यह ख़बर 24 सितंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

दोषी कंपनियों को फिर मौका मिले?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। हमने चांद को भी छू लिया और मंगल की कक्षा में भी प्रवेश कर गए। इस खुशी का इज़हार हिन्दुस्तान ने इतने तरीके से किया है कि ज़िक्र करना मुश्किल है। यहां तक वह भी खुश हैं जो मंगल को अमंगल समझ उस दिन दाढ़ी नहीं बनाते, बाल नहीं कटाते और मांगलिक से शादी से नहीं करते। धर्म, विश्वास, अंधविश्वास, विज्ञान सब आज बधाई बस में सवार हो गए और इतराते रहे। इसरो की इस कामयाबी ने हिन्दुस्तान के तमाम अंतर्विरोधों को पाट दिया और सबको गदगद कर दिया। 2008 में चंद्रयान के बाद मंगलयान ने इसरो को जनजन में जननायक के रूप में स्थापित कर दिया है हिन्दुस्तान की लड़कियां उपग्रह में प्रवेश करने की खबर आने के बाद एक दूसरे को बधाई देती इन वैज्ञानिकों से प्रेरणा पा सकती हैं।

जूड़े में जैस्मिन के फूल झूल रहे हैं और खुशी के मारे साड़ियों के कलफ़ टूट रहे हैं। महिला वैज्ञानिकों की ये तस्वीर गांव-गांव में किस तरह के ख्वाब जगा देगी आप कल्पना नहीं कर सकते।

15 अगस्त 2012 को लाल किले की प्राचीर से जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगल मिशन का ऐलान किया तब दुनिया ने उन्हें सवाल भरी नज़रों से देखा था। लेकिन, सालभर से थोड़े अधिक समय में भारत ने 5 नवंबर 2013 को मंगलयान का प्रक्षेपण कर दिया।

फिर क़रीब सालभर के अंतर पर ही आज 24 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे कक्षा में स्थापित होते देखा। वैज्ञानिकों के बीच जाकर उनका हौसला बढ़ाया। पुराने मिशन की पुरानी चीज़ों के इस्तेमाल से भारत ने इस मिशन की लागत इतनी कम कर दी कि दुनिया हैरान है। एशिया में अकेला देश है भारत जिसने यह कामयाबी पाई है। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा है कि विश्वकप जीतने पर झूम सकते हैं तो मंगलयान की कामयाबी पर क्यों नहीं। जन−जन में जश्न होना चाहिए। ये कोई साधारण कामयाबी नहीं है।

अमरीका का मंगल मिशन चार हज़ार करोड़ का और भारत का सिर्फ साढ़े चार सौ करोड़ का। इसरो की तरह सुप्रीम कोर्ट ने भी एक शानदार काम किया है। विभिन्न राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच चल रहे कोयलायान को पकड़ कर भूमिगत कर दिया है। राजनीतिक संपर्कों का लाभ उठाकर जिन कंपिनयों ने मुफ्त में कोयला खदान लीं और उसके आधार पर अपने शेयरों की बढ़ी हुई कीमतों से बेशुमार मुनाफा कमाया, उन सब पर जुर्माना लगा है। एक बड़ी बात यह हुई है कि सुप्रीम कोर्ट ने सीएजी रिपोर्ट के हिसाब को सही माना है।

पूर्व सीएजी विनोद राय ने एक हिसाब दिया था कि जिन कंपनियों को कोयला खदान मिलीं उन्हें प्रति टन कोयला निकालने पर 295 रुपये का लाभ होगा। इस आधार पर उन्होंने एक लाख 86 हज़ार करोड़ के नुकसान का अनुमान बताया था। तब कांग्रेस पार्टी और पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम वगैरह कहा करते थे कि ज़ीरो नुकसान हुआ है। कोर्ट ने फैसला दिया है कि अब जो कोयला निकाला जाएगा और पहले जो निकाला गया है उन सब पर कंपनियों को 295 रुपये प्रति टन जुर्माना देना होगा।

1997 से 2014 के बीच करीब 31 करोड़ टन कोयला निकाला गया है जिन पर जुर्माने की राशि 9000 करोड़ के आस पास बैठती है। 40 खदानों को अगले छह महीने तक चालू रहने का आदेश है उन पर भी जुर्माना लगेगा। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस आरएम लोढा ने 25 अगस्त के फैसले में कहा था कि ये कोल ब्लॉक मनमाने तरीके से दिए गए।

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि सरकार जल्दी ही फैसला कर लेगी कि किस ब्लॉक की नीलामी होगी और किसकी नहीं। अब देखना होगा कि 2-जी के बाद हुई नीलामी की तरह नतीजे आते हैं या उस नीलामी से भी सरकारी खज़ाने की भरपाई हो सकेगी।

कोयला घोटाले के पुरातात्विक अवशेष नरसिम्हा राव से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकारों में मिलते हैं। जब यह घोटाला सामने आया था तब कांग्रेस घिर गई थी बाद में बीजेपी शासित राज्य सरकारें और पश्चिम बंगाल की वाम सरकार भी घेरे में आ गई।

आज के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर आप नेता और वकील प्रशांत भूषण का नाम ट्रेंड होने लगा है। इस मामले में प्रशांत भूषण के अलावा मनोहर लाल शर्मा, बनवारी लाल पुरोहित और वकील सुदीप श्रीवास्तव ने भी याचिका दायर की थी। आम आदमी पार्टी की तरफ से सब अरविंद, कुमार विश्वास ने तस्वीरें ट्वीट की हैं,
दावा किया जाने लगा कि पार्टी और उसके नेताओं ने ही ज़बरदस्त संघर्ष किया।

धरना प्रदर्शन की पुरानी तस्वीरें इंटरनेट जगत में पुनर्वितरित की गईं और 26 अगस्त 2012 को जंतर-मंतर पर दिया गया प्रशांत भूषण का पुराना भाषण भी जारी किया गया। अरविंद केजरीवाल से लेकर योगेंद्र यादव तक ने प्रशांत भूषण को सार्वजनिक बधाई दी।
नीतीश कुमार ने भी प्रशांत भूषण को बधाई दी है। बीजेपी की तरफ से प्रकाश जावडेकर और हंसराज अहीर ने केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास याचिका दायर की थी इसी के आधार पर सीबीआई जांच हुई, लेकिन इन दोनों ने 2004−2009 के बीच हुए आवंटन की जांच की मांग की थी। एनडीए के दौर के बारे में कुछ नहीं कहा। बाद में कांग्रेस के सांसदों ने लिखा कि एनडीए दौर के आवंटन की जांच की जाए।

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सज़ा क्या होगी इसकी सुनवाई सीबीआई की अदालत में हो रही है, लेकिन इस फैसले पर अदालत के फैसले के सम्मान से ज्यादा राजनीतिक हलचल क्यों नहीं हैं। क्या आप सुन पा रहे हैं कि कोई राजनीतिक दल मांग कर रहा हो कि दोषी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। जिनके नाम एफआईआर में हैं, उन्हें नीलामी में शामिल होने का मौका नहीं मिलना चाहिए। इस फैसले का राजनीतिक एक्शन क्या है। क्या कांग्रेस-बीजेपी ज़िम्मेदारी ले रहे हैं। यह सब क्यों नहीं हो रहा है। फिर इस फैसले को लेकर क्या हो रहा है बात करेंगे, प्राइम टाइम में।

(प्राइम टाइम इंट्रो)