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This Article is From Mar 15, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या आधार आपकी निजता में सेंध है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 15, 2016 21:19 pm IST
    • Published On मार्च 15, 2016 21:15 pm IST
    • Last Updated On मार्च 15, 2016 21:19 pm IST
भारत में 99 करोड़ लोगों के पास आधार कार्ड है। आपमें से बहुत लोग आधार का इस्तेमाल अलग-अलग मदों में करते भी होंगे। क्या आपको याद रहता है कि आधार बनते समय आपकी पहचान को लेकर क्या-क्या रिकॉर्ड किया गया और उस रिकॉर्ड का क्या हो सकता है। ज़रूर हम या आप आधार कार्ड पर दिए गए नंबर का इस्तेमाल अन्य दस्तावेज़ों के विकल्प के रूप में करने लगते हैं। आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि आधार को लेकर जो डेटा जमा हुआ है उसमें कोई भी विदेशी एजेंसी शामिल नहीं है। जो भी डेटा है वो विदेश में नहीं बल्कि भारत के बेंगलुरू और मानेसर में सुरक्षित रखा गया है।

याद कीजिए आधार कार्ड बनाते वक्त आपसे क्या-क्या मांगा गया था। एक फॉर्म भरा होगा आपने, जिसमें अपना नाम, माता-पिता का नाम, लिंग, उम्र, जन्म तिथि, गांव, ज़िला से लेकर राज्य तक की जानकारी देनी होती है। ईमेल, मोबाइल नंबर और पिन कोड भी आप फॉर्म में भरते हैं। माता-पिता या पति या पत्नी का आधार नंबर भी आपके आधार के फॉर्म में होता है। जन्म तिथि का प्रमाण देना होता है। पहचान और पते का प्रमाण भी देना होता है। पहचान के लिए 18 प्रमाणों में से एक और स्थायी पता के लिए 33 प्रमाणों से कोई एक देना होता है। जैसे राशन कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, मतदाता पहचान पत्र देने से पहचान और पता दोनों का काम हो जाता है। स्थायी पते के लिए पानी-बिजली या टेलीफोन का तीन महीने का बिल दिया होगा। जब आप आधार कार्ड की मशीन के सामने जाते होंगे तो आपकी सभी उंगलियों के निशान लिए गए होंगे। आंखों की पुतली को स्कैन किया गया होगा और फोटो खींचा गया होगा। इतनी जानकारी जमा करने के बाद आपको आधार नंबर मिलता है। उस नंबर के ज़रिये कोई भी जान सकता है कि आप कौन हैं, किस धर्म के हैं, कहां रहते हैं, कैसे दिखते हैं। इसके अलावा आवेदन फॉर्म में बैंक खाते का नंबर भी देना होता है। आधार के फॉर्म में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर सर्वे का नंबर भी देना होता है जहां ये जानकारी दर्ज होती है कि आप किस मज़हब, जाति के हैं, कौन सी भाषा बोलते हैं। आपकी आमदनी क्या है।

भारत में हर दिन पांच से सात लाख लोगों का आधार कार्ड बन जाता है। भारत सरकार ने हाल ही में लोकसभा में मनी बिल के रूप में आधार, Targeted Delivery of Financial and other subsidies, Benefits and services Bill 2016 बिल पेश किया और पास करा लिया। सरकार ने इसे कानूनी रूप दे दिया है। वित्त मंत्री जेटली ने सदन में कहा कि इस बिल का मकसद इतना है कि सब्सिडी का पैसा किसे मिल रहा है। जिसे मिल रहा है वो इसका हकदार है या नहीं। वित्त मंत्री ने अपना उदाहरण दिया कि जब वे अपनी कार के लिए डीज़ल ख़रीदते हैं तो उन्हें सब्सिडी मिलती है जबकि नहीं मिलनी चाहिए। यह बहस चलती भी है कि डीज़ल कार की बिक्री इसलिए बढ़ती है क्योंकि डीज़ल सब्सिडी के कारण सस्ती होती है। अब वित्त मंत्री के उदाहरण से साफ नहीं हुआ कि क्या आधार कार्ड के इस्तेमाल से सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि डीज़ल की सब्सिडी सिर्फ किसान को ही मिले। बड़ी गाड़ी वालों को न मिले। किसानों को आधार कार्ड के ज़रिये अलग दर पर डीज़ल दिया जा सकता है। चूंकि उदाहरण डीज़ल का दिया गया इसलिए ये सारे ख़्याल मन में आ गए।

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में इस बात पर बार-बार ज़ोर दिया कि हम संसाधनों की बचत कर अधिक से अधिक ज़रूरतमंदों तक सब्सिडी के लाभ को पहुंचाना चाहते हैं। रविशंकर प्रसाद ने राज्य सभा में कहा कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के ज़रिये 1500 करोड़ और जनवितरण प्रणाली में 2346 करोड़ की बचत हुई है। पिछले अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने जनवितरण प्रणाली के अलावा मनरेगा, पेंशन योजना और ईपीएफ को भी आधार के दायरे में ला दिया था। तब कोर्ट ने यही कहा था कि लोककल्याणकारी योजनाओं में आधार वैकल्पिक होना चाहिए। अंतिम फैसला आने तक अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर फैसला होना है कि आधार कार्ड हासिल कर आपकी हमारी निजता यानी प्राइवेसी में कोई दखल तो नहीं दे सकता है। लोकसभा में वित्त मंत्री ने यही कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है इसलिए निजता के सवाल से किनारा करते हैं लेकिन आधार कार्ड के डेटा को लेकर जो आशंका जताई जा रही है उसके बारे में जवाब देना चाहते हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि बिल के चैप्टर VI में सूचनाओं को गुप्त और सुरक्षित रखने के प्रावधान हैं। कैसे सुरक्षित रखा जाएगा इसकी प्रक्रिया तय की गई है। सेक्शन 8 के तहत कुछ डेटा किसी व्यक्ति की मर्ज़ी से साझा किये जा सकते हैं लेकिन बायेमेट्रिक डेटा यानी आंखों की पुतली या उंगलियों के निशान सहमति से भी साझा नहीं किये जाएंगे। सेक्शन 29 कहता है कि कोर बायोमेट्रिक डेटा किसी से साझा नहीं किया जाएगा।

बायेमेट्रिक डेटा और कोर बायोमेट्रिक डेटा में कोई फर्क है या नहीं, मेरी इस मामले में कम जानकारी है। मर्ज़ी से जो डेटा साझा किया जा सकता है वो क्या है और किसके साथ साझा किया जा सकता है। मर्ज़ी से डेटा शेयर किया जाएगा तो वो प्रक्रिया व्यक्ति और राज्य के बीच तय होगी या कोई आपके या हमारे बदले राज्य से जानकारी ले लेगा। जैसे किसी कंपनी ने आपसे सहमति ले ली और राज्य से वो डेटा ले लिया। हम बात भी करेंगे कि इससे आपका नुकसान होगा या नहीं। वित्त मंत्री ने यह ज़रूर कहा कि अदालत अगर डेटा मांग दे तो हम उसकी शक्ति को सीमित नहीं कर सकते हैं। इस बिल के अनुसार ज़िला जज से ऊपर का कोई भी जज डेटा मांग सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अगर कोई सूचना किसी खास उद्देश्य के लिए साझा की जानी है तो वो फैसला संयुक्त सचिव स्तर का कोई अधिकारी करेगा।
कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी होगी जो हर फैसले की समीक्षा करेगी।

एक तरफ कोर्ट दूसरी तरफ ज्वाइंट सेक्रेट्री का फैसला। क्या यह सुरक्षित है और नहीं तो इसके ख़तरे क्या हो सकते हैं। सरकार के पास तरह तरह के रिकार्ड के रूप में आपकी जानकारी तो होती ही है। वो चाहे तो उन दस्तावेज़ों से भी आपकी जानकारी ले सकती है। जैसे पासपोर्ट की जानकारी साझा करने से आपकी हमारी प्राइवेसी का उल्लंघन होता है इसे भी समझ लेने में कोई बुराई नहीं है। वित्त मंत्री ने एक बात कही है कि अगर कोई प्राइवेट एजेंसी आधार नंबर ले भी ले तो वो इसे लीक नहीं करेगी। ये उससे उम्मीद की जाती है या वो नहीं कर पाएगी इसके लिए सख्त प्रावधान है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने इस बिल का अध्ययन करते हुए सवाल किया है कि अगर बिल का मकसद सिर्फ सब्सिडी को सही लोगों तक पहुंचाना है तो फिर प्राइवेट एजेंसी को आधार का डेटा देने का क्या मतलब है।

बिल के चैप्टर 7 में कहा गया है कि सब्सिडी देने के लिए आधार के तहत उसकी पहचान की पुष्टि की ज़रूरत पड़ेगी।
इसका प्रमाण देना होगा कि आधार कार्ड आपका ही है। चैप्टर 57 में कहा गया है कि कोई भी पब्लिक या प्राइवेट व्यक्ति आधार नंबर का इस्तेमाल कर सकता है ताकि वो उस व्यक्ति की पहचान की पुष्टि कर सके। समझने का प्रयास करेंगे कि आधार नंबर अंतिम पहचान है या आधार नंबर देने के बाद भी उसका वेरिफिकेशन होता रहेगा। पीआरएस लेजिस्लेटिव का कहना है कि इस प्रावधान से टेलिकॉम, एयरलाइन्स या बीमा कंपनियां आपसे आधार नंबर मांग सकती हैं। हम अपने मेहमान से पूछेंगे कि इससे हमारा आपका क्या नुकसान है। पीआरएस ने प्रोफाइल का सवाल उठाया है। जैसे अगर आधार कार्ड के नंबर से यह पता लगा लिया जाए कि आपने कहां कहां विमान यात्रा की, फोन का रिकॉर्ड मिल जाए तो क्या नुकसान होगा। इन्हीं सब जानकारी को प्रोफाइल कहा जाता है। जैसे सोशल मीडिया पर आपने देखा होगा। अगर आप लड़की हैं तो आपके पेज पर लड़कियों से संबंधित उत्पादों के ही विज्ञापन आने लगते हैं। लड़का हैं तो विज्ञापन बदल जाता है। आपके सर्च करने के पैटर्न से आपके पेज पर न्यूज़ फीड भी उसी से मिलता जुलता आने लगता है। यह सब प्रोफाइल से संभव होता है। अगर आधार से यह सब होने लगे तो उसके क्या खतरे होंगे।

क्लॉज़ 47(1) में कहा गया है कि इस एक्ट के तहत कोई अपराध हुआ तो कोर्ट उसका संज्ञान नहीं ले सकता। जब तक कि यू आई डी अथॉरिटी शिकायत न करे या वो किसी को शिकायत करने के लिए अधिकृत न करे। पीआरएस का कहना है कि इस प्रावधान से तो यही लगता है कि आप एक व्यक्ति के रूप में सीधे कोर्ट जा ही नहीं सकते। अगर सरकार को अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर इतना ही भरोसा है तो वो किसी नागरिक को सीधे कोर्ट जाने का अधिकार क्यों नहीं देती है। इस कानून में डेटा की सुरक्षा का दायित्व यूआईडी अथॉरिटी के पास है। अगर उसी के कर्मचारी से चूक हो गई तो आम नागरिक उसी अथॉरिटी से इंसाफ की उम्मीद कैसे कर सकता है। क्या इस बारे में कोई स्पष्टता है। अगर डेटा चोरी हुआ या किसी से साझा कर लिया गया तो वो आपके बारे में हर चीज़ जान जाएगा। क्या आप अपनी सारी जानकारी किसी से भी साझा करने के लिए तैयार हैं। अगर आधार कानून का मकसद सिर्फ सब्सिडी को ज़रूरतमंद तक पहुंचाना है तो इसके दायरे में उन्हें क्यों शामिल किया गया जो सब्सिडी नहीं लेते हैं। एलपीजी का उदाहरण दिया गया कि अमीर लोग भी सब्सिडी ले रहे थे लेकिन क्या यह पर्याप्त उदाहरण है।

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