गुड़गांव जब गुरुग्राम हुआ तब किसी ने यह तो नहीं कहा था कि ट्रैफिक जाम नहीं लगेगा। अब जब लोग पांच से छह घंटे जाम में फंसे हैं तब जाकर लोगों को नाम बदलने की व्यर्थता समझ आई है। झुंझलाहट और खीझ में आई इस जागरूकता में भी कुछ बुनियादी समस्याएं हैं। जाम का संबंध न तो पुराने नाम से है न नए नाम से। गुरुवार की रात जब लोग बारह बारह घंटे के जाम में फंसे तो उनका धीरज जवाब दे गया। वैसे अब हम रोज़ डेढ़ से दो घंटे जाम में बिताने को लेकर सहज हो चुके हैं। गुस्सा इसलिए आया कि चार घंटे क्यों लगे, पांच घंटे क्यों लगे।
तस्वीरें वाकई डराने वाली हैं। चार से आठ घंटे तक जाम में फंसे रहने से शरीर का ब्लाडर और गाड़ी का रेडिएटर जवाब देने लगा होगा। वो दिन दूर नहीं जब कारों में आपातकाली बायो टॉयलेट बनने लगेंगे। गुड़गांव के इस जाम ने लोगों को रुला दिया है। मध्यमवर्गीय जीवन के दो प्रमुख सपनों में से एक कार को लोग रास्ते पर ही छोड़ पैदल अपने दूसरे सपने की तरफ चल दिये जिसे हम फ्लैट कहते हैं। कई कारों ने समय से पहले प्राण त्याग दिये यानी इंजन सीज़ हो गया। इनकी मरम्मत पर कितना खर्च आएगा, दफ्तरों से इसके लिए छुट्टी मिलेगी कि नहीं, राम जाने। एंबुलेंस भी फंस गया लेकिन जागरूक नागरिकों की टोली ने अपनी चिन्ता छोड़ किसी तरह एंबुलेंस को भी निकाला। पिछले बीस साल में हमें दो ही तो सपने बेचे गए हैं। कार और मकान का सपना। दोनों की दुर्गति आप देख रहे हैं।
जिस शहर में सैकड़ों आईटी कंपनियां हों और आए दिन इन कंपनियों से भारत की किसी न किसी समस्या के समाधान के ऐप बेचे जा रहे हों, इनमें से एक भी ऐसा ऐप नहीं बना सका है जो ऐसे जाम से हमें मुक्ति दिला सके। बल्कि उल्टा लोग गुरुग्राम के आईटी सिटी कहे जाने को ही गरियाने लगे। उनका सब्र टूटने लगा। वे मिलेनियम सिटी कहे जाने को गरियाने लगे। फिर भारतीय संस्कृति का नैतिक बोझ उतार कर गुरुग्राम कहने को ही गरियाने लगे। लोगों को यह भी ख़्याल नहीं रहा कि गुरुग्राम का मज़ाक उड़ाने पर गुरु द्रोण का मज़ाक उड़ रहा है। फर्ज़ी राष्ट्रवाद से न्यूज़ चैनलों को फुर्सत नहीं थी वर्ना वो इसी बात पर जाम में फंसे लोगों को देशद्रोही से लेकर अपराधी तक करार देते। बच गए गुरुग्राम वाले। ट्विटर पर जब जाम की तस्वीरें वायरल होने लगीं तो कारों की रोशनी दरअसल उस अंधेरे की तरह नज़र आने लगी जिससे पार पाने का रास्ता किसी को नहीं सूझ रहा था। लोगों को लगा कि ट्वीट कर देने से शहरी व्यवस्था में सुधार आ जाएगा। सरकार इमेज बचाने के लिए कुछ करेगी। जैसा लोगों का सतही गुस्सा वैसा ही सरकार का सतही उपाय और आश्वासन। सूचना आई कि दो अधिकारी भेजे जा रहे हैं। हे जनता जनार्दन थोड़ा तो समझिये कि दो अधिकारी जाकर दशकों से गुड़गांव में पैदा की गई समस्या का निदान नहीं कर सकेंगे।
अब हम उस ट्विटर जगत की प्रतिक्रियाओं की बात करते हैं जिसके 5000 साल पहले ही आविष्कार हो जाने को लेकर अभी तक किसी ने दावा नहीं किया है। गुरुग्राम में ट्वीटर का नाम अभी तक ट्वीटर ही है। सोलह घंटे के जाम में फंसे लोगों की मानसिक यातनाओं को समझना बहुत मुश्किल है।
@GauravPandhi Tweet1
गुड़गांव से गुरुग्राम! सिर्फ़ नाम नहीं सरकार हमें गुरु द्रोणाचार्य के युग में ले जाना चाहती है, 5000 साल पहले. बैलगाड़ी ले लो।
@suhelseth Tweet2
@AmitShah: लोगों ने सुशासन के लिए हरियाणा में बीजेपी को वोट दिया. लेकिन एमएल खट्टर ने सत्यानाश कर दिया. गुड़गांव एक झील है, शहर नहीं! उन्हें हटाइए।
@sushantsareen Tweet3
हर शहर जिसका भारतीयता के लिए नाम बदला गया, कोई फ़ायदा नहीं हुआ- बॉम्बे, बैंगलोर, मद्रास, कलकत्ता, गुड़गांव।
@coolfunnytshirt Tweet4
मुझे लगता है, अब समय आ गया है कि गुड़गांव में ओला शुरू करे ओला बोट, ओला क्रूज़, ओला सबमरीन।
@sadhavi Tweet5
अच्छा..ये मिलेनियम सिटी है..ओह..स्मार्ट सिटी. एमएल खट्टर ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि ये अपने नए नाम गुरुग्राम की तरह है।
@raydeep Tweet6
गुरुग्राम को मिलेनियम सिटी कहा जाता है, लेकिन ऐसा लगता है कि ये अगली सदी में सिटी बन पाएगा. गुरुग्राम या गुड़गोबर।
@MPalso Tweet7
ट्रैफिक की समस्या की वजह से स्कूलों ने छुट्टी घोषित की है. मिलेनियम सिटी गुड़गांव में आपका स्वागत है. हरियाणा की करीब 35% आय गुड़गांव से आती है।
गुड़गांव के कई नाम हैं। गुरुग्राम नाम की घोषणा हुई है मगर नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है। सरकार ने नोटिफिकेशन तक जारी नहीं किया मगर मीडिया ने गुरुग्राम लिखना शुरू कर दिया। हिंदुस्तान टाइम्स ने 21 मई 2016 को ज़िलाधिकारी टी एल सत्यप्रकाश का बयान छापा है कि गुड़गांव को गुरुग्राम करने का कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ है। शुक्रवार को ज़िलाधिकारी ने जो आदेश जारी किये हैं उसमें भी गुरुग्राम नहीं लिखा है, बल्कि गुड़गांव लिखा है। जबकि गुरुग्राम करने की घोषणा 12 अप्रैल को हुई थी। जब नाम बदलने में इतना टाइम लग जाता है तो समझिये नाला बनाने और ट्रैफिक लाइट लगाने में साल दो साल तो लगेगा न। गुरुग्राम से पहले लोगों ने गुड़गांव को प्यार दुलार से भारत का सिंगापुर कहा, आईटी सिटी कहा, मिलेनियम सिटी कहा। अब वहां के निवासी इन्हीं नामों का माखौल भी उड़ा रहे हैं। यहां तक गुरु द्रोण के नाम पर रखे गए गुरुग्राम को लेकर मज़ाक उड़ाया गया, मौके की नज़ाकत को देखते हुए ऐसी बातों पर आहत होने वालों की टोली भी इग्नोर करने लगी। अच्छा ही है। वैसे भी लोग आधुनिक शहर की हालत से नाराज़ है। पौराणिक काल में ट्रैफिक जाम थोड़े न होता होगा।
बहरहाल जाम से इतना ख़ौफ फैल गया कि प्रशासन ने स्कूलों को बंद कर दिया। और वो धारा 144 लगा दी जो हर धारा के वक्त लगा दी जाती है। चाहे आप धारा के साथ बहें या धारा के ख़िलाफ बहें, धारा 144 के बिना आप कहीं नहीं बह सकते हैं। बाढ़, सुखाढ़, तूफान, धरना प्रदर्शन सबमें धारा 144 ही काम आती है। प्रशासन की निगाह में प्राकृतिक और जनतांत्रिक दोनों ही आपदा हैं। इसीलिए धारा 144 जनतांत्रिक उभार को रोकने में लगती है वही प्राकृतिक तूफान के वक्त भी लगती है। धारा ब्रांड के सरसो तेल की बात नहीं कर रहा हूं। गुड़गांव के ज़िलाधिकारी टी एल सत्यप्रकाश ने कहा है कि गुड़गांव में अप्रत्याशित बारिश हुई है। बहुत सारा पानी दिल्ली से गुड़गांव में आ रहा है। कार के इंजन फेल हो गए हैं, 12 घंटे से ज्यादा समय से कई जगहों पर जाम लगा है, अगले 15 दिन में भारी बारिश की आशंका को देखते हुए मैं धारा 144 लगाने के आदेश दे रहा हूं। सारे एजेंसियों को आदेश दिया जाता है कि वे सही दरों पर उपकरणों को किराये पर लेकर शहर में लगे जाम से मुक्ति के काम में जुट जाएं। सभी ठेकेदारों को सिविक एजेंसी के साथ सहयोग करना होगा।
प्रशासन सतर्क हो गया है। ज़िलाधिकारी ने आदेश दिया है कि सितंबर के अंत के लिए निगम आयुक्त वो पर्याप्त संख्या में होमगार्ड की तैनाती करें। इनसे ट्रैफिक प्रबंधन का काम करवाया जाए। इन पर जो खर्चा आएगा उसे शीतला माता मंदिर बोर्ड के सीईओ भुगतान करेंगे। गुड़गांव की समस्या को लेकर क्या हम सही तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। अगर वहां करोड़ों के फ्लैट हैं तो गुड़गांव के निगम को टैक्स भी मिलते होंगे।
न्यू गुरुग्राम की 100 के करीब रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की एक शीर्ष संस्था है गुड़गांव सिटीजन काउंसिल। है। इनके अध्यक्ष आर एस राठी से हमने कुछ जानकारी ली है। यहां पर बुनियादी ढांचा बनाने का काम हुडा का है। हरियाणा डेवलपमेंट अथॉरिटी को हुडा कहते हैं। मास्टर रोड, मास्टर सिवेज, मास्टर ड्रेनज, वाटर सप्लाई बनाने का काम हुडा का है। हाउसिंग सोसायटी के भीतर का ढांचा, सड़क से लेकर सीवेज तक बिल्डर के जिम्मे आया। एक तरह से सरकार के जिम्मे बाहरी सड़क या नाले वगरैह बनाने के ही काम आए। राठी साहब ने बताया कि यहां के रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से बाहरी विकास के नाम पर 17,000 करोड़ रुपये हुडा को दिये गए हैं।
गुड़गांव सिटीजन काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर केस भी किया है कि हमारे ऊपर जो टैक्स लगे हैं वो कहां कहां खर्च हो रहे हैं ये बताइये। 2013 में हुडा ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित हलफनामा दिया था कि हुडा ने मेट्रो को मिलाकर 17000 करोड़ में सिर्फ 5500 करोड़ ही खर्च किये हैं। हुडा का कोई बजट नहीं होता है। जहां विभाग को उचित लगता है विभाग खर्च करता है।
राठी जी ने बताया कि गुड़गांव में 2008 में नगर निगम की स्थापना हुई लेकिन नगर निगम को 2013 तक कोई अधिकार नहीं दिया गया। हाउस टैक्स से जो पैसे आते हैं वो नगर निगम के पास रहते हैं और स्टैंप ड्यूटी से जो पैसे आते हैं वो राज्य सरकार निगम को नहीं देती है। काश कि हमारे पास सरकार का भी पक्ष होता लेकिन राठी जी के अनुसार इसका नतीजा यह होता है कि नगर निगम के पास विकास के लिए पैसे नहीं होते हैं। रेगुलर स्टाफ नहीं है। गुरुग्राम में 35 वार्ड हैं। प्रति वार्ड करीब 25-30 सफाई कर्मचारी या निगम कर्मचारी हैं। शहर की ज़रूरत के हिसाब से यह संख्या पर्याप्त नहीं है। निगम का प्रस्ताविक बजट 1600 करोड़ का है लेकिन उन्हें मिलता 400 करोड़ है। जब तक हम इन सवालों में दिलचस्पी नहीं लेंगे गुरुग्राम का भला धारा 144 से नहीं होगा।
राठी जी ने कहा कि सोहना रोड के साथ-साथ बादशाह पुर नाला गुज़रता है। इस नाले के ज़रिये ही गुरुग्राम का पानी हीरो हौंडा चौक से होते हुए नज़फगढ़ ड्रेन में जाता था। इस ड्रेन के ऊपर हाईवे बना दिया गया और इसके स्वाभाविक प्रवाह को बंद कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि बादशाह पुर नाले का पानी ऊपर आने लगा और वापस उसी शहर को भर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले जयपुर हाईवे ब्लॉक हो गया। छह छह फुट पानी भर गया। कई गाड़ियां डूब गईं। उसके बाद महरौली रोड ब्लॉक हो गया। जितने भी सेक्टर रोड हैं गुरुग्राम के वो सारे ब्लॅक होते चले गए। गाड़ियां फंसने लगीं। हालत यह हो गई कि रात को बोर्डर सिक्योरिटी फोर्स को बुलाया गया, फिर भी सड़क खुल नहीं पाई। राठी साहब ने कहा कि लोगों का गुस्सा वक्ती है। सड़क खुलते ही भूल जाएंगे। उन्होंने कहा कि वे पंद्रह साल से इन मुद्दों को लेकर लड़ रहे हैं मगर लोग नहीं आते हैं। नाम को लेकर तुकबंदी के ज़रिये लोगों का यह गुस्सा बताता है कि हम बुनियादी सवालों से कितने दूर हो गए हैं।
ट्रैफिक जाम को हम न जाने कितने साल से भुगत रहे हैं। दिल्ली मुंबई, बंगलुरू के लोग। बंगलुरु वाले तो अब बरसात के पानी में मछली भी पकड़ने लगे हैं। सांप भी निकल आया। अगर हम जीव जंतुओं की ज़मीन को इसी तरह कब्जा कर स्मार्ट सिटी बसाते रहे तो वो एक दिन निकल कर हमारे पांवों में लिपटने आएंगे। टीवी का मीडिया किसी फर्ज़ी राष्ट्रवाद का किस्सा रोज सुनाकर आपको भड़काता रहता है लेकिन ऐसे सवालों पर तभी लौटता है जब आप किसी जाम में फंस कर बौखला जाते हैं। हमारे शहरों में ऐसे हादसे लगातार होते जा रहे हैं। हम लगातार भूलते जा रहे हैं। 26 जुलाई 2005 यानी आज से 11 साल पहले मुंबई में करीब 1000 मिमि की बारिश हुई थी जिसमें डूब कर सैंकड़ों लोग मर गए थे। कई लोगों की मौत उसी कार में हो गई थी जिसमें बैठे बैठे घर जा रहे थे। महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि बारिश और उसके बाद की बीमारी से 1498 लोगों की मौत हो गई थी। पिछले साल चेन्नई में भी हम सबने भयंकर तबाही देखी थी। अकेले चेन्नई में 269 लोग मरे थे। कई कारणों में कुछ कारण यह भी थे कि नदी की ज़मीन पर कब्जा हो गया। मकान बन गए। हम अक्सर समझते हैं कि नदी सूख गई है मगर यह नहीं देखते कि पानी ऊपर से भी आ सकता है। ऐसे वक्त में नदी के विस्तार की ज़मीन पर पानी फैलने से बाढ़ जानलेवा नहीं हो पाती है। मिट्टी के ऊपर सिमेंट की परतें बिछाई जा रही हैं और तालाब या पानी के विस्तार की ज़मीन को कब्जे में लेकर सपनों की सोसायटी बन रही है।
हम मीडिया की एक अजीब समस्या है। शहरों में बाढ़ जाम को लेकर कितने उत्तेजित हो जाते हैं क्योंकि अब के मीडिया पर शहरी लोगों का ही कब्ज़ा है। उन्हीं शहरी लोगों का जिनका शहर के नदी नालों की ज़मीन पर कब्जा हो गया है। वर्ना बाढ़ तो हिन्दुस्तान के एक बड़े इलाके में भी आई है। मीडिया उन खबरों को भी दिखा रहा है लेकिन उस गुस्से और उत्तेजना की प्रतिक्रिया में नहीं जिसके कारण गुड़गांव को लेकर सब बेचैन हो गए।
हमारे सहयोगी आलोक पांडे लगातार इस पर रिपोर्ट फाइल कर रहे हैं। उनकी रिपोर्ट के अनुसार असम में 17 लाख लोग बाढ़ से विस्थापित हुए हैं। अपर असम के सैंकड़ों गांव पानी में डूबे हुए हैं। 2000 राहत शिविरों में लोग रह रहे हैं। ज़रूर गुड़गांव के स्केल से पचास गुना ज्यादा राहत कार्य चल रहा होगा। इस भयंकर बाढ़ में मरने वालों की संख्या 21 बताई गई है। अब आप इसी अंतर को समझिये। जहां जहां नदी के पानी को फैलने की जगह है वहां वहां भयंकर बाढ़ के बाद भी मरने वालों की संख्या कम है। मुंबई, चेन्नई में सैकड़ों लोग शहर की सड़क पर डूब कर मर गए जिसे हम गांव से बेहतर और सुरक्षित समझते हैं। अब अगर हम इन सवालों को नहीं समझेंगे तो ट्विटर पर जितना मर्ज़ी लिख लें, होना जाना कुछ नहीं है। ज़रा अपने शहर के उन प्राकृतिक इलाकों का भी पता कीजिए जहां कभी बरसात का पानी फैलता होगा। क्या हुआ उन प्राकृतिक इलाकों का। गुड़गांव की त्रासदी की कहानी का राज़ ट्रैफिक जाम या नाले के ओवर फ्लो होने या निगमों के कर्मचारियों की संख्या कम होने में ही नहीं है। इन तस्वीरों में भी है जो आप देख रहे हैं। जब आप शहर में सिर्फ कारों के निकलने का रास्ता बनायेंगे, पानी के निकलने का रास्ता नहीं बनायेंगे तो ऐसी स्थिति का सामना करना ही पड़ेगा। आने वाले दिनों में इससे भी बुरी स्थिति होने वाली है।
गुड़गांव के जाम को गुरुजाम कहा जा रहा है। गुरु शब्द की ऐसी फजीहत हमने कभी नहीं सुनी। प्राचीन काल में गुरु होना कितना अच्छा होता था, आधुनिक काल में गुरु का मतलब अब गुरुजाम हो जाएगा इसकी भविष्यवाणी मैंने किसी ग्रंथ में नहीं पढ़ी थी। गुड़गांव में 40 से 50 मिमि के बीच बारिश हुई है। मानसून के दिनों में ये बारिश बहुत भयंकर नहीं है। आम ही मानी जाती है, फिर भी ऐसी हालत क्यों हुई।
This Article is From Jul 29, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : क्यों जाम हुआ गुड़गांव?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 29, 2016 21:53 pm IST
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Published On जुलाई 29, 2016 21:53 pm IST
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Last Updated On जुलाई 29, 2016 21:53 pm IST
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