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This Article is From Nov 03, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : क्‍या भोपाल की मुठभेड़ वाकई असली थी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 04, 2016 00:33 am IST
    • Published On नवंबर 03, 2016 21:59 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 04, 2016 00:33 am IST
भोपाल एनकाउंटर मामले में सवाल न पूछने के बयान का आदर करते हुए दो वरिष्ठ पुलिस अफसरों के बयान को रखना चाहता हूं. मंगलवार को भोपाल के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस योगेश चौधरी ने हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन के सवालों के जवाब देते हुए नफ़ीस अंग्रेज़ी में कहा था कि भगोड़े क़ैदियों के पास 4-5 हथियार थे. उनके बयान से स्पष्ट है कि उनके पास दो 315 बोर के देसी कट्टे थे और दो 12 बोर के कट्टे थे.

मंगलवार के बाद ज़ाहिर है बुधवार ही आता है. बुधवार को हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन ने एटीएस के मुखिया संजीव शमी से बात की. 1993 बैच के आईपीएस अफसर संजीव शमी सबसे पहले एनकाउंटर स्थल पर पहुंचने वाले अफसरों में से थे. शमी बेहद ईमानदार और जुनूनी अफसर माने जाते हैं. एटीएस मतलब एंटी टेरर स्क्वॉड. एटीएस ही एनकाउंटर का नेतृत्व कर रही थी. श्रीनिवासन जैन ने संजीव साहब को पर्याप्त मौके दिये कि वो जो कह रहे हैं उस पर वो कायम हैं या नहीं. उन्होंने बार बार कहा कि वे अपने फैक्ट यानी तथ्यों पर कायम हैं. संजीव शमी साहब ने अंग्रेज़ी में कहा कि आतंक के आरोपी आठों भगोड़ों कैदियों के पास कोई हथियार नहीं थे. पुलिस कहती है चार बंदूके थीं. एटीएस कहती है उनके पास कोई हथियार नहीं था.

योगेश चौधरी आईजी भोपाल हैं. संजीव शमी पूरे मध्य प्रदेश एटीएस के चीफ हैं. रैंक में दोनों इंस्पेक्टर जनरल ही हैं. ऐसे मामलों में राजनीति न करते हुए आप ख़ुद भी सोच सकते हैं कि एक आईपीएस अफसर क्यों कह रहे हैं कि चार बंदूकें थीं. एक आईपीएस अफसर क्यों कह रहे हैं कि कोई बंदूक नहीं थी. इन दो अलग अलग बातों में से एक तो राजनीति का हिस्सा निकल सकता है, शायद इसीलिए ऐसे मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए. हम बढ़ते हैं दूसरे मसले की तरफ जिससे जुड़े लोग चाहते हैं कि उनके ऐसे मामले में राजनीति होनी चाहिए, बहस होनी चाहिए मगर हो ही नहीं रही है.

20 लाख सेवारत और रिटायर्ड केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के जवानों की संस्था ने अपनी 17 मांगों को लेकर जंतर मंतर पर तीसरी बार धरना शुरू किया है. कुछ जवान अर्धनग्न अवस्था में भी अपनी मांगों को लेकर मार्च करते नज़र आए. इनकी प्रेस रिलीज़ में लिखा हुआ है कि सातवें वेतन आयोग में केंद्रीय पुलिस बलों के जवानों की तुलना चपरासी और क्लर्क से की गई है. ये लोग अर्ध नग्न अवस्था में इसलिए आए क्योंकि इनमें से कुछ को लगा कि मीडिया कवर नहीं करता है. जबकि मीडिया का ज़्यादातर हिस्सा तो पिछले एक महीने से देशभक्ति को लेकर ओवरटाइम ड्यूटी कर रहा है ताकि लोग इसके नाम पर सवाल न करें. शायद इसीलिए हमारे केंद्रीय पुलिस बलों के जवानों को कपड़े उतारने पड़ रहे हैं ताकि मीडिया में उन्हें अपना सवाल रखने का मौका मिल सके. आखिर हम जिन जवानों की शहादत के बदले अपनी देशभक्ति ट्विटर पर ज़ाहिर करते रहते हैं, उन्हें पेंशन और वेतन के लिए धरना प्रदर्शन करते हुए कैसे देख सकते हैं. लेकिन आप देखने के लिए मजबूर हैं क्योंकि देशभक्ति के इस मीडिया प्रदर्शन को अच्छे अच्छे प्रोफेसर नहीं समझ पाए.

इस संगठन ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आभार व्यक्त किया है कि आप भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने हिम वीरों के साथ सरहद पर दिवाली मनाई लेकिन हम देश के 20 लाख अर्ध सैनिक परिवार आपका ध्यान काबुल यात्रा में दिये गए बयान की तरफ दिलाना चाहते हैं जब आपने यह कहा था कि कीप इट अप. महोदय अब समय आ गया है कि आप अर्ध सैनिकों को अप कर सकते हैं.

इनका कहना है कि हमारे देश की 1500 किमी लंबी सरहद पर बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी तैनात है तो हमें पैरामिलिट्री स्पेशल पे क्यों नहीं दी जा रही है. जब सेना के जवान को सरकार 16,000 फुट हाईट पर भत्ते के तौर पर 21000-31000 रुपये दे रही है तो आईटीबीपी और हिम वीरों को इस तरह का भत्ता क्यों नहीं दिया जा रहा है. यही सीआईएसएफ के जवानों को साल में 30 दिन की छुट्टी मिलती है जबकि सेना, अर्धसैनिक बलों को 60 दिन की. इस कारण सीआईएसएफ के कई जवान आत्महत्या कर लेते हैं.

केंद्रीय पुलिस बल सिर्फ सीमा पर ही नहीं नक्सल प्रभावित इलाकों में भी मोर्चा संभाले रहते हैं. आए दिन इस मोर्चे पर उनके जवानों की मौत होती रहती है. मीडिया शहीद लिख देता है मगर इनका कहना है कि हमें शहीद का दर्जा नहीं मिलता है. पेंशन की भी मांग कर रहे हैं.

आप जानते ही हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सेना और बीएसएफ के जवान खूब मोर्चा ले रहे हैं. बीएसएफ के चीफ ने दावा भी किया है कि पाकिस्तान के कई पोस्ट को उड़ा दिया गया है. 26 जून को जम्मू कश्मीर के पम्पोर में सीआरपीएफ के आठ जवान मारे गए थे और 20 घायल हुए थे. उनका काफिला श्रीनगर जम्मू नेशनल हाईवे से गुज़र रहा था. सीआरपीएफ की ये टुकड़ी पठानकोट से पम्पोर जा रही थी. तभी आतंकवादियों ने हमला कर दिया. 28 अक्टूबर को पाकिस्तान की तरफ से सीज़फायर का उल्लंघन हुआ था जिसमें 10 नागरिक घायल हो गए थे और बीएसएफ का एक जवान मारा गया था. हाल फिलहाल में सेना के अगर चार जवान शहीद हुए हैं जो बीएसएफ के भी चार जवानों ने कुर्बानी दी है. उनके नाम हैं इस प्रकार हैं...

-  हीरानगर सेक्टर में पाक गोलाबारी में गुरनाम सिंह शहीद (आरएसपुरा)
- आरएसपुरा सेक्टर में सुशील कुमार शहीद (कुरुक्षेत्र)
- आरएसपुरा में ही जितेन्द्र कुमार शहीद (मोतिहारी)
- माछिल सेक्टर में कोली नितिन सुभाष शहीद (सांगली)

कुर्बानी एक, शहादत एक मगर सुविधाओं और इनाम में इतना फर्क क्यों. ये इनकी शिकायत है. आतंकवाद, उग्रवाद और सीमा पर दुश्मनों का सामना. केंद्रीय सुरक्षा बल केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं. इनका मुखिया इनके काडर से नहीं होता है. इन सुरक्षा बलों के कमांडेंट अपनी फोर्स के मुखिया नहीं बनते. आईपीएस अधिकारी बनते हैं इसके चीफ. वैसे आम बोलचाल में हम सभी बलों को अर्धसैनिक बल कह देते हैं लेकिन अर्ध सैनिक बल सिर्फ़ एक ही है, वो है असम राइफल्स. इसका मुखिया सेना का अधिकारी होता है. बाकी सब केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हैं. जैसे...

- केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ
- सीमा सुरक्षा बल यानी कि बीएसएफ (पाकिस्तान और बांगलादेश सीमा पर तैनात)  
- भारत तिब्बत सीमा पुलिस यानी कि आईटीबीपी (चीन से लगी सीमा पर तैनात)
- केन्द्रीय औधोगिक सुरक्षा बल यानी की सीआईएसफ
- सशस्त्र सीमा बल यानी कि एसएसबी (नेपाल और भूटान सीमा पर)

हमने प्रेस इंफॉर्मेंशन ब्यूरो की साइट से गृहमंत्रालय की प्रेस रिलीज़ चेक की. 15 अगस्त के दिन जारी एक बयान में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सीआरपीएफ के एक जवान को शहीद कहकर संबोधित किया है. तो क्या शहादत सिर्फ संबोधन में है, अधिकारों के अर्थ में नहीं है. आज आपको ट्वीटर और फेसबुक पर जाकर देखना चाहिए, कि कितने ऐसे मैसेज हैं जो इनके हक की बात करने वाले हैं. शहादत के समय की भावुकता अच्छी बात है. लेकिन वो भावुकता तब नाटकीय हो जाती है जब हम सैनिकों की तरह लड़ने वाले अर्ध सैनिकों को भूल जाते हैं. गुरुवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल के परिवार को दस लाख की मदद राशि और एक सदस्य को नौकरी का ऐलान किया लेकिन कहा कि रामकिशन को शहीद कहना ठीक नहीं है.

एक तरह से खट्टर साहब की बात ठीक भी है लेकिन उनकी दूसरी बात से अर्धसैनिक बल के जवान को राहत मिल सकती है. खट्टर साहब ने कहा कि जो सीमा पर मरता है वही शहीद है तो अर्ध सैनिक बलों के जवान क्यों शहीद नहीं माने जाते हैं.

पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल का अंतिम संस्कार उनके गांव में किया गया‌. भिवानी ज़िले के बामला गांव में उनके अंतिम संस्कार में राहुल गांधी भी शरीक हुए. सुबह सुबह रामकिशन ग्रेवाल के गांव पहुंचे थे. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी वहां पहुंचे और एक करोड़ की राशि देने का ऐलान किया. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला और दीपेंद्र हुड्डा ने रामकिशन ग्रेवाल के शव को कंधा भी दिया. जैसे शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में रमाशंकर यादव को कंधा दिया था. हरियाणा में कांग्रेस सरपंच या पंचायत के चुनाव में किसी को पार्टी टिकट नहीं देती है लेकिन केंद्रीय मंत्री वी के सिंह ने कहा कि रामकिशन ग्रेवाल ने कांग्रेस के टिकट पर सरपंच का चुनाव लड़ा था. उसकी आत्महत्या दुर्भाग्यपूर्ण है. उसका मामला बैंक का था. वन रैंक वन पेंशन की वजह से नहीं था. उसे किसने सल्फास की टैबलेट दी. वो हमारे पास आता और हम हेल्प न करते तो हमारा कसूर होता. वी के सिंह ने यह बयान दिल्ली से दिया. उनका गांव रामकिशन ग्रेवाल के गांव से थोड़ी ही दूरी पर है. भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि राहुल गांधी ने वन रैंक वन पेंशन को लेकर कभी कुछ नहीं किया. हमने तो इसकी कमियों को ठीक करने के लिए कमेटी भी बनाई है. बीजेपी के सांसद सत्यपाल सिंह ने कहा कि उन्हें लगता है कि दिल्ली पुलिस ने इस मसले को ठीक से हैंडल नहीं किया है. पूर्व सैनिक के परिवार से मिलने में किसी को कोई दिक्कत नहीं है. शाहनवाज़ हुसैन ने कहा कि सेना के इतने जवान शहीद हुए, उनके अंतिम संस्कार में तो कांग्रेस नेता और राहुल गांधी नहीं गए. किसी ने आत्महत्या की है तो राजनीति कर रहे हैं. शाहनवाज़ का निशाना थोड़ा सही जगह लगा है.

भाजपा नेता नलिन कोहली ने कहा कि घटना दुखद है मगर ये कांग्रेस के लिए फोटो ऑपर्चुनिटी बन गया है. मगर कांग्रेस बीजेपी की इस आलोचना के बाद भी इस मामले को लेकर सक्रिय नज़र आने लगी है. आम आदमी पार्टी भी काफी सक्रिय है.

भिवानी से लौट कर शाम को राहुल गांधी ने जंतर मंतर पर कैंडिल मार्च का नेतृत्व किया है. लेकिन राहुल गांधी को पुलिस ने अपनी गिरफ्तर में ले लिया. दो दिन में राहुल गांधी तीसरी बार डिटेन किये गए हैं. राहुल गांधी को संसद मार्ग थाने में ले जाया गया, बाद में तुगलक रोड थाने ले जाए गए. तुगलक रोड पर ही उनका घर है. प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि यह अघोषित आपातकाल है. तिवारी ने कहा कि अगर राजनीतिक लोग सांत्वना व्यक्त नहीं करेंगे तो और कौन करेगा. वैसे जंतर मंतर पर कैंडल मार्च से पहले हिरासत में लेने का क्या तुक है. एक दलील है कि इस प्रदर्शन की इजाज़त नहीं ली गई थी. कांग्रेस कहती है इजाज़त ली गई थी.

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