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This Article is From Nov 23, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : राम मंदिर ज़रूरी या मजबूरी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 23, 2015 21:21 pm IST
    • Published On नवंबर 23, 2015 21:12 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 23, 2015 21:21 pm IST
2004 के आम चुनाव से पहले संघ और विश्व हिन्दू परिषद के नेता राम मंदिर को लेकर बेसब्र होने लगे थे। दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सभा भी हुई थी जिसमें तबके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर खूब निशाना साधा गया था। परिवार ब्रिगेड का कहना था कि वाजपेयी मंदिर निर्माण को लेकर गंभीर नहीं हैं और बीजेपी ने सत्ता हासिल करते ही मंदिर मुद्दे को भुला दिया। अगस्त 2003 में राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत रामचंद्र दास परमहंस का निधन होता है। उनके अंतिम संस्कार के लिए सरयू नदी के किराने बीजेपी और संघ परिवार के सभी बड़े नेता मौजूद थे।

2 अगस्त 2003 की प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी का बयान लिखा है कि हम महंत जी की अंतिम इच्छा पूरी करेंगे। हमें भरोसा है कि सारी बाधाएं दूर कर ली जाएंगी और मंदिर बनेगा। उनकी जलती चिता के सामने हमें इसका भरोसा हो रहा है। उस मौके पर लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि सबसे अच्छा विकल्प तो यह होगा कि सारे समुदाय के लोग राष्ट्रीय भावना का सम्मान करें कि वहां सिर्फ राम मंदिर ही बन सकता है और कुछ भी नहीं। उस मौके पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के मदनदास देवी, अशोक सिंघल, महंत नृत्य गोपाल दास मौजूद थे। तब संघ प्रमुख के.सी. सुदर्शन ने कहा था कि सबको 2004 के चुनाव की तैयारी में जुट जाना चाहिए। लोकतंत्र में जनता का मत सर्वोच्च होता है। सभी हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण है कि वो चुनाव से पहले ऐसा माहौल तैयार करें कि मंदिर का विरोध करने का साहस किसी में न रहे।

2004 में वाजपेयी हार गए और 2014 में प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आए तो बहुमत तो मिला लेकिन वो मंदिर निर्माण के लिए नहीं था। न ही चुनाव प्रचार के दौरान कभी प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को छेड़ा भी। फिर भी अगस्त 2003 के संकल्प को अब 12 साल हो गए। उस संकल्प का तो कुछ नहीं हुआ लेकिन संघ ने एक बार फिर संकल्प किया है। रविवार को दिल्ली में वीएचपी नेता अशोक सिंघल की याद में शोक सभा आयोजित की गई जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर बनाने का काम सिर्फ़ अशोक जी का नहीं था...उस काम को आगे बढ़ाने के लिए जो-जो हमें करना होगा, वो हम करेंगे, तो पहले हमें उस संकल्प का वरण करना होगा और उसके योग्य बनाने के लिए सारी तपस्या करनी होगी। मंदिर बनाने का काम हमें पूरा करना है। इसलिए आज हमने मंदिर बनाने का पुन: संकल्प लिया है। इसी मौके पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन आजाद भारत के दो बड़े आंदोलनों में से एक है। अशोक सिंघल उस आंदोलन के नायक थे। विश्व हिन्दू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाए। यही अशोक सिंघल के प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी।

इसी साल मई में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि 'बीजेपी मंदिर निर्माण के मुद्दे पर पीछे नहीं हटी है लेकिन मंदिर निर्माण के लिए हमारे पास बहुमत नहीं है। मंदिर निर्माण के लिए अकेले बीजेपी को कम-से-कम 370 सीटें चाहिए।' 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी तब बीजेपी को 282 सीटें आईं थी, अमित शाह ने राम मंदिर के लिए 370 सीटों का लक्ष्य टालने के लिए रखा है या बहलाने के लिए। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के लेटेस्ट फैसले को ध्यान में रखें।

30 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला देकर 30 सितंबर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ ज़मीन को हिन्दू मुसलमान और निर्मोही अखाड़े के बीच बांट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बंटवारे की मांग किसी पार्टी ने की ही नहीं। हाई कोर्ट के फैसले को विचित्र बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया। सभी पक्षों के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि पहली बार इस मसले पर सब एकमत हुए हैं। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2002 और 1994 के फैसले की व्यवस्था बहाल कर दी। इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद से जु़ड़े रिकॉर्ड को पढ़ने में ही दस साल लग जाएंगे। जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे लगाने में पांच साल लग गए तो अंदाज़ा कर सकते हैं कि अरबी, फारसी, उर्दू, हिन्दी अंग्रेजी, पंजाबी और संस्कृत में इस विवाद से जु़ड़े दस्तावेज़ों का अंग्रेज़ी अनुवाद करने में कितना वक्त लग जाएगा और अदालत कब पढ़ेगी और फैसला कब आएगा। तो क्या इसी वजह से विश्व हिन्दू परिषद या आरएसएस कानून के ज़रिये मंदिर निर्माण का रास्ता खोज रहे हैं।

मोदी सरकार के वजूद में आने के बाद वीएचपी ने भी कोई ठोस प्रयास नहीं किया। 25 और 26 जून को मोदी सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर विश्व हिन्दू परिषद ने हरिद्वार में बैठक की थी। बैठक में एक प्रतिनिधिमंडल बनाने का ऐलान हुआ था जो मंदिर निर्माण के मसले को लेकर मोदी सरकार से बात करेगा। जून से लेकर नवंबर के बीच प्रतिनिधिमंडल ने किससे बात की या बात ही नहीं की मेरी जानकारी में नहीं है। मीडिया की पुरानी रिपोर्ट से पता नहीं चलता कि उस वक्त अशोक सिंघल ने मोदी सरकार को ललकारा था या नहीं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। इसलिए संसद में राम मंदिर का प्रस्ताव लाना मुश्किल है। अभी राम मंदिर नहीं, विकास है प्राथमिकता। 30 सितंबर को अशोक सिंघल और सुब्रह्मण्य स्वामी ने एक साझा प्रेस कांफ्रेंस में राम मंदिर को बहुसंख्यक भारतीयों का राष्ट्रीय लक्ष्य बताया था। कैच न्यूज़ वेबसाइट पर छपी पाणिनी आनंद की एक रिपोर्ट के अनुसार इसी 1 अक्टूबर को अशोक सिंघल के 90वें जन्मदिन पर संघ प्रमुख ने मंदिर निर्माण को लेकर कुछ नहीं कहा। वहां मौजूद लोगों ने मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा लगाया तो अशोक सिंघल माइक लेकर अपनी बात कहने लगे और नारों को दरकिनार कर दिया।

संघ प्रमुख का बयान भावुकता निभाने के लिए था, वैसे ही जैसे 2003 में वाजपेयी और संघ प्रमुख सुदर्शन ने महंत परमहंस के अंतिम संस्कार के वक्त कहा था। क्या संघ प्रमुख अपने इस संकल्प को कोई ठोस रूप देना चाहते हैं या मंदिर निर्माण के गंभीर प्रयास के उनके बयान को मीडिया ने ही गंभीरता से ले लिया है। सवाल है कि आरएसएस यह संकल्प ले किस लिए रहा है। जब पूरी सरकार उसके पास जाकर नीतियों पर चर्चा कर सकती है तो राम मंदिर पर चर्चा अभी तक क्यों नहीं हुई।

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