हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका के साथ आप हैं या नहीं मगर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज उनके साथ हैं। उन्होंने कहा है कि वे मुख्यमंत्री खट्टर से बात करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि वे ईमानदार अफसर हैं मगर तबादले का अधिकार सरकार का है। मामला इतना सिम्पल होता है इस बात पर डिम्पल पड़ जाते। अफसरों के तबादले संदेहों से परे होते तो कैट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के आदेश से लेकर तमाम तरह के निर्देश न होते। 24 साल में 46 बार तबादला हो तो हो सकता है कि थक हार कर आप ही कहने लगें कि खेमका ही ख्वामखाह पंगे करते होंगे।
लेकिन पंगे करने की आदत न होती तो इनकी जांच पर बीजेपी मुद्दा न बनाती, संसद में बहस करती और आप रॉबर्ट वाड्रा जैसे ताकतवर व्यक्ति के बारे में ये सब नहीं जान पाते। अब तो हरियाणा सीएजी ने भी खेमका की जांच को सही पाया है जिससे पता चलता है कि खेमका ख्वामखाह पंगे नहीं करते हैं। सोच समझ कर हाथ डालते हैं। जिस अफसर में इतने ताकतवर शख्स पर हाथ डालने की फितरत हो उसे ख्वामखाह कौन अपने पास रखना चाहेगा।
वाड्रा की जांच को सीएजी ने सही बता दिया मगर हुड्डा सरकार ने उन पर जो आरोप पत्र दायर किये थे वो अभी तक कायम है। तब भी खट्टर साहब कहते हैं कि वे ईमानदार हैं और विज साहब कहते हैं कि मैं उनके साथ हूं। देश भर के ट्रांसपोर्ट विभाग में क्या होता है इसे समझना रॉकेट साइंस नहीं है। पॉकेट साइंस है। अगस्त 2014 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि आरटीओ में पैसा बहुत चलता है इसलिए जल्दी ही इसे समाप्त कर नया सिस्टम लाएंगे। मगर ऐसे किसी सिस्टम के आने से पहले ही खेमका जैसे अफसर हटा दिए गए। तो क्या यह सवाल आपके मन में भी है कि कहीं गाड़ी से ज्यादा पैसा चलने वाले विभाग में सख्ती की सजा तो नहीं मिली? अगर मुख्यमंत्री खट्टर के अनुसार खेमका ईमानदार हैं तो क्या इनके जैसे अफसर की ट्रांसपोर्ट जैसे ईमानदार विभाग में और ज़रूरत नहीं है।
खेमका 128 दिन भी ट्रांसपोर्ट सचिव के पद पर नहीं रह पाए। हुड्डा सरकार ने उन्हें आर्काइव डिपार्टमेंट भेज दिया था। खट्टर साहब ने आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया। अभिलेखागार से संग्रहालय में। खट्टर सरकार आते ही खेमका को ट्रांसपोर्ट विभाग में सचिव बनाया गया और हुड्डा के प्रिंसिपल सेक्रेटी एसएस संधु को पुरात्तव विभाग में भेज दिया गया। अब संघु साहब ट्रांसपोर्ट के अतिरिक्त मुख्य सचिव बन गए हैं। 2013 में भी आर्काइव डिपार्टमेंट से रातों रात तबादला कर चुनावी ड्यूटी पर भेज दिया गया था। तब भी इसे लेकर खूब विवाद हुआ था। तबादले के अधिकार सरकार का होता है और इसके कई कारण होते हैं। लेकिन खेमका के साथ जो हो रहा है क्या वो वाकई इतना सामान्य है?
ऑल इंडिया सिविल सर्विस एक्ट के रूल के तहत डायरेक्टर से ऊपर के अधिकारी का कार्यकाल दो साल का होना ही चाहिए। नवंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे कि वे अपने यहां सिविल सर्विसेज़ बोर्ड की स्थापना करे। जो तबादले से लेकर पोस्टिंग, प्रमोशन और जांच वगैरह का काम देखे। अदालत ने यह भी कहा था कि सिविल सर्विसेज़ बोर्ड के सुझावों को कार्यपालिका खारिज कर सकती है मगर इससे एक प्रक्रिया कायम हो जाएगी और सबकुछ रिकॉर्ड पर होगा। अदालत ने तीन महीने के भीतर बोर्ड बनाने की बात कही थी, 30 मार्च 2015 की हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट है कि सिर्फ चार राज्यों ने ही ऐसे बोर्ड बनाए हैं। हरियाणा, महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ और मिजोरम। बाकी राज्यों ने नहीं बनाए हैं। मनमाने तबादलों को रोकने और तय कार्यकाल के लिए 77 पूर्व अफसरों ने अदालत में जनहित याचिका दायर की थी।
यह बात सार्वजनिक रूप से जाहिर नहीं है कि खेमका के तबादले में सिविल सर्विसेज बोर्ड की कोई भूमिका रही है या नहीं लेकिन एकाध बार को छोड़कर उन्होंने कहीं टिक कर काम नहीं किया। करने नहीं दिया गया। केंद्र के कार्मिक मंत्रालय ने जनवरी 2014 में नियम भी बना दिया कि आईएएस आईपीएस और आईएफएस की पोस्टिंग कम से कम दो साल की होगी। हृदयेश जोशी ने आप फिर एक रिपोर्ट फाइल की है कि सरकार बदलने से ईमानदार अफसरों के दिन नहीं बदलते। इनका इस्तमाल विपक्ष में ही ज्यादा अच्छा होता है। ऐसा ही मामला हरियाणा के ही संजीव चतुर्वेदी का है। 5 साल में 12 तबादले हुए हैं।
संजीव चतुर्वेदी ने एम्स में कई घोटालों को उजागर किया था लेकिन हर्षवर्धन ने उन्हें मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद से हटा दिया। ऐसे भी तथ्य सामने आए कि चतुर्वेदी के तबादले के लिए मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री नड्डा साहब ने पत्र लिखा था। संजीव चतुर्वेदी ने कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रायब्यूनल में हलफनामा दायर कर नियुक्तियों के लिए बनी केंद्र की कैबिनेट कमेटी पर ही सवाल उठा दिये हैं। इस कमेटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री ही होते हैं। संजीव चतुर्वेदी ने कैट के सामने 14 ऐसे मामले पेश किये हैं जिसमें केंद्र सरकार ने नियमों में ढील देकर कई अफसरों के तबादले 2 से 4 मीहने के भीतर किये हैं। दिल्ली सरकार ने इसी संजीव चतुर्वेदी को अपने यहां भेजने के लिए कहा था मगर आज तक नहीं भेजा गया है।
वैसे इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार दिल्ली डायलॉग कमीशन के मेंबर सचिव आशीष जोशी से एक महीने के भीतर ही चार्ज ले लिया गया। अखबार ने सूत्रों के अनुसार खबर लिखी है कि आशीष जोशी ने आम आदमी पार्टी के वोलेटिंयर को कोर्डिनेटर बनाने से इंकार कर दिया था। खबरों के मुताबिक आशीष खेतान ने फोन कर उन्हें पद छोड़ने के लिए कह दिया। इस पर दिल्ली सरकार का भी पक्ष होगा जो शायद संजय सिंह इस शो में दे दें। लेकिन कुल मिलाकर बात यह आती है कि खेमका के तबादले को क्यों न समझा जाए कि एक ईमानदार अफसर को प्रताड़ित किया जा रहा है। ईमानदार अफसर के मामले में सारे दल एक से हैं।
This Article is From Apr 02, 2015
क्या खेमका जैसे अफसर की ट्रांसपोर्ट जैसे ईमानदार विभाग में और ज़रूरत नहीं?
Ravish Kumar
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Updated:अप्रैल 02, 2015 22:47 pm IST
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Published On अप्रैल 02, 2015 21:12 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 02, 2015 22:47 pm IST
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