तनावग्रस्त लोगों के लिए आज एक से एक ख़बर है. तूफानी बाबा के अंदाज़ में दावा कर सकता हूं कि प्रस्तावना सुनते ही उनका ब्लड प्रेशर ठीक हो जाएगा. सुस्त चाल से चलने वाली अदालतें बुलेट ट्रेन हो गई हैं. 18 साल से जिस मुकदमे में सज़ा का इंतज़ार हो रहा था, चंद मिनटों में बरियों के बरी, सल्तनत ए बरी के बादशाह सलमान ख़ान बरी होकर बाहर आ गए. हमने और बाकी मीडिया ने इस मसले में इंसाफ वगैरह को लेकर काफी बहस की और इसी के साथ उन बहसों की भी करारी हार होती है. गवाहों को डराने धमकाने और भगाने के वे सारे किस्से किसी परी लोक की दास्तान बन चुके हैं. ग़रीब आदमी इंसाफ़ के सुनहरे ख़्वाब को देखता रहे, लोकतंत्र में उम्मीद ही वो किरण है जो दिखती किसी और की छत पर है, गिरती किसी और के आंगन में है.
अब हम यहां से अपनी कथा का ट्रैक बदल देते हैं. 35 प्रतिशत युवाओं से भारत की आबादी की 65 फीसदी जगह भर गई है. फिर इस देश में 20-22 साल के नौजवान यही सोचने में तीस-चालीस साल लगा देते हैं कि यार राजनीति में आएं या नहीं. पता नहीं मम्मी क्या बोलेगी, डैडी क्या कहेंगे. लेकिन 91 साल की उम्र में नारायण दत्त तिवारी आज अपने 37 साल के पुत्र के साथ दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय चले गए. ख़बर चली कि तिवारी बीजेपी में शामिल हो गए हैं मगर सफाई आई कि वे नहीं, अपने बेटे को शामिल कराने आए थे.
बीजेपी ने सफाई न दी होती तो 91 साल की उम्र में तिवारी दलबदल कर रिकार्ड बना देते. कुछ समय पहले तक अपने पुत्र को लेकर सोनिया गांधी से मिलते रहे तिवारी अमित शाह से मिल गए. दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहने वाले वे अकेले कांग्रेसी हैं. भले ही तिवारी ने बीजेपी की सदस्यता न ली हो लेकिन ऐन चुनाव के वक्त कोई नेता दूसरी पार्टी के अध्यक्ष के घर पर कॉफी पीने नहीं जाता है. उन्होंने सदस्यता फॉर्म भले न भरा हो मगर बेटे की खातिर वे कांग्रेस की काया से निकल कर बीजेपी की काया में प्रवेश कर ही गए होंगे. राजनीतिक कायाप्रवेश के इस मौके पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पुष्प गुच्छ लेकर मौजूद थे. कहीं दूसरी सफाई ये न आ जाए कि रोहित ही नारायण दत्त तिवारी को लेकर गए थे, बीजेपी ने उन्हें नहीं बुलाया था. 6 साल तक मुकदमा लड़कर नारायण दत्त तिवारी को पिता के रूप में प्राप्त करने वाले रोहित शेखर भी बीजेपी में शामिल हो गए. रोहित ने तमाम मान्यताओं को अपनी इस लड़ाई से तोड़ा है और मां और पुत्र के लिए उस पिता से अधिकार हासिल किया जो आज बीजेपी के मुख्यालय में अमित शाह से पुष्प गुच्छ रिसीव करते हुए दिखाई दिये. रोहित शेखर भी उत्तराखंड में कहीं से टिकट प्राप्ति की अभिलाषा रखते हैं. तिवारी परिवार के बीजेपी में आने से उन पर निशाना बनाने वाने साइबर ट्रोल यानी गाली-दस्ते की खुशी का ठिकाना नहीं रहा होगा. तिवारी को लेकर बीजेपी ने न जाने कितनी बातें कहीं. राज्यपाल के पद पर रहते हुए उनकी सीडी आ गई थी तब बीजेपी ने तिवारी की कथित हरकतों की काफी निंदा की थी. ऐसा ही होता है पुराने दल से नेता जब किसी नए दल में जाते हैं तो उसकी पुरानी बातों को भुला देते हैं और पुराने दल की पुरानी बातों को याद रखते हैं ताकि नए दल में जाकर पुराने दल पर हमला कर सकें. आप दर्शकों को मेरा यह वाक्य जटिल लगा होगा लेकिन भारतीय राजनीति का यह एक सूत्र वाक्य है. इतनी आसानी से समझ भी नहीं आना चाहिए.
उत्तराखंड बीजेपी के नेता दिल छोटा न करें. वहां जाने के बारे में बिल्कुल न सोचें जहां से लोग उनके यहां आ रहे हैं. कांग्रेस में जो बचे खुचे हैं उनकी मुश्किलें भी समझता हूं. यही सोच रहे होंगे कि रह जाएं कि चलें जाएं. बीजेपी के बड़े नेताओं की उदारता की मिसाल दी जानी चाहिए. कांग्रेस के नेताओं को अपने यहां शामिल कराते हुए उनके मन में किसी प्रकार की कोई ग्लानि नहीं है. उत्तराखंड की तरह अरुणाचल और असम में तो पूरी या अधिकांश कांग्रेस ही बीजेपी में आ गई. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को उत्तराखंड में सोनिया कांग्रेस और मोदी कांग्रेस के बीच मुकाबला जैसी हेडलाइन देखकर सतर्क हो जाना चाहिए. मोदी या शाह ने कभी सपने में भी न सोचा होगा कि उम्मीदवार उधार लेने वाली उनकी उदार पार्टी को कोई मोदी कांग्रेस लिख देगा. कांग्रेस मुक्त का नारा था, मगर कांग्रेस का नाम उनसे चिपक गया. लतीफे भी बन रहे हैं कि उत्तराखंड में पुरानी कांग्रेस को चुनने के लिए बीजेपी को वोट दें. सुबह-सुबह कांग्रेस के एक मंत्री यशपाल आर्या बीजेपी में शामिल हुए, शाम को बेटे सहित टिकट मिल गया. राजनीति में टिकट प्राप्ति की तत्काल सेवा भारतीय रेल की तत्काल सेवा से भी आगे निकल गई. बीजेपी ने जिन 64 उम्मीदवारों के नाम ज़ाहिर किये उनमें से 14 दूसरे दलों से आए हुए हैं.
राजनीति में परिवारवाद पर सबसे ज़्यादा अटैक बीजेपी करती है. मगर उसके भीतर न सिर्फ परिवारवाद पनप रहा है, बल्कि वो बाहर से भी परिवारवाद का आयात कर रही है. उत्तराखंड में तो दो-दो परिवारों का कांग्रेस से आयात हुआ है. उत्तराखंड बीजेपी के भीतर के परिवारवाद की सूची प्रस्तुत कर रहा हूं.
पहले नंबर पर आता है टिहरी का राजपरिवार. खंडूड़ी परिवार, पंत परिवार. बहुगुणा परिवार, आर्या परिवार, राणा परिवार, कंडारी परिवार और अब तिवारी परिवार नामक आठ प्रकार के परिवारवाद को मौका दिया गया है. इस सूची में अपने परिवार का नाम न देखकर दुखी होने वाले परिवार प्रधानों से मैं माफी मांगता हूं.
अब चलते हैं यूपी, जहां गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह कई साल से संगठन में सफल रहे हैं मगर तीन बार से टिकट नहीं मिल रहा है. इस बार भी पंकज सिंह की चर्चा है. राजनाथ सिंह को कल्याण सिंह से इसका राज़ पूछना चाहिए कि वे पंकज के लिए क्या करें. पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं. उनके बेटे राजवीर सिंह बीजेपी से सांसद हैं. राजवीर सिंह के बेटे संदीप सिंह को विधानसभा का टिकट दिया गया है.
हमने मीडिया रिपोर्ट और संवाददाताओं से बात कर यूपी बीजेपी के भीतर परिवारवाद की एक त्वरित सूची बनाई है. त्रुटि के लिए माफी वांछित है. आधार यह है कि परिवारवाद के नाम पर कोई संगठन में है या चुनाव लड़ा है या दावेदारी कर रहा है. हम नेताओं के नाम और उनके रिश्ते नहीं दे रहे हैं, सिर्फ उनके उपनामों से परिवारों की सूची बनाई है, जो निम्नलिखित है - संतकबीर नगर से त्रिपाठी परिवार, अलीगढ़ बुलंदशहर इलाके में कल्याण परिवार, बरेली में गंगवार परिवार, लखनऊ में टंडन परिवार, कल्याणपुर में कटियार परिवार, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में भी कई परिवार हैं. चुलबुल सिंह का परिवार है. वाराणसी कैंट से श्रीवास्तव परिवार की तीसरी पीढ़ी दावेदारी कर रही है, गाज़ीपुर में राय परिवार, कृष्णानंद राय की पत्नी हैं, वाराणसी भाजपा संगठन में कपूर परिवार. आगरा की तरफ बाह में राज दमन सिंह की पत्नी प्रक्षालिका सिंह को दिया है. राजा दमन सिंह को दो दलों की सरकार में मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. देवरिया से सांसद और सेंटर में मंत्री कलराज मिश्र के पुत्र अमित मिश्र लखनऊ से टिकट मांग रहे हैं. कांग्रेस से बीजेपी में आईं रीता बहुगुणा जोशी भी अपने बेटे के लिए टिकट मांग रही हैं. मुरादाबाद के सासंद सर्वेश सिंह अपनी पत्नी और बेटे के लिए टिकट मांग रहे हैं. बांदा के सांसद भी अपने भतीजे के लिए टिकट मांग रहे हैं.
कुल मिलाकर हम बारह-तेरह परिवारों तक तो पहुंच ही गए हैं. आप कहेंगे कि परिवारवाद तो सभी में है फिर बीजेपी के परिवारों की गिनती ही क्यों. यह वाजिब सवाल है. क्योंकि बीजेपी मानती रही है कि इस मामले में उसे नैतिक श्रेष्ठता हासिल है. अमित शाह जिस पद पर हैं वहां परिवारवाद के कोटे से कोई नहीं पहुंचा है. कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी परिवारवाद के प्रमुख चेहरे बताये जाते रहे हैं. वहां चांदी की चम्मच वालों के लिए सीट रिज़र्व है. इसका मतलब यह नहीं कि परिवारवाद की पहचान सिर्फ अध्यक्ष की कुर्सी से ही की जाए. सांसदों के हिसाब से भी बीजेपी में परिवारवाद है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं. वसुंधरा की बहन यशोधरा मध्य प्रदेश में मंत्री हैं. मेनका गांधी मंत्री हैं और उनके पुत्र वरुण गांधी भी सांसद हैं. पूर्व मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद सिंह सांसद हैं. छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह सांसद हैं. पूर्व वित्त मंत्ती यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा सांसद और वित्त राज्य मंत्री हैं. पूर्व मुख्यमंत्री पी के धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर सांसद हैं और युवा मोर्चा के चीफ थे. पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के पुत्र प्रवेश सिंह वर्मा सांसद हैं. प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महानज सांसद हैं और युवा मोर्चा की चीफ हैं. गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र सरकार में कबीना मंत्री हैं.
प्रधानमंत्री ने टिकट बांटने से पहले कहा था कि परिवार और नातेदारी के आधार पर टिकट न मांगे. रातों रात दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट मिलेगा और सालों साल खटने वाले का टिकट परिवार के नाम पर कैसे कट सकता है. यह चिन्ता की बात है कि कई सालों से परिवारवाद से लड़ने वाली बीजेपी के भीतर भी यह बीमारी घुस गई है. वैसे बीजेपी ने कांग्रेस, राजद जैसे परिवारवादी दलों पर हमला तो किया मगर अपने सहयोगी दलों के परिवारवाद पर हमला नहीं किया. बादल परिवार की बहू को मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया. अकाली दल सरकार में पिता मुख्यमंत्री, पुत्र उपमुख्यमंत्री. महबूबा मुफ्ती भी परिवारवाद के कोटे से आती हैं. अब उनके छोटे भाई भी पीडीपी में शामिल हो गए हैं.
शिवसेना में भी उद्धव ठाकरे को इसी से जगह मिली. लोकजनशक्ति में भी पासवान परिवार की चलती है. टीडीपी और केसीआर में भी पुत्रों ने पिता की पार्टी चलानी शुरू कर दी है.
वंशवादी राजनीति पर रिसर्च करने वाले न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रोफेसर कंचन चंदरा ने लिखा है कि संसद में 66 फीसदी पार्टियां परिवारवादी हैं. कांग्रेस के 44 सांसदों में करीब 21 सांसद परिवारवादी पृष्ठभूमि से हैं. हारते हारते भी कांग्रेस में परिवारवाद नहीं हारा लेकिन जीतते जीतते बीजेपी में परिवारवाद की अमर बेल फैल गई है. कंचन चंदरा के अनुसार बीजेपी के 15 प्रतिशत सांसद परिवारवादी हैं. मौजूदा लोकसभा में सभी दलों के मिलाकर 22 प्रतिशत सांसद परिवारवादी हैं. 22 प्रतिशत मतलब 100 से अधिक सांसद. मोदी सरकार में 24 प्रतिशत मंत्री परिवारवाद से जुड़े हैं.
बीसएपी में स्वामी प्रसाद मौर्या को निकालते वक्त मायावती ने कहा कि वे अपने परिवार को बढ़ावा दे रहे थे. अब बीएसपी ने भी परिवारवाद का खूब पालन किया है. हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला ने यूपी में एक त्वरित शोध किया है. इससे पता लगता है कि कई इलाके परिवारों की चपेट में है. ये परिवार एक से अधिक दल में दखल रखते हैं.
बहराइच में शाह परिवार का सियासी दबदबा है. बीमार चल रहे वकार अहमद शाह बहराइच शहर से विधायक हैं, सपा सरकार में श्रम मंत्री रहे हैं. इनकी पत्नी रुवाब सईदा बहराइच से सांसद रही. इनका बेटा यासिर शाह सपा सरकार में ट्रांसपोर्ट, पावर मिनिस्टर हैं. बलराम यादव सपा सरकार में मंत्री रहे, सांसद भी रहे हैं. बेटा संग्राम यादव अतरौलिया से विधायक हैं. बसपा के नेता और पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी बांदा से विधान पार्षद हैं. उनके बेटे अफजाल सिद्दीकी भी टिकटार्थी हैं. खुद राजकिशोर सिंह सपा के हरैया से विधायक और मंत्री रहे हैं. इनका भाई डिंपल सिंह रुदौली से सपा के प्रत्याशी है. गोंडा के कुवंर ख़ानदान की कहानी पर तो सीरियल बन सकता है. कुंवर आनंद सिंह गौरा से सपा के विधायक, कैबिनेट मंत्री हैं. इस बार वे सपा से अपनी जगह नाती के लिए टिकट मांग रहे हैं. मगर इनके बेटे कीर्तिवर्धन सिंह बीजेपी से सांसद हैं. सांसद कीर्तिवर्धन सिंह के चचेरे भाई विक्रम सिंह सपा से टिकट मांग रहे हैं. शिवपाल गुट के कारण इन्हें निर्दलीय लड़ना पड़ सकता है. गोंडा के ही पंडित सिंह जो सपा के गोंडा सदर से विधायक हैं और कृषि कैबिनेट मंत्री है. खुद तरफगंज से टिकट मांग रहे हैं और बेटे सूरज के लिए गोंडा सदर से टिकट मांग रहे हैं. अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भय्या कांग्रेस से करनैल गंज से विधायक रह चुके हैं. उनकी बहन बृज कुंवरी बसपा से करनैल गंज से विधायक रही हैं. अब लल्ला भय्या बीजेपी ज्वाइन करके अपना या अपने बेटे के नाम से टिकट मांग रहे हैं. तीन तीन दलों में दखल रखता है ये परिवार. मुजफ्फरनगर से बीसपी से सांसद रहे हैं कादिर राणा. इनकी पत्नी सईदा बेगम को बीएसपी से बुढ़ाना से टिकट मिला है. भाई नूर सलीम राणा चरथावल से बीएसपी से ही टिकट मिला है.
इसके अलावा भी कई ज्ञात अज्ञात परिवार हैं. मैंने इतनी लंबी लिस्ट इसलिए पढ़ी कि मैं थक जाऊं, यह देखने के लिए आप जनता मतदाता, दर्शक क्या इन नामों परिवारों से कभी थकते हैं या नहीं. वैसे इस सूची को देखकर लगता है कि परिवारवाद का मुद्दा राजनीति में समाप्त घोषित कर देना चाहिए। हमने कई सहयोगियों से पूछा सबने यही कहा कि किसी को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि परिवारवाद से राजनीति को नुकसान होता है. जिन दलों में परिवारवाद नहीं है वहां भी एक ही नेता है. बाकी सब उसके लिए लाउडस्पीकर.
This Article is From Jan 18, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : चुनाव से पहले दल-बदल का दलदल
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 18, 2017 22:14 pm IST
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Published On जनवरी 18, 2017 22:08 pm IST
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Last Updated On जनवरी 18, 2017 22:14 pm IST
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