्रेस ने कई वादे किए हैं. न्यायपालिका में अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी, अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व काफी कम है. इसे ठीक करने का वादा किया गया है. इसके अलावा कहा गया है कि संविधान की व्याख्या करने तथा राष्ट्रीय तथा कानूनी महत्व के अन्य मामलों की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक न्यायालाय बनाने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए. उच्च न्यायालयों और आदेशों की अपील सुनने के लिए, 6 अलग-अलग स्थानों में उच्च न्यायलयों और उच्चतम न्यायालय के बीच कोर्ट ऑफ अपील की स्थापना के लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा. कोर्ट ऑफ अपील में 3 न्यायधीशों की बेंच अपील का निपटारा करेगी. कांग्रेस कानून बनाकर एक स्वतंत्र न्यायिक शिकायत आयोग की स्थापना करेगी जो न्यायधीशों के खिलाफ कदाचार की शिकायतें देकर उपयुक्त कार्यवाही के लिए संसद को परामर्श देंगे.

सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक न्यायलय बनाने की बहस पुरानी है. नई बात नहीं है मगर अब नया यह है कि कांग्रेस ने ऐसा करने का वादा किया है. दुनिया के कई मुल्कों में जो सुप्रीम कोर्ट होता है वह संवैधानिक न्यायलय होता है यानी वहां उन्हीं मामलों की सुनवाई होती है, जिनमें संवैधानिक व्याख्या की ज़रूरत होती है. सुप्रीम कोर्ट का मेन काम ही है संविधान की विवेचना करना. दूसरा कोर्ट ऑफ अपील का प्रस्ताव बेहतर है. छह जगहों पर कोर्ट ऑफ अपील बनेगी तो ज़रूरी नहीं कि लखनऊ हाईकोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली ही आना हो, हो सकता उस ज़ोन के कोर्ट ऑफ अपील में ही सुनवाई हो जाए. अभी हर अपील के लिए दिल्ली आना पड़ता है. इससे बहुत से लोग सुप्रीम कोर्ट तक नहीं आ पाते हैं. इस पर बहस होनी चाहिए कि क्या कोर्ट ऑफ अपील वक्त की ज़रूरत है या नहीं. तीसरी बात कि इस वक्त जजों पर आरोप लगते हैं तो महाभियोग से नीचे कुछ नहीं है. वो एक जटिल प्रक्रिया है. क्या इससे नीचे की कार्यवाही का प्रावधान नहीं होना चाहिए. क्या कांग्रेस इसका वादा कर रही है. यह सब तब होगा जब चुनाव मेनिफेस्टो पर होगा. वो तो हिन्दू-मुस्लिम पर हो रहा है.

प्रधानमंत्री ने भले प्रेस कांफ्रेस नहीं की है, मगर उन्होंने एंकरों को कई इंटरव्यू दिया है. उनमें सवालों के स्तर को लेकर समीक्षकों के बीच सवाल उठते रहते हैं. अब अगर उनका प्रेस कांफ्रेंस हो भी जाएगा तो इसकी क्या गारंटी की खूब सवाल पूछे जाएंगे. चुनाव के समय ऐसे ख्यालों की फकीरी ठीक नहीं लगती है. कांग्रेस के घोषणा पत्र में प्रेस पर भी काफी कुछ कहा गया है. देशद्रोह के कानून को समाप्त कर दिया जाएगा. भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए को कांग्रेस समाप्त करने जा रही है. कांग्रेस का मानना है कि इसका दुरुपयोग हुआ है. यही नहीं, मीडिया के लिए भी काफी कुछ है. सार्वजनिक हित के मामलों को उजागर करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा की बात है. मीडिया में स्वामित्व का मामला काफी जटिल है. एक कंपनी जो माइनिंग में है वो चैनल लांच करती है और फिर चैनल के दम पर माइनिंग में विस्तार कर लेती है. इसके कारण मीडिया सरकार के अधीन होने लगता है. क्या कांग्रेस वाकई मीडिया में क्रॉस स्वामित्व को लेकर गंभीर है? वादा किया है कि कांग्रेस मीडिया में एकाधिकार रोकने के लिए कानून पारित करेगी, ताकि विभिन्न क्षेत्रों के क्रॉस स्वामित्व तथा अन्य व्यावसायिक संगठनों द्वारा मीडिया पर नियंत्र न किया जा सके. कांग्रेस भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग को संदिग्ध एकाधिकार के मामलों की जांच के लिए कहेगी.

कांग्रेस कैसे करेगी यह काम, इस वक्त बहुत से ऐसे चैनल हैं जिनका मूल बिजनेस कुछ और है. बहुत से चैनल हैं जिन्होंने बाद में दूसरा बिजनेस खोल लिया है. क्या कांग्रेस अपने इस वादे को पूरा करने के लिए कॉरपोरेट से लोहा लेगी. मीडिया संस्थानों से टकरा पाएगी? इसलिए कहा कि मेनिफेस्टो को पढ़ना भले बोरिंग हो टीवी के लिए मगर पढ़ना चाहिए. कांग्रेस ने वादा किया है कि वह सिनेमेटोग्राफ 1927 में बदलाव करेगी. सेंसरशिप को अश्लीलता और राष्ट्रीय सुरक्षा तक सीमित करेगी. फिल्मों को प्रमाणित करने के लिए पारदर्शी तरीका अपनाया जाएगा. सारा मेनिफेस्टो तो नहीं पढ़ा जा सकता है. धीरे-धीरे इसकी चर्चा होगी या अगर चुनाव हिन्दू मुस्लिम पर ही हो गया तो फिर इसे चुनाव के बाद पढ़ा जाएगा. 

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