नमस्कार मैं रवीश कुमार। राजनीति में कुछ ऐसा हो रहा है जिस पर आप दर्शकों को अपने−अपने दलों की निष्ठा से ऊपर उठ कर नज़र रखने की ज़रूरत है। हो सकता है कि इस मैच में कोई दल किसी प्वाइंट से आपकी नज़र में जीत रहा हो, लेकिन कुल मिलाकर हम सब हार रहे हैं। अगर ये बात ठीक न लगे तो कांग्रेस बीजेपी के पाले में अपनी कुर्सी खींच कर बैठ जाइये और प्राइम टाइम देखिये। लेकिन पहले ये तस्वीर देखिये जो आज के हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी है।
तस्वीरानुसार वेंकैया नायडू से कांग्रेस के नेता सहज रूप से एकांत में वार्तालाप कर रहे हैं। इससे ज्ञात होता है कि हमारे नेता प्राइवेट स्पेस यानी ड्राइंग रूम टाइप की जगहों पर एक दूसरे से हंसते हुए बतियाते भी हैं। इस तस्वीर को देखकर लगेगा कि एक आप और आप हैं जो इन दोनों दलों के तकरार को गंभीरता से लेने लगते हैं। इन तस्वीरों को देखिये और खुद से सवाल कीजिए कि क्या सार्वजनिक स्पेस में ये नेता ऐसे रिश्तों का प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं।
चर्चा का संदर्भ आप जानते ही हैं कि हरियाणा के कैथल में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भाषण दिया तो उनकी हूटिंग हो गई। हूटिंग अंग्रेजी का शब्द है आप इसे हुले लेले या नारेबाज़ी से समझ सकते हैं। मुख्यमंत्री ने अपना भाषण बीच में ही समाप्त कर दिया।
अखबारों की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री ने भीड़ से शांत होने की अपील भी की। बाद में मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका अपमान हुआ है और अब वे प्रधानमंत्री के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाएंगे। अब अगर ऐसा कह भी दिया तो क्या प्रधानमंत्री को इसकी सूचना मिलने पर सार्वजनिक या व्यक्तिगत रूप से खेद नहीं जताना चाहिए था।
दूसरी तरफ क्या यह बात इतनी बड़ी थी कि हुड्डा साहब को ऐसा ऐलान करना चाहिए था। कांग्रेस को अपने सहित विपक्षी मुख्यमंत्रियों से प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बहिष्कार की अपील करनी चाहिए थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी ऐलान कर दिया और आज जब प्रधानमंत्री महाराष्ट्र पहुंचे तो वे नहीं गए। लेकिन आज एक सकारात्मक बात हुई।
नागपुर में केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से बात की। उनसे कहा कि यह कार्यक्रम केंद्र और महाराष्ट्र का साझा है। आना चाहिए। वेकैंया ने कहा कि उनकी कमी खल रही है। प्रधानमंत्री संघवाद में यकीन रखते हैं।
महाराष्ट्र से पहले प्रधानमंत्री झारखंड गए। वहां पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी लोगों से अपील की कि शांत रहें और उन्हें भाषण पूरा करने दें, लेकिन उनके खिलाफ भी नारेबाज़ी होने लगी और भीड़ मोदी मोदी करने लगी। लेकिन यहां पर प्रधानमंत्री नारेबाज़ी करने वालों को चुप कराते हुए तस्वीरों में दर्ज हो गए। यह एक अच्छा कदम था। मगर इसके बाद भी लोग नहीं माने। संवैधानिक व्यवस्था में प्रधानमंत्री का दर्जा बड़ा है। क्या एक बड़े के नाते उन्हें मुख्यमंत्रियों को फोन कर इस विवाद को खत्म नहीं कर देना चाहिए था। प्रधानमंत्री तो खुद ही सीएम और पीएम की टीम बनाने की बात एक साल से कर रहे हैं। क्या इस टीम के मौजूदा और भावी मुखिया के नाते उन्हें ही पहल कर विवाद को समाप्त नहीं कर देना चाहिए था। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह राज्यों के साथ अपमान है।
लेकिन, क्या कांग्रेस प्रधानमंत्री का अपमान नहीं कर रही है। क्या उसे इस हद तक जाने से पहले यह नहीं सोचना चाहिए था कि देश के प्रधानमंत्री हैं। विरोध का दूसरा तरीका भी हो सकता है। आखिर इस लड़ाई का अंत कहां जाकर होगा। कोई लोकतंत्र की कसमें खाते हुए किसी के सामने जाने या बात करने का विरोध कैसे कर सकता है।
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि वे लोगों को नारेबाज़ी करने से नहीं रोक सकते हैं। मोदी जी इतने लोकप्रिय हैं और बीजेपी के पक्ष में देशभर में लहर चल रही है तो क्या कर सकते हैं। क्या एक केंद्रीय मंत्री का यह जवाब पर्याप्त था। क्या गोयल को वेंकैया नायडू से नहीं सीखना चाहिए। क्या सारी राजनीति इसी बुनियाद पर होगी कि पहले कांग्रेस ने किया तो हम भी करेंगे। कांग्रेस ने अपनी तरफ से कौन सी उदारता दिखा दी। अंबिका सोनी ने कहा कि हम इस तरह की बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम भी नारे लगाने के लिए पांच सौ लोगों को खड़ा कर सकते हैं जब पीएम बोल रहे हों।
गूगल में जब विचरण किया तो कुछ जानकारियां मिलीं जिससे अंबिका सोनी जी को काफी लाभ हो सकता है। वो यह है कि अक्तूबर 2013 में जब प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह अहमदाबाद गए। सरदार वल्लभ भाई पटेल म्यूज़ियम के उद्घाटन के लिए तो नरेंद्र मोदी ने वहां कहा कि काश सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो देश की तस्वीर कुछ और होती।
अखबारों की रिपोर्ट के अनुसार तब मोदी के खिलाफ भी हूटिंग हो गई थी। मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कायदे से जवाब दे दिया कि सरदार पटेल सच्चे कांग्रेसी थे और उनकी सोच सेकुलर थी। सवाल जवाब का यही तरीका होना चाहिए कि आप मौके पर ही बात कह दें मगर लोकतांत्रिक तरीके से।
अक्तूबर 2013 में ही वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। उन्हें सरदार पटेल की प्रतिमा के शिलान्यास कार्यक्रम में बुलाया गया था। आनंद शर्मा ने कहा कि मोदी सरदार पटेल का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका इरादा गंभीर नहीं है।
सभा में ताली बज जाती है और गाली भी पड़ जाती है। राजनीति में आप हैं और आजकल आप राजनीति के अलावा मीडिया में है तो इसकी आदत पड़ जानी चाहिए। आज के मसले को हम कांग्रेस और बीजेपी की नज़र से समझने का प्रयास करेंगे और हमेशा की तरह फेल हो जाएंगे प्राइम टाइम में।
(प्राइम टाइम इंट्रो)