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This Article is From Sep 01, 2014

शिक्षक दिवस पर मोदी की एक्स्ट्रा क्लास

Ravish Kumar
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:35 pm IST
    • Published On सितंबर 01, 2014 22:31 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:35 pm IST

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। बिना भाषण के लोकतंत्र का काम नहीं चल सकता। मगर भाषण को लेकर विवाद न हो तो भाषण का काम नहीं चल सकता है। मुझे लगा कि विवाद इसलिए है कि दिन है टीचर्स का, लेकिन प्रधानमंत्री बच्चों को क्यों संबोधित कर रहे हैं क्योंकि उनके लिए तो अभी 14 नवंबर नहीं आया। शिक्षक दिवस के दिन छात्र अपने−अपने शिक्षकों से मिलते हैं, उन्हें कार्ड देते हैं, उनका शुक्रिया अदा करते हैं और कई शिक्षक भावुक होकर घर भी लौटते हैं कि आज छात्रों से कितना स्नेह और सम्मान मिला।

इस बार विवाद हो रहा है कि शिक्षक दिवस के दिन प्रधानमंत्री जबरन छात्रों को बिठाकर भाषण सुनाएंगे और इसकी तैयारी में दिन भर शिक्षक प्रिंसिपल साहब लगे रहेंगे। राजनीति में संवाद एक जायज़ तरीका है और प्रधानमंत्री संवाद करते रहें तो दिक्कत क्या है? पहले उस सर्कुलर पर एक नज़र जिसे लेकर विवाद हुआ।

दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने 29 अगस्त को दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को निर्देश जारी किया। पत्र में निर्देश शब्द का ही इस्तेमाल हुआ है। यही कि प्रधानमंत्री दोपहर तीन बजे से पौने पांच बजे तक देश के बच्चों को संबोधित करेंगे और सवाल जवाब होगा। इसका प्रसारण दूरदर्शन के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनलों से होगा। पत्र में लिखा है कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय का निर्देश है कि पूरे देश के स्कूलों को ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे बच्चे प्रधानमंत्री के भाषण का सीधा प्रसारण देख सकें। इसलिए सारे बच्चों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से एक घंटा पहले यानी ढाई बजे से पौने पांच बजे तक के लिए इकट्ठा करना होगा। इस दिन सभी सरकारी स्कूलों में एक ही शिफ्ट होगी। वह भी एक से साढ़े पांच बजे तक।

प्राइवेट स्कूल अपने संसाधनों की ज़रूरत के अनुसार पांच सितंबर को सुबह आठ बजे से पांच बजे तक का समय चुन सकते हैं या एक बजे से साढ़े पांच का समय चुन सकते हैं। स्कूलों के प्रमुखों को पर्याप्त संख्या में टीवी सेट-टॉप बॉक्स, एम्प्लिफ़ायर, प्रोजेक्टर, जेनरेटर सेट, इनवर्टर का इंतज़ाम करना होगा ताकि छात्र पीएम का भाषण देख-सुन सकें।

सरकारी स्कूलों में इसके लिए जो खर्चा आएगा, वह वीकेएस फंड से भरा जाएगा। वीकेएस यानी विद्यालय कल्याण समिति के फंड से। तैयारियों के बारे में सभी ज़िला शिक्षा निदेशालयों को दो सितंबर को शाम पांच बजे तक रिपोर्ट देनी होगी। सारे प्रधानाचार्यों को निर्देश दिया जाता है कि वे अभिभावकों और माता−पिता को इसकी जानकारी दे दें। स्कूल की डायरी में लिखकर, एसएमएस के ज़रिये, नोटिस बोर्ड पर लिखकर आदि−आदि।

मिड-डे मील भी डेढ़ से दो बजे के बीच दिया जाएगा और इसकी सूचना मिड-डे मील वालों को पहले से दे दी जाए। अगर ज़रूरत हो तो इस कायर्क्रम के लिए स्कूल प्रबंधन समिति के सदस्यों को भी बुलाया जा सकता है। सारे प्रधानाचार्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भाषण के सीधे प्रसारण के दौरान स्कूलों में अनुशासन बना रहे।

कायर्क्रम शुरू होने से पहले प्रधानाचार्यों को यह डिटेल देना होगा कि कितने छात्र ऑनलाइन मॉड्यूल से देख रहे हैं। सभी डीडीई शिक्षा अधिकारी, उप शिक्षा अधिकारी जब भाषण चल रहा होगा, तब स्कूलों का दौरा करेंगे यह देखने के लिए कि जैसा कहा गया है, वैसा पालन हो रहा है या नहीं। अगर इसमें कोई लापरवाही हुई तो उसे गंभीरता से लिया जाएगा।

इस निर्देश पत्र पर आईएएस पद्मिनी सिंगला के दस्तखत हैं। आज केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि निर्देश जारी नहीं किए गए, जबकि दिल्ली सरकार की चिट्ठी में तो यही लिखा है कि मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से निर्देश आया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा है, 'मैं यही कहना चाहती हूं कि यह गतिविधि पूरी तरह से स्वैच्छिक है। अगर इस मुद्दे पर कोई गलतफहमी हुई है और इसका राजनीतिकरण किया जा रहा है तो यह अफसोसनाक है।'

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की सचिव राजश्री भट्टाचार्य ने राज्यों के शिक्षा सचिवों को इस संबंध में खत लिखा है। इस खत में ज़रूर यह लिखा है कि सारे स्कूल 'may make' अरेंजमेंट यानी सारे स्कूल चाहें तो ऐसा प्रबंध कर सकते हैं ताकि बच्चे प्रधानमंत्री के भाषण का सीधा प्रसारण देख सकें।

दूर दराज़ के इलाकों में जहां टीवी या सिग्नल नहीं है, वहां रेडियो सेट का इंतज़ाम किया जाए। इसमें यही लिखा है कि कार्यक्रम के तुरंत बाद फीडबैक लिया जाएगा कि कितने बच्चे उपस्थित हुए कितने स्कूलों ने प्रंबंध किया इसकी पूरी रिपोर्ट राज्यों को भेजनी होगी।

भाषण तो सुनना ही पड़ेगा, नहीं तो कोई अफसर देख लेगा। राजनीतिक विवाद पर आने से पहले पहले इसके पहलु ए नामकरण पर आते हैं। तमाम सर्कुलर में पांच सितंबर के दिन को शिक्षक दिवस ही कहा गया है। मगर शायद विज्ञापनों में गुरुत्सव कहने से राजनीतिक दलों को आपत्ति हुई है।

मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने यह कहा है कि उस दिन निबंध प्रतियोगिता होगी, जिसका नाम गुरुत्सव है। तमिलनाडु के कई दलों डीएमके, पीएमके ने एतराज़ किया है। करुणानिधि ने कहा है कि केंद्र इस दिवस का हिन्दी नामकरण कर तमिल भाषा को पराजित करने की साज़िश कर रहा है। तमिल संस्कृति को नष्ट करना चाहता है। एनडीए की सहयोगी पार्टी एमडीएमके नेता वाइको ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह टीचर्स डे को गुरु उत्सव के रूप में मनाने का फैसला वापस ले।

पश्चिम बंगाल शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी ने कहा है कि हमें भी निर्देश मिले हैं मगर हम पालन नहीं करेंगे। राज्य सरकार अपने कार्यक्रमों का अनुसरण करेगी। महाराष्ट्र में स्कूलों का कहना है कि गणेश चतुर्थी के कारण चार सितंबर तक राज्य के स्कूल बंद हैं, इसलिए इंतज़ाम करना मुश्किल है। साथ ही वहां आचार संहिता लागू है।

बिहार के शिक्षा मंत्री वृषण पटेल ने सर्कुलर का स्वागत करते हुए सभी अफ़सरों को हर संभव कोशिश करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन उनकी सलाह है कि प्रधानमंत्री को छात्रों से मुलाक़ात 14 नवंबर को बाल दिवस पर करनी चाहिए थी। उनका कहना है कि ये आधी अधूरी कोशिश है, चाचा नेहरू की तरह चाचा मोदी बनने की…

मध्य प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री का कहना है कि निजी स्कूलों के पास सुविधाएं हैं, इसलिए उन्हें दिक्कत नहीं होगी। लेकिन जहां तक सरकारी स्कूलों, वह भी दूर दराज़ के इलाके के स्कूलों का सवाल है, ये एक बड़ी चुनौती है और हम हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी ने एतराज़ जताया है कि निर्देश जारी कर ज़बरन बच्चों को बिठाकर भाषण सुनाया जा रहा है। शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करते हैं और उस दिन कई बार राष्ट्रपति का भाषण भी होता है। तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के कारण विवाद हो रहा है, इसलिए विवाद हो रहा है कि स्कूलों को निर्देश दिया गया है।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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