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This Article is From May 25, 2015

मथुरा में प्रधानमंत्री धारणा को धराशायी कर रहे थे या धन्नासेठों को?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 26, 2015 11:16 am IST
    • Published On मई 25, 2015 21:27 pm IST
    • Last Updated On मई 26, 2015 11:16 am IST
नमस्कार... मैं रवीश कुमार। ग़रीब, ग़रीब, ग़रीब इतनी बार ग़रीब कि लगा कि कोई ग़रीबों को ढूंढ रहा है यह बताने के लिए कि उसे धन्ना सेठों से कोई मोहब्बत नहीं है। पूरे भाषण में धन्ना सेठ, फैक्ट्री वाले और सत्ता के गलियारे में पहुंच रखने वाले उद्योगपति ख़लनायक की तरह उभरते हैं। मथुरा में प्रधानमंत्री के भाषण में किसी की ठीक से धुलाई हुई तो वो धन्नासेठ थे, किसी का नाम तो नहीं लिया मगर उनके कई ऐसे काम गिनाए जिससे इतना तो साफ हो गया कि वह खुद को क्लोज़र टू ग़रीब ही रखना चाहते हैं।

विपक्ष ने धन्नासेठों को विलेन बनाया तो प्रधानमंत्री ने भी उन्हें बना दिया। यानी विलेन तो धन्नासेठ ही है। कौन कहता है कि हमारी राजनीति राइट विंग हो गई है। विपक्ष, नीतियों के जानकार, पत्रकार और कई लोगों ने पूछा कि अच्छे दिन कहां हैं तो प्रधानमंत्री ने अच्छे दिन नारे से छुटकारा ही पा लिया। एक नया नारा गढ़ दिया कि बुरे दिन चले गए। अब अखबारों की सुर्खियों में अच्छे दिन कब आएंगे कि जगह कल से आप देखेंगे कि बात-बात पर बुरे दिन चले गए की टैग लाइन होगी।

प्रधानमंत्री पूरी रौं में थे। आज वो अच्छाई से ज्यादा बुराई के अगेंस्ट थे। बुरे दिन चले गए। बुरे काम बंद हो गए। बुरी सोच बंद हुई कि नहीं हुई। बुरे हालात बदले कि नहीं बदले। बुरे कारनामे बंद हुए कि नहीं हुए। बुरे दिन चले गए। सवालों को पलटकर सवाल में बदलने का अंदाज़ कोई प्रधानमंत्री से सीखे।

शायद ऐसा लगा कि उन्होंने अच्छे दिन पर सवाल उठाने वाले सभी को एक कतार में खड़ा कर दिया। उनके अनुसार ये वो लोग हैं जिनकी पहुंच दिल्ली की सत्ता के गलियारे तक हो गई थी। जो एक साल पहले तक भाई भतीजावाद के नाम पर कोयला खदानों का आवंटन करवा रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैंने चोर लुटेरों के खेल बंद करवा दिये हैं। ऐसे लोगों को इस बात से परेशानी है कि सबके अच्छे दिन आए, लेकिन कुछ लोगों के बुरे दिन आ गए। उन्हें परेशानी हो रही है। वे चीख रहे हैं, चिल्ला रहे हैं। जिन लोगों ने देश को लूटा उनके अच्छे दिन की गारंटी नहीं दी थी। उनके तो और भी बुरे दिन आने वाले हैं।

क्या सिर्फ ऐसे ही लोग अच्छे दिन पर सवाल कर रहे हैं जिन्हें सत्ता के गलियारे में रेवड़ियां नहीं मिल रही हैं। वैसे प्रधानमंत्री ने अच्छे दिन के भी गुण गिनाए। उनकी एक बात मुझे व्यक्तिगत तौर पर अच्छी लगी और यकीन करना चाहूंगा कि वो बात सही हो। जब उन्होंने कहा कि दिल्ली में पावर सेंटर से ज्यादा पावर सर्कलों का बोलबाला था और अभिमन्यु को तो आठ कोठे जीतने पड़े थे यहां पर तो पावर सर्कल के पता नहीं सैकड़ों कोठे बने हुए थे और भाइयों बहनों आपके आशीर्वाद से वो पावर सर्कल के सैकड़ों कोठे ध्वस्त करके आज देश में दिल्ली के गलियारों में दलालों के लिए कोई जगह नहीं है। उनके बुरे दिन आना स्वाभाविक है. और इसलिए वो ज़रा चीख रहे हैं।

राहुल गांधी ने सूट बूट की सरकार कहा तो यही आशय था कि दिल्ली के गलियारे में उद्योगपतियों की पहुंच हो गई है। अख़बारों में भी ऐसी ख़बरें रहती हैं, लेकिन उन्होंने बहुत ज़ोर दिया कि उनकी सरकार में कोई घोटाला नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री ने विरोधियों के साथ धन्नासेठों को भी नहीं बख्शा। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे रसायनिक खाद बनाने वाली फैक्ट्रियों के धन्ना सेठ किसानों को यूरिया चोरी करते हैं। उन्होंने कहा,

हमने फर्टिलाइज़र पर यूरिया पर नीम का कोटिंग लगाना शुरू किया है। पहले जो सब्सिडी पहले किसान तक नहीं पहुंचती थी। ये धन्नासेठ उर्वरक चुरा कर अपनी कैमिकल फैक्टरियां चलाते थे। हमने फर्टिलाइज़र पर नीम कोटिंग कर दिया अब वो किसी कैमिकल फैक्टरी के काम नहीं आएगा।

प्रधानमंत्री ने फर्टिलाइज़र फैक्ट्री चलाने वालों पर एक गंभीर आरोप लगाया है। जिससे यह सवाल बनता है कि कितने ऐसे धन्नासेठों के खिलाफ यूरिया चोरी और सब्सिडी चोरी के मामले दर्ज हुए हैं। आप गूगल कर सकते हैं कि कौन कौन धन्नासेठ फर्टिलाइज़र फैक्ट्री चलाते हैं। हमने गूगल चेक किया तो वाकई सरकार ने मार्च में ऐसा फैसला किया है।

30 मार्च के पीटीआई की खबर के अनुसार सरकार ने घरेलु उर्वरक कंपनियों के लिए नीम कोट यूरिया अनिवार्य कर दिया है। इससे हर साल सरकार की 6500 करोड़ सब्सिडी बचेगी। केंद्रीय उर्वरक मंत्री अनंत कुमार ने कहा है कि नीम कोट यूरिया के इस्तमाल से फसलों का उत्पादन 15-20 प्रतिशत बढ़ जाता है। फर्टिलाइज़र एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है और कहा है कि उद्योग कई वर्षों से मांग करता रहा है कि नीम कोट यूरिया के उत्पादन पर लगी सीमा को हटा दिया जाए। इससे मिट्टी की पोषकता को बरकरार रखने में मदद मिलेगी।

प्रधानमंत्री ने भी उत्पादकता बढ़ाने की बात की, लेकिन इस फैसले को ऐसे बताया जैसे चोरी रोकने के लिए लिया गया हो। मनी कंट्रोल डॉट कॉम की एक खबर मिली सात जनवरी 2015 की। पीटीआई और मनी कंट्रोल डॉट कॉम की खबर में इस बात का ज़िक्र नहीं है कि ये कदम सब्सिडी और यूरिया की चोरी रोकने के लिए उठाए गए हैं।

मनीकंट्रोल डॉट कॉम की ख़बर में फर्टिलाइज़र एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक सतीश चंद्रा ने कहा है कि हम तो कई सालों से विनती कर रहे थे कि 35 प्रतिशत की बंदिश हटे। इससे उत्पादकता बढ़ेगी और नाइट्रोजन की मात्रा कम निकलने से फसलों में कीड़े नहीं लगेंगे। लेकिन इससे यूरिया का पांच प्रतिशत तक दाम बढ़ जाएगा। यानी प्रति टन 200 से 300 रुपये देने होंगे जो किसान खुद देंगे, सरकार इस पर सब्सिडी नहीं देगी।

अब यह साफ नहीं है कि सरकार ने चोरी पकड़ने के बाद यह कदम उठाया या फर्टिलाइज़र एसोसिएशन की विनती को जायज़ मानकर। प्रधानमंत्री ने एक और बड़ी बात कही जो अगर कोई दूसरा कह दे तो उसे तुरंत विकास विरोधी और कम्युनिस्ट करार दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कितनी भी बड़ी कंपनी क्यों न हो वो ज्यादा रोज़गार नहीं दे पाती है। रोज़गार देता है 6 करोड़ छोटा व्यापारी, छोटे कारखाने, जो सब्ज़ी का ठेला चलाते हैं, दूध बेचते हैं, अखबार बेचते हैं ऐसे 6 करोड़ लोग 12 करोड़ लोगों को रोज़गार देते हैं।

काला धन कितना आया ये तो नहीं बताया, लेकिन यह ज़रूर कहा कि भारत का सफेद धन अब बाहर नहीं जा रहा है। सरकार ग़रीबों की समर्थक लगे इसलिए उन योजनाओं पर ही विशेष रूप से जोर दिया जिनका संबंध खेती, पेंशन और बीमा से हो। हमने गूगल किया तो पता चला कि पर्यटन मंत्रालय विदेशी पर्यटकों के आंकड़े जारी करता है जिसके अनुसार, 2012 में 65 लाख 77 हज़ार पर्यटक भारत आए, 2013 में 69 लाख 67 हज़ार पर्यटक भारत आए, 2014 में 74 लाख 62 हज़ार पर्यटक भारत आए। इन आंकड़ों को देखते हुए यह सुखद हैरानी हुई कि 1997 से लेकर 2014 के बीच विदेशी पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ी ही है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले एक साल में बिजली का जितना उत्पादन हुआ है उतना बीस साल में नहीं हुआ। इसका लाभ आप लोग महसूस भी कर रहे होंगे कि अब पहले बिजली कम जाती होगी। मई के पहले हफ्ते में लोकसभा में बिजली राज्यमंत्री पीयूष गोयल ने बयान दिया कि इतनी बिजली पैदा हो गई है कि लोग फ्री में देने को तैयार थे लेकिन राज्य पर्याप्त बिजली नहीं खरीद रहे हैं।

प्रधानमंत्री की सारी बातों का ज़िक्र नहीं कर पा रहा हूं, क्योंकि उन्होंने खुद कहा है कि 365 दिन जो काम किया है अगर मैं सारा गिनाने लग जाऊं तो 365 घंटे कम पड़ जाएंगे। मुझे तो ठीक से एक घंटे भी नहीं मिलते हैं प्राइम टाइम के लिए। तो बुरे दिन चले गए ये अच्छा स्लोगन है या अच्छे दिन आएंगे ये बढ़िया है। मथुरा में प्रधानमंत्री धारणा को धराशायी कर रहे थे या धन्नासेठों को।

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