प्राइम टाइम इंट्रो : रोहित वेमुला के मामले पर राजनीति क्यों?

प्राइम टाइम इंट्रो : रोहित वेमुला के मामले पर राजनीति क्यों?

नई दिल्ली:

क्या स्मृति ईरानी ने रोहित वेमुला के मामले में झूठ बोला और महिषासुर की पूजा और दुर्गा के संबंध में की गई टिप्पणी को पेश कर ग़लती की। लोकसभा से अपने तूफानी भाषण को लेकर जब वे राज्यसभा पहुंची तो वहां पहले से तैयार विपक्षी सांसदों ने सवालों और एतराज़ों से उनके लिए भावुक होने के मौके कम कर दिये। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके भाषण को सत्यमेव बता कर ट्वीट कर दिया तो कोलकाता के टेलिग्राफ अखबार का पहला पन्ना पूछने लगा कि किसका सत्यम सत्य है प्रधानमंत्री? स्मृति ईरानी ने लोकसभा में कहा कि खुदकुशी के अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे तक किसी डॉक्टर को रोहित के शव तक नहीं पहुंचने दिया गया। उसे बचाया जा सकता था। लेकिन हैदराबाद यूनिवर्सिटी की चीफ मेडिकल अफसर ने उनकी बातों को चुनौती दे दी और कहा कि वे मौके पर गई थीं और रोहित को मृत पाया था।

गुरुवार को प्राइम टाइम में बीजेपी प्रवक्ता डॉक्टर संबित पात्रा ने चुनौती देते हुए कहा कि वे खुद एक डॉक्टर हैं इसलिए कह सकते हैं कि घटनास्थल पर मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता, हाथ से लिखकर और बिना स्टैंप के नहीं दिया जाता, मृत्यु प्रमाण पत्र अस्पताल में दिया जाता है और वो भी ईसीजी करने के बाद। डॉक्टर राजश्री ने गुरुवार को कहा था कि रिगर मॉर्टिस के कारण बचाने की गुंज़ाइश खत्म हो चुकी थी। मैंने पहली बार ये शब्द सुना था लिहाज़ा डॉक्टर पात्रा की बात को जाने दिया लेकिन बाद में डॉक्टरों ने फोन कर उनकी गलत बयानी पर मेरी खिंचाई की और कहा कि आपने पब्लिक के बीच मेडिकल साइंस के खिलाफ तथ्य जाने दिये।

डॉक्टर वली ने कहा कि जब शरीर में अकड़न आ जाती है तब उसे बचाया नहीं जा सकता है। यह भी कहा कि मृत्यु प्रमाण पत्र मौके पर और हाथ से लिखकर भी दिया जा सकता है। डॉक्टर के.के. अग्रवाल ने परिमल से कहा कि अगर दिमाग, पुतली, कॉर्निया में कोई हरकत नहीं होती तो मौके पर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं। पल्स नहीं होगा, बीपी नहीं होगी और शरीर अगर अकड़ गया है तो उसे रिगर मॉर्टिस होना कहते हैं। मतलब काफी देर पहले मृत्यु हो चुकी है। ऐसे में टेस्ट करने की ज़रूरत नहीं है। रिगर मॉर्टिस के केस में ईसीजी नहीं की जाती है बल्कि ऐसे केस में पुलिस भी बिना डॉक्टर के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर सकती है।

उमा सुधीर ने हैदराबाद से हमें बताया कि तेलंगाना पुलिस ने 31 जनवरी को वहां की अदालत में जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें यही नहीं लिखा है कि डॉक्टर ने जांच की है। पुलिस ऐसा कैसे लिख सकती है जबकि खुद डॉक्टर बोल रही हैं। कमरे में या शव ले जाने के बाद क्या मेडिकल जांच ही नहीं हुई।

क्या स्मृति ईरानी को ये बात मालूम थी? अगर थी तो क्या उन्हें पुलिस पर सवाल नहीं उठाने चाहिए थे। सवाल यह भी उठता है कि वे पुलिस की कौन सी रिपोर्ट पढ़ रही थीं जिसमें डॉक्टर की जांच की बात ही नहीं लिखी है। हम सत्यापित तो नहीं कर सकते लेकिन रोहित के दोस्तों के दिये वीडियो में साफ दिख रहा है कि कमरे में पुलिस और डॉक्टर दोनों थे। डाम्‍क्टर ने भी कहा कि वे जब रोहित के करीब पहुंची तो पुलिस वहां थीं। जबकि मंत्री जी ने कहा कि पुलिस को सुबह तक शव के पास जाने ही नहीं दिया गया। क्या उन्होंने अपनी तरफ से ये बात जोड़ दी कि रोहित की कोई मेडिकल जांच नहीं हुई। अब जब ये विवाद हुआ है तो तेलंगाना पुलिस क्यों नहीं अपनी तरफ से तथ्यों को सामने रखती है। देश की संसद में हंगामा हो रहा है और वहां की पुलिस चुप है क्या ये एक किस्म की ग़ैर जवाबदेही नहीं है।

यह भी दिलचस्प है कि तेलंगाना पुलिस ने जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें ये लिखा है कि रोहित वड्डेरा समुदाय का था जो कि पिछड़ी जाति है। गुंटूर ज़िले के तहसीलदार ने इसे सत्यापित किया है। स्मृति ईरानी ने अपने भाषण में इसका ज़िक्र नहीं किया है। एक पक्ष यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार रोहित ने अपनी मां की जाति चुनी जो दलित हैं। रोहित का एक अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र भी है। शुक्रवार को भी स्मृति ईरानी के भाषण को लेकर राज्यसभा में काफी तीखे भाषण हुए। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दो तथ्यात्मक जवाब दिये जिसे फिर से चुनौती दी जाने लगी है। उन्होंने बताया कि बच्चे को 3,19,010 रुपये की स्कॉलरशिप दे दी गई थी। उसे अंतिम फेलोशिप 20 नवंबर 2015 को दी गई जिसकी राशि 54000 है, कुछ राशि ज़रूर नहीं मिली वो रोहित के कागज़ी कार्रवाई पूरी नहीं करने के कारण नहीं मिली। इसलिए स्कॉलरशिप रोकने के आरोप ग़लत हैं।

मायावती ने पूछा कि 10 अगस्त 2015 को प्रोक्टोरियल बोर्ड ने जो फैसला लिया क्या उसमें कोई दलित था या महिला थी, स्मृति ईरानी ने इसका जवाब नहीं दिया लेकिन मायावती के इस सवाल का जवाब दिया कि सज़ा सुनाने वाली कार्यकारी परिषद में दलित था, तो उन्होंने कहा कि समिति में विशेष रूप से दलित समुदाय को को-ऑप्ट किया गया। डीन ऑफ स्टुडेंट वेलफेयर को। इसलिए यह आरोप ग़लत है।

डीन ऑफ स्टुडेंट वेलफेयर प्रकाश बाबू ने ऑन रिकार्ड कहा है कि वे कार्यकारी परिषद की उप समिति के प्रमुख नहीं थे। उन्होंने तो सज़ा का विरोध किया था। स्मृति ईरानी ने तो अपने पहले प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि उप समिति के मुखिया दलित थे। लोकसभा में पुलिस की रिपोर्ट पढ़ने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई लेकिन राज्यसभा में स्मृति ईरानी ने कहा कि चाइल्ड अब इस दुनिया में नहीं है इसलिए एफआईआर की कॉपी पढ़ना उचित नहीं रहेगा जिसमें रोहित पर भी आरोप लगाए गए हैं। फिर उन्होंने राज्यसभा में सीपीएम को चुनौती देने के लिए रोहित वेमुला का फेसबुक पोस्ट क्यों पढ़ा जिसमें रोहित ने सीपीएम की आलोचना की है। सीताराम येचुरी ने उप सभापति से व्यवस्था देने को कहा कि क्या ट्वीटर, फेसबुक के पोस्ट भी सदन में पढ़े जाएंगे। स्मृति ईरानी ने अपने मंत्रालय की जांच कमेटी के बारे में बताया कि उसमें अल्पसंख्यक और पिछड़ी जाति के अफसर थे। जबकि मायावती पूछ रही थीं कि न्यायिक जांच कमेटी में कोई दलित है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जिस जज से बहन जी को संतोष नहीं हो रहा है उन्हें खुद मुख्यमंत्री रहते हुए न्यायिक जांच की ज़िम्मेदारी दे चुकी हैं।

अब आते हैं महिषासुर वाले प्रसंग पर। विपक्ष के कई सदस्यों ने एतराज़ किया कि दुर्गा के बारे में आपत्तिजनक बयान पढ़कर मंत्री ने सही नहीं किया है। इस तरह से कोई पैम्फलेट उठाकर सदन में ऐसी बात नहीं होनी चाहिए थी। उप सभापति ने कहा कि वे इसकी जांच करेंगे लेकिन बात इससे आगे निकल गई कि हिंदुस्तान की परंपरा में एक देवी के ईर्द गिर्द अनेक किस्से हैं जो कई बार एक दूसरे के ख़िलाफ़ भी जाते हैं। सीताराम येचुरी ने कहा, 'हिन्दू होने का प्रमाण बीजेपी के नेता नहीं देंगे।' सीताराम ने कहा कि केरल की परंपरा में हम ओणम मनाते हैं क्योंकि उस दिन महाबली पुनर्जीवित हुआ था। महाबली कौन था। हिन्दू पंरपरा में असुरों का राजा था जिसे विष्णु ने मार दिया था। ऐसी परंपराओं से राजनीतिक छेड़छाड़ क्या सही होगी। महिषासुर की पूजा कई जगहों पर होती है। हमारी परंपरा में बहुत से देवी देवताओं के बारे में ऐसा कुछ कहा गया है जिसका राजनीतिक इस्तमाल करना बेहद ख़तरनाक हो सकता है। जबकि समाज उन परंपराओं और अतिविचारों के साथ कितनी सहजता से जीता रहता है।

महिषासुर का प्रसंग कैसे इस बहस में आ गया। स्मृति ईरानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आरोपों के संदर्भ में इसका ज़िक्र कर गईं लेकिन क्या परंपराओं की विविधता क्या किसी सरकार के आशीर्वाद से सदियों से कायम है। क्या हम उन परंपराओं को मनाने या ज़िक्र करने को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मिसाल के लिए इस्तेमाल करेंगे। खैर महिषासुर और दुर्गा प्रसंग से टीवी और सदन के बाहर दलित आदिवासी समाज में प्रतिक्रिया हो रही है उसे देखकर एक सवाल तो उठता है कि बीजेपी ने इतना गंभीर जोखिम क्यों लिया। दलित समाज में काफी गुस्सा है। शुक्रवार को जिस तरह से मायावती गुस्से में बोल रही थीं, उनके लफ्ज़ कांप रहे थे।

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एक मामला रोहित वेमुला को लेकर केंद्रीय मंत्री के दिये गए जवाबों को लेकर है, एक मामला हमारी पंरपराओं के साथ राजनीतिक छेड़छाड़ को लेकर है। महिषासुर का मामला ऐसा है जिसे आप राजनीति में लाकर ललकारेंगे तो इससे राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने तो लगाया जा सकता है मगर इससे समाज के ही दो हिस्से आमने सामने हो जाएंगे और परंपराओ को लेकर राजनीतिक संघर्ष तेज़ हो सकता है। शिबू सोरेने ने एक बार आह्वान किया था कि महिषासुर दिवस बड़े पैमाने पर मनाया जाए। बुंदेलखंड में महिषासुर का मंदिर है। महिषासुर के एक 1500 साल पुराने स्मारक को आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया संरक्षित करता है। ये तीनों तथ्य फॉर्वर्ड प्रेस के ईमेल से मिले हैं। सामाजिक स्तर पर हाशिये के समाज ने हमेशा से अपनी धार्मिक और मिथकिय प्रतीकों को गढ़ा है। कई बार ये प्रतीक मुख्यधारा की पंरपराओं के ख़िलाफ होते हैं। दलित आदिवासी अगर अपनी परंपारओं को लेकर संघर्ष पर उतर आए तो क्या होगा। आखिर बीजेपी कुछ तो सोच कर राजनीतिक बचाव कर रही है। उसका भी तो कोई नज़रिया होगा।