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This Article is From Sep 15, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : भारत में इंजीनियरिंग के हाल पर चर्चा

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 15, 2016 22:04 pm IST
    • Published On सितंबर 15, 2016 22:04 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 15, 2016 22:04 pm IST
15 सितंबर को इंजीनियर दिवस मनाया जाता है. उनकी सोचिए जो इंजीनियर तो बन गए हैं लेकिन उसके लायक हैं ही नहीं. भारत के युवाओं का अच्छा खासा प्रतिशत इंजीनियर बनने का सपना देखता है, वो नहीं भी देखता है तो उसके बदले मां बाप सपना देखते हैं. पहला तनाव होता है कि इंजीनियर बनना ही होगा और दूसरा तनाव होता है कि नहीं मुझे इंजीनियर बनना ही नहीं है. जो बन जाते हैं वो कोचिंग संस्थानों के पोस्टरों में अनगिनत छात्रों के साथ छप जाते हैं. इस कामयाबी का जश्न समाज व्यापक स्तर पर मनाता है.

इस साल आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में 12 लाख बच्चों ने हिस्सा लिया था. मगर सवाल है कि भारत में जिस परीक्षा के लिए छात्र अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा हवन कर देते हैं वो जब इंजीनियर बनकर निकलते हैं तो किस लायक होते हैं. क्या वे वाकई इंजीनियर बन पाते हैं. प्रतिभा की पहचान और शोध से जुड़ी एक कंपनी Aspiring Mind की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक 8% से भी कम भारतीय इंजीनियर, इंजीनियरिंग की ठोस भूमिकाओं यानी कोर एरियाज में नियुक्त किए जाने के लायक हैं. यानी 92 फीसदी इंजीनियर कोर एरिया के लायक नहीं हैं. कोर एरिया का मतलब हुआ मेकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रिकल और केमिकल इंजीनियरिंग.

2011 में नैसकॉम ने एक सर्वे में पाया कि सिर्फ़ 17.5% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ही नौकरी के लायक थे. नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज़ कंपनी का छोटा नाम है नैसकॉम. इसके सर्वे के मुताबिक 82.5 प्रतिशत इंजीनियर नौकरी के लायक नहीं मिले. भारत में करीब साढ़े तीन हज़ार इंजीनियरिंग कालेज हैं. अकेले तमिलनाडू में एक हज़ार से अधिक कॉलेज हैं. 2015 के आंकड़े के अनुसार इन कॉलेजों में 16 लाख सत्तर हज़ार सीट हैं. तो क्या भारत ख़राब इंजीनियर के साथ साथ ज़रूरत से ज़्यादा इंजीनियर पैदा कर रहा है.

देश में तकनीकी शिक्षा को रेग्युलेट करने वाला (AICTE) यानी All India Council of Technical Education देश में अंडर ग्रेजुएट इंजीनियरिंग सीटों को अगले कुछ साल में 40% तक कम करना चाहता है. इसके लिए कई कॉलेजों को बंद करना होगा और बाकी कॉलेजों में छात्रों की संख्या कम करनी होगी. AICTE के चेयरमैन अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि हम इंजीनियरिंग की सीटों की संख्या 16.7 लाख से घटाकर दस से ग्यारह लाख के बीच लाना चाहते हैं. उन्होंने यह बात 2015 में कही थी जो एक अखबार में छपी थी. अगर आप सोच रहे हैं कि कुकरमुत्ते की तरह उग आए इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्रों की गुणवत्ता खराब है तो पूरी तरह ठीक नहीं हैं.

The National Employability Report ने देश भर में क़रीब डेढ़ लाख इंजीनियरों पर आधारित सैंपल के आधार पर विश्लेषण किया है. पता चला है कि इन इंजीनियरों में कौशल की भारी कमी है. एक मैकेनिकल डिज़ाइन इंजीनियर के लिए 5.55 प्रतिशत ही योग्य हैं. सिविल इंजीनियर के लिए सिर्फ़ 6.48% लोग ही योग्य हैं. केमिकल डिज़ाइन इंजीनियर के काम के लिए सबसे कम 1.64% इंजीनियर ही योग्य साबित होते हैं. इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर के रोल के लिए 7.07% इंजीनियर ही योग्य साबित हो पाते हैं.

ख़राब इंजीनियर और अधिक इंजीनियर के अलावा एक चुनौती यह भी है कि ज़्यादातर इंजीनियर आईटी सेक्टर में जाना चाहते हैं. बेसिक इंजीनियरिंग की तरफ बहुत कम जाने वाले होते हैं. बल्कि अब यह कहा जा रहा है कि इस कमी के कारण मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के विकास में बाधा आ रही है. छात्रों की बुनियादी समझ बेहद कमज़ोर है. इंजीनियरिंग के अलावा यह भी कहा जाता है कि इंजीनियर समाज विज्ञान के मामले में भी काफी कमज़ोर हैं.

बीते 15 सालों में इंजीनियरिंग में छात्रों का दाखिला पांच गुना बढ़ा है जबकि नौकरियां 10% कम हुई हैं. आज बहुत से इंजीनियर चार साल की पढ़ाई के बाद पांच से दस हज़ार के बीच नौकरी करने पर मजबूर हैं. गुजरात में जब पटेल आंदोलन भड़का था तब छात्रों की एक शिकायत यह भी थी कि ज़मीन बेच कर इंजीनियरिंग में दाख़िला लिया मगर नौकरी मिली पांच हज़ार की. कुछ हफ्ते पहले मोहन दास पाई का एक बयान पीटीआई के हवाले से छपा था कि आज का बी टेक दसवीं पास के बराबर है.

ख़राब कॉलेजों से निकले ज़्यादातर इंजीनियर ओला और उबर टैक्सी के लिए ही लायक हैं. मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूं. बेंगलुरू में कई सॉफ्टवेयर इंजीनियर नौकरी छोड़ कर ओला और उबर कार चला रहे हैं. पैसा कमा रहे हैं. आईटी कंपनी में 14 घंटे काम करके साल के साढ़े तीन लाख कमाने की क्या ज़रूरत है जब आप कार चलाकर साल में छह से सात लाख कमा सकते हैं.

ख़राब इंजीनियर, ज़्यादा इंजीनियर के अलावा सवाल है कि जो इंजीनियर बन रहे हैं क्या वे इंजीनियरिंग का काम कर रहे हैं या कुछ और कर रहे हैं. आए दिन कहीं न कहीं आईटी कॉलेज खोलने का ऐलान हो जाता है, लेकिन उसी के साथ खबर आ जाती हैं कि फलाने राज्य के कई कॉलेजों में सीट भी नहीं भरी. आज इंजीनियर दिवस है. सबने एम विस्वेसवरेया की तस्वीर को ट्वीट किया लेकिन अच्छा होता उनकी याद में भारत इंजनीयिरिंग की अपनी नई उपलब्धियों की तस्वीरें ट्वीट करता.

इंजीनियर दिवस उन्हीं की याद में मनाया जाता है. मैसूर के विस्वेसवरेया ने पुणे से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. एमवीके नाम से मशहूर विस्वेसवरेया के प्रयासों से ही कृष्णराज सागर बांध, भावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्ट्री, मैसूर विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ. उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चुका है.

एक ज़माने में इंजीनियर बनना बड़ी बात थी, आज के ज़माने में इंजीनियर न बनना बड़ी बात है. जो बन गया वो इंजीनियरिंग छोड़ कभी फाइनांस में काम करता है तो कभी फिल्म में चला जाता है तो कभी अच्छा और बुरा लेखक बन जाता है. एक सज्जन ने ट्वीट किया है कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां पहले हम इंजीनियर बनते हैं फिर उसके बाद फैसला करते हैं कि उसके बाद ज़िंदगी में क्या करना है. सभी इंजीनियर दिवस की शुभकामनाएं.

क्या भारत के इंजीनियर वाकई नौकरी पर रखे जाने लायक नहीं हैं. अगर ये हालात है तो फिर वो कौन है जो विस्वेसरैया का जन्मदिवस मना रहा है. इंजीनियर बनाने के नाम पर देश में अरबों रुपये का कोचिंग कारोबार चल रहा है, तनाव में बच्चे आत्म हत्या कर रहे हैं लेकिन जब बन जाते हैं तो ज़्यादातर इंजीनियर ही नहीं रहते.

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रवीश कुमार, प्राइम टाइम इंट्रो, इंजीनियरिंग, इंजीनियर दिवस, एम विस्वेसवरेया, Ravish Kumar, Prime Time Intro, Engineering, Engineer Day, M Vishweshwaraya