इन भूकंपों से हम क्‍या लें सबक

नई दिल्‍ली : जिस किसी ने भी व्हाट्सऐप या सोशल मीडिया के ज़रिये फैलाई जा रही अफवाह पर यकीन किया होगा, मैसेज फॉर्वर्ड किया होगा कि चांद उल्टा निकला है तो अनहोनी होगी वो अगर ध्यान से देखेंगे तो मैं भी आज न्यूज़ उल्टा पढ़ रहा हूं।

और अगर टीवी सीधा करने पर भी मैं सीधा नहीं दिखा तो व्हाट्सऐप पर अफवाह फैलाने वालों के लिए चेतावनी है। सरकार भी अब ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की सोच रही है। ऐसा मत कीजिए। एक ही बात याद रखिये। भूकंप कहां, किस तारीख को कितने बजे आएगा ये बताने वाला इस धरती पर नहीं रहता है। न वो नासा में रहता है न चाईबासा में रहता है।

नेपाल में भूकंप से मरने वालों की संख्या बढ़कर 3700 से ज्यादा हो गई है। अभी तक 6500 से ज्यादा घायलों का पता चला है। 2500 भारतीयों को वहां से निकाला जा चुका है। भारत ने 285 सदस्यों की टीम भेजी है जिनमें डॉक्टर और पैरामेडिक्स हैं। एनडीआरएफ ने कहा है कि पहले से ही 10 टीमें वहां राहत और बचाव के काम में लगी हैं लेकिन इसे और तेज़ करने के लिए छह और टीमें भेजी जा रही हैं। वायुसेना के दस हेलीकॉप्टर भी काठमांडू और पोखड़ा के ऊपर राहत और बचाव के लिए उड़ान भर रहे हैं... भारतीय टीम युद्ध स्तर पर बचाव और राहत कार्य में लगी हुई है।

केंद्र सरकार लगातार सारी गतिविधियों को मॉनीटर कर रही है। सरकार के साथ स्वंयसेवी संगठन भी सक्रिय हो गए हैं। ट्वीटर पर कई लोगों ने थैंक यू पीएम का हैशटैग भी चलाया और पीएम मोदी ने भी कहा कि शुक्रिया सेना और हमारी सेवा भाव की परंपरा का। भारत की पहल के बाद अब दुनिया के तमाम देश और संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां भी नेपाल की मदद के लिए सक्रिय हो गई हैं। चीन ने भी 62 सदस्यों की एक सर्च टीम भेजी है।

चीन ने भी आपातकालीन तंबू, जनरेटर और कंबल कपड़े भेजे हैं। चीन ने 30 लाख डॉलर की मदद राशि देने की घोषणा की है। इज़राइल ने भी 260 सदस्यों की टीम भेजी हैं जिसमें 122 डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिक्स हैं। इसके अलावा पाकिस्तान, ब्रिटेन, भूटान, जापान, सिंगापुर मलेशिया कई छोटे बड़े देश नेपाल की मदद के लिए आगे आए हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के मुताबिक हालत इतनी खराब है कि काठमांडू सहित नेपाल के ग्रामीण इलाकों में महीनों तक खाने पीने और दवा का इंतज़ाम करना होगा। भारत में भी 72 लोगों की भूकंप से मौत हुई है। बिहार के सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण और दरभंगा में ज्यादा नुकसान हुआ है। पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में भी कई लोग घायल हुए हैं।

भारत की संसद ने नेपाल के शोक के साथ अपनी संवेदना जताई है और सभी दलों के सांसदों ने तय किया है कि वे अपना एक महीने का वेतन नेपाल और भारत में पुनर्वास काम के लिए देंगे। जिन सांसदों को हम दिन रात उलाहना देते रहे हैं वो भी आगे आए हैं। वेकैंया नायडू के इस प्रस्ताव को सबने एक पल में मान लिया।

भूकंप कब आएगा ये कोई नहीं बता सकता लेकिन हिमालय के इलाके में भूकंप आएगा यह सबको पता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक क़रीब पचास करोड़ साल पहले धरती दो बड़े महाद्वीपों में बंटी हुई थी... यूरेशिया और गोंडवाना लैंड। धरती के विकास क्रम में गोंडवाना लैंड कई टुकड़ों में टूटकर अलग-अलग दिशाओं की ओर बढ़ा। इसका एक हिस्सा जो भारतीय उपमहाद्वीप बना वो यूरेशियन प्लेट से टकराया। दोनों प्लेटों के बीच इसी टक्कर और रगड़ से बनी सिलवटों से हिमालय बना है।

भारतीय प्लेट आज भी पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से यूरेशियन प्लेट पर दबाव बना रही है, या कहें कि उसके नीचे खिसक रही है। दोनों प्लेटों के बीच बढ़ रहे इस दबाव में छुपी ऊर्जा रह रहकर जब रिलीज़ होती है तो यहां भूकंप आते हैं। इस हिमालयी इलाके में आठ की तीव्रता के आसपास के भूकंप आते रहे हैं। जैसे 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल बॉर्डर, 1897 में शिलांग और 1950 में असम।

लेकिन इस ग्राफ़िक्स में जो आप लाल लकीर देख रहे हैं वहां आठ की तीव्रता का भूकंप बीते क़रीब दो सौ साल में नहीं आया है। इसी लकीर के पूर्वी छोर पर हाल में भूकंप आया है। भूवैज्ञानिकों के मुताबिक इस लाल लकीर जिसे सेंट्रल साइज़्मिक गैप कहते हैं उस पर बड़ा भूकंप आने की आशंका लगातार बनी हुई है क्योंकि यहां ज़मीन के नीचे काफ़ी दबाव बना हुआ है और इसकी ऊर्जा कभी भी किसी भूकंप की शक्ल ले सकती है। इस लाल लकीर यानी सेंट्रल साइज़्मिक गैप से हिन्दुस्तान का बड़ा हिस्सा लगा हुआ है।

हिमालय का इलाका तो सक्रिय ज़ोन है लेकिन गोंडवाना तो साठ करोड़ साल पुराना है, जो दुनिया का सबसे स्थिर और स्थायी भूखंड है वहां भी भूंकप आ गया। महाराष्ट्र के कोयना और लातूर में आये भूकंप ने सबको चौंका दिया था। फिलहाल हिमालय और यूरेशिया प्लेट की धक्का मुक्की में हम सबकी जान अटकी हुई है। हमारे सपनों का मकान लटका हुआ है। हर भूकंप के बाद हम सब अपने ही घर में बेघर महसूस करने लगते हैं। जो घर हमें महफूज़ लगता है उसी की छत इन दिनों जानलेवा लग रही है।

आप पिछले दो तीन दिनों से अखबारों में पढ़ रहे हैं कि पूर्वी से उत्तर भारत के बड़े हिस्से को सिस्मिक ज़ोन चार और पांच में बांटा गया है। जहां आपका ये एंकर रहता है और आज के एक और पैनलिस्ट रहते हैं वो इलाका तो पता नहीं किसके भरोसे है। पिछले दो दिनों से जिस किसी को देख रहा हूं वो अपने फ्लैट को शक की नज़र से देख रहा है। एक्सपर्ट बताते हैं कि भूकंप आने पर घर के भीतर दीवारों के कोने पर बैठ जाया जाए। सर झुका लिया जाए और मुमकिन हो तो किसी चीज़ से ढंक लिया जाए। टेबल के नीचे बैठने की भी राय दी जाती लेकिन जब अपने टेबल को देखा तो लगा कि मुश्किल से ये क्रॉकरी की नज़ाकत संभाल पाता है कंक्रीट से तो और दब जाएगा। लिहाज़ा कोने और टेबल को छोड़ आपका यह एंकर लिफ्ट की तरफ भागा, जब ख्याल आया कि लिफ्ट खतरनाक है तो सीढ़ियों से उतरने लगा। दो बार यह गलती दोहराई। बाहर निकल कर देखा तो मैं अकेला नहीं था। मेरी ही तरह ज्यादातर लोगों ने सेम हरकत की थी।

अगर यह भूकंप प्रभावित इलाका है तो हमें बार-बार शिक्षित होने की ज़रूरत है। सिर्फ ऊंची इमारतों की बात नहीं है, गली मोहल्ले और दुकानों की इमारतें भी सुरक्षित हैं या नहीं, किसी गाइडलाइन के आधार पर बनती हैं या नहीं यह सब लगातार जानने और देखने की ज़रूरत है।

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जापान में तो दुनिया का बीस प्रतिशत भूकंप आता है। यहां भूकंप की तीव्रता 6 या उससे ज्यादा होती है। हर साल कुल मिलाकर 2000 से ज्यादा झटके आते रहते हैं। 2011 के भूकंप और सुनामी में वहां 18000 लोगों की मौत हो गई थी। भूकंप से कम लोग मरे थे। सुनामी से ज्यादा। जापान की इमारतें भूकंप रोधी तकनीक के लिहाज़ से बेस्ट मानी जाती हैं। जापानी इमारतों की नींव काफी गहरी होती है, शॉक आब्ज़र्वर लगे होते हैं। इमारतें धरती के साथ हिलती है इसलिए गिरने से बच जाती हैं। हर स्कूल के बच्चे को पता होता है कि धरती हिलने पर क्या करना है। हर महीने स्कूल में ड्रील होती है। जापान ने 1995 के भूकंप के बाद काफी कुछ नियम बनाए और अपना तरीका बदला है। एक नागरिक समाज के तौर पर भारतीयों का व्यवहार जापानी लोगों से किस तरह अलग होता है। जापानी सिस्टम क्या है। इस पर भी बात प्राइम टाइम में।