प्राइम टाइम इंट्रो : शहाबुद्दीन की रिहाई किसकी नाकामी?

प्राइम टाइम इंट्रो : शहाबुद्दीन की रिहाई किसकी नाकामी?

मुहम्मद शहाबुद्दीन (फाइल फोटो)

कानून तो अपना काम करेगा, लेकिन कानून तभी तो काम करता है जब उसके पीछे सरकार की एजेंसियां काम करती हैं. कानून अपने आप सपने में या किसी हमसफर के ख़्याल से काम नहीं करता है. मोहम्मद शहाबुद्दीन की ज़मानत पर रिहाई ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साख दांव पर लगा दी है.

क्या नीतीश कुमार मुहम्मद शहाबुद्दीन की ज़मानत का विरोध करेंगे, हाईकोर्ट की बड़ी बेंच में या सुप्रीम कोर्ट में? कब करेंगे, लोग यह जानना चाहते हैं. शहाबुद्दीन की राजनीतिक स्थिति ही कुछ ऐसी है जिसके कारण जदयू और आरजेडी आमने सामने आ गए हैं. आज पहली बार जनता दल युनाइडेट के नेता प्रेस कांफ्रेंस में आए और आरजेडी से कहा कि गठबंधन धर्म निभाएं. उनका एतराज़ राजद नेता शहाबुद्दीन और रघुवंश प्रसाद सिंह के बयान से था, जिसमें दोनों ने मुख्यमंत्री को चुनौती दी थी. लेकिन पत्रकार पूछने लगे कि उनकी पार्टी शहाबुद्दीन को क्या मानती है. क्या अपराधी मानती है, क्या नीतीश सरकार ज़मानत का अदालत में विरोध करेगी. कानून अपना करेगा, पर भरोसा करने वाली सरकार से कोई केमिस्ट्री का तो सवाल पूछा नहीं गया फिर भी जदयू के नेताओं के पसीने छूट गए.

उससे पहले पटना में बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस की. सुशील मोदी ने कहा कि शहाबुद्दीन अगर जेल में रहते हुए अपहरण और हत्याएं करवा सकते हैं तो बाहर आकर क्या क्या नहीं कर सकते. उन पर क्राइम कंट्रोल एक्ट लगाया जाना चाहिए ताकि वे जांच को प्रभावित करने का काम न करें. बीजेपी के नेताओं ने बिहार के राज्यपाल से मुलाकात भी की है.

इस बीच आपको याद होगा कि 15 मई के दिन बिहार सरकार ने पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश की थी. सिफारिश की चिट्ठी लेकर राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन पिछले कई दिनों से दिल्ली में नेताओं और मंत्रियों के यहां भटक रही हैं कि मई से सितंबर आ गया और इस बीच शहाबुद्दीन बाहर आ गए. आशा रंजन ने 8 सितंबर को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाकात की है. इसके बाद भी सीबीआई ने मामले को अपने नियंत्रण में नहीं लिया है. हमारे सहयोगी उमा शंकर सिंह ने आशा रंजन से बात की. आशा ने उमा से कहा कि मेरे इंटरव्यू को बिना एडिट के दिखाया जाए. कहीं मेरी बात एडिट तो नहीं हो जाएगी.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी और केंद्र सरकार, तीनों को आशा देवी के सवालों का जवाब देना चाहिए कि 15 मई को जब सीबीआई जांच की सिफारिश हो गई थी तो सीबीआई ने टेकओवर क्यों नहीं किया. क्या सीबीआई हर मामले की सिफारिश के बाद चार से छह महीने में टेकओवर करती है. क्या बीजेपी के नेताओं ने इसके लिए हंगामा किया, क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से हंगामा किया गया कि सीबीआई जांच नहीं कर रही है. पत्रकार राजदेव रंजन के मामले में जो एफआईआर दर्ज हुई है उसमें शहाबुद्दीन का नाम भी नहीं है.

इस हंगामे और राजनीतिक के बीच कोई यह बात नहीं कर रहा है कि शहाबुद्दीन की ज़मानत का विरोध कौन करेगा. क्या बीजेपी के वकील करेंगे या प्रशांत भूषण करेंगे. प्रशांत भूषण ने पेशकश की है कि वे ज़मानत का विरोध करेंगे. प्रशांत भूषण तो आगे आ गए हैं लेकिन तमाम राजनीतिक दलों के इतने वकील हैं वो क्यों नहीं आगे आ रहे हैं. बीजेपी से भी तमाम वकील जुड़े हैं. पार्टी में भी हैं और सहानुभूति रखने वाले भी हैं. उन्होंने क्यों नहीं कहा कि वे शहाबुद्दीन की ज़मानत का विरोध करेंगे. क्या शहाबुद्दीन के बाहर आने का सभी को इंतज़ार था.

शहाबुद्दीन को लेकर न्यायपालिका की भूमिका को भी देखना चाहिए. इसका जवाब मिलना चाहिए कि क्या यह बात सही है कि हाईकोर्ट का नोटिस जेल में बंद शहाबुद्दीन को सर्व नहीं हुआ. जिसके कारण कई मामलों में ट्रायल अंजाम तक नहीं पहुंचा. हाईकोर्ट को बताना चाहिए और इस पर राज्य सरकार के कानून मंत्री को भी जवाब देना चाहिए. राजनीति अपनी जगह है. लेकिन सवाल सही पूछा जाना चाहिए. अन्य नागरिकों की तरह शहाबुद्दीन को भी सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने तक ज़मानत पर बाहर आने का हक है. यहां तक राज्य सरकार की बात सही है.

लेकिन राज्य सरकार बताये कि क्या यह बात सही है कि शहाबुद्दीन को हाईकोर्ट का नोटिस सर्व नहीं हुआ. अगर नहीं हुआ तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है. किसने क्या कार्रवाई की. राज्य सरकार और जनता दल यूनाइटेड के नेताओं की यह बात ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने तक किसी को भी ज़मानत पर आने का हक है. भीड़ के दबाव में कानून की इस तय प्रक्रिया से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए मगर यह भी तभी नहीं होगा जब लोग सही सवाल पूछेंगे. पहला कि बाकी मामलों में तेज़ी लाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या करेंगे. ज़मानत का विरोध करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार क्या अपील करने की सोच रहे हैं, अगर सोच रहे हैं तो उनके जवाब का इंतज़ार रहेगा.

जिन मामलों में ट्रायल कोर्ट में सज़ा हुई है, उन मामलों की क्या प्रगति है. क्या उनमें तेज़ी लाई जा रही है. अगर जल्दी सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई नहीं हुई तो ज़मानत पर बाहर आने से कौन रोक सकता है. क्या उनके बाहर आने का सभी इंतज़ार कर रहे हैं ताकि राजनीति हो. अगर सब सीरीयस हैं तो दिल्ली आकर पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन को क्यों भटकना पड़ रहा है. चंदा बाबू के सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. उनकी तस्वीर सबको स्तब्ध कर देती है. शहाबुद्दीन को लेकर गठबंधन दांव पर है. सवाल है कि दांव पर कौन लगा रहा है. किसके लिए लगाया जा रहा है.

शहाबुद्दीन के बाहर आने की राजनीति से किस किस को फायदा है. अगर शहाबुद्दीन के अनुसार नीतीश कुमार परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं तो क्या परिस्थितियां बदल रही हैं. इसका जवाब सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार के पास है. आप उन पर नज़र रखिये. ये जवाब नहीं है कि उनके पास फालतू चीज़ों पर ध्यान देने का वक्त नहीं है. शहाबुद्दीन अगर फालतू होते तो जदयू के नेता प्रेस कांफ्रेंस कर लालू पर गठबंधन धर्म निभाने की ज़िम्मेदारी न डालते. इतनी राजनीति तो हम भी समझते हैं. आप तो ख़ैर समझते ही हैं.


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